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आठ अभिषेक के बाद मुद्रा दिखाने द्वारा जो अर्हत् प्रतिमा का प्राधान्य होवे उनका अभिधान पूर्वक अन्य बींबो को आदि पदसे अथवा शक्य होवे उतने नाम बोलकर नीचे दिये गये श्लोक द्वारा आह्वान कीजिये। सर्व प्रथम नीचे दिये गयो श्लोक बोलकर कुसुमांजलि कीजिये । नमोऽर्हत्...
सर्व-स्थिताय विबुधासुर-सेविताय, सर्वात्मकाय चिदुदीरित-विष्टपाय | बिम्बाय लोकनयन-प्रमदप्रदाय,
पुष्पाञ्जलिर्भवतु सर्व-समृद्धि-हेतुः ।।१।। ॐ हाँ ही हूँ हूँ हाँ हूँ: परमार्हते परमेश्वराय पुष्पाञ्जलिभिरर्चयामि स्वाहा।
थाली डंका बजाकर कुसुमांजलि कीजिये । कुसुमांजलि करने के बाद अभिषेक करनेवाले सभी बहार रंग मंडप में आजाईये । बाद में गुरुभगवंत अथवा क्रिया कारक खडे होकर गभारे में जाकर-(१) गरुड मुद्रा (२) मुक्ताशुक्ति मुद्रा और (३) परमेष्ठि मुद्रा से - ऐसे तीन बार परमात्माका आह्वान करे । मंत्र बोले जाने के पश्चात पूर्ण थाली बजाईये । गभारे में तथा गभारे के बाहर हरेक भगवंतो को (सीर्फ परमात्माको - देव देवीयों को नहीं) यह तीनो मुद्रा दिखाईये। यह तीन मुद्राओं का स्वरूप इस तरह.... १) दशो उंगलियों को एक दुसरे में डालकर अधो मुख कर चीटली उंगलि खडी दिखानी वह गरुड मुद्रा कहलाती है।
नमोऽर्हत्... ॐ नमोऽर्हत्-परमेश्वराय चतुर्मुखाय परमेष्ठिने त्रैलोक्यनताय अष्ट-दिग्भाग-कुमारीपरिपूजिताय देवेन्द्र-महिताय देवाधि-देवाय दिव्य-शरीराय (त्रैलोक्य -महिताय) भगवन्तोऽर्हन्तः श्री-ऋषभदेवादि
स्वामिनः (यहां मूलनायक परमात्मा का नाम लिजिये) । अत्र आगच्छन्तु आगच्छन्तु स्वाहा ।
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