Book Title: Aagam 40 Aavashyak Choorni 01
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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आगम
(४०)
"आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं [१], मूलं [१] / [गाथा-], नियुक्ति: [१०३९-१०४६/१०२७-१०३४], भाष्यं [१७५-१८५] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1
सामायिक णसि अगारंसि, मणुष्णं शायते मुणी ॥१।। एवं णेगमो इच्छति, संगहादीया सेसा सव्वदम्बेसु, नो सम्बपज्जवेस, जेण दवाण काकताकृताव्याख्यायां &ाकर पज्जवा मुभा केसि असुभा, सामाइयं च सुभपज्जवेसु कीरति, णो असुमपज्जवसु, दयाणि पुण परिणामवसेण सुभा असुभावि
लं दिनिरूपणं ॥६०२॥ & IP भवंति, सम्बदव्याणिवि अमुभपरिणामिहोतूण सुभपरिणामानि भवंति, दुगंधावि पुग्गला सुगंधत्ता परिणमंतीत्यादिवचनात् । दारं
काहे व कारओ भवति , एत्थ णयमग्गणा णेगमस्स उद्दिढे सामाइए पढउ वा मा वा पढतु करेतु मा वा करेतु कारओ चेव, संगहववहाराणं बंदणगं दातूर्ण निबिट्ठो गुरुपादमूले पढतु वा मा वा पढतु करेतु वा मा वा करेउ , कारतु चेव, उज्जुसुतस्स #अपुब्बे सामाइयपज्जवे समए समए अकममाणस्स उपउत्तस्स वा सामाइयं भवति, अण्णे भणंति-तदाणो सामाइयं भवति, का सम्मत्ते सामाइय, तिण्हं सद्दणयाणं अपुग्वे सामाइयं, पज्जवे समए समए अकममाणस्स नियमा समद्दिहिस्स उवउत्तस्स नो द्रा सामाइय, समते कारओ सामाइयस्स । एते चेव नया, अहवा इमं अट्ठविई नेयाइयं लक्षण , तंजथाआलोयणा य विणए खत्त दिसाभिग्गहे य काले य। रिक्खगुणसंपदावि य अभिवाहारे व अहमए ॥ १०॥४३॥
न्यायेन चरतीति नैयायिका,एवंगुणसंपन्नाय एभिः प्रकारैः,एवं आलोइयपडिक्कतस्स जो सामाइयं देति सो नायकारी नायवादी | भवति, सा आलोयणा दुविहा- गिहन्थालोयणा संजतालोयणा य, गिहत्थे का आलोयणा', परिखिज्जति अरिहो सामाइय-18६०२॥ & स्स अणरिहोति, तत्थ गाथा- अट्ठारस पुरिसेसुं वीस इत्थीसु दस नपुंसेसु । पच्चावणाइ अणरिहा०, कातुं अरिहातु वा ?, विवरीत
संजतस्स का ?, उपसंपदा, सामाइयस्स अस्थनिमित्तं उवसंपज्जति सो आलोयाविज्जति , अहवा अणागतकालबत्थं सूएति,
अरु
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