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आचा० ||६२० ॥
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मां रमणता न थाथी मति अपरिणत थतां विचारे के एक समयमांज परमाणु लोकांते केवी रीते जाय एम खोडं मानतां कोई वखत कु हेतुना वितर्कना प्रकट अवसरे पूरेपूरो मिथ्याली बने छे, के चौदराज लोकनो एक छेडाथी बीजा छेडा सुधी जतां आकाश प्रदेशने सा स्पर्श न थवाथी समयनो भेद पडे, ते भेद न पडे तो वे जग्याए एक साथ स्पर्श न थाय तेथी परमाणुनुं तेटला पणुं थाय, एटले ते एवं माने के लोकने बन्ने छेडे रहेला प्रदेशोनो एक वखते परमाणुए स्पर्श कर्यो माटे तेटलो मोटो परमाणु छे, अथवा ते बन्नेनुं छेडुं परमाणु जेटलुं छे, आ तेनुं मानवुं खोढुं छे. पण ते आग्रही बनेलो विचारतो नथी, के विस्रसा परिणामवडे शीघ्र गfतपणाथी परमाणु एक समयमां असंख्येय प्रदेशनु गमन थाय छे, जेमके आंगळीना माप जेटला एक द्रव्यना असंख्यात आकाश प्रदेश छे, तेटला बधाने एक समयमां परमाणु ओळंगी जाय छे. प्र०- ए केवी रीते बने ? उ० जे प्रत्यक्ष देखाय छे ते ना नहि पाडी शकाय, कारण के ज्यां सौने देखीतुं प्रत्यक्ष प्रमाण होय, त्यां अनुमान विगेरेतुं प्रयोजन नथी जो एक समयमां अनेक प्रदेश ओळंगवा न मानीये तो अंगुल मात्र प्रदेश ओळंगतां असंख्येय समय नीकळी जाय, तो आपणे देखेलुं इष्ट छे तेने पण बाधा आवे, माटे ते शंका नकामी छे. (४).
हवे भांगानी समाप्ति करवा परमार्थ बतावे छे.
भगवाननुं वचन साचुं छे, एवं मानीने शङ्का विगेरे छोडीने ते वस्तु यत्न वडे तेवा रुपेज सम्यक् अथवा असम्यक् पूर्वे भावी होय तो पण गुरुना सहवासथी तेमनो उपदेश विचारतां ते शिष्य श्रद्धावाळा थाय छे, जेम इर्यापथमां उपयोग राखनारने कोइ बखत जीवहिंसा थाय. (तो पण तेने दोष लागतो नथी.) (५) हवे तेथी उलदुं बतावे छे, कोइ वस्तु खोटी रीते मानतां छद्मस्थ साधुने
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सूत्रम ॥६२० ॥