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अधिक-मास-दर्पण. चाहिये, आजकलके मनुष्योंकी एसी ताकत नही रही, इस लिये इरादे देहरक्षा और संयमरक्षाके गांवनगरमें रहनेका शिथिलमार्ग इख्तियार करना पडता है, कलम चौथी, जैनशास्त्र उत्तराध्ययनमें लिखा है, जैनमुनिको और जैनसाधवीकों उत्सर्गमार्गमें दिवसके तिसरे प्रहर गोचरी जाना.
पाठ सूत्र उत्तराध्ययनका अध्ययन ३६, गाथा १२. पढमं पोरिसि सझायं, बियियां झाणं झियायइ ।
तइयाए भिखायरियं, चउथी भुजोवि सझायं ॥ पहले प्रहरमें स्वाध्याय करे दुसरे प्रहरमें ध्यान करे और तीसरे प्रहरमें भिक्षाको जावे, अगर कोई इस दलिलको पेंशकरे दिवसके तीसरे प्रहरमें भिक्षाको जायगें तो भिक्षा . मिलना दुसवार होगा, तो फिर कुबुल करना चाहिये कि अाजकल उत्सर्गमार्गको छोडकर अपवादमार्गमें चलना पडता है, और दिवसके पहले प्रहरमें चाहदुधकी गवेषणा करना पडती है, दिवसके दुसरे प्रहरमें भिक्षाको जाना पडता है, अगर कोइ जैनमुनि उत्सर्गमार्गमें चलना चाहे तो दिवसके तीसरे प्रहर भिक्षाको जावे, और जो कुछ निरसाहार मिले उसपर संतोष करे, विहारके वख्तभी कंतानके मौजे न पहने. ___ कलम पांचमी-दशवैकालिक सूत्रके छठे अध्ययनमें लिखा है, जैनमुनि दिनमें एकदफे आहार खावे, उसका पाठ यह है. , अहो निच्चं तवो कम्मं, सव्वबुद्धिहिं वन्नि ।
जायलज्जा समा वित्ति, एगभत्तं च भोयणं ॥ २३ ॥
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