Book Title: Adhar Abhishek ka Suvarna Avasar
Author(s): Akhil Bharatiya Tirthprabhavak Adhar Abhishek Anushthan Samiti
Publisher: Akhil Bharatiya Tirthprabhavak Adhar Abhishek Anushthan Samiti

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Page 26
________________ ॐ ह्रीँ श्री परमपुरुषाय परमेश्वराय जन्म-जरामृत्युनिवारणाय श्रीमते जिनेन्द्राय दीपं-अक्षतं-नैवेद्यं-फलं यजामहे स्वाहा। यहाँ बारहवा अभिषेक पूर्ण हुआ। [ ||१३|| त्रयोदशं वास-स्नात्रम् || ) नमोऽर्हत् सिद्धाचार्योपाध्याय सर्व साधूभ्यः नाना-सुगन्धि-पुष्पौघ-रञ्जिता, चञ्चरीक-कृतनादा । धूपामोद-विमिश्रा, पततात् पुष्पाञ्जलिर्बिम्बे ||१|| ॐ हाँ ह्रीं हूँ हूँ ह्रौँ हूँ: परमार्हते परमेश्वराय पुष्पाञ्जलिभिरर्चयामि स्वाहा । अक डंका बजाकर परमात्मा के उपर कुसुमांजलि चढाईये । तेरहवे अभिषेक में चंदन, केशर और बरास का चूर्ण मतलब की वासक्षेप आता है। वासचूर्ण (वासक्षेप) मिश्रित जल के कलशे लेकर खडे रहीये । नमोऽर्हत् ...बोलकर नीचे दिया गया श्लोक बोलिये । हृद्यैरालादकरैः स्पृहणीयै-मन्त्रसंस्कृतै-जैनम् । स्नपयामि सुगतिहेतो-र्वासै-रधिवासितं बिम्बंम् ।।१।। शिशिर-कर-कराभै-श्चन्दनै-श्चन्द्रमित्रैः । बहुल-परिमलौघैः प्रीणीतं प्राणगन्धैः । विनमदमरमौलि-प्रोत्थ-रत्नांशुजालै'र्जिनपति-वरशृङ्गे, स्नापयेद-भावभक्त्या ।।२।। स्नप्यमान-मिदं बिम्बं, वासै-र्वासित-सज्जलैः । बहि-रन्तश्च भव्यानां, वासनां कुरुते-ऽद्भूताम् ।।३।। प्रोज्जलवासैः स्नात्रे बिम्बे लग्ना विभान्ति वरवासाः । तीर्थंकरनाम-कर्माणव इव पुनरागताः स्नेहात् ।।४।। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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