Book Title: Aagam 40 Aavashyak Choorni 01
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

Previous | Next

Page 590
________________ आगम (४०) "आवश्यक- मूलसू अध्ययनं H. मूलं [१] / [गाथा-], नियुक्ति: [९५८-९८१/९५८-९८४], भाष्यं [१५१...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 प्रत सत्राक दीप अनुक्रम नमस्कार || फुसति अणन्ते ॥ ९.१०॥९७६ ।। सरिसाए ओगाहणाए सरिसोगाहणओ अणते,जे तेण देसपदेसेण पुट्ठा ते असंखेज्जगुणा सिद्धानामव्याख्यायांट एगस्स सिद्धस्स एगणं विपदसेणं अणता पुट्ठा, सो य सिद्धो असंखेज्जपदेसो तेण तावइया असंखज्जा रासी तेणं आदिल्लएणं वगाहा सव्वपदेसपुढे एतेण मिज्जमाणा ।। मुखं च ॥५८४॥ असरीरा०॥ ९.९१ ॥ ९७७ ॥ केवलंमि लक्षण भाणितं. सागारा अणगारं । इदाणि सुई भण्णति-- णवि अस्थि माणु०॥ ९-९२ ।। ९८० ।। सुरगण ॥ ९-९५ ॥ ९८१।। तीयवट्टमाणाणायगाणं देवाणं विसयसुहं हैं असम्भावपट्ठवणाए घेत्तूण रासी कतो, सो अणंतगुणिते सिद्धस्स य एगस्स असरीरं सुहं गहिय, तं अणंताणतभागीकयं, तस्स एगभागे णवि तुई चव मुहरासीसुहमिति, वितिय वा माण- सुरगणमुई समस्तं सम्बद्धापिंडितं एगम्मि आगासपदेसे छुढं || तेणप्पमाणेणं सिद्धस्स मुहं मिज्जमाणं लोगालोगागासेवि ण माति एगस्स, णणु यदि णाम तं केवली विंदति तो किष्ण ओव| म्मेणं दरिसंति ?, भण्पति, णत्थि तस्स उवमाण, किह पत्थि ?, जहा एगो महारण्णवासी मेच्छो रणे चिट्ठति, इओ य एगो यक राया आसण अवहरितो ते अडवि पवेसितो. तेण दिट्ठो, सक्कारऊण बंदिओ, रण्णावेसो णगर(णीओ),पच्छा उबगारित्ति गाढमुव- | चरितो, जहा राया तह चिट्ठति धवलपरादिभोगणं, विभासा, कालेणं रणं सरितुमारद्धा, रणा विसज्जितो, ततो रण्णिगा| 18| पुच्छन्ति-केरिसं गगरंति ?, सो बियाणतोय तत्थोवमाभावात् ण सबकति गगरगुणे परिकहेतु, एस दिढतो, अयमेथोषणओ, | एवं सिद्धाणवि सोक्खस्स विसयमुहे ण उवमा, नत्थि सरीरावयवदाहरणं, सो य मेच्छो जहा किचिमत्तेण ढुंगरादीणि दावेचा पत्तियावति, एवं इहइंपि किंचिमत्तेण उदाहरणं क्रियते CCCCC (590)

Loading...

Page Navigation
1 ... 588 589 590 591 592 593 594 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608 609 610 611 612 613 614 615 616 617 618 619 620 621 622 623 624