Book Title: Aagam 40 Aavashyak Choorni 01
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 530
________________ आगम (४०) "आवश्यक- मूलसू अध्ययनं H, मूलं [१] / [गाथा-], नियुक्ति: [९१७-९१८/९१७-९२०], भाष्यं [१५१...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 Ch मस्कारय चक्खुपहे पाणिय ठविज्जतु, जदा तिसिओ पाणियं मग्गति ताहे भणिज्जह-एतं पाणितंति, तेण कतं भत्तं, णिमंतिया य मायायो व्याख्यायांत जिमिता, ताहे तेण पाणियं मग्गितं, सो भणति-एतं पाणियं पेच्छिज्जतो ते तिसा णस्सतु, सो भणति-किह पेच्छ-14 ॥५२४|| तस्स तिसा णस्सति', इतरो भणति जदि तुज्झ पाणियं पेच्छंतस्स तिसा ण णस्सति तो मम दीवगं पासंतस्स किह सीतं णस्थिति भणति, जितो दवावितो य दीणारसहस्सं । सो चिंतेति-एसो णिविनाणो केण एतस्स बुद्धी दिण्णा, कहियं से जथा-धीयाएत्ति, सो तीसे पदोसमावन्नो, सो त रोसेण दारियं वरेति, पिता से ण देति मा मस्सातियाए दुक्खियंटू कातित्ति, इतरीए पिता भणितो-देहि मम एतस्स, किं मारेज्जत्ति?, दिण्णे इतरे घरे कूर्व खणावेंति, दारियाए भणिय-गवेसह किं| |मा घरे बट्टति , गविट्ठ सिटुं जहा कूर्व खणंति, ताहे ताएवि सगिहाओ आढत्ता सुरंगा ताय खणाविता जाब से कबो, ताव से | परिणीया, तेण परिणेत्ता कूवे छूढा, कप्पासस्स सयभारो दिण्णो, भणति य-तुम किर पंडितिया किह ते सांप्रती, पच्छा भणति अहं दिसाजताए जामि, तो तेण कप्पासेणं कत्तिएणं तिहि य पुत्तेहिं ममं जातपहिं जह एमि तह करेज्जासि, घरे यणेण संदिट्ठ-12 | जहा एताए कोदवसेतियाए कूरं कंजितं दिवसे २ देज्जहत्ति गतो, सावि सुरंगाए पितुघरं गता भणति- एतं मुत्तं करेह भत्तगसेतियं च पडिच्छह, अहमा गच्छामिति गणियावेसेणं गता पुरतो एगत्थ णगरे, तत्थ भाडएणं घरं गहियं, सोवि तीए उवचितो, |णियघरं गीतो, सो तं पुच्छति- तुम का कण्णगा?, सा भणति- अहं पुरिसद्वेषिणी, तुम मम भावितो, सो तीए आराहितो, IP॥२४॥ बहाण य परिसाणि ताए समं अच्छति, पुत्ता य तिनि जाता, दवं चणाए सव्वं आकड्डितं, अण्णदा वाणियओ पडिएति, सावि II | तेणेव सत्येण पडियागया, अग्गतराग पितिघरं गता, सुत्तं गहाय पुत्ते य सुरंगाए तमेव कूवं गता ठिता, वाणियओवि सगिर्ह (530)

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