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अधिकमास-दर्पण.
बारह महिनोंका वर्स कुबुल करो या अभिवर्द्धित संवत्सरका एक महिना गिनतीमेंसें छोडदो, अगर जैनशास्त्रपर चलते हो तो जिनेंद्रोंने फरमाया है मुताबिक जैनज्योतिषके वर्षा ऋतु में अधिकमहिना नही आता. फिर आपने अन्यमतके पंचांगपर चलकर गतवर्समें दो भादवे क्यों माने? जैनशास्त्रपर चलना तो जैनज्योतिषको मंजुर रखना चाहिये, अब उत्सूत्रप्ररूपणा किसकी है? इसपर खयाल किजिये, मेरी बनाइ हुइ मानवधर्मसंहिताका लेख इस बातपर है कि अधिकमहिना वार्षिकपर्वकी अपेक्षा गिनतीमें नही लेना.
१८ फिर खरतरगछके मुनि श्रीयुत मणिसागरजी अपने विज्ञापन नंबर आठकी सूचनामें दुसरेको लिखते है, न्यायरत्नजी शांतिविजयजीकी भूलोंका प्रकाश होगया है. बांचने लायक है.
जबाब-न्यायरत्न-शांतिविजयजीकी कौन कौनसी भूले थी, शास्त्र सबुतसे पाठ देकर बतलाइ क्यों नही? दुसरेके लेखोंको बिना सबुत पेंश किये भूलवाले कहना. अमूक शख्शकी भूलोंका प्रकाश होगया कहना सहज है, मगर साबीत करके बतलाना सहज नहीं है, जैनशास्त्रके पाठ देकर न्यायरत्नकी भूल साबीत किजिये. . १९ आगे खरतरगछके मुनि श्रीयुत मणिसागरजी अपने विज्ञापन नंबर छठेमें इस मजमूनकों पेश करते है, अनेक गछोंके अनेक पूर्वाचार्योंने सामायिकमें प्रथम करेमिभंते उच्चारण किये बाद इरियावही करनेका पाठ कहा है, उसShree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com