Book Title: Aagam 40 Aavashyak Choorni 01
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 533
________________ आगम (४०) "आवश्यक’- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं H, मूलं [१] / [गाथा-], नियुक्ति: [९१७-९१८/९१७-९२०], भाष्यं [१५१...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 प्रत सुंदरी दीप अनुक्रम पि एवं चैवं चेव विष्णासितो, गवरं सा भणिता- किं बहुणा ?, हथं रक्खेज्जसित्ति, सेसविभासा तहेब जाव एसोवि मे कसिण- मायायां व्याख्यायाम धवलपडिबज्जगोति । एत्थ पुण इमाए णियडिअब्भक्खाणदोसतो तिचं कम्ममुवणिबद्ध, पच्छा एतस्स अपडिकमितभावतो IPI सर्वांग॥५२७॥ पवइया, भातरोवि से सह जाताहि पव्वइया, अहायुगं पालित्ता सुरलोगं गयाणि । तत्थरि ता अहातुर्ग पालिचा मातरो से पढ में चुता साकेते गरे असोगदत्तस्स इम्भस्स समुहदत्तसागरदत्ताभिधाणा पुत्ता जाता, इतरीवि चहण गयपुरे णगरे संखस्स इभसाबगस्स धूता आयाता, अतीव सुंदरित्ति सवंगसुंदरित्ति से णामं कत, इतरीओवि भातुज्जायाओ चविऊग कोसलाउरे णंदहोणाभिधाणस्स इन्भस्स सिरिमतिकांतिमतिधूताओ आआताओ, जोय्वर्ण पत्ताणि, सवंगसुंदरी कहंचि साकेयाओ गतपुरमागतेणं असोगदत्तसेट्टिणा दिडा, कस्सेसा कण्णगति?, संखस्सत्ति सिढे सबहुमाणं समुद्ददत्तस्स मग्गिता, लद्धा विवाहो य कतो, कालंतपारेण सो विसज्जायगो आयओ, उपयारो से कतो, वासहरं सज्जिय, एत्थंतरम्मि य सवंगसुंदरीए उदिनं तं णियडिवचणं पढम| कम्म, तयो भत्तारेण से वासगिहहिएण बोलेंती देवगी पुरिसच्छाया दिडा, ततो गेण चिंतितं-दुइसीला मे महिला, कोवि अवलो| एतूण गतोति, पच्छा सा आगता, ण तेण बोल्लाविया, ततो अट्टदुहहियाए धरणीए चेव रतणी गमिता, पमाते से मचारो ४. अणापुष्ट्रिय सयणवम्गं एगस्स धिज्जातियस्स कहेता गतो साकेय गगरं, परिणीता यऽणेण कोसलाउरे दस्स धूता सिरिमहै तित्ति, भातुणा य भगिणी कंतिमती, सुतं च हि, ततो गाढतममद्धिती जाता, विसेसतो तीसे, पच्छा ताणं गमागमसंववहारो ||५२७|| वोच्छिण्णो, सा धम्मपरा जाता, पच्छा पब्बइया । कालेण विहरती पवित्तिणीए समं साकेत गया, पुष्क्भाउज्जाओ से स्वसंताओ, भचारा य तासि ण सुट्ट, एस्वंतरम्मि य तीसे उदितं णियडिणिबंधणं वितियकम्म, पारणगे मिक्ख९ पविट्ठा, सिरिम-2 (533)

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