Book Title: Aagam 40 Aavashyak Choorni 01
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

Previous | Next

Page 572
________________ आगम (४०) "आवश्यक- मूलसू अध्ययनं १, मूलं [१] / [गाथा-], नियुक्ति: [९४९-९५१/९४९-९५१], भाष्यं [१५१...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 B नमस्कार एत्थवि ता मे होलं वाएहि ॥शा एवं जाऊणं रयणाई मग्गिऊणं गोट्ठागाराणि सालीणं मरियाणि रयणाई गद्दमियादीण पुच्छितो व्याख्यायां |छिण्णाणि २ जायंति, आसा एगदिवसजाता मग्गिता, एगदिवसियं णवणीतं मग्गितं । एस परिणामिता चाणकस्स बुद्धी ।। थूलभास्स सामिस्स परिणामिता, पितुमि मरिते कुमारो भण्णति-अमच्चो होहिति, सो असोगवणियाए चितेति-केरिसा । ।।५६६॥ बुद्धिः का भोगा बाउलाणंति', ताहे पव्वइतो, राया भणति-पेच्छह, मा कवडेणं गणियाघरं जाएज्जा, जिंतस्स सुणगमडगो चावण्णो, णास | न विकूणेति, पडिलेहेचा रण्णा भणित-विरत्तभोगोत्ति, सिरिओ ठाविओ। __णासिकणगर, गंदो वाणियओ, सुंदरी से भज्जा, सुंदरीणदो से नामं जातं, तस्स भाता पुज्वपब्वइतो, सो सुणेति-जथा डातीए अझोववनो, पाहुणओ आगतो, पडिलामितो; भाण तेण गाहित, एहि एत्थ विसज्जेहितित्ति उज्जाणे णीतो, सो भोगगिद्धो । Sणगरं जाहितित्ति अधिगतरेण उबप्पलोभेमि, सो य उब्बियलद्धी, मकडिं दरिसेत्ता पुच्छति-का सुंदरिचि?, सुंदरी, पच्छा पिज्जा-18 धरीए, तुल्ला, पच्छा देवीए, देवी अतिसुंदरत्ति, पुच्छितो मणति-कहं एसा लम्भतित्ति', धम्मेणचि पब्वइतो । साधुस्स पारिणामिका। का बहरसामिस्स परिणामिया, माता णाणुबचिया, मा संघो अवमाणिहितित्ति, पुणो देवेहिं उज्जेणीए वेनियलद्धी दिना, 12 पाडलिपुत्ते मा परिभविहित्ति बेउव्वियं कयं, पुरियाए पवयणओभावणा मा होहितित्ति सथ्वं कहियन्वं ।। हा॥५६६॥ IM चलणाहणणे, राया तरुणेहिं घुग्गाहिज्जति, जथा थेरा कुमारा य अवणिज्जंतुति, सो तेर्सि मतिपरिक्खणणिमित्तं भणति जो राय सीसे पाएण आहणति तस्स को दंडो?, तरुणा भणीत-तिलतिल छिदियवओ, थेरा पुच्छिया, चिंतेमोत्ति ओसरिया, SRESSESSIBEES ARAKA (572)

Loading...

Page Navigation
1 ... 570 571 572 573 574 575 576 577 578 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608 609 610 611 612 613 614 615 616 617 618 619 620 621 622 623 624