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(11४|| चतुर्थं मङ्गलमृत्तिका-स्नात्रम् ।। नमोऽर्हत् सिद्धाचार्योपाध्याय सर्व साधूभ्यः नाना-सुगन्धि-पुष्पौध-रञ्जिता, चञ्चरीक-कृतनादा।
धूपामोद-विमिश्रा, पततात् पुष्पाञ्जलिर्बिम्बे ||१।। ॐ हाँ हाँ हूँ हूँ हाँ हूँ: परमार्हते परमेश्वराय पुष्पाञ्जलिभिरर्चयामि स्वाहा । अक डंका बजाकर परमात्मा के उपर कुसुमांजलि चढाईये । मंगल मृत्तिका मतलब आठ प्रकार की मिट्टी, उस में (१) गजदंत की (२) वृषभशृंगकी (२) पर्वत के शिखर की (४) उधई के राफडे की (५) नदी के किनारे की (६) नदी के संगम की (७) सरोवरको (८) तीर्थों की । यह सभी मिट्टी को जमा करके छान के रखीये । यह स्नात्र में मिट्टी का चूर्ण हरेक बीब के उपर कोमल हाथों से लगा के मिट्टी से मिश्र जल के कलशे से स्नान कीजिये ।
. आठ प्रकारकी मिट्टी से मिश्र जल के कलशसे हाथ में लेकर खडे रहीये । नमोऽर्हत्...बोलकर नीचे दिये गये श्लोक बोलिये। परोपकार-कारी च, प्रवरः परमोज्ज्वलः ।
__भावना-भव्य-संयुक्तो, मृच्चूर्णेन च स्नापयेत् ।।१।। पर्वत-सरो-नदी-सङ्गमादि-मृद्भिश्च मन्त्रपूताभिः ।
उद्वर्त्य जैनबिम्बं, स्नपयाम्य-धिवासनासमये ।।२।। बिम्बेऽवतरत्तीर्थ-मृत्तिका-मिश्रितं पयः ।।
प्रारोहयन्महाच्छायं, पूजातिशय-पादपम् ।।३।। अर्हत्-क्षेत्रे न्यस्तं, स्नात्राय पवित्र-मृत्तिका-सलिलम् ।
प्रारोहयतु प्रीत्यै, स्फुरदतिशयशालि-शालिवनम् ।।४।। ॐ हाँ ही हूँ है हौ हूँ: परमार्हते परमेश्वराय गन्धपुष्पादि-संमिश्र-नदी-नग-- तीर्थादि-मृच्चूर्णसंयुतेन जलेन स्नपयामि स्वाहा । उपर दिये गये श्लोक बोलकर, थाली बजाकर, गीत-वाजिंत्रके नाद पूर्वक हरेक बींब के ऊपर कलशे से अभिषेक कीजिये, अंग लूछणा कीजिये ।।
नीचे लिखा हुआ मंत्र बोलकर ओक डंका बजाकर पूजा कीजिये ।
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