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अधिक-मास-दर्पण. सहायता लेवे तो यह बात मुताबिक जैनशास्त्रके उत्सर्गमार्गमें समजना या अपवादमार्गमें ? इसपर कोइ कहे जमाना पहले जैसा नही रहा, शरीरकी ताकत कम हो गई इस लिये जमाने हालमें जैनमुनिकों इरादेधर्मके एसी सहायता लेनी पडती है, तो जवाबमें मालुम हो यह उत्सर्गमार्ग नही रहा, शिथिल मार्ग कहना चाहिये, शिथिलमार्गपर चलकर कोइ अपनी धर्मक्रियाकी महत्वता करे तो यह मुनासिब नही, जहांतक शरीरकी मूर्छा प्रबल रहे उत्सर्गमार्गपर चलना दुसवार है, अगर विहारके वख्तभी असहायक होकर विहार करे तो अछी बात है.
कलम दूसरी-जैनशास्त्रोंमे जैनमुनिको नवकल्पी विहार करना कहा. अगर कोइ जैनमुनि या जैनसाधवी विद्या पढ.नेके लिये किसी गांवनगरमें या जैनपाठशाला वगेरामे दो
दो चारचार वर्सतक ठहरे तो बतलाइ ये! यह बात उत्सर्गमार्गमें समजना या अपवादमार्गमें? अगर कहा जाय, इरादे विद्यापढनेके लिये एक गांवनगरमें ज्यादा ठहरना कोई हर्ज नही, तो सोचो! विद्यापढने के लिये विहार में शिथिलमार्गका सहारा लेना पडा या नहीं? फरमान तीर्थकर गणधरोंका देखो तो विद्या भी पढते रहना, और नवकल्पी विहारभी करते रहना चाहिये, पंचमहाव्रतधारी उत्कृष्ट क्रियावान्को विद्यापढनेके लिये चारित्रमें शिथिलता क्यों करना? कलम तीसरी, जैनशास्त्रोंमें लिखा है, जैनमुनिको उत्सर्गमार्गमें उद्यान बनखंड बागबगीचे या पहाडोंकी गुफामे रहना
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