Book Title: Aagam 40 Aavashyak Choorni 01
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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आगम
(४०)
प्रत
सूत्रांक
[-]
दीप
अनुक्रम
[8]
अध्ययनं [-]
मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता
नमस्कार
व्याख्यायां
॥५४१॥
“आवश्यक”- मूलसूत्र-१ (निर्युक्तिः+चूर्णि:)
मूलं [१] / [गाथा-], निर्युक्तिः [९२४/९२४-९३९],
भाष्यं [१५१...]
आगमसूत्र [४०], मूलसूत्र [०१] "आवश्यक" निर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणि- रचिता चूर्णि:- 1
तो सोपा दुक्खं जातं, कोकासो उज्जेगिं गतो, किह रायं जाणावेमित्ति कवोतेहिं गंधसालि अवहरेति, कोट्ठाकारिएणें कहिय, मग्गतेण दिट्ठो, आणितो, रण्णा जातो, वित्ती दिण्णा, गरुडो कतो, सो राया तेण कोक्कासेण देवीए व समं हिंडति, जो से ण णमति तं भणति अहं आगासेण आगतो मारेमि, सब्वे वसमाणिया, तं देविं सेसिगाओ पुच्छंति जतो हिंडति, एगाए बच्चतस्स एसा णियत्तणखीलिया गहिया, गतो, णियत्तणवेलाए जातं, कलिंगे इसि तला पक्खो भग्गो तत्थ पडितो, जगरं गतो, तस्स रहङ्कारो रहे णिम्मेति, एगं चकं णिम्मवियं, एगस्स सन्धं घडिएल्लियं, किंचि किंचि गवि, ततो सो उबगरणाणि मग्गति, तेणं भणियं जाव घरातो आणेमि इमाणि राउलाओ ण लम्भति निकालिऊणं, सो गतो, इमेण तावेवं संघातियं उद्ध कतं जाति, अल्फिडियं पडिणियत्तति, पच्छामुहयपि ण पडति, इतरस्स सब्वयं जाति अफिडियं पडति, सो आगतो जाव तं णिस्मार्त पेच्छति, अवक्खेवेणं गतो, रण्णो कहियं जहा कोकासो आगतो, तस्स बलेणं सव्वरायाणगा तेणं बसमाणीया, सो गहितो, तेण हम्मंतण अक्खायें, ताहे सह देवीय राया महितो, रोधीयं णागरेहिं अयसभीतेहिं कागपिंडिया पवत्तिया, कोकासो भणिओ-मम पुत्तस्स सत्तभूमिंग पासादं करेहि, मम य मज्झे, तो सव्वरायाणए आणावेस्सामि, तेण णिम्मवितो, कागवण्णपुत्तस्स उणगर्जतं कातूण लेहो विसज्जितो, एहि जाव अहं एते मारेमि, तो इमं पिये च ममं च मोएहिसित्ति दिवसो दिलो, पासा सपुतओ राया विलहतो, खीलिया आहता, संपुढो जातो, सपुत्ततो मतो, कागवण्णपुचेणवि तं नगरं गहितं, पिता य कोकासो पमोइया, अण्णे भगति कोकासेण णिब्विण्णणं अप्पा तत्थेव मारितो । एस सिप्पसिद्धो । विज्जासिद्धो अज्जखउडो, तेसिं पासादेण दिज्जा कण्णाहाडिया, विज्जासिद्धस्स णमोकारेणवि किर विज्जा उपकृ॑ति, सो
(547)
शिल्पसिद्धः
॥५४१॥
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