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[ 119|| प्रथमं सुवर्णचूर्ण-स्नात्रम् ||
नमोऽर्हत् सिद्धाचार्योपाध्याय सर्व साधूभ्यः सुपवित्र-तीर्थनीरेण, संयुतं गन्ध-पुष्प-संमिश्रम् ।
पततु जलं बिम्बोपरि, सहिरण्यं मंत्र-परिपूतम् ।।१।। सुवर्ण-द्रव्य-संपूर्णं, चूर्णं कुर्यात् सुनिर्मलम् ।
___ ततः प्रक्षालनं वार्भिः, पुष्प-चन्दन-संयुतैः ।।२।। संगच्छमान-दिव्यश्री-घुसृण-द्युतिमानिव ।
बिम्ब स्नपयताद्वारि-पूरं काञ्च-चूर्णभृत् ।।३।। स्वर्ण-चूर्णयुतं वारि, स्नात्रकाले करोत्वलम् ।
तेजोऽद्भुतं नवे बिम्बे, भूरि-भूतिं च धार्मिके ।।४।। ॐ नमो यः सर्वशरीरावस्थिते महाभूते आगच्छ आगच्छ जलं गृहाण गृहाण स्वाहा । ॐ हाँ ही हूँ हूँ ह्रौं हूँ: परमार्हते परमेश्वराय गन्धपुष्पादि
संमिश्र-स्वर्णचूर्ण-संयुतेन- जलेन स्नपयामि स्वाहा । श्लोके बोलने के बाद पूर्ण थाली बजाईये और गीत - वाजिंत्र के नादपूर्वक प्रथम अभिषेक कीजिये । अंग लूछणा किजिये । बाद में नीचे दिया गया मंत्र बोलकर हरेक स्नात्र में चंदन पूजा कीजिये ।
ॐ नमो यः सर्वशरीरावस्थिते पृथिवि पृथुपृथु गन्धं गृहाण गृहाण स्वाहा । अभिषेक के बाद हरेक स्नात्र में नीचे दिया गया मंत्र बोलकर पुष्पपूजा कीजिये
ॐ नमो यः सर्वशरीरावस्थिते महाभूते मेदिनि
पुरु पुरु पुष्पवति पुष्पं गृहाण गृहाण स्वाहा । अभिषेक के बाद हरेक स्नात्र में नीचे दिये गए मंत्र पूर्वक धूपपूजा कीजिये ।
ॐ नमो यः सर्वशरीरावस्थिते दह दह महाभूते
तेजोऽधिपते यः धूपं धूपं गृहाण गृहाण स्वाहा । बाद में नीचे दिये गये श्लोक बोलकर दीपपूजा, अक्षतपूजा, नैवेद्यपूजा और फलपूजा कीजिये ।
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