Book Title: Adhik Mas Darpan
Author(s): Shantivijay
Publisher: Sarupchand Punamchand Nanavati

View full book text
Previous | Next

Page 11
________________ अधिक मास-दर्पण. अमीचंदजी पंनालालजी जहोरीके जैनमंदिर के पास उपाश्र में आप और आपके गुरुजी वहां तशरीफ लाये थे, जब में जिनमंदिर के दर्शन करके बहार निकला, आप उपाश्रय के बहार आकर मुजको मिले थे, और कहा था, भीतर चलिये, में भीतर आया था, उसवख्त यतिवर्य श्रीयुत मनसुखलालजी और श्रावक चुनिलालजीकानुनी वगेरा भी शाथ थे. ८ अवल स्वागत वगेराकी बातें हुइ फिर मेने कहा, पुनेसे तीर्थ झगडिया - पानसर वगेराकी जियारत के लिये चला हूं. फिर जैन मुनिजनों के बारेमें बातें चलीं थीं, जैनशास्त्रों में जैन मुनियोंके और श्रावकोंके लिये दो तरह के मार्ग तीर्थंकर देवोने फरमाये, एक उत्सर्गमार्ग दुसरा अपवादमार्ग उत्सर्ग मार्गका दूसरा नाम कठिनमार्ग और अपवादमार्गका दुसरा नाम शिथिलमार्ग है. उत्सर्गमार्ग में जैनके पंचमहात्रतधारी क्रियावान् साधु या साधवीकों विहारमें भी किसीकी सहायता नही लेना चाहिये, सहायक होकर विहार करना चाहिये, अगर कोइ जैनमुनि तीर्थसमेत शिखरजीकी जियारत जाते वख्त या बनारस जैनपाठशाला वगेरामें विद्या पढनेके लिये जातेसमय या मुल्क, मारवाड, मेवाड, सिंध, पंजाब, राजपुताना, बंगाल, मध्यप्रदेश, वराड, खानदेश या दक्खनहैदराबादतर्फ जाते वख्त श्रावक-श्राविका या नोकर चाकर साथ चले उन श्रावक-श्राविका और नोकरचाकरोंके लिये बेलगाडी भी साथ रहे, जैनमुनि खुद जानते होने की ये सब लोग हमारे विहार के सबब साथ चले हैं, और एसी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38