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||५|| पञ्चमं तीर्थोदक-स्नात्रम् || नमोऽर्हत् सिद्धाचार्योपाध्याय सर्वसाधूभ्यः नाना-सुगन्धि-पुष्पौघ-रञ्जिता, चञ्चरीक-कृतनादा | धूपामोद-विमिश्रा, पततात् पुष्पाञ्जलिर्बिम्बे ||१|| ॐ हाँ ही हूँहाँ हूँ: परमगुरूभ्यः पूज्यपादेभ्यः
पुष्पाञ्जलिभिरर्चयामि स्वाहा । अक डंका बजाकर गुरुमूर्ति अथवा गुरुपादुका के उपर कुसुमांजलि चढाईये ।
तीथोदकयुक्त पंचामृतके कलशे लिजिये । नमोऽर्हत् ... जलधि-नदी-द्रह-कुण्डेषु यानि तीर्थोदकानि शुद्धानि ।
तै-मन्त्रसंस्कृतै-रिह, बिम्बं स्नपयामि सिद्धयर्थम् ।।१।। नाकिनदी-नद-विदितैः, पयोभि-रम्भोजरेणुभिः सुभगैः ।
__ श्रीमद्येतीन्द्र मत्र, समर्चयेत् सर्व-शान्त्यर्थम् । २।। तीर्थाम्भोभि-बिम्ब, मङ्गल्यैः स्नप्यते प्रतिष्ठायाम् |
कुरुते यथा नराणां, सन्ततमपि मङ्गल-शतानि ।।३।। अभिमन्त्रितैः पवित्र-स्तोर्थजलैः स्नप्यते नवं बिम्बम् |
दुरित-रहितं पवित्रं, यथा विधते सकलसङ्घम् ।।४।। ॐ हाँ हाँ हूँ हूँ ह्रौं हूँ: परमगुरुभ्यः पूज्यपादेभ्यो । ____ गन्धपुष्पादि-संमिश्र-तीर्थोदकेन स्नपयामि स्वाहा ।
पूर्ण शाली) बादमें शुद्ध जल से प्रक्षाल करके, अंग लुटणा करके अष्टप्रकारी पूजा किजिये ।
अब, देव-देवी के पांच अभिषेक द्रव्य :. (१) पंचामृत में दूध अधिक (२) पंचामृत में यहीं अधिक (३) पंचामृत में घी अधिक (४) पंचामृत (५) सर्वोषधि (पुडी नं. १०) हरेक अभिषेक के बाद तीन अलग अंग लूछणा गे साफ करके मस्तिश्क पर अंगूठे से तिलक करके प्रणाम कीजिये !
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