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अधिक-मास-दर्पण.
लोग तीर्थकर तरीके नही मानते थे, तो आजकल मुजे कोइ जैन मुनितरीके न माने तो कौन ताज्जुबकी बात है ? मानना न मानना अपनी मरजीके ताल्लुक है, शांतिविजयजीको जोजो श्रावक मुनितरीके मानकर वंदन करते हैं, उनको धर्मलाभ देते हैं, जो जो श्रावक नही मानते, और वंदन नही करते, उनको धर्मलाभ नही देते, जैनशास्त्रोंमें जैनमुनिके जो जो गुण और व्रत बयान किये हैं. और इसीतरह श्रावककें भी जो जो गुण व्रत लिखे हैं उसपर बरताव करनेवालोंको जैनमें मुनि और श्रावकतरीके मानना मुनासिब फरमाया. जैनशास्त्रोंका जो कुछ फरमान था, इतनेमें आगया अकलमंद लोग गौर फरमावे.
१० आगे खरतरगछके मुनि श्रीयुत मणिसागरजी अपने विज्ञापन नंबर सातमें तेहरीर करते हैं, मेरे बनायेहुवे लघु पर्युषणानिर्णयके प्रथम अंकके सब लेखोंका न्यायसे पुरेपुरा उत्तर देनेकी आपमें ताकात नही. यदि होती तो अधिक मासमे सूर्य चार न होवे, वनस्पति न फुले, वगेरा बातोका खुलासा क्यों नहीं दिया?
जवाब-अगर अधिकमासमें सूर्य चाल चलता है और वनस्पति फुलती है, इस सबबसे आप अधिकमासको गिनवीमे लेना चाहते हो, तो आपलोग खुद जब दो आषाढ
आवे पहले आषाढको चातुर्मासिक व्रत नियमकी अपेक्षा गिनतीमे क्यों नही लेते ? दो पौष महिने आवे जब तीर्थकर पार्थनाथमहाराजका जन्म कल्याणिक एक पौषमें करते हो Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com