Book Title: Aagam 40 Aavashyak Choorni 01
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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आगम
(४०)
"आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं H, मूलं [१] / [गाथा-], नियुक्ति : [९४९-९५१/९४९-९५१], भाष्यं [१५१...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1
प्रत
व्याख्यायाटा
नमस्कार/3याओ गहियाओ, वाणियओ गओ, रडतओ हितो, एवमादिगाओ बहुगाओ अभयम्मि पारिणामियाओ युद्धीओ। सेट्टित्ति कट्ठो 81 परिणामि
णाम सट्टी एगत्थ णगरे वसति, तस्स गं बज्जा णाम भज्जा. तस्स ब्वइल्लो देवसम्मो बभणो, सेट्टी दिसाजचाए गतो, मज्जा ॥५५८॥
स तण सम संपलग्गा, तस्स य घरे तिष्णि य पक्खी-सूयओ मयणसालिया कुक्कुडओ, सो ताणि अप्पाहेत्ता गतो, सो धिज्जा-1 18 तिओ रति अतीति, मयणसालिया भणति-को ताया ण बीहेति, सूपओ वारेति- जो अत्तियार दयितो अम्हंपि पियल्लओ होति,
सा मयणसलाइया अणथितासिता धिज्जातित परिस्सवति, तीए मारिया, सूयओ ण मारिओ, तीसे पुत्तो लेहसालाए पढति, अण्णदा तस्स (घर) साधणो भिखस्स अतिगता. कक्कडगं पेच्छितण एगो भणति-जो एपस्स सीस खाइ सो राया होतिचि, तं तेण धिज्जातिएणं किहवि अंतरिएणं सुत, अबिरतियं मणति-मारेहि जाव खामि, सा भणति- अण्णं आणिज्जतु मा पुत्तभंडं व संवडित, णिबंधे मारिओ जाब ण्हाउं गतो, ताव सो दारओ लेहसालाओ आगतो, तं च मंस सिज्झति, सो रोवति, तस्स सीसं दिण्णं, इतरो आगतो, भाणए छुढं, सीसं मग्गति, भणति- चेडस दिण्णं, सो रुट्ठो भणति- भए एतस्स कज्जे मारावितो, पच्छा भणति- जति पर एतस्स दारगस्स सोसे खातेज्जा तो कतै होज्ज, णिबंधे ववसिता, दासीए सुतं, सा तं दारगं ततो चेव घेत्तूण पलाया, अण्णं पगरं गताणि, तत्थ राया मरति, आसेण परिक्खितो, सो तत्थ राया जातो। इयरोवि सेट्ठी आगतो जाव सडितपडितं पासति, सा पुच्छिता-ण कहेति, सुरण पंजरमुक्केण कहितो बंभणाइसंबंधो, सो तहेव चितीत, अहं ॥५५८॥ एतीसे कतेण, एसा पुण एवंति पयतितो, इतराणिवि तं चेव णगरं आगताणि सव्वं गहाय, अण्णदा विहरंतो सो साधू तत्थ गतो, तीए पच्चीभण्णातो, भिक्खेण समं मासगा दिण्णा, पच्छा कूक्ति, गहितो, रायाए मूलं नीतो, धातीए णातो, इतराणि
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SAKSEHORRORRENA
दीप अनुक्रम
CCC
(564)
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