Book Title: Achar Dinkar Part-1
Author(s): Vardhmansuri,
Publisher: Kesrisingh Oswal Khamgamwala Mumbai
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गच्छवास मणुसरह निअमेण ॥ ३५ ॥ पत्ते अबुद्धसाहूण होइ वमहाइ दंसणे वोही । पुत्तियरयहरणेहिं तेसिं जहन्नो दुहा उवही ॥ ३६ ॥ मुहपत्ती रयहरणं तह सत्तय पत्तयाइ निजोगो । उक्कोसो वि नवविहो सुअं पुणो पुग्वभवगहि अं ॥ ३७ ॥ इक्कारस अंगाई जहन्नओ होइ तं तहोकोसुं । देसेण असं पुन्नाई हुंति पुब्वाई दस तस्स ॥ ३८ ॥ लिंगं तु देवयादइ होइ कइयावि लिंगरहिओ वि । एगागि चिय विहरह नागच्छे गच्छवासे सो ॥ ३९ ॥ पत्ते अ बुद्धमुणिणो इमाइ माइ एअ मुवगरणं । अर्धगाथैव ॥ ४० ॥ अथ साध्वीनामुपकरणानि यथा - उबगरणाई चउदस य चोलपट्टाइ कमटयज्ज आई । अजाणवि भणिआई अहिआणि अ हुति ता णवरं ॥ ४१ ॥ ओगहणंतम १ पट्टो २ अद्धोरुअ ३ चलणिआ य ४ बोधव्वा । अज्झितर ५ बाहि णिअंसिणीअ ६ तह कंचुए चेव ७ ॥ ४२ ॥ उक्कत्थिअ ८ वेकत्थी ९ संघाडी १० चेव खंधगरणी ११ अ । ओहो वहिम्मि एए अजाण पन्नवीसं तु ॥ ४३ ॥ अथ प्रत्युपकरणोपयोगो यथा - अह उग्गजणं तरता बसं | चियं गुज्झदेसरक्खट्ठा। तं तु पमाणे णिक्कं घणमसिणं देह मासज्जा ॥ ४४ ॥ पट्टो वि होइ एगो देहपमाणेण सो उ भणियव्वो । डायंतो गहणंतं पडिबद्धो मल्लकच्छोच्व ।। ४५ ।। अद्धोरुओ वि ते दोवि गिन्हिओ स्थायए कडी भागं । जाणुपमाणा चलणी असीविआ लंखिआ एव ॥ ४६ ॥ अंतो निअंसणी पुणलीणतरी जाव अद्धजंघाओ। बाहिरगा जाखलु सावि कडिअदोरेण पडिबद्धा ॥ ४७ ॥ छाएइ अणुकुइए उरोरुहे कंचुओ असिव्विओ । एमेव य ओ कच्छिअ सा नवरं दाहिणे पासे ॥ ४८ ॥ वेकच्छिया उ पट्टो कंचुगमुकच्छियं
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