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________________ सकलौषधि-संयुक्तसुगन्धया घर्षितं सुगन्धिहेतोः । स्नपयामि जैनबिम्बं, मन्त्रित-तन्नीरनिवहेन ।।२।। सर्वामय-दोषहरं, सर्वप्रिय-कारकं च सर्वविदः । प्रजाभिषेक-काले, निपततु सर्वोषधि-वृन्दम् ।।३।। सर्वौषधिभि-भव्यै-र्जिनबिम्ब-स्नप्यते प्रतिष्ठायाम् । भवति यथा-ऽऽस्पद-मेतत्, सर्वासामतिशयश्रीणाम् ।।४।। सर्वजितः सर्वविदः, सर्वगुरोः सर्वपूजनीयस्य । सर्व-सुख-सिद्धि-हेतो-ाय सर्वोषधि-स्नात्रम् ।।५।। सर्वोषधयः स्नात्रे, नियोजिताः स्व-स्व-महिम-सम्भारम् । सम्भावयन्तु बिम्बे, सर्वातिशयर्द्धिसम्पूर्णे ।।६।। सहस्त्र-मूलं सर्वर्द्धि-सिद्धिमूल-मिहार्हतः । ___ स्नात्रे करोतु सर्वाणि, वाञ्छितानि महात्मनाम् ।।७।। ॐ हाँ ही हूँ हूँ हाँ हूँ: परमार्हते परमेश्वराय गन्धपुष्पादिसंमिश्राम्बरोसीरादि-सुगंधौषधि-सर्वौषधि-सहस्त्रमूलिकादि-चूर्णसंयुतेन जलेन स्नपयामि स्वाहा । उपर दीये गये श्लोक बोलकर, थाली बजाकर, गीत-वाजिंत्रके नाद पूर्वक कलशो से बिंब के उपर अभिषेक कीजिये, अंगलूछणा कीजिये । नीचे दिया गया मंत्र बोलकर एक डंका बजाकर पूजा कीजिये । ॐ नमो यः सर्वशरीरावस्थिते पृथिवि पृथु पृथु गन्धं गृहाण गृहाण स्वाहा । नीचे दिया गया मंत्र बोलकर एक डंका बजाकर पुष्पपूजा कीजिये । - ॐ नमो यः सर्वशरीरावस्थिते महाभूते मेदिनि । पुरु पुरु पुष्पवति पुष्पं गृहाण गृहाण स्वाहा | नीचे दिया गया मंत्र बोलकर एक डंका बजाकर धूपपूजा कीजिये । ॐ नमो यः सर्वशरीरावस्थिते दह दह महाभूते । तेजोऽधिपते धूपं धूपं गृहाण गृहाण स्वाहा । बाद में नीचे दिया गया श्लोक बोलकर दीपपूजा, अक्षतपूजा, नैवेद्यपूजा और फलपूजा कीजिये । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004223
Book TitleAdhar Abhishek ka Suvarna Avasar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhil Bharatiya Tirthprabhavak Adhar Abhishek Anushthan Samiti
PublisherAkhil Bharatiya Tirthprabhavak Adhar Abhishek Anushthan Samiti
Publication Year
Total Pages48
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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