Book Title: Aagam 40 Aavashyak Choorni 01
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 542
________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक [-] दीप अनुक्रम [8] अध्ययनं [-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता नमस्कार व्याख्यायां ॥५३६ ॥ “आवश्यक”- मूलसूत्र-१ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) मूलं [१] / [गाथा - ], निर्युक्तिः [९१७-९१८/९१७-९२०], भाष्यं [१५१...] आगमसूत्र [४०], मूलसूत्र [०१] “आवश्यक" निर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 चउब्विधा हासा पओसा वीमंसा पुढोवेमाता । हासा खुदगा अण्णं गामं भिक्खाचरियाए बच्चीत, वाणमंतर ओवायंति-जदि फव्वामो तो चिन्भडउंडेरग कण्हण्हरण य अच्चणिय देहामो, लद्धं, सा मग्गति, ते ण देति, अण्णमण्णस्स कहणं, मग्गितूण दिण्णं, एवं ते संति, ताहे सयं चैव तं पक्खाइया, कंदप्पिया देवया तेसिं रूवं आवरेता रमति, वियालो जातो, तेहिं मग्गिया ण दिट्ठा, देवताए आयरियाण कहिये । पढोसे संगमओ बीसा, एगत्थ देउलियाए साहू वासावासं वसित्ता गता, तेसिं च एगो | पुव्यपेसितो ततो देव वरिसारतं आगतो, ताए देवताए आवासितो, सा देवता चिंतेति किं दढधम्मो णवति सङ्घीरूवेण उवसग्गेति, सो पेच्छति, तुट्टा वंदति । पुढोवेमाता हासेण कातुं पदोसेण करेज्जा, एवं संयोगो ॥ माणुसा चउब्विहा- हासा पदोसा वीमंसा कुशीलपडिसेवणा, हासे-गणियाधुता खुट्टगं भिक्खस्स गयं उवसग्गेति तेण हया, रम्रो कहियं, खुट्टओ सदावितो, सो सिरिघरादितं कहेति । पदोसे गयसुकुमाला सोमभूमिणा बबरोविओ अहवा एगो धिज्जातीओ एगाए अविरतियाए सद्धि अकिच्च सेबमाणो साधुणा दिट्ठा, पदोसमावनो साधु मारेमित्ति पधावितो, साधु पुच्छति किं तुमे अज्ज दिडंति ?, साधू भणति 'बहुं सुणेति कलेहि०' सो भणति किं निमित्तं एवं एस अम्ह उवदेसो तित्थकराणं, उवसंतभदओ जाओ । वीमंसाए चंदउसो राया चाणकेण भणितो- पारतियं करेज्जसि, मुसीसो य किर आसि, अंतपुर धम्मकहणं, उवसग्गिज्जंति, अष्णतित्थिया विषट्टा णिच्छूढा य, साधू सहाविया भगंति- जदि राया अच्छति तो कहेमो, अतिगयो, राया उस्सरितो, अंतेपुरियाओ उवसम्मेति, हयातो, सिरिघरदित कहेति । कुसीलपडिसवणाए ईसालुगभज्जाओ चत्तारि, रायसण्णातं तेण घोसाबितं सत्पतिपरिक्खित्तं घरं ण लभति कोई पवेसं, अयागंतो साहू वियाले क्सहिनिमित्तं अतिगतो, सो य पविसिग्रलओ, तत्थ पढसे (542) उपसर्गाव ॥५३६॥

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