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अधिक-मास-दर्पण.
आचार्य श्रीमान् अभयदेवमूरजी इस बातकों नही जानते थे? अगर कहा जाय जानते थे तो फिर उनोंने अपनी बनाइ हुइ पंचाशकसूत्रकी टीकामें तीर्थंकर महावीरस्वामीके पांच कल्याणिक क्यौं फरमाये? और एसा क्यों नही लिखा कि तेइस तीर्थंकरोंके पांच पांच कल्याणिक है, मगर तीर्थकर महावीरस्वामीके छह कल्याणिक जानना, मगर कैसे लिखे ? जो बात मूलपाठमें न हो वो टीकामें कहांसे लावे? कल्पसूत्र आचारांगसूत्र या स्थानांगसूत्रमें अगर गर्भापहारकों छठा कल्याणिक कहा होता तो प्राचीन टीकाकार छह कल्याणिक जरूर लिखते, श्रीमान् हरिभद्रसूरि और श्रीमान् अभयदेवमूरिभी लिखते, में खरतरगछके मुनि श्रीयुत मणिसागरजीकों पूछता हूं आपको अपने खरतरगछके आचार्य श्रीमान् अभयदेवसूरजीके वचन प्रमाण है या नही? अगर प्रमाण है तो पांच कल्याणिक मानना मंजुर करो, अगर प्रमाण नही है, तो बजरीये छापेके अपने हस्ताक्षरकी सहीसे जाहिर करो कि मुजको श्रीमान् अभयदेवसूरिजीके वचन प्रमाण नहीं. __ २१ जैनशास्त्रोंमें पंचमीकी संवत्सरी करना कल्पसूत्रके पाठसे ठीक है, और उसी कल्पसूत्रके अंतराविसे कप्पइ इस पाठसे चतुर्थीकी संवत्सरी करनाभी ठीक है, दोंनों पक्षमे कोइ पक्ष जूठा है. एसा कहना नही बन सकता, जैनशास्त्र कल्पसूत्रकी अपेक्षा दोंनों बात ठीक है. अगर कोइ महाशय पंचमी तिथि उलंघनकरके छठके रौज संवत्सरी करे तो Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com