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________________ ॐ अहँचन्द्रोऽसि, निशाकरोऽसि, सुधाकरोऽसि, चन्द्रमा असि, ग्रहपति-रसि, नक्षत्रपति-रसि, कौमुदीपति-रसि, मदनमित्र-मसि, जगज्जीवन-मसि, जैवातृकोऽसि, क्षीरसागरोद्भवोऽसि, श्वेतवाहनोऽसि, राजाऽसि, राजराजोऽसि, औषधिगर्भोऽसि, वन्द्योऽसि, पूज्योऽसि, नमस्ते भगवन् ! अस्य कुलस्य ऋद्धिं कुरु कुरु, वृद्धिं कुरु कुरु, तुष्टिं कुरु कुरु, पुष्टिं कुरु कुरु, जयं कुरु कुरु, विजयं कुरु कुरु, भद्रं कुरु कुरु, प्रमोदं कुरु कुरु, श्रीशशाङ्काय नमः ।। . (अक डंका) हरेक बिंब को चंद्र दिखाकर भगवान की बाए ओर खडे रहकर नीचे दिया गया मंत्र बोलीये । सर्वौषधि-मिश्र-मरीचिजालः, सर्वापदां संहरण-प्रवीणः । करोतु वृद्धिं सकलेऽपि वंशे, युष्माक-मिन्दुः सततं प्रसन्नः।।१।। (२७ डंका) सूर्य दर्शन का मंत्र नीचे दिया गया है । वह मंत्र बोलकर, थाली बजाकर सूर्य दर्शन करवाईये । ॐ अहूँ सूर्योऽसि- दिनकरोऽसि, सहस्त्र-किरणोऽसि, विभावसु-रसि, तमोऽपहोऽसि, प्रियङ्करोऽसि, शिवड़करोऽसि, जगच्चक्षु-रसि, सुर-वेष्टितोऽसि, वितत-विमानोऽसि, तेजोमयोऽसि, अरुणसारथि-रसि, मार्तण्डोऽसि, द्वादशात्माऽसि, चक्रबान्धवोऽसि, नमस्ते भगवन् ! प्रसीदास्य कुलस्य तुष्टिं पुष्टिं प्रमोदं कुरु कुरु, सन्निहितो भव भव, श्रीसूर्याय नमः | (अक डंका) हरेक बिंब को सूर्य दिखाकर भगवान की दायी ओर खडे रहकर नीचे दिया गया मंत्र बोलीये । ॐ अहूँ ! सर्व-सुरासुर-वन्द्यः, कारयिता सर्वधर्म-कार्याणाम् । भूयात् त्रिजग्च्चक्षु-र्मङ्गलद-स्ते सपुत्रायाः ।।१।। (२७ डंका) यहाँ विशेष विधान पूर्ण हुआ । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004223
Book TitleAdhar Abhishek ka Suvarna Avasar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhil Bharatiya Tirthprabhavak Adhar Abhishek Anushthan Samiti
PublisherAkhil Bharatiya Tirthprabhavak Adhar Abhishek Anushthan Samiti
Publication Year
Total Pages48
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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