Book Title: Aagam 40 Aavashyak Choorni 01
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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आगम
(४०)
"आवश्यक”- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं H, मूलं [१] / [गाथा-], नियुक्ति: [९४४/९४४-९४७], भाष्यं [१५१...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1
प्रत
बुद्धि
दीप अनुक्रम
नमस्कार आसरक्सओ, धीताए तस्स सम संपत्ति, ताए भणितो-वीसत्थाणं घोलचम्म पाहाणाण भरेतूर्ण रुक्खाओ मुयाहि, तत्थ जो ण व्याख्यायो उत्तसति तं लएहि, पडहं च तालेहि, युझावह य खक्खरएणं जो ण उत्नसति तं लएहि, सो वेतणगकाले भणति-मम दो देहि,
अमुग २ वा, तेण भणित- सच्चे गिहाहि, किं ते एतेहिं १, णेच्छति, भज्जाए कहणं, धीता से दिज्जतु, सा णेच्छति, सो तीसे 18 वङ्गति, दारक कहेति, लक्खणजुत्तेणं कुटुंबं परिवड्डतित्ति ।। एगस्स मातुलएणं धूया दिण्णा, कम्म ण करीत, भज्जाए चोइतो दिवे
दिवे अडवीओ रित्तओ एति, छठे मासे लद्धं कुलबो, सतसहस्सेण सेट्टिणा लइओ, अक्खयणिहिति।। गंधम्मि, पाडलिपुत्ते णगरे।
पालित्तगा आयरिया अच्छंति,इतो य जोणिएहिं इमाणि विसज्जियाणि पाडलिपुत्तं-मुत्तं मोहितग लट्ठी समा मुदिओ समुग्गओति, लाकेणइ ण णाता, पालियआयरिया सदाविता-तुन्भेहि जाणह भगवंति?, बाढ़ जाणामि, सुतं उण्होदए छडं,मयणं विराय, दिट्ठाणि |
अग्गिमाणि, दंडओ पाणिए छूटो, मूलं गरुयं, समुग्मतो जतुणा घोलितो उण्होदए, कढिंतो उग्धाडितो य । तेणविय लाउयं सराइल्लेऊण रयणाणि छूढाणि, तेण य सिविणीए सिबेऊण विसज्जित, अभिदंता फेडह, ण सक्कितं ॥ अगदे, परबलं णगरंग
रोहेतुं एतित्ति रायाए पाणियाणि विणासितव्वाणि, विसकरो पाडितो, पुजा कता, बेज्जो जयमेन गहाय आगतो, राया रुडो,
वज्जा भणति-सतसहस्सवेधी, कहं, खीणाऊ हस्थी आणितो, पुच्छवालो उपाडिआ, तेणं व बालग्गेण तत्थ विसं दिण्ण, | ४ विवण करतं दीसति, एस सव्यो विस, जोवि खाएति सोपि विसं, एवं सतसहस्सवेधी, अस्थि णिवारणविधी १, बाद तत्थेव
अगदो दिण्णो पसमतो जाति ॥ रहिय गणिया एक चेब, पाइलिपुत्ते दो गणियाओ-कोसा उपकोसा य, कोसाए समं थूलभहसामी अच्छितो आसि, पच्छा पब्बइतो, ताहे परिसारचो तत्थ गतो, साक्किा जाया, अबमस्स पञ्चक्खाइ, षण्णत्थ रायामि
॥५५४।।
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