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अधिक-मास-दर्पण. तीमें लिया है. बस! यही बात समजनेकी है, अगर कोई न समजे उसका क्या किया जाय, अकलमंद लोग इस बातकों समज लेवे और सत्य क्या चीज है, उसका इम्तिहान करे.
१५ आगे खरतरगछके मुनि श्रीयुत मणिसागरजी अपनी बनाइ हुइ लघुपयूषणनिर्णय किताबके पृष्ठ (७) पंक्ति (१२) पर बयान करते है. प्राचीनशास्त्रोंमें दो-चौदसको दो-तेरस बनाना किसी जगह नही लिखा.
जवाब-आप लोग दो-चतुर्दशी आवे जब दो चौदस मानते हो या एक ? अगर एक मानते हो तो तपगछवालोंके मंतव्यपर आना पडेगा, अगर दो मानते हो तो फिर जब दो चतुर्दशी आती है, तब दोनों चतुर्दशीके रौज दो दिनके उपवासव्रत क्यों नही करते? और दोनों दिन पाक्षिक प्रतिक्रमण क्यों नही करते ? पाक्षिक प्रतिक्रमण एकही रौज करना, उपवासभी एकही रौज करना, फिर दो चौदस मानी एसा किसप्रमाणसे कह सकते हो? दो-एकादशी तिथि आती है, तो दो-दिन उपवासव्रत क्यों नहीं करते? जब दो पंचमी तिथि आती है तो ज्ञानपंचमीके दो-उपवास क्यों नही करते ? सबुत हुवा आप लोगभी एकपर्व तिथिको व्रतनियमकी अपेक्षा आराधन करते हो दुसरीको नही करते, फिर बात क्या हुइ ? बात यही हुइ जो तपगछवाले मानते है, आपके लघुपर्युषणा निर्णयके पृष्ठ (२५-२६) वगेरा सब मेने देख लिये है. उनमे किसीजगह आपने यह नहीं
वतनियरत ? सबुतर तो ज्ञानपंच
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