Book Title: Adhar Abhishek ka Suvarna Avasar
Author(s): Akhil Bharatiya Tirthprabhavak Adhar Abhishek Anushthan Samiti
Publisher: Akhil Bharatiya Tirthprabhavak Adhar Abhishek Anushthan Samiti

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Page 4
________________ अठरा अभिषेक विधि प्रभु सन्मुख बोलने की स्तुति... मूळ नायक प्रभुजी की स्तुति बोलकर ... : प्रभु दरिशन सुख संपदा, प्रभु दरिशन नव निध । प्रभु दरिशन थी पामीये, सकल पदारथ सिद्ध... 11911 * पंचम काळे पामवो, दुर्लभ प्रभु देदार ! तो पण तारा नामनो, छे मोटो आधार ... । । २ । । : फूलडा केरा बागमां, बेटा श्री जिनराज । जेम तारामां चंद्रमां, तेम शोभे महाराज ... । । ३ । । : छे प्रतिमा मनोहारिणी दुःख हरी, श्री वीर जिणंदनी । भक्तोने छे सर्वदा सुखकरी, जाणे खीली चांदनी ।। आ प्रतिमाना गुण भाव धरीने, जे माणसो गाय छे । पामी सघळा सुख ते जगतना, मुक्ति भणी जाय छे... 11811 इसके बाद विधि पूर्वक सिंहासन में चोविशी अथवा पंचतिर्थी नवपदजी के गट्टे के पास अथवा मूळ नायक प्रभुजी के पास स्नात्र पूजा पढाईये, स्नात्र विधि देरासर की पुस्तिका में से देखकर पढाईये । श्री आत्मरक्षा - वज्रपंजर स्तोत्र , ॐ परमेष्ठि- नमस्कारं सारं नवपदात्मकं । आत्मरक्षाकरं वज्र-पंजराभं स्मराम्यहं ।।१।। ॐ नमो अरिहंताणं, शिरस्कं शिरसि स्थितम् । ॐ नमो सव्वसिद्धाणं, मुखे मुखपटं वरम् ||२|| ॐ नमो आयरियाणं, अंगरक्षातिशायिनी । ॐ नमो उवज्झायाणं, आयुधं हस्तयोर्दृढम् ।।३।। ॐ नमो लोए सव्वसाहूणं, मोचके पादयोः शुभे । एसो पंचनमुक्कारो, शिला वज्रमयी तले || ४ || सव्वपावप्पणासणो, वप्रो वज्रमयो बहिः । मंगलाणं च सव्वेसिं, खादिरांगार - खातिका ।।५।। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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