Book Title: Aagam 40 Aavashyak Choorni 01
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 565
________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक [-] दीप अनुक्रम [8] अध्ययनं [-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता नमस्कार व्याख्यायां ।। ५५९।। “आवश्यक”- मूलसूत्र-१ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) मूलं [१] / [गाथा - ], निर्युक्तिः [९४९-९५१/९४९-९५१], भाष्यं [१५१...] आगमसूत्र [४०], मूलसूत्र [०१] “आवश्यक" निर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 णिव्विसताणि आणताणि, पिया भोगोह निमंतितो, गच्छति, राया सङ्को कतो, बरिसारते पुण्णे वच्चतस्स अकिरियाणिमित्तं धिज्जातिएहि उवक्खरियाए परिभडियारूवकतगुब्विणी य तथा अणुव्रजति, तीए गहितो, सो पवयणस्स उड्डाहो होहित्ति भगतजदि मए तओ जोणीए गीतु, अह ण होति मर्म तो पोट्टं मिदित्ता जीउ, एवं भणितो पोट्टं भिन्नं, मया, वण्णो य जातो । कुमारो खुट्टगकुमारो जहा जोगसंग हेहिं । देवी, पुष्कभद्दे नगरे पुप्फसेणो राया, अग्गमहिसी य पुण्फवती देवी, तोसे दो बेडरूवाणिपुप्फचूलो पुष्फला य, ताणि अणुरताणि भोगे जति, देवी पब्वइया देवलोगे उबवण्णा, देवो जातो, सो देवो एवं चिंति | जदि एताण एवं मरांति तो नरगतिरिएसु उववज्जिहंति, सुविणए सो देवो गरए देवलोए य उबदंसेति, सा मीता जाता, पुच्छति पाडिते, ण जागति, अग्णियपुत्ता तत्थ आयरिया, ते सहाविता, तहेव सुतं कङ्कृति, सा भणति-किं तुन्भेहिवि सिविणओ। दिडो । सो मणति- अम्हं एरिसं सुत्ति दिई, पव्वइया । देवस्स पारिणामिता । पुरिमतालं नगरं, उदितोदितो राया, सिरिकता देवी दोण्णिवि सावगाणि, परिष्वाइगा जिता, दासीहि य मुहमक्कडिताहि बेलंबिता, णिच्छूढा, पदोसमावण्णा, वाराणसीते धम्मरुई राया, तत्थ गया, फलयपट्टियाए रूवं सिरिकंताए लिहितॄण दापति धम्मरुइस्स रण्णो, सो अज्झोववण्णो दुतं विसज्जेति, पsिहतो निच्छूढो, ताहे सव्चवलेण आगतो, गगरं गहेति, सो साबओ चिंतेति उदिओदिओ राया- किं एवट्टेणं जणक्खणं?, उनवासं ठिओ, बेसमणेणं देवेणं सणगरं साधिओ, उदितोदयस्य पारिणामिया ॥ साधू मंदिसेणेत्ति, सेणियपुत्तो मंदिसेणो, सीसो | य तस्स ओधाणुप्पेधी तस्स चिंता- भगवं जदि (रायगिहं) एज्जा तो देवीओ अण्णाणि य अतिसए पेच्छितूण जदि थिरो होज्जत्ति, भट्टारओ आगतो, सेणीओ सअंतेपुरो नीति, अण्णे य कुमारा संतपुरा, गंदिसेणस्स अंतपुरं सेतं वरवसणं, पउमिणिमज्ये हंसीओ (565) परिणामिकी बुद्धिः ।।५५९॥

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