Book Title: Aagam 40 Aavashyak Choorni 01
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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आगम
(४०)
"आवश्यक”- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं H, मूलं [१] / [गाथा-], नियुक्ति: [९२४/९२४-९३९], भाष्यं [१५१...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1
प्रत
नमस्कार
संजती गहिया, संघसमवाए कए एगेण मंतसिद्धेण रायंगणि थंभा अच्छंति ते अभिमंतिता खडखडेंति, पासखंभावि य चलिया, योगागमाव्याख्यायां तेण भीएण मुक्का, संघो य खामितो ॥ ..
थोभिप्रा
प्रसिद्धाः ॥५४३॥
3 जोगसिद्धो आभीरविसए कण्हाए वेण्णाए य अंतरदीवए तावसा, एगो पायलेवेणं पाणिए चंकमति एति जाति य, दालोगो आउट्टो, सङ्का हीलिज्जति, अज्जसमिता वइरसामिस्स मातुलगा विहरंता आगता, सड्ढा उबडिता अकिरियत्ति, आय
रिया णेच्छंति, भणति- किं अज्जो ! ण ठाह , एस जोगण केणवि मक्खेति, तेहिं अदुपद लद्धं, आणितो अम्हे दाणं देमोत्ति, अह सो सावओ भणति- भगवं! पादा धोवंतु, अम्हे अणुग्गहिया होमो, तस्स अणिच्छंतस्स पादा पाउयाओ य सोइयाओ, गतो, पाणिते बुडो, उकडिकलकलो कतो, एवं डंभएहि लोगो खज्जतित्ति, आयरिया णिग्गता, णदी भणिता- अहं पुत्ता! पुरिम & कूल जामि, दोवि तडा मिलिता, गता आयरिया, ते तावसा पब्बइता, अंमदीवगवस्थष्यत्ती मदीपगा जाता ।।
आगमो चोदस पुण्या णिहूँ पत्ता जाव सयंभुरमणेविज मच्छओ करेति तैपि जाणति ।
अत्थसिद्धो मंमणवणिओ, जचाए जो चारसवारे समुई जाति, अहबा जहा तुंडिएणं जले गहुँ जले मग्गिज्जतिचि | सतसाहस्सीओ वाराओ भिष्णाओ, परिहीणो, सयणिज्जेहिं दिज्जमाणेवि णेच्छति, पेडएणं लोग उचारेति, देवता उवसंता, सव्वं । दिणं, भणितो- अण्णपि देमि, सो भणति- जो मम णामेण मुयति सो अविग्घेणं एतु ।
इदाणि अभिप्पायसिद्धो, अमिप्पाओ णाम बुद्धीए पज्जाओ, अभिप्यायोचि वा बुद्धित्ति वा एगहुँ, स च अभिप्रायश्चतुर्विधः
दीप अनुक्रम
SHERBS
SECORREARRACTREAS
ECRET
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