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।। नमो तिथ्थस्स ॥ श्री जैन संघ अंतर्गत
भारतीय ती
श्री अखिल
अढार अनि
समिति
प्रभाव
प्राचीन तीर्थभूमिओका
सातारअभिषेकका सुवर्ण अवसर
संपर्क सूत्रः श्री वर्धमान परिवार, ६, धन मेन्शन, १ ला माला, अवंतिकाबाई गोखले स्ट्रीट, ऑपेरा हाउस, मुंबई - ४०० ००४.
टेलीफोन : २३८८७६३७ / २३८९ ५८५७, मोबाईल : ९३२१८७९३४१ / ४२/४३ / ४४/४५/४६ E-mail : adharabhishek@rediffmail.com
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|| नमो तिथ्थस्स ।। श्री जैन संघ अंतर्गत
श्री अखिल
अढार
भारतीय
अभिषेक
तीर्थप्रभावक समिति
अनुष्ठान
प्राचीन तीर्थभूमिओका
अटार अभिषेकका सुवर्ण अवसर
संपर्क सूत्र: श्री वर्धमान परिवार, ६, धन मेन्शन, १ ला माला, अवंतिकाबाई गोखले स्ट्रीट, ऑपेरा हाउस, मुंबई - ४०० ००४. टेलीफोन : २३८८ ७६३७ / २३८९५८५७,
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अठरा अभिषेक क्यों? - मंद मंद हवा चलती हो...सभी ग्रहे अपनी उच्च स्थिति में हो..दशो दिशाओ प्रफुल्लित हो..सारा जगत आनंदमग्न हो..ऐसे समय पर जगत को आह्लाद दिलानेवाले तिर्थंकर परमात्माका जन्म होता है। परमात्मा का जन्म होते ही दिक्कुमारीका आती है । ६४ इन्द्रो अभिषेक के लिए परमात्माको मेरु शिखर के उपर ले जाते है और वहां असंख्य देव-देवीओ के साथ इंन्द्र महाराजा की गोद में बैठे हुए भगवान का आठ जाती के कलशे द्वारा एक करोड और ६० लाख अभिषेक होते है। जिनका जन्म ऐसा अद्भुत माहात्म्यवाला है ऐसे भगवान...! विश्व वात्सल्य से भरपुर ऐसे भगवान...! अपने जिन मंदिर में बिराजमान है । प्रतिष्ठा हुए तो बरसो हुए होंगे...! प्रतिष्ठा के बाद उनका प्रभाव दिन-प्रतिदिन बढते जाता है । यह परमात्मा स्मरण मात्र से, दर्शन मात्र से, वंदन मात्र से, स्पर्शन मात्र से अपने भवो भव के पापोको दुर करनेवाला है । ऐसे परमात्मा स्वयं तो निर्मल है ही, उनको अभिषेक की जरुरत नहीं लेकिन अपने कुछ प्रमाद से जाने-अनजाने आशातना हो गई हो, तो उसकी शुद्धि जरुरी है और वह शुद्धी अठरा अभिषेक से होती है। सामान्य समज में आवे वैसी बात है की, मात्र पानी से स्नान करने से भी शुद्धि हो सकती है, तो अभिषेक से अवश्य शुद्धि होती ही है ! क्योंकी यह अभिषेक विशिष्ट द्रव्यो, औषधिओ के साथ मंत्रोच्चार पूर्वक कराया जाता है। सोना इत्यादि उत्तम में उत्तम धातु..चंदन-अगरु-कस्तुरी इत्यादि सुगंधी में सुगंधी द्रव्य..शंख पुष्पी आदि गुणकारी औषधिओ ..दर्भ इत्यादि मांगलिक वस्तुओ..पवित्र तीर्थस्थान की मिट्टी..१०८ तीर्थ और नदीओ का जल..यह सभी से युक्त पानी से अभिषेक होता किया जाता है । यह सभी औषधिओ या नदीओका और तीर्थोका पानी भी ऐसे ही नहीं लाना है किंतु सभी जगह पर उसके अधिष्ठायक देवो को आह्वान करके, उनकी आज्ञा लेके, शक्य शुद्धिपूर्वक यह सामग्री इकट्ठी करवाई जाती है । ऐसी अनुपम कोटि की सामग्री और साथ में हृदय का उमग, भक्ति का हविश तथा अंतर के भावपूर्वक अभिषेक करवाना है । इसके द्वारा अपनी वर्षों की अशुद्धि तत्काल दूर होवे उसमें कोई आश्चर्य नहीं! उसमें भी एक ही जिन मंदिर में होवे और सामुदायिक होवे उसमें लाभ अलग ही है । एक दूसरे का अंतर का उल्लास - हृदय की भावना सामुदायिक क्रिया में सभी को साथ देती है ।
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अठरा अभिषेक विधि प्रभु सन्मुख बोलने की स्तुति...
मूळ नायक प्रभुजी की स्तुति बोलकर ...
: प्रभु दरिशन सुख संपदा, प्रभु दरिशन नव निध । प्रभु दरिशन थी पामीये, सकल पदारथ सिद्ध... 11911 * पंचम काळे पामवो, दुर्लभ प्रभु देदार !
तो पण तारा नामनो, छे मोटो आधार ... । । २ । । : फूलडा केरा बागमां, बेटा श्री जिनराज ।
जेम तारामां चंद्रमां, तेम शोभे महाराज ... । । ३ । । : छे प्रतिमा मनोहारिणी दुःख हरी, श्री वीर जिणंदनी । भक्तोने छे सर्वदा सुखकरी, जाणे खीली चांदनी ।। आ प्रतिमाना गुण भाव धरीने, जे माणसो गाय छे । पामी सघळा सुख ते जगतना, मुक्ति भणी जाय छे... 11811 इसके बाद विधि पूर्वक सिंहासन में चोविशी अथवा पंचतिर्थी नवपदजी के गट्टे के पास अथवा मूळ नायक प्रभुजी के पास स्नात्र पूजा पढाईये, स्नात्र विधि देरासर की पुस्तिका में से देखकर पढाईये ।
श्री आत्मरक्षा - वज्रपंजर स्तोत्र
,
ॐ परमेष्ठि- नमस्कारं सारं नवपदात्मकं । आत्मरक्षाकरं वज्र-पंजराभं स्मराम्यहं ।।१।।
ॐ नमो अरिहंताणं, शिरस्कं शिरसि स्थितम् । ॐ नमो सव्वसिद्धाणं, मुखे मुखपटं वरम् ||२|| ॐ नमो आयरियाणं, अंगरक्षातिशायिनी । ॐ नमो उवज्झायाणं, आयुधं हस्तयोर्दृढम् ।।३।।
ॐ नमो लोए सव्वसाहूणं, मोचके पादयोः शुभे । एसो पंचनमुक्कारो, शिला वज्रमयी तले || ४ || सव्वपावप्पणासणो, वप्रो वज्रमयो बहिः । मंगलाणं च सव्वेसिं, खादिरांगार - खातिका ।।५।।
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स्वाहांतं च पदं ज्ञेयं, पढम हवइ मंगलम् । वप्रोपरि वज्रमयं, पिधानं देह-रक्षणे ।।६।। महाप्रभावा रक्षेयं, क्षुद्रोपद्रव-नाशिनी । परमेष्ठि-पदोद्भूता, कथिता पूर्वसूरिभिः ।।७।। यश्चैवं कुरुते रक्षा, परमेष्ठिपदैः सदा ।
तस्य न स्याद् भयं, व्याधि-राघिश्चाऽपि कदाचन ।।८।। अक बार वज्रपंजर स्तोत्र से आत्मरक्षा करने के बाद हरेक व्यक्ति परमात्मा के पास हाथ में . कुसुमांजलि लेके खडे रहीये । श्लोक बोलने के वाद थाली का एक डंका बजे तभी दो हाथ साथ में रखकर उसमें अंजलि स्वरूप से कुसुमांजलि लेकर प्रभु के दाये अंगूठे पर समर्पित करने का विधान है । इसके लिए दो हाथ साथ में रखकर अति नम्रता पूर्वक प्रभुजीको कुसुमांजलि कीजिये । कुसुमांजलि में मुख्यतया पुष्पों का उपयोग कीजिये । ऐसे प्रथम अभिषेक में तीन कुसुमांजलि करनी है। खास नोंवः (१) पूजा की सामग्री साफ किये हुए पाट-पाटले के उपर बहुमान पूर्वक रखीये । सामग्री की तैयारी करते वक्त भी स्नान करके पूजा के वस्त्र में ही तैयारी कीजिये ।। (२) सामग्री जहां रखी हो उसके उपर से कोई भी जावे नहीं । (३) स्नात्र के कलशे लगभग जमीन के उपर रखा जाता है । फीर वहीं कलशे पवित्र पानी में डुबोया जाता है । तो इस विषय में खास ध्यान रखीये । थाली में धोकर कलश/वाटी इत्यादि रखीये । (४) अंग लूछणा इत्यादि पैर के उपर मत रखीये और नीचे जमीन पर गीर न जावे उसका ध्यान रखी । (५) विधिकारक भी पसीना इत्यादि पूजा के कपडे से पोछे नहीं लेकिन साथ मे नेपकीन रखे । पसीना पोछा हो या हाथ जमीन को छुआ हो तो फीर पक्षाल पूजा करने के पहले हाथ धोकर धूपवाला करकर पूजा कीजिये। (६) तीन लोक के नाथ का बहुत मान संभालीये ।। (७) अठरा अभिषेक काजल एक वाल्दी में हरेक अभिषेक के समय जमा कीजिये और आखिर में हरेक को अभिषेक कराईये । ।
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प्रथम कुसुमांजली नमोऽर्हत् सिद्धाचार्योपाध्याय सर्व साधूभ्यः पूर्व जन्मनि मेरुभूघ्र-शिखरे, सर्वैः सुरा-धीश्वरैः । राज्योद्भुति-महे महर्द्धिसहितैः पूर्वेऽभि-षिक्ता जिनाः ।।
तामेवा-नुकृतिं विधाय हृदये, भक्ति-प्रकर्षान्विताः । कुर्मः स्व-स्वगुणानुसारवशतो, बिम्बा-भिषेकोत्सवम् ।।१।। अक डंका बजाके कुसुमांजलि कीजिये ।
दुसरी कुसुमांजली नमोऽर्हत् सिद्धाचार्योपाध्याय सर्व साधूभ्यः मृत्-कुम्भाः कलयन्तु रत्न-घटतां, पीठं पुनर्मेरुतामानीतानि जलानि सप्त-जलधि-क्षीराज्य-दध्यात्मताम् ।।
बिम्बं पारगतत्व-मत्र सकलः, सङ्घः सुराधीशतां । येन स्यादय-मुत्तमः सुविहितः, स्नात्रा-भिषेकोत्सवः ।।२।। अक डंका बजाके, परमात्मा के ऊपर कुसुमांजलि कीजिये ।
तिसरी कुसुमांजलि नमोऽर्हत् सिद्धाचार्योपाध्याय सर्व साधूभ्यः नाना-सुगन्धि-पुष्पौघ-रञ्जिता, चञ्चरीक-कृतनादा |
धूपामोद-विमिश्रा, पंततात् पुष्पाञ्जलिर्बिम्बे ||१|| ॐ हाँ ही हूँ हैं ह्रौं हूँ: परमार्हते परमेश्वराय पुष्पाञ्जलिभिरर्चयामि स्वाहा ।
____ यह मंत्र बोलकर तिसरी कुसुमांजलि कीजिये । यह तिसरी कुसुमांजलि हरेक अभिषेक के शुरुआत में करनी है ।सुवर्ण वरखयुक्त जल कलश में लेकर खडा रहना है । मंत्र बोले और पूर्ण थाली बजे तव आपको जितने परमात्मा के उपर अभिषेक करना बताया गया हो उन सभी परमात्मा के उपर मस्तीश्क से अभिषेक करना है । कलश में दिया हुआ जल पूर्णतः वापर लेना है । दुसरे अभिषेक का दुसरा जल आपको वहीं दिया जायेगा । कलश का स्पर्श भगवान को न होवे उसका खयाल रखना है ।
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[ 119|| प्रथमं सुवर्णचूर्ण-स्नात्रम् ||
नमोऽर्हत् सिद्धाचार्योपाध्याय सर्व साधूभ्यः सुपवित्र-तीर्थनीरेण, संयुतं गन्ध-पुष्प-संमिश्रम् ।
पततु जलं बिम्बोपरि, सहिरण्यं मंत्र-परिपूतम् ।।१।। सुवर्ण-द्रव्य-संपूर्णं, चूर्णं कुर्यात् सुनिर्मलम् ।
___ ततः प्रक्षालनं वार्भिः, पुष्प-चन्दन-संयुतैः ।।२।। संगच्छमान-दिव्यश्री-घुसृण-द्युतिमानिव ।
बिम्ब स्नपयताद्वारि-पूरं काञ्च-चूर्णभृत् ।।३।। स्वर्ण-चूर्णयुतं वारि, स्नात्रकाले करोत्वलम् ।
तेजोऽद्भुतं नवे बिम्बे, भूरि-भूतिं च धार्मिके ।।४।। ॐ नमो यः सर्वशरीरावस्थिते महाभूते आगच्छ आगच्छ जलं गृहाण गृहाण स्वाहा । ॐ हाँ ही हूँ हूँ ह्रौं हूँ: परमार्हते परमेश्वराय गन्धपुष्पादि
संमिश्र-स्वर्णचूर्ण-संयुतेन- जलेन स्नपयामि स्वाहा । श्लोके बोलने के बाद पूर्ण थाली बजाईये और गीत - वाजिंत्र के नादपूर्वक प्रथम अभिषेक कीजिये । अंग लूछणा किजिये । बाद में नीचे दिया गया मंत्र बोलकर हरेक स्नात्र में चंदन पूजा कीजिये ।
ॐ नमो यः सर्वशरीरावस्थिते पृथिवि पृथुपृथु गन्धं गृहाण गृहाण स्वाहा । अभिषेक के बाद हरेक स्नात्र में नीचे दिया गया मंत्र बोलकर पुष्पपूजा कीजिये
ॐ नमो यः सर्वशरीरावस्थिते महाभूते मेदिनि
पुरु पुरु पुष्पवति पुष्पं गृहाण गृहाण स्वाहा । अभिषेक के बाद हरेक स्नात्र में नीचे दिये गए मंत्र पूर्वक धूपपूजा कीजिये ।
ॐ नमो यः सर्वशरीरावस्थिते दह दह महाभूते
तेजोऽधिपते यः धूपं धूपं गृहाण गृहाण स्वाहा । बाद में नीचे दिये गये श्लोक बोलकर दीपपूजा, अक्षतपूजा, नैवेद्यपूजा और फलपूजा कीजिये ।
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ॐ ह्रीँ श्रीँ परमपुरुषाय परमेश्वराय जन्म-जरामृत्युनिवारणाय श्रीमते जिनेन्द्राय दीपं-अक्षतं-नैवेद्यं-फलं यजामहे स्वाहा । प्रभुजी के पास यह चार पूजा कीजिये । श्रीफल, पेडा तथा १। रुपिया पधराईये ।
यहाँ प्रथम अभिषेक पूर्ण हुआ । [ ||2|| द्वितीयं पंचरत्नचूर्ण-स्नात्रम् || नमोऽर्हत् सिद्धाचार्योपाध्याय सर्व साधूभ्यः नाना-सुगन्धि-पुष्पौघ-रञ्जिता, चञ्चरीक-कृतनादा |
धूपामोद-विमिश्रा, पततात् पुष्पाञ्जलिर्बिम्बे ||१|| ॐ हाँ ही हूँ हूँ हाँ हूँ: परमार्हते परमेश्वराय पुष्पाञ्जलिभिरर्चयामि स्वाहा । श्लोक बोलकर अक डंका बजाईये और परमात्मा के उपर कुसुमांजलि चढाईये । मोती, सोना, रुपा, प्रवाल और तांबा-यह पंचरत्न के चूर्ण मिश्रित जल के कलशे भरकर दोनो हाथो में रखीये ।
नमोऽर्हत्... बोलकर नीचे दिये गये श्लोक बोलिये । यन्नाम-स्मरणादपि श्रुतिवशा-दप्यक्षरोच्चारतो ।
यत्पूर्ण प्रतिमा-प्रणाम-करणात्, संदर्शनात् स्पर्शनात् ।। भव्यानां भव-पङ्क-हानि-रसकृत, स्यात् तस्य किं सत्पयः ।
स्नात्रेणापि तथा स्व-भक्ति-वशतो,रत्नोत्सवे तत् पुनः ।।१।। नाना-रत्नौघयुतं, सुगन्ध-पुष्पाभिवासितं नीरम् ।
पतताद्-विचित्रचूर्णं, मन्त्राढ्यं स्थापना-बिम्बे ।।२।। नाना-रत्न-क्षोदान्विता पतत्वम्बु-सन्ततिर्बिम्बे ।।
तत्काल-सङ्ग-लालस-माहात्म्यश्री-कटाक्ष-निभा ।।३।। शुचि-पञ्चरत्न-चूर्णा-पूर्णं चूर्णपयः पतत् बिम्बे |
. भव्य-जनानामाचार-पञ्चकं निर्मलं कुर्यात् ।।४।। ॐ हाँ हाँ हूँ हूँ हाँ हूँ: परमाईते परमेश्वराय गन्धपुष्पादिसंमिश्र-मुक्ता-स्वर्ण-रौप्य-प्रवाल-ताम्ररुप-पञ्चरत्नचूर्णसंयुतेन जलेन स्नपयामि स्वाहा ।
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श्लोक बोलकर, थाली बजाकर, गीत -वाजिंत्र के नादपूर्वक कलशे से हरेक बिंबोको अभिषेक कीजिये, अंग लूछणा कीजिये।
नीचे लिखा हुआ मंत्र बोलकर ओक डंका बजाकर चंदनपूजा कीजिये । ॐ नमो यः सर्वशरीरावस्थिते पृथिवि पृथु पृथु गन्धं गृहाण गृहाण स्वाहा ।। नीचे लिखा हुआ मंत्र बोलकर अक डंका बजाकर पुष्पपूजा कीजिये ।
ॐ नमो यः सर्वशरीरावस्थिते महाभूते मेदिनि ।
पुरु पुरु पुष्पवति पुष्पं गृहाण गृहाण स्वाहा । नीचे लिखा हुआ मंत्र बोलकर अक डंका बजाकर धूपपूजा कीजिये । ॐ नमो यः सर्वशरीरावस्थिते दह दह महाभूते । .
तेजोऽधिपते धूपं धूपं गृहाण गृहाण स्वाहा | बाद में नीचे दिया गया श्लोक बोलकर दीपपूजा, अक्षतपूजा, नैवेद्यपूजा और फलपूजा कीजिये ।
__ॐ ह्रीं श्री परमपुरुषाय परमेश्वराय जन्म-जरामृत्युनिवारणाय श्रीमते जिनेन्द्राय दीपं-अक्षतं-नैवेद्यं-फलं यजामहे स्वाहा ।
यहाँ दुसरा अभिषेक पूर्ण हुआ ।
No
( ||३|| तृतीयं कषायचूर्ण-स्नात्रम् ।।) नमोऽर्हत् सिद्धाचार्योपाध्याय सर्व साधूभ्यः नाना-सुगन्धि-पुष्पौघ-रञ्जिता, चञ्चरीक-कृतनादा |
धूपामोद-विमिश्रा, पततात् पुष्पाञ्जलिर्बिम्बे ।।१।। ॐ ह्रां ह्रीं हूँ हूँ ह्रौं हूँ: परमार्हते परमेश्वराय पुष्पाञ्जलिभिरर्चयामि स्वाहा ।
अक डंका बजाकर, परमात्मा के उपर कुसुमांजलि चढाईये । कषाय चूर्ण के अंदर १६ वृक्ष की आंतरछाल लेनी है, वह नीचे दी गई है। (१) पीपर (२) पीपल (३) सरसडो (४) उंबरो (५) वड (६) चंपो (७) आसोपालव (८) आंबो (९) जांबुन (१०) बकुल (११) अर्जुन (१२) पाडन (१३) बीली (१४) केसुडो (१५) दाडम (१६) नारंगी
यह चूर्ण से मिश्रित जल के कलशे हाथ में लेकर खडे रहीये ।
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नमोऽर्हत् ... बोलकर नीचे दिये गये श्लोके बोलीये । प्लक्षा-श्वत्थो-दुम्बर-शिरीष-वल्कादि-कल्क-संमिश्रम् ।
__ बिम्बे कषायनीरं, पतता-दधिवासितंजैने ।।१।। पिप्पली पिप्पलश्चैव, शिरीषो-दुम्बर-स्तथा ।
वटादि-छल्लियुग-वार्भिः, स्नपयामि जिनेश्वरम् ।।२।। कषाय-बहलं वारि, बिम्बोपरिपतत्वदः ।
दृशापि पिबतां नृणां, कर्म-रोमाष्टकं हरेत् ।।३।। बहुविध-कषाय-बहलं, बिम्बे स्नात्राय कल्पितं सलिलम् ।
प्रेक्षक-मनांसि कुरुते, चित्रं यन्निष्कषायाणि ।।४।।
ॐ हाँ हाँ हूँ हूँ ह्रौं हूँ: परमार्हते परमेश्वराय गन्धपुष्पादिसंमिश्र-पिपल्या-दि-महाछल्ली-कषायचूर्णसंयुतेन जलेन स्नपयामि स्वाहा । इस तरह श्लोक बोलकर, थाली बजाकर, गीत-वाजिंत्र के नाद पूर्वक हरेक बींब के उपर कलशोसे अभिषेक कीजिये, अंगलूछणा कीजिये ।
नीचे लिखा हुआ मंत्र बोलकर अक डंका बजाकर पूजा कीजिये । ॐ नमो यः सर्वशरीरावस्थिते पृथिवि पृथु पृथु गन्धं गृहाण गृहाण स्वाहा । नीचे लिखा हुआ मंत्र बोलकर ओक डंका बजाकर पुष्पपूजा कीजिये ।
ॐ नमो यः सर्वशरीरावस्थिते महाभूते मेदिनि ।
पुरु पुरु पुष्पवति पुष्पं गृहाण गृहाण स्वाहा । नीचे लिखा हुआ मंत्र बोलकर ओक डंका बजाकर धूपपूजा कीजिये । - ॐ नमो यः सर्वशरीरावस्थिते दह दह महाभूते ।
- तेजोऽधिपते धूपं धूपं गृहाण गृहाण स्वाहा । बाद में नीचे दिया गया श्लोक बोलकर दीपपूजा, अक्षतपूजा, नैवेद्यपूजा और फलपूजा कीजिये ।
ॐ ह्रीं श्री परमपुरुषाय परमेश्वराय जन्म-जरा-मृत्युनिवारणाय श्रीमते जिनेन्द्राय दीपं-अक्षतं-नैवेद्यं-फलं यजामहे स्वाहा ।
यहाँ तिसरा अभिषेक पूर्ण हुआ ।
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(11४|| चतुर्थं मङ्गलमृत्तिका-स्नात्रम् ।। नमोऽर्हत् सिद्धाचार्योपाध्याय सर्व साधूभ्यः नाना-सुगन्धि-पुष्पौध-रञ्जिता, चञ्चरीक-कृतनादा।
धूपामोद-विमिश्रा, पततात् पुष्पाञ्जलिर्बिम्बे ||१।। ॐ हाँ हाँ हूँ हूँ हाँ हूँ: परमार्हते परमेश्वराय पुष्पाञ्जलिभिरर्चयामि स्वाहा । अक डंका बजाकर परमात्मा के उपर कुसुमांजलि चढाईये । मंगल मृत्तिका मतलब आठ प्रकार की मिट्टी, उस में (१) गजदंत की (२) वृषभशृंगकी (२) पर्वत के शिखर की (४) उधई के राफडे की (५) नदी के किनारे की (६) नदी के संगम की (७) सरोवरको (८) तीर्थों की । यह सभी मिट्टी को जमा करके छान के रखीये । यह स्नात्र में मिट्टी का चूर्ण हरेक बीब के उपर कोमल हाथों से लगा के मिट्टी से मिश्र जल के कलशे से स्नान कीजिये ।
. आठ प्रकारकी मिट्टी से मिश्र जल के कलशसे हाथ में लेकर खडे रहीये । नमोऽर्हत्...बोलकर नीचे दिये गये श्लोक बोलिये। परोपकार-कारी च, प्रवरः परमोज्ज्वलः ।
__भावना-भव्य-संयुक्तो, मृच्चूर्णेन च स्नापयेत् ।।१।। पर्वत-सरो-नदी-सङ्गमादि-मृद्भिश्च मन्त्रपूताभिः ।
उद्वर्त्य जैनबिम्बं, स्नपयाम्य-धिवासनासमये ।।२।। बिम्बेऽवतरत्तीर्थ-मृत्तिका-मिश्रितं पयः ।।
प्रारोहयन्महाच्छायं, पूजातिशय-पादपम् ।।३।। अर्हत्-क्षेत्रे न्यस्तं, स्नात्राय पवित्र-मृत्तिका-सलिलम् ।
प्रारोहयतु प्रीत्यै, स्फुरदतिशयशालि-शालिवनम् ।।४।। ॐ हाँ ही हूँ है हौ हूँ: परमार्हते परमेश्वराय गन्धपुष्पादि-संमिश्र-नदी-नग-- तीर्थादि-मृच्चूर्णसंयुतेन जलेन स्नपयामि स्वाहा । उपर दिये गये श्लोक बोलकर, थाली बजाकर, गीत-वाजिंत्रके नाद पूर्वक हरेक बींब के ऊपर कलशे से अभिषेक कीजिये, अंग लूछणा कीजिये ।।
नीचे लिखा हुआ मंत्र बोलकर ओक डंका बजाकर पूजा कीजिये ।
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ॐ नमो यः सर्वशरीरावस्थिते पृथिवि पृथु पृथु गन्धं गृहाण गृहाण स्वाहा ।
नीचे लिखा हुआ मंत्र बोलकर अक डंका बजाकर पुष्पपूजा कीजिये ।
ॐ नमो यः सर्व शरीरावस्थिते महाभूते मेदिनि ।
पुरु पुरु पुष्पवति पुष्पं गृहाण गृहाण स्वाहा । नीचे लिखा हुआ मंत्र बोलकर अक डंका बजाकर धूपपूजा कीजिये ।
ॐ नमो यःसर्वशरीरावस्थिते दह दह महाभूते ।
तेजोऽधिपते धूपं धूपं गृहाण गृहाण स्वाहा । बादमें नीचे दिया गया श्लोक बोलकर दीपपूजा, अक्षत पूजा, नैवेद्यपूजा और फलपूजा कीजिये । ॐ ह्रीँ श्रीँ परमपुरुषाय परमेश्वराय जन्म-जरा-मृत्युनिवारणाय श्रीमते जिनेन्द्राय दीपं-अक्षतं-नैवेद्यं-फलं यजामहे स्वाहा ।
यहाँ चौथा अभिषेक पूर्ण हुआ।
[ ||५|| पञ्चमं पञ्चामृत-स्नात्रम् || ) नमोऽर्हत् सिद्धाचार्योपाध्याय सर्व साधूभ्यः नाना-सुगन्धि-पुष्पौघ-रजिता, चञ्चरीक-कृतनादा ।
धूपामोद-विमिश्रा, पततात् पुष्पाञ्जलिर्बिम्बे ।।१।। ॐ हाँ ही हूँ, हौँ हूँ: परमार्हते परमेश्वराय ।
पुष्पाञ्जलिभिरर्चयामि स्वाहा।
ओक डंका बजाकर, परमात्मा के उपर कुसुमांजलि चढाईये । पांचवे अभिषेक के अंदर दूध,दही, घी, शक्कर और पानी यह पंचामृत कहलाया जाता है ।
पंचामृत के कलशे लेकर खडे रहीये ।। नमोऽर्हत्... बोलकर नीचे दिये गये श्लोक बोलीये। जिनबिम्बोपरि-निपतद्-घृत-दधि-दुग्धादि-द्रव्य-परिपूतम् ।
दर्भोदक-संमिश्र, पञ्च-गवं हरतु दुरितानि ।।१।। वरपुष्प-चन्दनैश्च, मधुरैः कृत-निःस्वनैः ।
दधि-दुग्ध-घृतमित्रैः, स्नपयामि जिनेश्वरम् ।।२।।
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एकत्र-मीलितैस्तैः, पञ्चभि-रमृतैः सुगन्धिभिः स्नपनम् ।
क्रियमाणं नवबिम्बे, हरताद्विष-पञ्चकं नृणाम् ।।३।। स्नात्रं विधीयमानं, सुगन्धि-पञ्चामृतेन जिनबिम्बे |
भक्ति -प्रत्ध(हव) जनानां, प्रमादपञ्चक-विषं हरतात् ।।४।। ॐ हाँ ही हूँ है हौ हूँ: परमार्हते परमेश्वराय गन्धपुष्पादि-संमिश्र-पञ्चामृतेन (जलेन) स्नपयामि स्वाहा। उपर दिये गये श्लोक बोलकर थाली बजाकर गीत-वाजिंत्रके नादपूर्वक कलशे से बीब के उपर अभिषेक कीजिये, अंग लूछणा कीजिये।
नीचे लिखा हुआ मंत्र बोलकर अक डंका बजाकर पूजा कीजिये। ॐ नमो यः सर्व शरीरावस्थिते पृथिवि पृथु पृथु गन्धं गृहाण गृहाण स्वाहा । नीचे लिखा हुआ मंत्र बोलकर अक डंका बजाकर पुष्पपूजा कीजिये ।
ॐ नमो यः सर्वशरीरावस्थिते महाभूते मेदिनि
पुरु पुरु पुष्पवति पुष्पं गृहाण गृहाण स्वाहा । नीचे लिखा हुआ मंत्र बोलकर अक डंका बजाकर धूपपूजा कीजिये । ॐ नमो यः सर्वशरीरावस्थिते दह दह महाभूते ।'
तेजोऽधिपते धूपं धूपं गृहाण गृहाण स्वाहा । नीचे दिये गये श्लोक बोलकर दीपपूजा, अक्षतपूजा, नैवेद्यपूजा और फलपूजा कीजिये ।
ॐ ही श्री परमपुरुषाय परमेश्वराय जन्म-जरामृत्युनिवारणाय श्रीमते जिनेन्द्राय दीपं-अक्षतं-नैवेद्यं-फलं यजामहे स्वाहा ।
___यहाँ पांचवा अभिषेक पूर्ण हुआ। . | IIE || षष्ठ शतमूलिका-स्नात्रम् ।।
नमोऽर्हत् सिद्धाचार्योपाध्याय सर्व साधूभ्यः नाना-सुगन्धि-पुष्पौघ-रञ्जिता, चञ्चरीक-कृतनादा |
धूपामोद-विमिश्रा, पततात् पुष्पाञ्जलिर्बिम्बे ||१|| ॐ हाँ ह्रीं हूँ हैं हौँ हूँ: परमार्हते परमेश्वराय पुष्पाञ्जलिभिरर्चयामि स्वाहा ।
अक डंका बजाकर, परमात्मा के उपर कुसुमांजलि चढाईये ।
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छठवा अभिषेक के अंदर १०० वनस्पति के मूल अथवा २१वनस्पति के मूल लेकर उसका चूर्ण किया जाता है, जिसका नाम है- (१) सहदेवी (२) शताबरी (३) कुंआरी (४) वाळो (५) बडी-छोटी रींगनी (६) मयूर शिखा (७) अंकोल (८) शालवणी (९) गंधनोली (१०) महानोली (११) शंखाहोळी (१२) लक्ष्मणा (१३) आजोकाजो (१४) थोहर (१५) तुलसी (१६) मरूओ-दमणो (१७) गळो (१८) कुबी (१९) सरपंखो (२०) राजहंसी (२१) पीलवणी
यह औषधियों का चूर्ण करके जल में मिश्रित करके कलशे लेकर खडे रहीये । नमोऽर्हत् ... बोलकर श्लोक बोलीये। सहदेवी शतमूली, शंखपुष्पी शतावरी ।
कुमारी लक्ष्मणा चैव, स्नपयामि जिनेश्वरम् ।।१।। सहदेव्यादि-सदौषधि-वर्गेणोद्वर्तितस्य बिम्बस्य ।
सम्मिश्रं बिम्बोपरि, पतज्जलं हरतु दुरितानि ।।२।। कुर्वन्ति जलैः स्नपनं, सहदेवी-प्रमुख-मूलिका-मित्रैः ।
बिम्बे भवता-च्छोभन-सौभाग्य-स्थापनार्थमिति ।।३।। सहदेव्यादि-महौषधि-मित्रैः सलिलैः कृते महास्नपनम् ।
नवबिम्बे-ऽद्भुततम-सौभाग्यं च करोतु भव्यानाम् ।।४।। अनन्त-सुख-सङ्घात-कन्दकादम्बिनीसमम् |
इति मूलमिदं बिम्ब-स्नात्रे यच्छतु वाञ्छितम् ।।५।। ॐ हाँ ही हूँ हूँ हौं हूँ: परमार्हते परमेश्वराय गन्धपुष्पादि-संमिश्र-सहदेव्यादिसदौषधि-शतमूलिका-चूर्णसंयुतेन जलेन स्नपयामि स्वाहा । उपर दीये गये श्लोक बोलकर, थाली बजाकर, गीत -वाजिंत्र के नादपूर्वक कलशो से बीब के उपर अभिषेक कीजिये, अंग लूछणा कीजिये ।
नीचे लिखा हुआ मंत्र बोलकर अक डंका बजाकर पूजा कीजिये । ॐ नमो यः सर्वशरीरावस्थिते पृथिवि पृथु पृथु गन्धं गृहाण गृहाण स्वाहा । नीचे लिखा हुआ मंत्र बोलकर अक डंका बजाकर पुष्पपूजा कीजिये ।
ॐ नमो यः सर्वशरीरावस्थिते महाभूते मेदिनि ।
पुरु पुरु पुष्पवति पुष्पं गृहाण गृहाण स्वाहा । नीचे लिखा हुआ मंत्र बोलकर ओक डंका बजाकर धूपपूजा कीजिये ।
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ॐ नमो यः सर्वशरीरावस्थिते दह दह महाभूते । तेजोऽधिपते धूपं धूपं गृहाण गृहाण स्वाहा ।
बादमें नीचे दिये गये श्लोक बोलकर दीपपूजा, अक्षतपूजा, नैवेद्यपूजा और फलपूजा कीजिये । ॐ ह्रीँ श्रीँ परमपुरुषाय परमेश्वराय जन्म-जरा-.
मृत्युनिवारणाय श्रीमते जिनेन्द्राय दीपं अक्षतं नैवेद्यं फलं यजामहे स्वाहा ।
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यहाँ छट्वा अभिषेक पूर्ण हुआ 1
||७|| सप्तमं कुष्ठादि-प्रथमाष्टकवर्ग - स्नात्रम् ।।
नमोऽर्हत् सिद्धाचार्योपाध्याय सर्व साधूभ्यः नाना-सुगन्धि-पुष्पौघ-रञ्जिता, चञ्चरीक-कृतनादा । धूपामोद-विमिश्रा, पततात् पुष्पाञ्जलिर्बिम्बे ।।१ ।।
ॐ ह्रीँ ह्रीँ हूँ हूँ हाँ हूँ: परमार्हते परमेश्वराय पुष्पाञ्जलिभिरर्चयामि स्वाहा ।
ओक डंका बजाकर, परमात्मा के उपर कुसुमांजलि चढाईये।
सातवे अभिषेक के अंदर प्रथम अष्टक वर्ग में आती हुई आठ वस्तुओं के नाम नीचे दिये गये है ।
(१) उपलोट (कठ) (२) लोदू (३) देवदार (४) खोरासनी वज ( ५ ) धरोनीली ( ६ ) जेठीमध
(७) मरडा शिंगी (८) वरणा का मूल
यह आठ प्रकार की वस्तुओं का चूर्ण करके जल में मिश्रित करके कलशे लेकर खडे रहीये । नमोऽर्हत्... बोलकर श्लोक बोलीये ।
नाना- कुष्ठाद्यौषधि सम्मृष्टे तद्-युतं पतन्नीरम् ।
बिम्बे कृत-सन्मन्त्रं, कर्णौघं हन्तु भव्यानाम् ।।१।। उपलोट-वचा- लोद्र-हीरवणी - देवदारवः ।
यष्टि-मधु-ऋद्धि-दूर्वाभिः, स्नपयामि जिनेश्वरम् ||२||
कुष्ठाद्यष्टक वर्ग- स्नात्रं भक्त्या कृतं जिने नियतम् । भव-सप्ताष्टक-मध्ये, कर्माष्टक - हारि भवति नृणाम् ||३||
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कुष्ठाद्यष्टक-वर्ग-स्नपनं वर्गयतु बिम्ब-माहात्म्यम् ।
सात्म्यं च जैनधर्मे, महोत्सवा-यात-लोकस्य ।।४।। ॐ हाँ हाँ हूँ हैं ही हूँ: परमार्हते परमेश्वराय गन्धपुष्पादि
संमिश्र-कुष्ठाद्यष्टकवर्ग-चूर्णसंयुतेन जलेन स्नपयामि स्वाहा । उपर दीये गये श्लोक बोलकर, थाली बजाकर, गीत-वाजिंत्र के नादपूर्वक कलशो से बीब के उपर अभिषेक कीजिये, अंग लूछणा कीजिये।
नीचे लिखा हुआ मंत्र बोलकर अक डंका बजाकर पूजा कीजिये । ॐ नमो यः सर्वशरीरावस्थिते पृथिवि पृथु पृथु गन्धं गृहाण गृहाण स्वाहा | नीचे लिखा हुआ मंत्र बोलकर अक डंका बजाकर पुष्पपूजा कीजिये ।
ॐ नमो यः सर्वशरीरावस्थिते महाभूते मेदिनि ।
पुरु पुरु पुष्पवति पुष्पं गृहाण गृहाण स्वाहा । नीचे लिखा हुआ मंत्र बोलकर अक डंका बजाकर धूपपूजा कीजिये ।
ॐ नमो यः सर्वशरीरावस्थिते दह दह महाभूते ।
तेजोऽधिपते धूपं धूपं गृहाण गृहाण स्वाहा । बाद में नीचे दीया गया श्लोक बोलकर दीपपूजा, अक्षतपूजा, नैवेद्यपूजा और फलपूजा कीजिये । ॐ ही श्री परमपुरुषाय परमेश्वराय जन्म-जरा-मृत्युनिवारणाय श्रीमते जिनेन्द्राय दीपं-अक्षतं-नैवेद्यं-फलं यजामहे स्वाहा ।
यहाँ सातवां अभिषेक पूर्ण हुआ ।
11८|| अष्टमं पतञ्जर्यादि-द्वितीयाष्टकवर्ग-स्नात्रम् ।
नमोऽर्हत् सिद्धाचार्योपाध्याय सर्व साधूभ्यः नाना-सुगन्धि-पुष्पौघ-रञ्जिता, चञ्चरीक-कृतनादा | धूपामोद-विमिश्रा, पततात्, पुष्पाञ्जलिर्बिम्बे ||१|| ॐ हाँ हाँ हूँ हूँ हाँ हूँ: परमार्हते परमेश्वराय
पुष्पाञ्जलिभिरर्चयामि स्वाहा।
अक डंका बजाकर परमात्मा के उपर कुसुमांजलि चढाईये । आठवे द्वितीय अष्टकवर्ग में आती हुई आठ वस्तुओ के नाम नीचे दीये गये है ।
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(१) मेदा (२) महामेदा (३) वेउकंद (४) कंकोल (५) खीरकंद (६) जीवक (७) ऋषभक (८)नखी-महानखी द्वितीय अष्टकवर्ग के चूर्ण से मिश्रित जल के कलशे लेकर खडे रहीये । नमोऽर्हत् ...बोलकर श्लोक बोलिये । मेदाद्यौषधिभे-दोऽ-परोऽष्टवर्गः स्व-मन्त्र-परिपूतः ।
जिनबिम्बोपरि निपतन् सिद्धिं विदधातु भव्यजने ||१|| पतञ्जरी विदारी च कच्चूरः कच्चुरी नखः ।
काकोली क्षीर-कन्दश्च, मेदाभ्यः स्नपयाम्यहम् ।।२।। मेदाद्यष्टक-वर्ग-स्नपनं क्रियते जनैः प्रभावाढ्यम् ।
लोकोत्कृष्ठो महिमा बिम्बस्य स्यात् किलेति-धिया ।।३।। मेदाद्यष्टक-वर्ग-स्नपनं क्रियते प्रभाव-सिंहस्य ।
अप्रतिबिम्ब बिम्बे स्थाप्ये-दृग्दोष-मपहरतु ।।४।। ॐ हाँ ह्रीं हूँ हूँ हाँ हूँ: परमार्हते परमेश्वराय गन्धपुष्पादिसंमिश्र-पतञ्जर्यादि-द्वितीयाष्टकवर्ग-चूर्णसंयुतेन जलेन स्नपयामि स्वाहा । उपर दिये गये श्लोक बोलकर,थाली बजाकर, गीत-वाजिंत्रके नाद पूर्वक कलशो से बीब के उपर अभिषेक कीजिये, अंग लूछणा कीजिये।
नीचे लिखा हुआ मंत्र बोलकर अक डंका बजाकर पूजा कीजिये । ॐ नमो यः सर्वशरीरावस्थिते पृथिवि पृथु पृथु गन्धं गृहाण गृहाण स्वाहा । नीचे लिखा हुआ मंत्र बोलकर अक डंका बजाकर पुष्पपूजा कीजिये ।
ॐ नमो यः सर्वशरीरावस्थिते महाभूते मेदिनि ।
पुरु पुरु पुष्पवति पुष्पं गृहाण गृहाण स्वाहा । नीचे लिखा हुआ मंत्र बोलकर अक डंका बजाकर धूपपूजा कीजिये । ॐ नमो यः सर्वशरीरावस्थिते दह दह महाभूते ।
तेजोऽधिपते धूप धूपं गृहाण गृहाण स्वाहा । बादमें नीचे दिया गया श्लोक बोलकर दीप पूजा, अक्षत पूजा, नैवेद्यपूजा और फलपूजा कीजिये । ॐ ह्रीं श्री परमपुरुषाय परमेश्वराय जन्म-जरा-मृत्युनिवारणाय श्रीमते जिनेन्द्राय दीपं-अक्षतं-नैवेद्यं-फलं-यजामहे स्वाहा ।
यहाँ आठवा अभिषेक पूर्ण हुआ।
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आठ अभिषेक के बाद मुद्रा दिखाने द्वारा जो अर्हत् प्रतिमा का प्राधान्य होवे उनका अभिधान पूर्वक अन्य बींबो को आदि पदसे अथवा शक्य होवे उतने नाम बोलकर नीचे दिये गये श्लोक द्वारा आह्वान कीजिये। सर्व प्रथम नीचे दिये गयो श्लोक बोलकर कुसुमांजलि कीजिये । नमोऽर्हत्...
सर्व-स्थिताय विबुधासुर-सेविताय, सर्वात्मकाय चिदुदीरित-विष्टपाय | बिम्बाय लोकनयन-प्रमदप्रदाय,
पुष्पाञ्जलिर्भवतु सर्व-समृद्धि-हेतुः ।।१।। ॐ हाँ ही हूँ हूँ हाँ हूँ: परमार्हते परमेश्वराय पुष्पाञ्जलिभिरर्चयामि स्वाहा।
थाली डंका बजाकर कुसुमांजलि कीजिये । कुसुमांजलि करने के बाद अभिषेक करनेवाले सभी बहार रंग मंडप में आजाईये । बाद में गुरुभगवंत अथवा क्रिया कारक खडे होकर गभारे में जाकर-(१) गरुड मुद्रा (२) मुक्ताशुक्ति मुद्रा और (३) परमेष्ठि मुद्रा से - ऐसे तीन बार परमात्माका आह्वान करे । मंत्र बोले जाने के पश्चात पूर्ण थाली बजाईये । गभारे में तथा गभारे के बाहर हरेक भगवंतो को (सीर्फ परमात्माको - देव देवीयों को नहीं) यह तीनो मुद्रा दिखाईये। यह तीन मुद्राओं का स्वरूप इस तरह.... १) दशो उंगलियों को एक दुसरे में डालकर अधो मुख कर चीटली उंगलि खडी दिखानी वह गरुड मुद्रा कहलाती है।
नमोऽर्हत्... ॐ नमोऽर्हत्-परमेश्वराय चतुर्मुखाय परमेष्ठिने त्रैलोक्यनताय अष्ट-दिग्भाग-कुमारीपरिपूजिताय देवेन्द्र-महिताय देवाधि-देवाय दिव्य-शरीराय (त्रैलोक्य -महिताय) भगवन्तोऽर्हन्तः श्री-ऋषभदेवादि
स्वामिनः (यहां मूलनायक परमात्मा का नाम लिजिये) । अत्र आगच्छन्तु आगच्छन्तु स्वाहा ।
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२) मोती के छीपके जैसे दोनों हाथ साथ में रखकर ललाट को लगाना वह मुक्ताशुक्ति मुद्रा कहलाती है
नमोऽर्हत्... ॐ नमोऽर्हत्-परमेश्वराय चतुर्मुखाय परमेष्ठिने त्रैलोक्यनताय अष्ट-दिग्भाग-कुमारीपरिपूजिताय देवेन्द्र-महिताय देवाधि-देवाय दिव्य-शरीराय (त्रैलोक्य -महिताय) भगवन्तो-ऽर्हन्तः श्री-ऋषभदेवादिस्वामिनः (यहां मूलनायक परमात्माका नाम लिजिये)
अत्र आगच्छन्तु आगच्छन्तु स्वाहा । | ३) दाईना हाथ और बाया हाथ की उंगलीयों की उलटी आटी गिराकर तर्जनी उंगलि से मध्यमा को और अंगुष्ठ से सामने के हाथ की चीटली उंगलि दबाईये और दोनो अनामिका उंगलियोको खडी दिखानी वह परमेष्ठि मुद्रा कहलाती है।
नमोऽर्हत् ... ॐ नमोऽर्हत्-परमेश्वराय चतुर्मुखाय परमेष्ठिने त्रैलोक्यनताय अष्ट-दिग्भाग-कुमारीपरिपूजिताय देवेन्द्र-महिताय देवाधि-देवाय दिव्य-शरीराय (त्रैलोक्य -महिताय) भगवन्तो-ऽर्हन्तः श्री-ऋषभदेवादिस्वामिनः (यहां मूलनायक परमात्माका नाम लिजिये)
अत्र आगच्छन्तु आगच्छन्तु स्वाहा । मुद्राओ दिखाने के बाद हरेक जिन बीबो के उपर गुरू भगवंत वासक्षेप कीजिये ।
(९|| नवमं सदौषधि-स्नात्रम् || नमोऽर्हत् सिद्धाचार्योपाध्याय सर्व साधूभ्यः नाना-सुगन्धि-पुष्पौघ-रञ्जिता, चञ्चरीक-कृतनादा । धूपामोद-विमिश्रा, पततात् पुष्पाञ्जलिर्बिम्बे ||१|| ॐ हाँ ही हूँ हूँ हाँ हूँ: परमार्हते परमेश्वराय पुष्पाञ्जलिभिरर्चयामि स्वाहा ।
अक डंका बजाकर परमात्मा के उपर कुसुमांजलि चढाईये ।
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नववे अभिषेक में सद्औषधि में आती हुई वस्तुए इस तरह है... १. प्रियंगु २. वत्स ३. कंकेली ४. रसाल ५. पत्र-भल्लात ६. ईलायची ७. तज ८. विष्णुक्रांता ९. अहिमवाल १०. लवंगादि आठ और ११. मयूरशिखा इतनी वनस्पतीए आती है । सदौषधि के चूर्ण से मिश्रित जल के कलशे लेकर खडे रहीये ।
नमोऽर्हत् सिद्धाचार्योपाध्याय सर्व साधूभ्यः बोलकर नीचे दीए गए श्लोक बोलीये । प्रियङ्गु-वत्स-कङ्केली-रसालादि-तरुद्भवैः ।
पल्लवैः पत्र-भल्लातै-रेलची-तज-सत्फलैः ।।१।। विष्णुक्रान्ता-हिप्रवाल-लवङ्गादिभि-रष्टभिः ।
मूलाष्टकै-स्तथाद्रव्यैः, सदौषधि-विमिश्रितैः ।।२।। सुगन्ध-द्रव्य-सन्दोह-मोद-मत्तालि-संकुलैः ।
विदघे-ऽर्हन महास्नात्रं, शुभ-सन्तति-सूचकम् ।।३।। सुपवित्र-मूलिकावर्ग-मर्दिते तदुदकस्य शुभधारा |
बिम्बे-ऽधिवास-समये, यच्छतु सौख्यानि निपतन्ती ।।४।। बिम्बस्य मयूरशिखा-मूलिका-मिश्रितै-र्जलैः स्नपनम् ।
_ विदधति विशुद्ध-मनसो मा भूदिव दृष्टि-रिति बुध्दया ।।५।। वशकारि-मयूरशिखादि मूलिका-कलित-जलभरैः स्नपनम् ।
बिम्बं वशतु जनानां, कुशयतु दुरितानि भक्तिमताम् ।।६।। ॐ हाँ ही हूँ है हौ हूँ: परमार्हते परमेश्वराय गन्धपुष्पादि-संमिश्र-प्रियंग्वादि
औषधि-विष्णुक्रान्तादि-मूलिकाचूर्णसंयुतेन जलेन स्नपयामि स्वाहा । उपर दिये गये श्लोक बोलकर थाली बजाकर, गीत-वाजिंत्रके नाद पूर्वक कलशो से बीब के उपर अभिषेक कीजिये, अंग लूछणा कीजिये । ___नीचे दिया गया मंत्र बोलकर एक डंका बजाकर पूजा कीजिये। ॐ नमो यः सर्वशरीरावस्थिते पृथिवि पृथु पृथु गन्धं गृहाण गृहाण स्वाहा । नीचे दिया गया मंत्र बोलकर एक डंका बजाकर पुष्पपूजा कीजिये ।
ॐ नमो यः सर्वशरीरावस्थिते महाभूते मेदिनि । पुरु पुरु पुष्पवति पुष्पं गृहाण गृहाण स्वाहा ।
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नीचे दिया गया मंत्र बोलकर एक डंका बजाकर धूपपूजा कीजिये | ॐ नमो यः सर्वशरीरावस्थिते दह दह महाभूते । तेजोऽधिपते धूपं धूपं गृहाण गृहाण स्वाहा ।
बादमें नीचे दिया गया श्लोक बोलकर दीपपूजा, अक्षतपूजा, नैवेद्य पूजा और फल पूजा कीजिये । ॐ ह्रीँ श्रीँ परमपुरुषाय परमेश्वराय जन्म- जरा - मृत्युनिवारणाय श्रीमते जिनेन्द्राय दीपं-अक्षतं नैवेद्यं-फलं यजामहे स्वाहा । यहाँ नववा अभिषेक पूर्ण हुआ ।
||१०|| दशमं सुगन्धौषधि - सहस्त्रमूलिका - सर्वौषधि स्नात्रम् ||
नमोऽर्हत् सिद्धाचार्योपाध्याय सर्व साधूभ्यः
नाना - सुगन्धि - पुष्पौध- रञ्जिता, चञ्चरीक - कृतनादा | नाना-सुगन्धि-पुष्पौघ-रञ्जिता, धूपामोद-विमिश्रा, पततात् पुष्पाञ्जलिर्बिम्बे ।। १ ।।
ॐ हाँ ह्रीं हूँ हूँ हूँ हूँ परमार्हते परमेश्वराय
पुष्पाञ्जलिभिरर्चयामि स्वाहा ।
ओक डंका बजाकर परमात्मा के उपर कुसुमांजलि चढाईये ।
दसवे अभिषेक में सुगन्धि औषधि - सहस्त्रमूलिका-सर्व औषधिमें आती हुई वस्तुए इस तरह है.... १. हलदी २. खोरासणी ३. सुवा ४. वाळो ५. मोथ ६. प्रियंगु ७. छडिलो ८. वांसकी गाठ ९. सढक्युरो १०. उपलोट ११. सुखड १२. ईलायची १३. लवंग १४. तज १५. तमालपत्र १६. जावंत्री १७. जायफल १८. नागकेसर १९ मरचकंकोल २०. वरधारो २१. आसंघ २२. वडीऔषधि २३. अगर २४. सोलारस २५. पत्रज २६. छड २७ नखला २८. घडला २९. अषिकली ३०. . मूरमांसी ३१. जटामांसी ३२. सहस्त्रमूली ३३. अंबर इत्यादि.... सुगंधि औषधि, सहस्त्रमूलिका तथा सर्वऔषधि मिश्रित जल के कलशे लेकर खडे रहीये । नमोऽर्हत् ... बोलकर नीचे दीये गये श्लोक बोलीये ।
सर्वविघ्न-प्रशमन-जिनस्नात्र - समुद्भवे ।
बन्धं सम्पूर्ण-पुण्यानां, सुगन्धैः स्नापयेज्जिनम् ।।१।।
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सकलौषधि-संयुक्तसुगन्धया घर्षितं सुगन्धिहेतोः ।
स्नपयामि जैनबिम्बं, मन्त्रित-तन्नीरनिवहेन ।।२।। सर्वामय-दोषहरं, सर्वप्रिय-कारकं च सर्वविदः ।
प्रजाभिषेक-काले, निपततु सर्वोषधि-वृन्दम् ।।३।। सर्वौषधिभि-भव्यै-र्जिनबिम्ब-स्नप्यते प्रतिष्ठायाम् ।
भवति यथा-ऽऽस्पद-मेतत्, सर्वासामतिशयश्रीणाम् ।।४।। सर्वजितः सर्वविदः, सर्वगुरोः सर्वपूजनीयस्य ।
सर्व-सुख-सिद्धि-हेतो-ाय सर्वोषधि-स्नात्रम् ।।५।। सर्वोषधयः स्नात्रे, नियोजिताः स्व-स्व-महिम-सम्भारम् ।
सम्भावयन्तु बिम्बे, सर्वातिशयर्द्धिसम्पूर्णे ।।६।। सहस्त्र-मूलं सर्वर्द्धि-सिद्धिमूल-मिहार्हतः ।
___ स्नात्रे करोतु सर्वाणि, वाञ्छितानि महात्मनाम् ।।७।। ॐ हाँ ही हूँ हूँ हाँ हूँ: परमार्हते परमेश्वराय गन्धपुष्पादिसंमिश्राम्बरोसीरादि-सुगंधौषधि-सर्वौषधि-सहस्त्रमूलिकादि-चूर्णसंयुतेन जलेन स्नपयामि स्वाहा । उपर दीये गये श्लोक बोलकर, थाली बजाकर, गीत-वाजिंत्रके नाद पूर्वक कलशो से बिंब के उपर अभिषेक कीजिये, अंगलूछणा कीजिये ।
नीचे दिया गया मंत्र बोलकर एक डंका बजाकर पूजा कीजिये । ॐ नमो यः सर्वशरीरावस्थिते पृथिवि पृथु पृथु गन्धं गृहाण गृहाण स्वाहा ।
नीचे दिया गया मंत्र बोलकर एक डंका बजाकर पुष्पपूजा कीजिये । - ॐ नमो यः सर्वशरीरावस्थिते महाभूते मेदिनि ।
पुरु पुरु पुष्पवति पुष्पं गृहाण गृहाण स्वाहा | नीचे दिया गया मंत्र बोलकर एक डंका बजाकर धूपपूजा कीजिये । ॐ नमो यः सर्वशरीरावस्थिते दह दह महाभूते ।
तेजोऽधिपते धूपं धूपं गृहाण गृहाण स्वाहा । बाद में नीचे दिया गया श्लोक बोलकर दीपपूजा, अक्षतपूजा, नैवेद्यपूजा और फलपूजा कीजिये ।
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ॐ ही श्री परमपुरुषाय परमेश्वराय जन्म-जरामृत्युनिवारणाय श्रीमते जिनेन्द्राय दीपं-अक्षतं-नैवेद्यं-फलं यजामहे स्वाहा।
यहाँ दसवां अभिषेक पूर्ण हुआ । | ||११|| एकादशं पुष्प-स्नात्रम् ।। )
नमोऽर्हत् सिद्धाचार्योपाध्याय सर्वसाधूभ्यः नाना-सुगन्धि-पुष्पौध-रञ्जिता, चञ्चरीक-कृतनादा। . __धूपामोद-विमिश्रा, पततात्पुष्पाञ्जलिर्बिम्बे ||१ ।। ॐ हाँ हाँ हूँ हूँ हाँ हूँ: परमार्हते परमेश्वराय
पुष्पाञ्जलिभिरर्चयामि स्वाहा ।
अक डंका बजाकर परमात्माके उपर कुसुमांजलि चढाईये ।। ग्याराहवे अभिषेक में सेवंती, चमेली, मोगरा, गुलाब, जुई, डमरा, इत्यादि पुष्पे पानी में डालकर
. सुगन्धित पानी बनाईये । सुगन्धित पुष्परज मिश्रित जल के कलशे लेकर खडे रहीये । नमोऽर्हत् ...बोलकर नीचे दिया गया श्लोक बोलीये । अधिवासितं सुमन:- किंजल्क-वासितं तोयम् ।
तीर्थजलादि-सुपृक्तं, कलशोन्मुक्तं, पततु बिम्बे ।।१।। सुगन्धि-परिपुष्पौधै-स्तीर्थोदकेन संयुतैः ।
भावना भव्य-सन्दोहै:, स्नापयामि जिनेश्वरम् ।।२।। शतपत्राद्यैः पुष्पैः, स्नपनं जिनस्य सुगन्धादयैः ।
जातुन यथाऽस्य पार्श्व, त्यजन्ति किल जन्मिनो भृङ्गा ।।३।। मुक्ता-सितकुसुम-ततिर्बिम्बे स्नात्राय भूमिपतिताऽपि ।
चित्रं ददाति भविना-मैहिक-मामुष्मिकं च फलम् ।।४।। ॐ हाँ ही हूँ हूँ ह्रौं हूँ: परमार्हते परमेश्वराय गन्धपुष्पादिसंमिश्र-शतपत्र-यूथिकादि-पुष्पौधसंयुतेन जलेन स्नपयामि स्वाहा ।
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उपर दीये गये श्लोक बोलकर, थाली बजाकर, गीत-वाजिंत्रके नाद पूर्वक कलशो से बिंब के उपर अभिषेक कीजिये, अंग लूणा कीजिये ।
नीचे दिया गया मंत्र बोलकर ओक डंका बजाकर पूजा कीजिये । ॐ नमो यः सर्वशरीरावस्थिते पृथिवि पृथु पृथु गन्धं गृहाण गृहाण स्वाहा । नीचे दिया गया मंत्र बोलकर ओक डंका बजाकर पुष्पपूजा कीजिये । ॐ नमो यः सर्वशरीरावस्थिते महाभूते मेदिनि । पुरु पुरु पुष्पवति पुष्पं गृहाण गृहाण स्वाहा । नीचे दिया गया मंत्र बोलकर ओक डंका बजाकर धूपपूजा कीजिये । ॐ नमो यः सर्वशरीरावस्थिते दह दह महाभूते । तेजोऽधिपते धूपं धूपं गृहाण गृहाण स्वाहा ।
नीचे दिया गया मंत्र बोलकर ओक डंका बजाकर पूजा कीजिये । . ॐ ह्रीं श्रीं परमपुरुषाय परमेश्वराय जन्म-जरामृत्युनिवारणाय श्रीमते जिनेन्द्राय दीपं अक्षतं नैवेद्यं फलं यजामहे स्वाहा ।
यहाँ ग्यारहवा अभिषेक पूर्ण हुआ ।
||१२|| द्वादशं गंध-स्नात्रम् ।।
नमोऽर्हत् सिद्धाचार्योपाध्याय सर्व साधूभ्यः नाना-सुगन्धि-पुष्पौघ- रञ्जिता, चञ्चरीक - कृतनादा । धूपामोद-विमिश्रा, पततात् पुष्पाञ्जलिर्बिम्बे ||१ ||
ॐ ह्रीँ ह्रीँ हूँ हैं हूँ: परमार्हते परमेश्वराय पुष्पाञ्जलिभिरर्चयामि स्वाहा ।
अक डंका बजाकर परमात्मा के उपर कुसुमांजलि चढाईये । बाराहवे अभिषेक में यक्षकर्दम- सुगन्धित चूर्ण में - १. केसर २. सुखड ३. अगर ४. बरास ५. कस्तूरी ६. गोरोचंदन ७. रतांजलि ८. काचो ९. हिंगळोक १०. मरच - कंकोल और ११. सोनेका वरख इतनी वस्तुए आती है । अथवा शिलाजित, उपलोट (कट), सुखड, वास, कपुर यह पांच चीजे लिजिये ।
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गन्धचूर्ण मिश्रित जल के कलशे लेकर खडे रहीये । नमोऽर्हत् ... बोलकर नीचे दिया गया श्लोक बोलीये ।
स्वामिन्नित्यं निर्विलीकस्य तस्य, श्रद्धाभाजां पूतिदेहा-नुषङ्गम् । जन्मारम्भो-च्छेदकृत्-सोपयोगै-र्योगः स्नात्रे गन्ध सौगन्धिकैस्तैः ।।१।। गन्धाङ्ग-स्नानिकया सम्मृष्टं तदुदकस्य धाराभिः ।
स्नपयामि जैनबिम्ब कौघो-च्छित्तये शिवदम् ।।२।। कुङ्कुमाद्यैश्च कर्पूरै-मृगमदेन संयुतैः ।
अगरु-चन्दनमित्रैः, स्नपयामि जिनेश्वरम् ।।३।। बिम्बे सुगन्धिगन्धै-विधीयते स्नात्र-मादितोऽपि यथा ।
लुब्धै-य॑न्तरदेवैः साधिष्ठायक-मिदं भवति ||४|| गन्धाङ्ग-स्नानिकया, स्नपिते बिम्बे विभागि लोकानाम् ।
सहजाङ्ग-परिमलयुतो, विहरज्जिन एव सदसि गतः ।।५।। स्वच्छतया मुनिगात्र-पवित्रीभाव-मुपेत्य जनस्य शिरस्सु ।
प्राप्तपदानि जलान्यपि भूयो भूरिफलानि जयन्ति जगन्ति ।।६।। ॐ हाँ हाँ हूँ हूँ हाँ हूँ: परमाईते परमेश्वराय गन्धपुष्पादि
संमिश्र-यक्षकर्दम-चूर्णसंयुतेन जलेन स्नपयामि स्वाहा । उपर दिया गया श्लोक बोलकर थाली बजाकर, गीत-वाजिंत्रके नाद पूर्वक कलशो से बिंब के उपर अभिषेक कीजिये, अंग लूछणा कीजिये ।
नीचे दिया गया मंत्र बोलकर अक डंका बजाकर पूजा कीजिये । ॐ नमो यः सर्वशरीरावस्थिते पृथिवि पृथु पृथु गन्धं गृहाण गृहाण स्वाहा । नीचे दिया गया मंत्र बोलकर अक डंका बजाकर पुष्पपूजा कीजिये ।
ॐ नमो यः सर्वशरीरावस्थिते महाभूते मेदिनि ।
पुरु पुरु पुष्पवति पुष्पं गृहाण गृहाण स्वाहा । नीचे दिया गया मंत्र बोलकर अक डंका बजाकर धूपपूजा कीजिये । ॐ नमो यः सर्वशरीरावस्थिते दह दह महाभूते ।
तेजोऽधिपते धूपं धूपं गृहाण गृहाण स्वाहा । बाद में नीचे दिया गया श्लोक बोलकर दीपपूजा, अक्षतपूजा, नैवेद्यपूजा और फलपूजा कीजिये ।
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ॐ ह्रीँ श्री परमपुरुषाय परमेश्वराय जन्म-जरामृत्युनिवारणाय श्रीमते जिनेन्द्राय दीपं-अक्षतं-नैवेद्यं-फलं यजामहे स्वाहा।
यहाँ बारहवा अभिषेक पूर्ण हुआ। [ ||१३|| त्रयोदशं वास-स्नात्रम् || ) नमोऽर्हत् सिद्धाचार्योपाध्याय सर्व साधूभ्यः नाना-सुगन्धि-पुष्पौघ-रञ्जिता, चञ्चरीक-कृतनादा । धूपामोद-विमिश्रा, पततात् पुष्पाञ्जलिर्बिम्बे ||१|| ॐ हाँ ह्रीं हूँ हूँ ह्रौँ हूँ: परमार्हते परमेश्वराय
पुष्पाञ्जलिभिरर्चयामि स्वाहा । अक डंका बजाकर परमात्मा के उपर कुसुमांजलि चढाईये । तेरहवे अभिषेक में चंदन, केशर और बरास का चूर्ण मतलब की वासक्षेप आता है। वासचूर्ण (वासक्षेप) मिश्रित जल के कलशे लेकर खडे रहीये । नमोऽर्हत् ...बोलकर नीचे दिया गया श्लोक बोलिये । हृद्यैरालादकरैः स्पृहणीयै-मन्त्रसंस्कृतै-जैनम् । स्नपयामि सुगतिहेतो-र्वासै-रधिवासितं बिम्बंम् ।।१।। शिशिर-कर-कराभै-श्चन्दनै-श्चन्द्रमित्रैः । बहुल-परिमलौघैः प्रीणीतं प्राणगन्धैः । विनमदमरमौलि-प्रोत्थ-रत्नांशुजालै'र्जिनपति-वरशृङ्गे, स्नापयेद-भावभक्त्या ।।२।। स्नप्यमान-मिदं बिम्बं, वासै-र्वासित-सज्जलैः । बहि-रन्तश्च भव्यानां, वासनां कुरुते-ऽद्भूताम् ।।३।। प्रोज्जलवासैः स्नात्रे बिम्बे लग्ना विभान्ति वरवासाः । तीर्थंकरनाम-कर्माणव इव पुनरागताः स्नेहात् ।।४।।
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ॐ हाँ हाँ हूँ हूँ हाँ हूँ: परमाईते परमेश्वराय गन्धपुष्पादिसंमिश्र-सुगन्ध-वासचूर्ण-संयुतेन जलेन स्नपयामि स्वाहा । उपर दिया गया श्लोक बोलकर, थाली बजाकर, गीत-वाजिंत्र के नादपूर्वक कलशोसे बिंब के उपर अभिषेक कीजिये, अंग लूछणा कीजिये ।
नीचे लीखा हुआ मंत्र बोलकर अक डंका बजाकर पूजा कीजिये । ॐ नमो यः सर्वशरीरावस्थिते पृथिवि पृथु पृथु गन्धं गृहाण गृहाण स्वाहा | नीचे लीखा हुआ मंत्र बोलकर अक डंका बजाकर पुष्पपूजा कीजिये ।
ॐ नमो यः सर्वशरीरावस्थिते महाभूते मेदिनि ।
पुरु पुरु पुष्पवति पुष्पं गृहाण गृहाण स्वाहा । नीचे लीखा हुआ मंत्र बोलकर अंक डंका बजाकर धूपपूजा कीजिये ।
ॐ नमो यः सर्वशरीरावस्थिते दह दह महाभूते ।
___ तेजोऽधिपते धूपं धूपं गृहाण गृहाण स्वाहा । बाद में नीचे दिया गया श्लोक बोलकर दीपपूजा, अक्षतपूजा, नैवेद्य पूजा और फलपूजा कीजिये ।
ॐ ह्रीँ श्री परमपुरुषाय परमेश्वराय जन्म-जरामृत्युनिवारणाय श्रीमते जिनेन्द्राय दीपं-अक्षतं-नैवेद्यं-फलं यजामहे स्वाहा ।
यहाँ तेरहवा अभिषेक पूर्ण हुआ।
||१४|| चतुर्दशं क्षीरचन्दन-स्नात्रम् ||) नमोऽर्हत् सिद्धाचार्योपाध्याय सर्व साधूभ्यः नाना-सुगन्धि-पुष्पौघ-रञ्जिता, चञ्चरीक-कृतनादा ।
धूपामोद-विमिश्रा, पततात्पुष्पाञ्जलिर्बिम्बे ||१।। ॐ हाँ हाँ हूँ हूँ हाँ हूँ: परमार्हते परमेश्वराय
पुष्पाञ्जलिभिरर्चयामि स्वाहा।
ओक डंका बजाकर परमात्मा के उपर कुसुमांजलि चढाईये । चौदहवे अभिषेक में सुखड और दूध मिश्रित जल दिया जाता है । सुखड-दूध मिश्रित जल के कलशे लेकर खडे रहीये ।
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नमोऽर्हत्...बोलकर नीचे दिया गया श्लोक बोलिये । शीतल सरस-सुगन्धि-मनोमत-श्चन्दनदुम-समुत्थः ।
चन्दन-कल्कः सजलो, मन्त्रयुतः पततु जिनबिम्बे ।।१।। क्षैरेणाक्षत-मन्मथस्य च महत्-श्रीसिद्धि-कान्तापतेः ।
सर्वं तस्य शर-च्छशाङ्क-विशद-ज्योत्स्ना-रस-स्पर्धिना ।। कुर्मः सर्वसमृद्धये त्रिजगदा-नन्द-प्रदं भूयसा |
स्नात्रं सद्विकसत्-कुशेशयपद-न्यासस्य शस्याकृते ।।२।। चन्दनरस-निःस्यन्द-भ्राजि-जिनस्नप्यमानमूर्ति-रियम् ।
शशिखण्ड-रुचिर-मूर्तिः, कारयितुः पुण्यकन्दसमा ।।३।। भवति लघोरपि-महिमा, महति यतः कुकुम-द्रवः सहसा ।
हरि चन्दनानुकारं, बिभर्ति भवतोऽङ्ग-सङ्गत्या ।।४।। अतिबहुल-परिमलाकुल-शीतल-चन्दनरसै-र्जिनस्नपनम् ।
. भवभवतापं शमयतु, दमयतु दुरितानि सङ्घस्य ||५|| ॐ हाँ हाँ हूँ हूँ हाँ हूँ: परमार्हते परमेश्वराय गन्धपुष्पादि
संमिश्र-क्षीरचन्दन-संयुतेन जलेनस्नपयामि स्वाहा । उपर दिया गया श्लोक बोलकर थाली बजाकर, गीत वाजिंत्र के नाद पूर्वक कलशो से बिंब के उपर अभिषेक कीजिये, अंग लूछणा कीजिये।
नीचे लीखा हुआ मंत्र बोलकर अक डंका बजाकर पूजा कीजिये । ॐ नमो यः सर्वशरीरावस्थिते पृथिवि पृथु पृथु गन्धं गृहाण गृहाण स्वाहा । ... नीचे लीखा हुआ मंत्र बोलकर अक डंका बजाकर पुष्पपूजा कीजिये ।
- ॐ नमो यः सर्वशरीरावस्थिते महाभूते मेदिनि ।
पुरु पुरु पुष्पवति पुष्पं गृहाण गृहाण स्वाहा । नीचे लीखा हुआ मंत्र बोलकर अक डंका बजाकर धूपपूजा कीजिसे ॐ नमो यः सर्वशरीरावस्थिते दह दह महाभूते ।।
तेजोऽधिपते धूपं धूपं गृहाण गृहाण स्वाहा । बादमें नीचे दिया गया श्लोक बोलकर दीपपूजा, अक्षतपूजा,नैवेद्यपूजा और फल पूजा कीजिये।
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ॐ ह्रीं श्रीं परमपुरुषाय परमेश्वराय जन्म-जरामृत्युनिवारणाय श्रीमते जिनेन्द्राय दीपं-अक्षतं-नैवेद्यं-फलं यजामहे स्वाहा ।
यहाँ चौदहवा अभिषेक पूर्ण हुआ। ( ||१५|| पञ्चदशं केशर-शर्करा-स्नात्रम् ||) नमोऽर्हत् सिद्धाचार्योपाध्याय सर्व साधूभ्यः नाना-सुगन्धि-पुष्पौघ-रञ्जिता, चञ्चरीक-कृतनादा।
धूपामोद-विमिश्रा, पततात्पुष्पाञ्जलिर्बिम्बे ।।१।। ॐ हाँ हाँ हूँ हूँ हाँ हूँ: परमार्हते परमेश्वराय
पुष्पाञ्जलिभिरर्चयामि स्वाहा |
ओक डंका बजाकर परमात्मा के उपर कुसुमांजलि चढाईये । पंदराहवे अभिषेक में केशर-शक्कर मिश्रित जल दिया जाता है । केशर-शक्कर मिश्रित जल के कलशे लेकर खडे रहीये ।
नमोऽर्हत् ...बोलकर नीचे दिया गया श्लोक बोलीये । कश्मीरज-सुविलिप्तं, बिम्बं तन्नीर-धारयाभिनवम् ।
सन्मन्त्र-युक्त्याशुचि-जैनं स्नपयामि सिद्धयर्थम् ।।१।। वाचः स्फार-विचार-सारमपरैः, स्याद्वाद-शुद्धामृतस्यन्दिन्यः परमार्हतः कथमपि, प्राप्यं न सिद्धात्मनः । मुक्तिश्री-रसिकस्य यस्य सुरस-स्नात्रेण किं तस्य च |
__श्रीपाद-द्वय-भक्ति-भावित-धिया, कुर्मः प्रभोस्तत् पुनः ।।२।। काश्मीर-नीरपूरैः, क्रियमाण-स्नात्रमत्र जिनबिम्बम् ।
भव्यजन-चित्तरङ्ग-रिव सक्तं हरतु दुरितानि ।।३।। कथय कथं प्रशमनिघे-रन्तर-लब्धावकाश-विवशोऽपि ।
बहि-राविरस्तु रागः, कुङ्कुम-पङ्क-च्छलाद्भवतः ।।४।। कुकुम-जलावलीढं, बिम्बं विदधातु जन-मनोरङ्गम् ।
तुझं शृङ्ग-मिवोदय-गिरिरुपं स्यात् सुखाकारम् ।।५।।
कुडकुम नाहगं शृङ्ग-
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ॐ हाँ हाँ हूँ हूँ ह्रौँ हूँ: परमार्हते परमेश्वराय गन्धपुष्पादि
संमिश्र-कश्मीरज-शर्करासंयुतेन जलेन स्नपयामि स्वाहा । उपर दिया गया श्लोक बोलकर थाली बजाकर, गीत-वाजिंत्र के नादपूर्वक कलशो से बिंब के उपर अभिषेक कीजिये, अंग लूछणा कीजिये।
नीचे लीखा हुआ मंत्र बोलकर अक डंका बजाकर पूजा कीजिये । ॐ नमो यः सर्वशरीरावस्थिते पृथिवि पृथु पृथु गन्धं गृहाण गृहाण स्वाहा । नीचे लीखा हुआ मंत्र बोलकर अक डंका बजाकर पुष्पपूजा कीजिये ।
ॐ नमो यः सर्वशरीरावस्थिते महाभूते मेदिनि ।
पुरु पुरु पुष्पवति पुष्पं गृहाण गृहाण स्वाहा । नीचे लीखा हुआ मंत्र बोलकर ओक डंका बजाकर धूपपूजा कीजिये ।
ॐ नमो यः सर्वशरीरावस्थिते दह दह महाभूते ।
तेजोऽधिपते धूपं धूपं गृहाण गृहाण स्वाहा । बाद में नीचे दिया गया श्लोक बोलकर दीपपूजा, अक्षतपूजा, नैवेद्यपूजा और फलपूजा कीजिये ।
ॐ हीं श्रीं परमपुरुषाय परमेश्वराय जन्म-जरामृत्युनिवारणाय श्रीमते जिनेन्द्राय दीपं-अक्षतं-नैवेद्यं-फलं यजामहे स्वाहा।
यहाँ पंदराहवा अभिषेक पूर्ण हुआ।
| चंद्रदर्शन तथा सूर्यदर्शन विधि :
... पंदराह अभिषेक (स्नात्र) होने के बाद चंद्र दर्शन तथा सूर्य दर्शन का विशेष विधान करना है । यह विधान खास करके अंजन शलाका के अवसरपर कीया जाता है । वैसे ही सामान्य अठराह अभिषेक के प्रसंगपर भी किया जाता है । उसमें सर्व बिंबोको चंद्र और सूर्य के स्वप्न का दर्शन मंत्र पाठ पूर्वक करवाना है । स्वप्न उपलब्ध न होने पर दर्पण दिखाईये ।
.. चंद्र और सूर्य का दर्शन करवाने से पूर्व हरेक अभिषेक करनेवालो को रंग मंडप के बाहर बुला
लिजिये । स्वप्नदर्शन सौभाग्यवंती बहेनो सजोडे अथवा घर के सभी सदस्यों के साथ करवाईये ।
चंद्रदर्शन का मंत्र नीचे दिया गया है । वह मंत्र बोलकर, थाली बजाकर,चंद्र दर्शन करवाईये ।
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ॐ अहँचन्द्रोऽसि, निशाकरोऽसि, सुधाकरोऽसि, चन्द्रमा असि, ग्रहपति-रसि, नक्षत्रपति-रसि, कौमुदीपति-रसि, मदनमित्र-मसि, जगज्जीवन-मसि, जैवातृकोऽसि, क्षीरसागरोद्भवोऽसि, श्वेतवाहनोऽसि, राजाऽसि, राजराजोऽसि, औषधिगर्भोऽसि, वन्द्योऽसि, पूज्योऽसि,
नमस्ते भगवन् ! अस्य कुलस्य ऋद्धिं कुरु कुरु, वृद्धिं कुरु कुरु, तुष्टिं कुरु कुरु, पुष्टिं कुरु कुरु, जयं कुरु कुरु, विजयं कुरु कुरु,
भद्रं कुरु कुरु, प्रमोदं कुरु कुरु, श्रीशशाङ्काय नमः ।। . (अक डंका) हरेक बिंब को चंद्र दिखाकर भगवान की बाए ओर खडे रहकर नीचे दिया गया मंत्र बोलीये ।
सर्वौषधि-मिश्र-मरीचिजालः, सर्वापदां संहरण-प्रवीणः ।
करोतु वृद्धिं सकलेऽपि वंशे, युष्माक-मिन्दुः सततं प्रसन्नः।।१।। (२७ डंका) सूर्य दर्शन का मंत्र नीचे दिया गया है । वह मंत्र बोलकर, थाली बजाकर सूर्य दर्शन करवाईये । ॐ अहूँ सूर्योऽसि- दिनकरोऽसि, सहस्त्र-किरणोऽसि, विभावसु-रसि,
तमोऽपहोऽसि, प्रियङ्करोऽसि, शिवड़करोऽसि, जगच्चक्षु-रसि, सुर-वेष्टितोऽसि, वितत-विमानोऽसि, तेजोमयोऽसि,
अरुणसारथि-रसि, मार्तण्डोऽसि, द्वादशात्माऽसि, चक्रबान्धवोऽसि, नमस्ते भगवन् ! प्रसीदास्य कुलस्य तुष्टिं पुष्टिं
प्रमोदं कुरु कुरु, सन्निहितो भव भव, श्रीसूर्याय नमः | (अक डंका) हरेक बिंब को सूर्य दिखाकर भगवान की दायी ओर खडे रहकर नीचे दिया गया मंत्र बोलीये ।
ॐ अहूँ ! सर्व-सुरासुर-वन्द्यः, कारयिता सर्वधर्म-कार्याणाम् । भूयात् त्रिजग्च्चक्षु-र्मङ्गलद-स्ते सपुत्रायाः ।।१।।
(२७ डंका) यहाँ विशेष विधान पूर्ण हुआ ।
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||१६|| षोडशं तीर्थोदक-स्नात्रम् || नमोऽर्हत् सिद्धाचार्योपाध्याय सर्वसाधूभ्यः नाना-सुगन्धि-पुष्पौघ-रजिता, चञ्चरीक-कृतनादा ।
धूपामोद-विमिश्रा, पततात् पुष्पाञ्जलिर्बिम्बे ।।१।। ॐ हाँ ही हूँ हूँ हाँ हूँ: परमार्हते परमेश्वराय
___पुष्पाञ्जलिभिरर्चयामि स्वाहा ।
अक डंका बजाकर परमात्मा के उपर कुसुमांजलि चढाईये । सोलहवे अभिषेक में अलग अलग अनेक तीर्थो का जल मिश्रित जल दिया जाता है ।
तीर्थजल मिश्रित जल के कलशे लेकर खडे रहीये । नमोऽर्हत् ...बोलकर नीचे दिया गया श्लोक बोलीये । जलधि-नदी-द्रह-कुण्डेषु यानि तीर्थोदकानि शुद्धानि |
तै-मन्त्रसंस्कृतै-रिह, बिम्बं स्नपयामि सिद्धयर्थम् ।।१।। नाकिनदी-नद-विदितैः, पयोभि-रम्भोजरेणुभिः सुभगैः ।
श्रीमज्जिनेन्द्र-मत्र, समर्चयेत् सर्व-शान्त्यर्थम् ।।२।। तीर्थांम्भोभि-बिम्बं, मङ्गल्यैः स्नप्यते प्रतिष्ठायाम् ।
कुरुते यथा नराणां, सन्ततमपि मङ्गल-शतानि ।।३।। अभिमन्त्रितैः पवित्रै-स्तीर्थजलैः स्नाप्यते नवं बिम्बम् ।।
दुरित-रहितं पवित्रं, यथा विधत्ते सकलसङ्घम् ।।४।। ॐ हाँ हाँ हूँहूँ हाँ हूँ: परमार्हते परमेश्वराय गन्धपुष्पादि__.. संमिश्र-तीर्थोदकेन स्नपयामि स्वाहा | . . उपर दिया गया श्लोक बोलकर थाली बजाकर, गीत-वाजिंत्र के नादपूर्वक कलशो से बिंब के उपर अभिषेक कीजिये, अंग लूछणा कीजिये।
नीचे लीखा हुआ मंत्र बोलकर अक डंका बजाकर पूजा कीजिये । ॐ नमो यः सर्वशरीरावस्थिते पृथिवि पृथु पृथु गन्धं गृहाण गृहाण स्वाहा ।
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नीचे लीखा हुआ मंत्र बोलकर अक डंका बजाकर पुष्पपूजा कीजिये ।
ॐ नमो यः सर्वशरीरावस्थिते महाभूते मेदिनि ।
पुरु पुरु पुष्पवति पुष्पं गृहाण गृहाण स्वाहा । नीचे लीखा हुआ मंत्र बोलकर अक डंका बजाकर धूपपूजा कीजिये ।
ॐ नमो यः सर्वशरीरावस्थिते दह दह महाभूते ।
तेजोऽधिपते धूपं धूपं गृहाण गृहाण स्वाहा । बाद में नीचे दिया गया श्लोक बोलकर दीपपूजा, अक्षतपूजा, नैवेद्यपूजा और फलपूजा कीजिये । - ॐ ह्रीँ श्री परमपुरुषाय परमेश्वराय जन्म-जरा-मृत्युनिवारणाय श्रीमते जिनेन्द्राय दीपं-अक्षतं-नैवेद्यं-फलं यजामहे स्वाहा ।
यहाँ सोलाहवा अभिषेक पूर्ण हुआ। । ||१७|| सप्तदशं कर्पूर-स्नात्रम् ।। ) नमोऽर्हत् सिद्धाचार्योपाध्याय सर्व साधूभ्यः नाना-सुगन्धि-पुष्पौघ-रञ्जिता, चञ्चरीक-कृतनादा |
धूपामोद-विमिश्रा, पततात् पुष्पाञ्जलिर्बिम्बे ।।१।। ॐ हाँ ही हूँ हूँ ह्रौं हूँ: परमार्हते परमेश्वराय
पुष्पाञ्जलिभिरर्चयामि स्वाहा । अक डंका बजाकर परमात्मा के उपर कुसुमांजलि चढाईये । सत्तराहवे अभिषेक में कर्पूर मिश्रित जल दिया जाता है ।
कर्पूर मिश्रित जल के कलशे लेकर खडे रहीये । नमोऽर्हत् ...बोलकर नीचे दिया गया श्लोक बोलीये । शशिकर-तुषार-धवला, उज्ज्वल-गन्धा सुतीर्थ-जलमिश्रा |
कर्पूरीदक-धारा, सुमन्त्रपूता पततु बिम्बे ।।१।। कनक-करक-नाली-मुक्तधारा-भिराभि (रदि)मिलित निखिल-गन्धैः केलि-कर्पूरभाभिः । अखिल-भुवन-शान्त्यै, शान्तिधारा जिनेन्द्र
क्रम-सरसिज-पीठे,स्नापयेद्वीतरागान् ।।२।।
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कर्पूरचूर्ण-परिपूर्ण-सुवर्ण कुम्भै-बिम्बं जिनस्य मुदिताः स्नपयन्तु सन्तः । कर्पूरपूर-धवलां वरमालिकां च, कण्ठे यथा क्षिपति निवृत्ति-कन्यकेयम् ।।३।। कर्पूरपूर-धवलं, प्रसरति सलिलं यथा यथा बिम्बे |
स्नात्रकृतोऽपि प्रसरति, तथा तथा शुभ्रिमं यशः पूञ्जम् ।।४।। ॐ हाँ हाँ हूँ हूँ हाँ हूँ: परमार्हते परमेश्वराय गन्धपुष्पादिसंमिश्र-कर्पूरचूर्ण-संयुतेन जलेन स्नपयामि स्वाहा । उपर दिया गया श्लोक बोलकर थाली बजाकर, गीत-वाजिंत्र के नादपूर्वक कलशो से बिंब के उपर अभिषेक कीजिये, अंग लूछणा कीजिये ।
नीचे लीखा हुआ मंत्र बोलकर अक डंका बजाकर पूजा कीजिये । ॐ नमो यः सर्वशरीरावस्थिते पृथिवि पृथु पृथु गन्धं गृहाण गृहाण स्वाहा । नीचे लीखा हुआ मंत्र बोलकर अक डंका बजाकर पुष्पपूजा कीजिये ।
ॐ नमो यः सर्वशरीरावस्थिते महाभूते मेदिनि ।
पुरु पुरु पुष्पवति पुष्पं गृहाण गृहाण स्वाहा । नीचे लीखा हुआ मंत्र बोलकर अक डंका बजाकर धूपपूजा कीजिये । ॐ नमो यः सर्वशरीरावस्थिते दह दह महाभूते ।
तेजोऽधिपते धूपं धूपं गृहाण गृहाण स्वाहा । बाद में नीचे दिया गया श्लोक बोलकर दीपपूजा, अक्षतपूजा, नैवेद्यपूजा और फलपूजा कीजिये ।
ॐ हीं श्री परमपुरुषाय परमेश्वराय जन्म-जरा-मृत्युनिवारणाय श्रीमते जिनेन्द्राय दीपं-अक्षतं-नैवेद्यं-फलं यजामहे स्वाहा ।
यहाँ सत्तराहवा अभिषेक पूर्ण हुआ ।
(1|१८|| अष्टादशं केसर-कस्तूरिका-चन्दन-स्नात्रम् ।।
नमोऽर्हत् सिद्धाचार्योपाध्याय सर्व साधूभ्यः नाना-सुगन्धि-पुष्पौघ-रञ्जिता, चञ्चरीक-कृतनादा ।
___धूपामोद-विमिश्रा, पततात्पुष्पाञ्जलिर्बिम्बे ।।१।। ॐ हाँ हाँ हूँ हूँ हाँ हूँ: परमार्हते परमेश्वराय
पुष्पाञ्जलिभिरर्चयामि स्वाहा ।
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अक डंका बजाकर परमात्मा के उपर कुसुमांजलि चढाईये । अठराहवे अभिषेक में केशर, कस्तुरी और चंदन मिश्रित जल दिया जाता है । केशर कस्तुरी-चंदन मिश्रित जल के कलशे लेकर खडे रहीये ।
नमोऽर्हत् ... बोलकर नीचे दिया गया श्लोक बोलिये । सौरभ्यं धनसार-पङ्कजरजोभिः प्रीणितैः पुष्करैः । शीतैः शीतकरा - वदात - रुचिभिः काश्मीर- सम्मिश्रितैः । श्रीखण्ड-प्रसवा चलैश्च मधुरैर्नित्यं लभेष्टैर्वरैः ।
सौरभ्यो- दक- सख्यसार्वचरण - द्वन्द्वं यजे भावतः ।।१।। मृगमद - बहलैः सलिलैः, निपतद्भि-र्भवतु जैनबिम्बस्य ।
लौहं कवच-मिवोच्चैः, परिहाराय व्यपायानाम् ||२|| मन्त्र-पवित्रित-पयसा, प्रकृष्ट- कस्तूरिका सुगन्धपूजा ।
विहित-प्रणताभ्युदयं, बिम्बं स्नपयामि जैनेन्द्रम् ।।३।। अतिसुरभि - बहुल-परिमल - वासितपानेन मृगमद - स्नात्रे ।
मन्त्रैः कृते पयोभिः स्नपयामि शिवाढ्य - जिनबिम्बम् ||४|| ॐ हाँ ह्रीँ हूँ हूँ हूँ हूँ परमार्हते परमेश्वराय गन्धपुष्पादिसंमिश्र - मृगमद - श्रीखण्ड-कश्मीरजादि संयुतेन जलेन स्नपयामि
स्वाहा ।
उपर दिया गया श्लोक बोलकर थाली बजाकर, गीत-वाजिंत्र के नादपूर्वक कलशो से बिंब के उपर अभिषेक कीजिये, अंग लूणा कीजिये ।
नीचे लीखा हुआ मंत्र बोलकर ओक डंका बजाकर पूजा कीजिये । ॐ नमो यः सर्वशरीरावस्थिते पृथिवि पृथु पृथु गन्धं गृहाण गृहाण स्वाहा । नीचे लीखा हुआ मंत्र बोलकर ओक डंका बजाकर पुष्पपूजा कीजिये । ॐ नमो यः सर्वशरीरावस्थिते महाभूते मेदिनि । पुरु पुरु पुष्पवति पुष्पं गृहाण गृहाण स्वाहा । नीचे लिखा हुआ मंत्र बोलकर अक डंका बजाकर धूपपूजा कीजिये । ॐ नमो यः सर्वशरीरावस्थिते दह दह महाभूते । तेजोऽधिपते धूपं धूपं गृहाण गृहाण स्वाहा ।
३२ >>
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बाद में नीचे दिया गया श्लोक बोलकर दीपपूजा, अक्षतपूजा, नैवेद्य पूजा और फलपूजा कीजिये। .
ॐ ही श्री परमपुरुषाय परमेश्वराय जन्म-जरा-मृत्युनिवारणाय श्रीमते जिनेन्द्राय दीपं-अक्षतं-नैवेद्यं-फलं यजामहे स्वाहा ।
यहाँ अठराहवा अभिषेक पूर्ण हुआ ।
अठाराह अभिषेक के सभी जल से अभिषेक कीजिये, अंग लूछणा-अष्ट प्रकारी पूजा कीजिये ।
श्री गुरुमूर्ति के पांच अभिषेक विधि :गुरुमूर्ति के पांच अभिषेक के द्रव्य : (१) सुवर्ण (सोने का वरख) (२) पंचरत्न चूर्ण (३) पंचामृत अथवा पंचगव्य (गाय का गोबर, गौमूत्र, घी, दूध, दही) उपलब्ध न होने पर दूध, दही, घी, शक्कर
और पानी (४) सदौषधि स्नात्र (५) तीर्थजल । उपरोक्त द्रव्य से नीचे बताये गये सर्व प्रथम गुरुमूर्ति के पांच अभिषेक कीजिये, उसके पश्चात आगे बताये गये देव-देवीके पांच अभिषेक कीजिये ।
1191| प्रथमं सुवर्णचूर्ण-स्नात्रम् ।। नमोऽहत् सिद्धाचार्योपाध्याय सर्व साधूभ्यः नाना-सुगन्धि-पुष्पौघ-रञ्जिता, चञ्चरीक-कृतनादा । धूपामोद-विमिश्रा, पततात् पुष्पाञ्जलिर्बिम्बे ।।१।। ॐ हाँ हाँ हूँ हूँ हाँ हूँ: परमगुरूभ्यः पूज्यपादेभ्यः
पुष्पाञ्जलिभिरर्चयामि स्वाहा । अक डंका बजाकर गुरुमूर्ति अथवा गुरुपादुका के उपर कुसुमांजलि चढाईये ।
सुवर्णयुक्त पंचामृत के कलशे दो सजोडे को लेना है । नमोऽर्हत् ... सुपवित्र-तीर्थनीरेण संयुक्तं गन्ध-पुष्प-सम्मिश्रम् ।
पततु जलं बिम्बोपरि, सहिरण्यं मन्त्र-परिपूतम् ।।१।। सुवर्ण-द्रव्यसम्पूर्णं, चूर्णं कुर्यात् सुनिर्मलम् ।।
ततः प्रक्षालनं वार्भिः पुष्पचन्दनसंयुक्तैः ।।२।।
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सङ्गच्छमान-दिव्यश्री-घुसुणद्युतिमानिव ।
बिम्बं स्नपयताद्-वारिपूरं काञ्चन-चूर्णभूत् ।।३।। स्वर्णचूर्णयुतं वारि, स्नात्रकाले करोत्वलम् ।
तेजोऽद्भुतं नवे बिम्बे, भूरिभूतिं च धार्मिके ।।४।। ॐ हाँ ही हूँ हूँ हौँ हुः परमगुरुभ्यः पूज्यपादेभ्यो गन्धपुष्पादि-संमिश्र-स्वर्णचूर्ण-संयुतेन जलेन स्नपयामि स्वाहा ।
(पूर्ण थाली) अभिषेक करके, केशर-पुष्प-धूप पूजा करी, श्रीफळ तथा पेंडा और १ । रु. पधराईये ।
||2|| द्वितीयं पंचरत्न-चूर्ण-स्नात्रम् || नमोऽर्हत् सिद्धाचार्योपाध्याय सर्वसाधूभ्यः नाना-सुगन्धि-पुष्पौघ-रञ्जिता, चञ्चरीक-कृतनादा । धूपामोद-विमिश्रा, पततात् पुष्पाञ्जलिर्बिम्बे ।।१।। , ॐ हाँ हाँ हूँ हूँ हाँ ह्रः परमगुरूभ्यः पूज्यपादेभ्यः
पुष्पाञ्जलिभिरर्चयामि स्वाहा । ओक डंका बजाकर गुरुमूर्ति अथवा गुरुपादुका के उपर कुसुमांजलि चढाईये ।
पंचरत्नचूर्ण युक्त पंचामृत के कलशे लिजिये । नमोऽर्हत् ... यन्नाम-स्मरणादपि श्रुतिवशा-दप्यक्षरो-च्चारतो, यत्पूर्ण प्रतिमा-प्रणाम-करणात्,सन्दर्शनात् स्पर्शनात् ।। भव्यानां भव-पङ्कहानि-रसकृत् स्यात् तस्य किं सत्पयः ।
स्नात्रेणापि तथा स्व-भक्तिवशतो रत्नोत्सवे तत् पुनः ।।१।।. नाना-रत्नौघयुतं, सुगन्ध-पुष्पाभि-वासितं नीरम् ।
पतताद-विचित्रचूर्णं मन्त्रादयं स्थापनाबिम्बे ।।२।। नानारत्न-क्षोदान्विता पतत्वम्बु-सन्ततिर्बिम्बे |
तत्काल-सङ्ग-लालस-माहात्म्यश्री-कटाक्षनिभा ।।३।।
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शुचि-पञ्चरत्न-चूर्णा-पूर्णं चूर्णं पयः पतबिम्बे |
भव्य-जनानामाचारपञ्चकं निर्मलं कुर्यात् ।।४।। ॐ हाँ ह्रीं हूँ हूँ ह्रौं ह्रः परमगुरुभ्यः पूज्यपादेभ्यो गन्धपुष्पादि-संमिश्र-मुक्तास्वर्ण रौप्य प्रवाल ताम्ररुप पंञ्चरत्न चूर्ण संयुतेन जलेन स्नपयामि स्वाहा ।
. (पूर्ण थाली) ||३|| तृतीयं पञ्चगव्य-पञ्चामृत-स्नात्रम् || नमोऽर्हत् सिद्धाचार्योपाध्याय सर्व साधूभ्यः नाना-सुगन्धि-पुष्पौघ-रञ्जिता, चञ्चरीक-कृतनादा |
धूपामोद-विमिश्रा, पततात् पुष्पाञ्जलिबिम्बे ।।१।। ॐ हाँ हाँ हूँ हूँ हाँ हूँ: परमगुरूभ्यः पूज्यपादेभ्यः
पुष्पाञ्जलिभिरर्चयामि स्वाहा । ओक डंका बजाकर गुरुमूर्ति अथवा गुरुपादुका के उपर कुसुमांजलि चढाईये ।
पंचामृतके कलशे लिजिये । नमोऽर्हत् ... यति-बिम्बोपरि-निपतद्-घृत-दधि-दुग्धादि-द्रव्यपरिपूतम् |
दर्भोदकसंमिश्र, पञ्चगवं हरतु दुरितानि ।।१।। वरपुष्प-चन्दनैश्च, मधुरैः कृत-निःस्वनैः दधि दुग्ध घृत मित्रैः स्नपयामि यतीश्वरम् ।। २।। एकत्र मीलितैस्तैः, पञ्चभि-रमृतैः सुगन्धिभिः स्नपनम् ।
- क्रियमाणं नवबिम्बे हरताद्विष-पञ्चकं नृणाम् ।।३।। स्नात्रंविधीयमानं, सुगन्धिपञ्चामृतेन यतिबिम्बे |
भक्तिप्रह्व-जनानां, प्रमाद-पञ्चकविषं हरतात् ।।४।। ॐ हाँ ही हूँ हैं ह्रौं ह्रः परमगुरुभ्यः पूज्यपादेभ्यो गन्धपुष्पादि-संमिश्र-पञ्चगवाङ्गयुत-पञ्चमृतेन स्नपयामि स्वाहा ।
(पूर्ण थाला)
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___|४|| चतुर्थं सदौषधि-स्नात्रम् ।। नमोऽर्हत् सिद्धाचार्योपाध्याय सर्व साधूभ्यः नाना-सुगन्धि-पुष्पौघ-रञ्जिता, चञ्चरीक-कृतनादा | धूपामोद-विमिश्रा, पततात्पुष्पाञ्जलिर्बिम्बे ।१।। ॐ हाँ हाँ हूँ हूँ हाँ हूँ: परमगुरूभ्यः पूज्यपादेभ्योः
पुष्पाञ्जलिभिरर्चयामि स्वाहा । अक डंका बजाकर गुरुमूर्ति अथवा गुरुपादुका के उपर कुसुमांजलि चढाईये । ..
सदौषधियुक्त पंचामृतके कलशे लिजिये । .. नमोऽर्हत् ... प्रियङ्ग-वत्स-कङ्केलि-रसालादि-तरुद्भवैः ।
पल्लवैः पत्र-भल्लातै-रेलची-तज-सत्फलैः ।।१।। विष्णुक्रान्ता-हिप्रवाल-लवङ्गादिभि-रष्टभिः ।
मूलाष्टकै-स्तथाद्रव्यैः, सदौषधि-विमिश्रितैः ।।२।। सुगन्ध-द्रव्य-सन्दोह-मोद-मत्तालि-संकुलैः । ,
कुर्वे-यति-महास्नात्रं, शुभ-सन्तति-सूचकम् ।।३।। सुपवित्र-मूलिकावर्ग-मर्दिते तदुदकस्य शुभधारा ।
बिम्बे-ऽधिवास-समये, यच्छतु सौख्यानि निपतन्ती ।।४।। बिम्बस्य मयूरशिखा-मूलिका-मिश्रितै-जलैः स्नपनम् ।
विदधति विशुध्द-मनसो मा भूदिव दृष्टि-रिति बुद्धया ||५|| वशकारि-मयूरशिखादि मूलिका-कलित-जलभरैः स्नपनम् ।
बिम्बं वशतु जनानां, कुशयतु दुरितानि भक्तिमताम् ।।६ | ॐ हाँ ही हूँ हूँ ह्रौँ हूँ: परमगुरुभ्यः पूज्यपादेभ्यो गन्धपुष्पादि-संमिश्र-प्रियंग्वादि-औषधि-विष्णुक्रान्तादि
मूलिकाचूर्णसंयुतेन जलेन स्नपयामि स्वाहा ।
___ (पूर्ण थाली)
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||५|| पञ्चमं तीर्थोदक-स्नात्रम् || नमोऽर्हत् सिद्धाचार्योपाध्याय सर्वसाधूभ्यः नाना-सुगन्धि-पुष्पौघ-रञ्जिता, चञ्चरीक-कृतनादा | धूपामोद-विमिश्रा, पततात् पुष्पाञ्जलिर्बिम्बे ||१|| ॐ हाँ ही हूँहाँ हूँ: परमगुरूभ्यः पूज्यपादेभ्यः
पुष्पाञ्जलिभिरर्चयामि स्वाहा । अक डंका बजाकर गुरुमूर्ति अथवा गुरुपादुका के उपर कुसुमांजलि चढाईये ।
तीथोदकयुक्त पंचामृतके कलशे लिजिये । नमोऽर्हत् ... जलधि-नदी-द्रह-कुण्डेषु यानि तीर्थोदकानि शुद्धानि ।
तै-मन्त्रसंस्कृतै-रिह, बिम्बं स्नपयामि सिद्धयर्थम् ।।१।। नाकिनदी-नद-विदितैः, पयोभि-रम्भोजरेणुभिः सुभगैः ।
__ श्रीमद्येतीन्द्र मत्र, समर्चयेत् सर्व-शान्त्यर्थम् । २।। तीर्थाम्भोभि-बिम्ब, मङ्गल्यैः स्नप्यते प्रतिष्ठायाम् |
कुरुते यथा नराणां, सन्ततमपि मङ्गल-शतानि ।।३।। अभिमन्त्रितैः पवित्र-स्तोर्थजलैः स्नप्यते नवं बिम्बम् |
दुरित-रहितं पवित्रं, यथा विधते सकलसङ्घम् ।।४।। ॐ हाँ हाँ हूँ हूँ ह्रौं हूँ: परमगुरुभ्यः पूज्यपादेभ्यो । ____ गन्धपुष्पादि-संमिश्र-तीर्थोदकेन स्नपयामि स्वाहा ।
पूर्ण शाली) बादमें शुद्ध जल से प्रक्षाल करके, अंग लुटणा करके अष्टप्रकारी पूजा किजिये ।
अब, देव-देवी के पांच अभिषेक द्रव्य :. (१) पंचामृत में दूध अधिक (२) पंचामृत में यहीं अधिक (३) पंचामृत में घी अधिक (४) पंचामृत (५) सर्वोषधि (पुडी नं. १०) हरेक अभिषेक के बाद तीन अलग अंग लूछणा गे साफ करके मस्तिश्क पर अंगूठे से तिलक करके प्रणाम कीजिये !
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| देवी देवी के पांच अभिषेक ।
अक सजोडा दुध के कलशे हाथ में लेकर खडे रहे ।
नमोऽर्हत् सिद्धाचार्योपाध्याय सर्व साधूभ्यः (१) क्षीराम्बुधेः सुराधीशै-रानीतं क्षीर-मुत्तमम् । अस्मिन् भगवती-स्नात्रे, दुरितानि निकृन्ततु ।। (प्रक्षाल) दुसरा सजोडा दहीं के कलशे हाथ में लेकर खडे रहे । नमोऽर्हत्... (२) घनंघनबलाधारं, स्नेह-पीवर-मुज्ज्वलम् । संदधातु दधिश्रेष्ठं देवीस्नात्रे सतां सुखम् ।। (प्रक्षाल) तिसरा सजोडा घी के कलशे हाथ में लेकर खडे रहे । नमोऽर्हत्... (३) स्नेहेषु मुख्य-मायुष्यं, पवित्रं पापतापहृत् । घृतं भगवती-स्नात्रे भूया-दमृत-मञ्जसा ।। (प्रक्षाल) चौथा सजोडाशर्कयुक्त अथवा पंचामृत के कलशे हाथ में लेकर खडे रहे । नमोऽर्हत्... (४) सर्वोषधिरसं सर्वरोगहृत् सर्वरञ्जनम् । क्षौद्रं क्षुद्रोपद्रवाणां, हन्तु देव्यभिषेचनात् ।। (प्रक्षाल) पांचवा सजोडा सर्व औषधि मिश्रित पंचामृत के कलशे हाथ में लेकर खडे रहे । नमोऽर्हत्... (५) सर्वोषधिमयं नीरं नीरं सदगुण-संयुतम् । भगवत्य-भिषेकेऽस्मि-न्नुपयुक्तंश्रियेऽस्तु नः ।। (प्रक्षाल)
| (अष्टप्रकारी पूजा के दुहे) । १. जलपूजा नमोऽर्हत् ... जल पूजा जुगते करो, मेल अनादि विनाश । जल पूजा फल मुज हजो, मांगो ओम प्रभु पास ।।१।। ॐ ह्रीँ श्री परमपुरुषाय, परमेश्वराय, जन्म-जरा-मृत्युनिवारणाय श्रीमते जिनेन्द्राय जलं यजामहे स्वाहा ।
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२.चंदनपूजा :- नमोऽर्हत्... शीतल गुण जेहमा रह्यो, शीतल प्रभु मुख रंग । आत्म शीतल करवा भनी, पूजोअरिहा अंग ।।२।। ॐ ह्रीँ श्री परमपुरुषाय,.....चंदनं यजामहे स्वाहा । ३. पुष्पपूजा :- नमोऽर्हत्... सुरभि अखंड कुसुम ग्रही, पूजो गत संताप । सुमजंतु भव्य जपरे, करीये समकित शाप ।।३।। ॐ ह्रीँ श्री परमपुरुषाय,.....पुष्पं यजामहे स्वाहा । ४. धूपपूजा :- नमोऽर्हत्... ध्यान घटा प्रगटावीये, वाम नयन जिन धूप । मिच्छत दुर्गंध दूर टले, प्रगटे आत्म स्वरुप ।।४।। ॐ ह्रीँ श्री परमपुरुषाय,.....धूपं यजामहे स्वाहा । ५. दीपकपूजा :- नमोऽर्हत्... द्रव्य-दीपक सुविवेकथी, करतांदुःख होय फोक । भाव-प्रदीप प्रगट हुये, भासित लोकालोक ।।५।। ॐ ही श्री परमपुरुषाय,.....दीपं यजामहे स्वाहा । ६. अक्षतपूजा :- नमोऽर्हत् ... शुद्ध अखंड अक्षत ग्रही, नंदावर्त विशाल । पूरी प्रभु सन्मुख रो, टाळी सकळजंजाळ ।।६।।
ॐ ही श्री परमपुरुषाय,.....अक्षतं यजामहे स्वाहा । . . ७. नैवेद्यपूजा :- नमोऽर्हत्...
अणाहारी पद में कर्या, विग्गह गई अनंत । दूर करी ते दीजिये,अणाहारी शिव संत ।।७।। ॐ ह्रीँ श्री परमपुरुषाय,.....नैवेद्यं यजामहे स्वाहा । ८. फलपूजा :- नमोऽर्हत्... ईन्द्रादिक पूजा भणी, फळ लावे धरी राग । पुरुषोत्तमम पूजी करी, मांगे शीवफळ त्याग ।।८।। ॐ हीं श्रीं परमपुरुषाय,.....फलं यजामहे स्वाहा ।
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इस तरह अष्टप्रकारी पूजा करने के बाद नीचे दिखाये गये तरीके से लूण उतार के आरति-मंगळ दीवा कीजिये । ईरियावही पूर्वक से चैत्यवंदन कीजिये ।
श्री संघ में सभी स्थान पे स्नात्र जल छीडकीये । घर घर पवित्र जल आदर पूर्वक ले जाईये और छीडकीये । || अष्टादश अभिषेक ( स्नात्र) बृहद् विधिः समाप्तः ।।
अंत में कुसुमांजलि हाथ में लेकर नीचे दिया गया श्लोक बोलकर क्षमापना कीजिये । विधि-क्रिया में आशातना हुई हो तो उसकी क्षमा याचना भावपूर्वक कीजिये । ॐ आज्ञाहीनं क्रियाहीनं, मन्त्रहीनं च यत् कृतम्
तत् सर्वं कृपया देवाः क्षमन्तु परमेश्वराः ।।१।। ॐ आह्वानं नैव जानामि, न जानामि विसर्जनम् ।
पूजाविधिं न जानामि, प्रसीद परमेश्वर ।।२ ।। उपसर्गाः क्षयं यान्ति, छिध्यन्ते विघ्नवल्लयः । मनः प्रसन्नतामेति पूज्यमाने जिनेश्वरे ॥ सर्वमङ्गल-माङ्गल्यं, सर्वकल्याण-कारणम् । प्रधानं सर्वधर्माणां जैन जयति शासनम् ।।
अविधि- आशातनामिच्छामि - दुक्कडम् | लूण उतार के आरति उतारीये
लू उतारने के लिए द्रव्य : मिट्टी, अखा नमक, दशांक धूप का चूरा ।
नोंध : आरति - मंगळ दीवा को कुम कुम का तिलक करके लूण विधि कीजिये ।
मिट्टी - नमक हाथ में लेकर आरती-मंगळ दीवा के उपर घुमा के दोनो द्रव्य पानी भरी हुई वाटी में डालिये । लूण उतारने समय बोलने के दुहे :
नमोऽर्हत्...
लू उतारो जिनवर अंगे, निर्मल जलधारा मन रंगे ।। १ ।।
जिम जिम तड तड लूण ज फूटे, तिम तिम अशुभ कर्म बंध तूटे ।।२ ।।
( मीट्टी - नमक अग्नि में धूप पर घुमा के धूपदानी में डालिये ।)
नयन सलूणा श्री जिनजीना, अनुपम रस दयारस भीना... लूण ।। ३ ।। रुप सलूनुं जिनजीनुं दिशे, लाजवं लूण ते जलमा पे से ।।४ ।। त्रण प्रदक्षिणा देई जलधारा, जलण पेखवीये लूण उदारा... .. लूण ।।५।। जे जिन उपर दुमनो प्राणी, ते अम थाजो लूण ज्युं पानी... लूण ।।६।।
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दशांग धूप का चूरा धूप दानी में (अग्निमें) डालिये । अगर कृष्णागरु, कुंदरु सुगंधे। धूप करीजे विविध प्रबंधे, लूणउतारो ।।७।। (श्लोके बोलने के बाद पानी में और धूप में द्रव्य डालना है)
आरति नमोऽर्हत् ... जय जय आरति आदि जिणंदा, नाभिरायामरुदेवीको नंदा, पहेली आरति पूजा किजे, नरभव पामीने ल्हावो लिजे...जय जय ।।१।। दुसरी आरति दीन दयाळा, धुळेवा मंडपमांजग अजवाळा...जय जय ।।२।। तीसरी आरति त्रिभुवन देवा, सुर नर ईन्द्र करे तोरी सेवा...जय जय ।।३।। चौथी आरति चौगति चूरे, मनवांछित फळ शिव सुख पुरे...जय जय ।।४।। पंचमी आरति पुण्य उपाया, मूळचदे ऋषभ गुण गाया...जय जय ।।५।।
मंगळ दीवो नमोऽर्हत्... दीवोरे दीवो प्रभुमंगलिक दीवो,
‘आरति उतारण बहु चिरंजीवो...दीवो ।।१।। सोहमणुंघेर पर्व दीवाळी,
अंबरखेले अमराबाळी...दीवो ।।२।। देपाळ भणे अणे कुळ अजवाळी,
भावे भगते विधन निवारी...दीवो ।।३।। देपाळ भणे अणे ओकलिकाळे,
आरति उतारी राजा कुमारपाळे....दीवो ।।४।। .. अम घेर मंगलिक, तुम घेर मंगलिक,
. मंगलिक चतुर्विध संघने होजो...दीवो ।।५।। अब, कुंडीमें सजोडे शांति कळश किजिये । नवकार, उरासग्गहरं, नमोऽर्हत्...बोलकर नीचे दी गई बडी शांति बोलिये।
- बृहच्छांति स्तोत्रम् (मोटी शांति) भो भो भव्याः शृणुत वचनं प्रस्तुतं सर्वमेतद, ये यात्रायां त्रिभुवनगुरो-रार्हता भक्तिभाजः । तेषां शांतिर्भवतु भवता-मर्हदादि-प्रभावा, दारोग्यश्री-धृतिमतिकरी क्लेश-विध्वंसहेतुः ।।
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भो भो भव्यलोकाः इह हि भरतैरावत-विदेहसंभवनां समस्त-तीर्थकृतां जन्मन्यासन-प्रकम्पानन्तर-मवधिना विज्ञाय, सौधर्माधिपतिः सुघोषाघंटा-चालनानन्तरं सकल-सुरासुरेन्द्रैः सह समागत्य सविनय-मर्हद्-भट्टारकं गृहीत्वा, गत्वा कनकाद्रि-शृंगे, विहित-जन्माभिषेकः शान्ति-मुद्घोषयति यथा ततोऽहं कृतानुकारमिति कृत्वा महाजनो येन गतः स पन्थाः इति भव्यजनैः सह समेत्य स्नात्रपीठे स्नात्रंविधायशान्तिमुद्धोषयामि, तत्पूजायात्रास्नात्रादिमहोत्सवा-नन्तरमिति कृत्वा कर्णं दत्त्वा निशम्यतां निशम्यतां स्वाहा।
ॐ पुण्याहं पुण्याहं प्रीयन्तां प्रीयन्तां, भगवन्तोडर्हन्तः सर्वज्ञाः सर्वदर्शिन त्रिलोक नाथाः त्रिलोक-महिताः त्रिलोक-पूज्याः त्रिलोकेश्वराः त्रिलोकोद्योतकराः ।
ॐ ऋषभ-अजित-सम्भव-अभिनन्दन-सुमति-पद्मप्रभ-सुपार्श्व-चन्द्रप्रभसुविधि-शीतल-श्रेयांस-वासुपूज्य-विमल-अनन्त-धर्म-शान्ति-कुन्थु-अर-मल्लिमुनिसुव्रत-नमि-नेमि-पार्श्व-वर्धमानान्ता-जिनाः शान्ताः शान्तिकरा भवन्तु स्वाहा ।
ॐमुनयो मुनिप्रवरा रिपुविजयदुर्भिक्ष-कान्तारेषुदुर्गमार्गेषुरक्षन्तुवोनित्यं स्वाहा ।
ॐ ही श्री धृति-मति-कीर्ति-कान्ति-बुद्धि-लक्ष्मी-मेधा-विधासाधन-प्रवेशनिवेशनेषु सुगृहीतनामानोजयन्तु तेजिनेन्द्राः ।
ॐ रोहिणी-प्रज्ञप्ति-वज्रशृंखला-वज्रांकुशी-अप्रतिचक्रा-पुरुषदत्ता-काली महाकाली-गौरी-गान्धारी-सर्वास्त्र-महाज्वाला-मानवी वैरोट्या-अच्छुप्ता-मानसीमहामानसी षोडश विद्यादेव्योरक्षन्तु वो नित्य स्वाहा ।
ॐ आचार्योपाध्याय-प्रभृति-चातुर्वर्णस्य श्री श्रमणसंघस्य शान्तिर्भवतु तुष्टिर्भवतु, पुष्टिर्भवतु ।
ॐ ग्रहाश्चन्द्र-सूर्यांगारक-बुध-बृहस्पति-शुक्र-शनैश्चर-राहु-केतु-सहिताः सलोकपालाः सोम-यम-वरुण-कुबेर-वासवादित्य-स्कन्द-विनायकोपेता ये चान्येऽपि ग्राम-नगर-क्षेत्र-देवातादयस्ते सर्वे प्रीयन्तां प्रीयन्तां अक्षीणकोशकोष्ठागारा नरपतयश्च भवन्तु स्वाहा । ____ ॐ पुत्र-मित्र-भ्रातृ-कलत्र-सुहृत्-स्वजन-सम्बन्धि बन्धुवर्गसहिता नित्यं चामोद-प्रमोदकारिणः अस्मिंश्च भूमण्डलआयतननिवासि-साधु-साध्वी-श्रावकश्राविकाणां रोगोपसर्ग-व्याधि-दुःख-दुर्भिक्ष-दौर्मनस्योपशमनाय शान्तिर्भवतु | ॐ तुष्टिपुष्टि- ऋद्धि, वृद्धि माङल्योत्सवाः सदा प्रादुर्भूतानि पापानि शाम्यतु दुरितानि शत्रवः पराङमुखा भवन्तु स्वाहा ।
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श्रीमते शान्तिनाथाय नमः शान्तिविधायिने, त्रैलोक्यस्यामराधीश, मुकुटाभ्यर्चिताङ्घये।
शान्तिः शान्तिकर:श्रीमान्, शान्तिं दिशतु मे गुरुः । शान्तिरेव सदा तेषां, येषां शान्तिर्गृहे गृहे।
उन्मृष्ट-रिष्ट-दुष्ट-ग्रह-गति-दुःस्वप्न-दुर्निमित्तादि, सम्पादितहित सम्पन्नामग्रहणं जयतिशान्तेः।
श्री संघ-जगज्जनपद-राजाधिप-राजसन्निवेशानां गोष्ठिक-पुर-मुख्याणां, व्याहरणैाहरेच्छान्तिम् ।
श्री श्रमण-संघस्य शान्तिर्भवतु, श्रीजनपदानांशान्तिर्भवतु, श्रीराजाधिपानांशान्तिर्भवतु, श्री राजसन्निवेशानां शान्तिर्भवतु, श्री गोष्ठिकानां शान्तिर्भवतु, श्री पौरमुख्याणांशान्तिर्भवतु, श्रीपौरजनस्यशान्तिर्भवतु, श्रीब्रह्मलोकस्य शान्तिर्भवतु, ॐ स्वाहा, ॐ स्वाहा, ॐ श्रीपार्श्वनाथाय स्वाहा.
एषा-शान्ति-प्रतिष्ठा-यात्रा-स्नात्राद्यवसानेषु शान्तिकलशं गृहीत्वा कुकुमचन्दन-कर्पूरागरु-धूपवास-कुसुमांजलिसमेतःस्नात्र-चतुष्किकायां
श्री सङ्घ-समेतः शुचिशुचिवपुः पुष्प-वस्त्र-चन्दना-भरणालङ्कृतः पुष्पमालां कंठे कृत्वा शान्तिमुद्घोषयित्वाशान्तिपानीयंमस्तके दातव्यमिति ।
नृत्यन्ति नृत्यं मणिपुष्पवर्ष, सृजन्ति गायन्ति च मङ्गलानि । स्तोत्राणि गोत्राणिपठन्तिमंन्त्रान् कल्याणभाजो हि जिनाभिषेके ।। शिवमस्तु सर्वजगतः परहितनिरता भवन्तु भूतगणाः । दोषाः प्रयान्तुनाशं, सर्वत्र सुखी भवतु लोकः ।। अहं तित्थयरमाया शिवादेवी, तुम्ह नयरनिवासिनी। अम्ह सिवं तुम्ह सिवं असिवोवसमं सिवं भवतु स्वाहा । उपसर्गाः क्षयं यान्ति, छिध्यन्ते विघ्नवल्लयः । मनः प्रसन्नतामेतिपूज्यमाने जिनेश्वरे ।। सर्वमङ्गल-माङ्गल्यं, सर्वकल्याण-कारणम् । प्रधानं सर्वधर्माणां जैन जयति शासनम् ।।
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अठशह अभिषेक के नाम - पहेला अभिषेक
सुवर्णचूर्ण का दुसरा अभिषेक
पंचरलचूर्ण का तिसरा अभिषेक
कषायचूर्णका चौथा अभिषेक मंगलमृत्तिका का- पहेले मार्जन करना पांचवा अभिषेक
पंचामृतका 224 | छठा अभिषेक
शतमूलिका का सातवा अभिषेक
कुष्ठादि प्रथम अष्टकवर्ग आठवा अभिषेक
द्वितीय अष्टकवर्ग विशेष-कुसुमांजलि के बाद मुद्रा द्वारा प्रभुजीका आह्वान नववा अभिषेक
सद्औषधि-स्नात्र पहेले मार्जन करना दसवा अभिषेक
सर्व औषधि रनाव अग्यारहवा अभिषेक
पुष्पस्नात्र बारहवा अभिषेक
गंधस्नात्र तेरहवा अभिषेक
वासस्नात्र चौदहवा अभिषेक
क्षीर चंदन स्नात्र पंदरहवा अभिषेक
केशर शर्करा स्नात्र चंद्रदर्शन-सूर्यदर्शन कराईये सोलहवा अभिषेक
तीर्थोदक स्नात्र सतरहवा अभिषेक
कर्पूर स्नात्र अठराहवा अभिषेक
केसर-कस्तूरी-चंदन
Sarala
STARSMOO
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