Book Title: Aagam 40 Aavashyak Choorni 01
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 544
________________ आगम (४०) "आवश्यक”- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं H, मूलं [१] / [गाथा-], नियुक्ति: [९२१/९२१-९२२], भाष्यं [१५१...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 प्रत अहा दीहि, केहिं कीरंतस्स बंदणादिस्स ते अरिहा ?, उच्यते, देवासुरमणुयाण, अरिहंति पूर्य, जहा सुरुत्तमा, मणुयाण रायाणो उत्तमा, ताणं || दि देवा, देवाणं रिसतो, रिसीणं परमरिसी, ते अरिहंता चेव, अरी च पूर्वोक्ता हता, रज हन्ता, रजः कर्म, रतस्स हंता तेणबि अरि-8 मस्कार फल ॥५३८॥ "हंता, अरिहंतिवि इमे य शारीरा अतिशया, तथा ते य उप्पण्णा जहा-चारुसुजायमाण सिरिवच्छंकितविसालवच्छाणं । तेलो कसकयाणं णमोरथु देवाहिदेवाणं ॥१॥ तस्स णमोकारस्स किं फलं , जं तस्स फलं ते उवरिं सट्ठाणे भणिहिति सउदाहरण, दापंचण्हविय सामण्णं पयोयणफलं णमोकारो, इमं पत्तेयफलं वणिज्जति अरिहंतनमोकारो जीर्च मोएड० ॥ ९-३७॥ ९२३ ।। भवाणं सहस्सा भवसहस्सा, सोय संसारो, अणतेसु किं भवसहस्सगहणं कतं?, उच्यते, पसत्थाणि एवं, इतरााण अणताणि, किं सब्वेवि मोयति', ऐति, भावेण जो कीरति सो फलदो जीवं मोतति, द्र अह णवि मोएति तो इमं अचं फलं होति, पुणरवि बोधिलामाए, बोधी णाम संमत्ताहिगमो ।। किं चान्यत् ___ अरिहंतनमोकारो धण्णाण ॥९-३८ ॥ ९२४ ॥ धणेण धणो, णाणदसणचरिचाणि घण एतेण धणेण धण्णो, भवखपर्ण करेंताणं, भवक्खयो संसारक्खयो, जदा हिदयं ण सुंचति तदा किं करेति , विसोत्तियं णिरुंमति, दयविसोचिया णिकाकट्ठ, तेण संकरेण पाणिय रूद्ध अण्णतो बच्चति, ते रोचगा सुकति, एवं भावविसोचिवाचि संसयादी कट्टत्थाणीया पच्छा अपसत्थपाव-1 ॥५३८।। रुक्खा सुक्खंति, एवं विसोचिये वारेति अरहंतणमोकारो इति । एवमादीहिं गुणेहि महत्थोत्ति वण्णितो, अहवा इमेणीव कारणेणंद | जहा संमामेमाणो पुरिसो आतुरे कज्जे जाते अजेज अपडिहतं आयुहं तेण कजं करेति, एवं इमेणीव चोदस पुथ्वाणि गहियाणि, ARREARS दीप अनुक्रम A%ESO 4%97% BE (544)

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