Book Title: Adhik Mas Darpan
Author(s): Shantivijay
Publisher: Sarupchand Punamchand Nanavati

View full book text
Previous | Next

Page 7
________________ अधिक-मास-दर्पण. वृथा है, दुसरे जैन मुनि-उन-ज्ञानभंडारके रक्षकोंको मना क्यौं करे, जैनपुस्तक दुसरे शहरोंके जैनपुस्तकालयोंमें मौजूद है, जहांसे मिले आप मंगवा लीजिये. ४ फिर खरतरगछके मनि श्रीयत मणिसागरजी-अपने विज्ञापन नंबर सातमें तेहरीर करते हैं, आपकी बनाइ हुइ पर्युषणपर्व निर्णयकी शास्त्रकारोंके अभिप्राय विरुद्ध-जिनाज्ञाबाहिर और कुयुक्तियोंसे भोले जीवोंकों उन्मार्गमें गेरने. वाली है. जवाब-मेरी किताबमें कौनसी बात शास्त्रकारोंके अभिप्रायसे विरुद्धथी- जबतक शास्त्रसबुतसे बतला सकते नहीं, एसा कहना फिजहुल है, आपको मुनासिब था, . पूर्वपक्ष-लिखकर उत्तरपक्षमें जैनशास्त्रका पाठ देना, और फिर कहना था कि-देखिये! यह बात विरुद्ध है, जिनाज्ञाबाहर कौनसा लेख था-वतलाया क्यों नहीं ? और कौन कानैसी कुयुक्तियें थी-जो-भोले जीवोंको उन्मार्गमें गेरनेवाली थी जैनशास्त्रके पाठ देकर बतलाना चाहिये था, जबतक एसा बतलाते नही तबतक शास्त्रविरुद्ध कहना बेहत्तर नही, आपके कहनेसे मेरी किताब शास्त्रकारोंके अभिप्रायसे विरुद्ध नही हो सकती, शांतिविजयजी किसीके लेखका जबाब-न देवे-और मौनकरके बेठे रहे-यह-कभी-न-होगा, जिसके पास शास्त्रसबुतसे जबाब देनेकी ताकत है-वो-मौनकरके क्यों बेठे. ५ जब-में-पुनेका चौमासाकरके संवत् (१९७४) के पौष महिनेमें दादर-मुकामपर आया था, और-शेठ-हेमचंदजी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38