Book Title: Aagam 40 Aavashyak Choorni 01
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 543
________________ आगम (४०) "आवश्यक’- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं H, मूलं [१] / [गाथा-], नियुक्ति: [९१७-९१८/९१७-९२०], भाष्यं [१५१...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 उपसर्गाव दीप नमस्कार व्याख्यायां जामे पढया आगया भणति- पडिच्छ, साधू कच्छं बंधेतूणं आसणं कुंमबंध कातूणं अहोमुहो ठितो चीरवेढेण, ण सक्कियं, कीसित्ता गता, पुच्छति-केरिसो ?, सा भणइ- अण्णो मणसो नत्थि, एवं चत्तारि जामे कीसितूणं गयाओ, पच्छा एगतो मिलियाओ साईति, ॥५३७॥ उपसंताओ सडीओ जाताओ॥ तेरिच्छा चउबिहा- भएण सुणगादी दसेज्जा, पदोसा चंडकोसिओ मक्कडादि वा, आहारहे| | सीहादी, अवच्चलणसारक्खणहउँ काकिमादी ।। आत्मना क्रियन्त इति आत्मसंवेदनीया, जहा उद्देसिए चेतिए पाहुडियाए य, ते चउबिहा घडणया पवडणया थभणया लेसणया, घट्टणया अच्छिमि रओ पविट्ठो, चमढियं, दुखितुमारद्धं, अहवा सय घेव अच्छिम्मि गलए वा किंचि सालुगादि उद्वितं घट्टति, पवडणया ण पयत्तेण चकमति, तत्थ दुक्खाविज्जति, थंभणया णाम ताव बइट्ठो अच्छितो जाव मुक्खिचिट्ठो जातो, अहवा हणुगार्जतमादी, लेसणया पाद आउंटावेत्ता अच्छिते जाव तत्थ वायेण लइओ, | अहवा गट्ठ सिक्खामित्ति अवणामितं किंचि अंग तत्थेव लग्ग ॥ अहवा आयसंवेतनीया बातियपित्तियसिभियसंनिवातिया, एते | दी दबोबसग्गा, भावतो उवजुत्तस्स एते चेव । अहबा इंदियाणि कसाया य ते जेहिं०, अहवा अणेण कारणेणं अरिहा नमस्कारस्यका इदियविसया कसाया परीसहा वेदणा ३ सरीरगादि अहवा सीता ३ उवसग्गा ते चेच, एवमादी अरयः ते हेता इतिकाटू तूर्ण अरिहा णमोकारस्य, अर्हन्तीति वा अर्हन्ताः, ते दुविधा-दवारिधा भावारिहा य, दबारिहा दुविहा- पसत्था अपसस्था य, | दव्वारिहा पसत्था हिरण्णअस्समादीणि, अपसत्था वधबंधतालणाइय, भावेवि अप्पसत्था अकोसादीण, पसस्था बंदणणमसणादीणं । तत्थ गाहा अरिहंति वंदणणमसणाणि ॥ ९-३५ ।। ९२१ ॥ बंदणं सिरसा, पर्मसणं वयसा, पूया वत्थादीहिं, सकारो अब्भुट्ठा अनुक्रम | ।।५३७॥ SAREEX (543)

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