Book Title: Aagam 40 Aavashyak Choorni 01
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 587
________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं H, मूलं [१] / [गाथा-], नियुक्ति: [९५४-९५७/९५४-९५७], भाष्यं [१५१...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 दीप नमस्कार | सभए पज्जत्तगस्स मणो आसी, ततोवि ओसरति पच्छा अमणो भवति, एवं बेदियस्सवि पज्जत्तगस्स बइजोगट्ठाणेसु णिभित्ता जा वइ-II व्याख्यायां यजोगी भवति, पच्छा सुहमस्स पणगजीवस्स पढमसमयोववण्ण गस्स जावतिया सरीरोगाहणा तावतियाए अप्पणगं कायजोग | हासेंते २ निरंभंति, अण्णे पुण भणति-तस्स पढमसमये चा पगगस्स हेवा असंखेज्जगुणं कायजोगं णिरुभतो णिरुभए, तस्स किला ॥५८१२॥ |वीरियावरणोदएणं मंदो जोगपरिष्कंदो तेण अप्पो कायजोगो भवइ, केवलिस पुग अंतराइयपरिक्खरणं अणुत्तरं निराबरणं जोगवीरियं, 5 तेण अचिंतेण जोगसामत्थेणं जा सा केवलिस्स वीरियसदब्बयाए अणुवरतं पदेसपरिफुरणा तं एगिदियजोगपष्फंदा ओसरेऊण गिरदतरं णिरुंभति, जाइंच से सरीरे कम्मणिव्वत्तियाई मुहसवणसिरोदरादिछिदाई ताणि वियोएमाणो २ तिभागूण पदेसोगाहणं करोति, ताहे आणपाणुणिरोह काउं अजोगी भवति । एवं सो योगत्रयनिरोहा सुक्कझाणस्स ततियभेयं सुहुमकिरियं अणियहि अणुप18 विट्ठो करेति, पच्छा समुच्छिन्नकिरियं झाणं अणुप्पविट्ठो जावतिएणं कालेगं अतुरियं अविलंबितं ईसा पंचरहस्सक्खरा क ख ग घ त एते उच्चारिजंति एवतिकालं सेलेसि पडिवज्जति, शैलेशी नाम 'शील समाधौ' 'ईस ऐश्वर्ये' शीले ईशस्तद्भावः शैलेशी, तस्सि काले परं शीलं भवति, अथवा शैलेश इब तस्मिन् काले निष्प्रकम्पः, नान्यत्र, परप्रयोगात्, सेब अलेसी सेलेसी, लेश्या णाम परिप्रणामो २ परि समंता नामो, परिणाम लेस्सा, सा दुविहा-दव्बतो भावतो य, तत्थ वण्णादिगुणपरिणामो लेस्सा, ते वण्णादिणो है द्रव्ये संश्लेष परिणता तेणं सा दबलेसा, ते चेव द्रव्या जीवनात्मसंश्लेषभावपरिणामतः शुभाशुभेण शुभाशुभा य लेश्या भवति, द्रव्यात्मगुणसंश्लेपपरिणामो भावलेश्या, ण तु दब्बपरिणामविरहिया भावलेस्सा भवति, सो य जहा पुन्बनिब्बत्तिएणं हत्थेण पदी ४ ॥२८॥ गहाय अंधारए णयणविसयं फुडीकरेति, एवं सजोगी जीवो पुच्चणिवत्तिएण दव्यसंगेण अण्णसिं दब्वाणं गहणं कातुं भावलेस्सा अनुक्रम (587)

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