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प्रथम कुसुमांजली नमोऽर्हत् सिद्धाचार्योपाध्याय सर्व साधूभ्यः पूर्व जन्मनि मेरुभूघ्र-शिखरे, सर्वैः सुरा-धीश्वरैः । राज्योद्भुति-महे महर्द्धिसहितैः पूर्वेऽभि-षिक्ता जिनाः ।।
तामेवा-नुकृतिं विधाय हृदये, भक्ति-प्रकर्षान्विताः । कुर्मः स्व-स्वगुणानुसारवशतो, बिम्बा-भिषेकोत्सवम् ।।१।। अक डंका बजाके कुसुमांजलि कीजिये ।
दुसरी कुसुमांजली नमोऽर्हत् सिद्धाचार्योपाध्याय सर्व साधूभ्यः मृत्-कुम्भाः कलयन्तु रत्न-घटतां, पीठं पुनर्मेरुतामानीतानि जलानि सप्त-जलधि-क्षीराज्य-दध्यात्मताम् ।।
बिम्बं पारगतत्व-मत्र सकलः, सङ्घः सुराधीशतां । येन स्यादय-मुत्तमः सुविहितः, स्नात्रा-भिषेकोत्सवः ।।२।। अक डंका बजाके, परमात्मा के ऊपर कुसुमांजलि कीजिये ।
तिसरी कुसुमांजलि नमोऽर्हत् सिद्धाचार्योपाध्याय सर्व साधूभ्यः नाना-सुगन्धि-पुष्पौघ-रञ्जिता, चञ्चरीक-कृतनादा |
धूपामोद-विमिश्रा, पंततात् पुष्पाञ्जलिर्बिम्बे ||१|| ॐ हाँ ही हूँ हैं ह्रौं हूँ: परमार्हते परमेश्वराय पुष्पाञ्जलिभिरर्चयामि स्वाहा ।
____ यह मंत्र बोलकर तिसरी कुसुमांजलि कीजिये । यह तिसरी कुसुमांजलि हरेक अभिषेक के शुरुआत में करनी है ।सुवर्ण वरखयुक्त जल कलश में लेकर खडा रहना है । मंत्र बोले और पूर्ण थाली बजे तव आपको जितने परमात्मा के उपर अभिषेक करना बताया गया हो उन सभी परमात्मा के उपर मस्तीश्क से अभिषेक करना है । कलश में दिया हुआ जल पूर्णतः वापर लेना है । दुसरे अभिषेक का दुसरा जल आपको वहीं दिया जायेगा । कलश का स्पर्श भगवान को न होवे उसका खयाल रखना है ।
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