Book Title: Aagam 40 Aavashyak Choorni 01
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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आगम
(४०)
प्रत
सूत्रांक
[-]
दीप
अनुक्रम
[8]
अध्ययनं [-]
मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता
नमस्कार व्याख्यायां ॥५६० ॥
“आवश्यक”- मूलसूत्र-१ (निर्युक्तिः+चूर्णि:)
मूलं [१] / [गाथा - ],
निर्युक्तिः [९४९-९५१/९४९-९५१],
भाष्यं [१५१...]
आगमसूत्र [४०], मूलसूत्र [०१] “आवश्यक" निर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1
वा ओमुक्कआभरणाओ सव्वासिं छायं हरंति से ताओ दणं चिंतेति-जदि महारएणं ममायरिएण एरिसियाओ मुक्काओ किमंग पुण मज्झ मंदभरगस्स असंताणं परिच्चइयव्ययाणंति णिब्वेगमावण्णो, आलोइय पडिक्कतो थिरो जातो । धणदत्तो सुसुमाए परिणामेति जदि एतं ण खामो तो अंतरा मरामोति ।। सावओ सावयवयंसियाए मुच्छितो, तीसे परिणामो जातोमा अट्टवसट्टो मरिहिति, तो गरएसु वा उबवज्जिहिति, संसारं हिंडिहिवि, तसे आभरणेहिं विणीतो, संवेगो, कहणं च ॥ अमच्चोत्ति वरघणुगपिया जतुघरे कते चिंतति- एस कुमारो मारितो होहिति, कर्हिपि रक्खिज्जतित्ति सुरंगाए पीणिओ, पलातो, अष्ण भणंति- एगो राया देवी से अतिपिया कालगता, सो य मुद्धो, सो तीए वियोगदुखितो न सरीर द्विति करेति, |मंतीहिं भणितो-देव ! एरिसी संसारद्वितित्ति, किं कीरतु ? सो भणति नाहं देवीए ठिति अकरतीए करेमि, मंतीहिं | परिचिंतियं ण अण्णो उवाओति, पच्छा भणितं देव! सग्गं गता, वं तत्थ ठिताए चेव से सव्वं पेसिज्जतु, लद्धकयदेवीद्वितिए पच्छा करेज्जसुति, रण्णा पडिसुतं, मातिट्ठाणेण एगो पेसितो, रण्णो आगंतूण साहेति कता सरीरद्विती देवीए, | पच्छा राया करेति, एवं पतिदिण करताण कालो वच्चति, देवीपेसणववदेसेण वत्थं कडिसुत्तगादि खज्जति, एगेण चिंतियं-अपि खति करेमि, पच्छा राया दिडो, तेण भणितं कुतो तुमंति?, सो भणति देव ! सग्गातो, रण्णा भणितं देवी दिट्ठति ?, सो भणति तीए चैव पेसितो कडित्तयादिनिमिचंति, दावितं से जहिच्छितं किंपि न संपडति, रण्णा भणितं कदा गमिस्सति १, तेण भणित- कल्ले, रण्णा भणिय- कलं ते संपाडिस्सं, मंती आदिट्ठो सिग्धं संपाडेह, तेहिं चितियं- विडं कज्जे, को एत्थ उवाओऽस्थि ?, विसण्णा, एगेण भणिय- धीरा होह, अहं भलिस्सामि, तेण तं संपाडेतूण राया भणितो
(566)
परिणामिकी
बुद्धिः
॥५६०॥
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