Book Title: Adhar Abhishek ka Suvarna Avasar Author(s): Akhil Bharatiya Tirthprabhavak Adhar Abhishek Anushthan Samiti Publisher: Akhil Bharatiya Tirthprabhavak Adhar Abhishek Anushthan Samiti View full book textPage 3
________________ अठरा अभिषेक क्यों? - मंद मंद हवा चलती हो...सभी ग्रहे अपनी उच्च स्थिति में हो..दशो दिशाओ प्रफुल्लित हो..सारा जगत आनंदमग्न हो..ऐसे समय पर जगत को आह्लाद दिलानेवाले तिर्थंकर परमात्माका जन्म होता है। परमात्मा का जन्म होते ही दिक्कुमारीका आती है । ६४ इन्द्रो अभिषेक के लिए परमात्माको मेरु शिखर के उपर ले जाते है और वहां असंख्य देव-देवीओ के साथ इंन्द्र महाराजा की गोद में बैठे हुए भगवान का आठ जाती के कलशे द्वारा एक करोड और ६० लाख अभिषेक होते है। जिनका जन्म ऐसा अद्भुत माहात्म्यवाला है ऐसे भगवान...! विश्व वात्सल्य से भरपुर ऐसे भगवान...! अपने जिन मंदिर में बिराजमान है । प्रतिष्ठा हुए तो बरसो हुए होंगे...! प्रतिष्ठा के बाद उनका प्रभाव दिन-प्रतिदिन बढते जाता है । यह परमात्मा स्मरण मात्र से, दर्शन मात्र से, वंदन मात्र से, स्पर्शन मात्र से अपने भवो भव के पापोको दुर करनेवाला है । ऐसे परमात्मा स्वयं तो निर्मल है ही, उनको अभिषेक की जरुरत नहीं लेकिन अपने कुछ प्रमाद से जाने-अनजाने आशातना हो गई हो, तो उसकी शुद्धि जरुरी है और वह शुद्धी अठरा अभिषेक से होती है। सामान्य समज में आवे वैसी बात है की, मात्र पानी से स्नान करने से भी शुद्धि हो सकती है, तो अभिषेक से अवश्य शुद्धि होती ही है ! क्योंकी यह अभिषेक विशिष्ट द्रव्यो, औषधिओ के साथ मंत्रोच्चार पूर्वक कराया जाता है। सोना इत्यादि उत्तम में उत्तम धातु..चंदन-अगरु-कस्तुरी इत्यादि सुगंधी में सुगंधी द्रव्य..शंख पुष्पी आदि गुणकारी औषधिओ ..दर्भ इत्यादि मांगलिक वस्तुओ..पवित्र तीर्थस्थान की मिट्टी..१०८ तीर्थ और नदीओ का जल..यह सभी से युक्त पानी से अभिषेक होता किया जाता है । यह सभी औषधिओ या नदीओका और तीर्थोका पानी भी ऐसे ही नहीं लाना है किंतु सभी जगह पर उसके अधिष्ठायक देवो को आह्वान करके, उनकी आज्ञा लेके, शक्य शुद्धिपूर्वक यह सामग्री इकट्ठी करवाई जाती है । ऐसी अनुपम कोटि की सामग्री और साथ में हृदय का उमग, भक्ति का हविश तथा अंतर के भावपूर्वक अभिषेक करवाना है । इसके द्वारा अपनी वर्षों की अशुद्धि तत्काल दूर होवे उसमें कोई आश्चर्य नहीं! उसमें भी एक ही जिन मंदिर में होवे और सामुदायिक होवे उसमें लाभ अलग ही है । एक दूसरे का अंतर का उल्लास - हृदय की भावना सामुदायिक क्रिया में सभी को साथ देती है । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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