Book Title: Aagam 40 Aavashyak Choorni 01
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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आगम
(४०)
"आवश्यक”- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं H, मूलं [१] / [गाथा-], नियुक्ति: [९२४/९२४-९३९], भाष्यं [१५१...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1
प्रत
दीप अनुक्रम
नमस्कार गुरुभारवाहित्ति काऊपमेतमाणतो, रण्णा आमंति पडिसुतं, तेण भणियं-जदि एवं ता ते गुरुतरभारवाही, कह ?, जं सो अवी-18 शिल्पव्याख्या समन्तो अट्ठारससीलंगसहस्साणि भार वहति जो मएवि बोढुं ण पारितोत्ति, धम्मकहा, भो महाराय !-चुझंति नाम भारा ते पुण
सिद्धा १५४०॥
| वुझंति बीसमंतेहिं । सीलभरो चोदव्यो जावज्जीवं अविस्सामो ॥ १॥ राया पडिबुद्धो, सो य संवेगं गतो अब्भुद्वितोचि । एमो
कम्मसिद्धोत्ति ॥ शिल्पमाचार्यकं तस्य निष्ठां प्राप्तः २, शिल्पसिद्धं प्रति उदाहरणं, कोकासो सोप्पारए रहकारो, तस्स दासीए| हाभणाण जातो दासचेडो, सो पगूढभावेण अच्छति, सो ण जीहामित्ति सो अप्पणो पुत्ते सिक्खावेति, ते मंदबुद्धी ण लएंति,&
दासेण सव्वं गहितं, सो रहकारो मतो, रायाए दासस्स तं घरं सव्वं दिण्णं, सो सामी जातो । इतो य पाडलिपुत्ते राया जियसतृत्ति, इतो य उज्जेणीए राया सावगो, तस्स चत्तारि सावगा-एगो महाणसिओ, सो रंधेति, जदि रुब्बति जिमितमत्तं जीरति,
जामेण २-३-४ वा, जदि रुच्चति ण चेव जीरति १ त्रितियओ अब्भंगेति, सो तेल्लस्स कुलब छुमति, तं चेव पुणो णीणेति २, साततियओ सेज्ज रयेति, जहा पढमे वा २-३-४ जामे बुज्झति, अहह्वा सुवती चेव ३, चउत्थो य सिरिघरो कतो, जो तं अतिगतो दि| किंचि ण पेच्छति, एते गुणा तेसिं, सो पाइलिपुत्चओ तस्स णगरं रोहति, सावओ चितति-कि मम जणक्खएणं कतेणेति भत्र्स |पच्चक्खायं देवलोग गतो, णागरेहि से णगरं दिणं, ते सावगा सदाविता, पुञ्छति-कि कम्मं , सूतेण अक्खायं, भंडारिएण पवेसिओ, किंचिवि ण णेच्छति, अण्णेण दारेण दंसितं, सेज्जापालेण कहियं, अभंगतेण एकातो पदातो तेल्लं णीणियं, एकातो ण ॥५४०॥ णीणित, जो मम सरिसो सो णीउत्ति, चत्वारिवि पब्वतिया । सो तेण तेल्लेण डझंतो कालगो जाओ, काकवण्णो से णाम जाय, पढमं से जियसत्तुति णाम आसि पश्चात्काकवर्ण इति ।
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