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चारित्र शुद्धि व्रत
सम्पादक
ब्र० धर्मचन्द शास्त्री
प्रकाशन सहयोगी जैन महिला समाज कृष्णा नगर, दिल्ली-110051
चारित्र शुद्धि व्रतो के उपलक्ष्य में भेंट
मूल्य · व्रत उपवास
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सम्पादकीय अनादि काल से परिभ्रमण करने वाले संसारी प्राणियों की शान्ति का एक मात्र उपाय समीचीन धर्माचरण यह धर्माचरण अनेक प्रकार से किया जा सकता है किन्तु इसमें तप की महत्ता सर्वोपरि है, जैसे मक्खन में से घी निकालने के लिए बर्तन गरम करना आवश्यक है उसी प्रकार पापों से आत्मा को पृथक् करने के लिए शरीर को तपाना आवश्यक है। पूज्यपाद स्वामी ने स्वार्थ सिद्धि में लिखा है कर्मक्षयार्थ तप्यत इति तपः अर्थात् कर्म क्षय के लिए जो तपा जाता है उसे तप कहते हैं। तप इस प्रकार के आचार्यों ने बताये जिस प्रकार समुचित अग्नि का ताप स्वर्ग को सुसंस्कृत करती है उसी प्रकार बाह्यभ्यतर तप की ताप आत्मगुणों को सुसंकृत करती है।
यह व्रत मुनि, आर्यिका, श्रावक श्राविका दोनों ही अपनी आत्म शुद्धि के लिए पालन करते हैं और उपवास के दिन एक-एक मन्त्र का जाप करते हैं। उद्यापन के समय गृहस्थ बड़े ही उत्साह से मण्डल मांडकर इसकी धर्म प्रभावना के साथ पूजन करते हैं। आत्म विशुद्धि को बढ़ाने वाला यह विधान बड़ा ही उपयोगी है।
चारित शुद्धि व्रत तेरह प्रकार के चारित्र के १२३४ अंग हैं, अतः १२३४ उपवास करना चाहिए। एक उपवास और एक पारणा के क्रम से करें तो यह व्रत ६ वर्ष १० माह और ८ दिन में पूरा होता है। श्रावक अथवा प्राविकाएं उपवास के दिन जिनेन्द्र भगवान का अभिषेक करके पूजा करें तथा मंत्र की जाप त्रिकाल करें।
मंत्र :- ॐ हीं असिआउसा चारित्रशुद्धि प्रतेभ्योनमः । व्रत के दिनों में अभिषेक, पूजन आरती स्त्रोत पाठ, स्वाध्याय जाप्य व आत्मचिन्तन अवश्य करना चाहिए । ब्रह्मचर्य व्रत का पालन तथा यथाशक्य
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आरम्भ-परिग्रह का त्याग, भोगोप भोग की वस्तुओं का प्रमाण एवं रात्रि जागरण करना चाहिए। आत्म परिणामों को निर्मल एवं विशुद्ध रखने का प्रयास मुख्यता आवश्यक है। कषाय एवं रागद्वेष का त्याग करना चाहिए।
परम पू. क्षु० राजमात माताजी में १२३४ उपवास के लक्ष्य में राहतो की पुस्तक का प्रकाशन कर व्रतों की परम्परा को बनाये रखी है।
ज्ञान दान को एक महान दान माना है जो कि ज्ञानावरण कर्म के क्षयोपशम के कारण है।
आशा है कि श्रावक एवं श्राविकाएं मुनि एवं आर्यिकाएं अपने जीवन को उन्नत बनाने में साधक व्रतों, उपवासों के माध्यम से अपनी आत्मा का उत्थान करें। आत्मा की उन्नति शील बनाने के लिए तपस्या ही अनवार्य है। तप के द्वारा हम परमात्मा पद प्राप्त कर सकते हैं। चलते-फिरते तपस्वियों का शत्-शत् वन्दन अभिवन्दन।
ब्र. पं. धर्मचन्द शास्त्री
प्रतिष्ठाचार्य
नोट :यह व्रत भाद्रपद की सुदी पडवा से आरम्भ किये जाते हैं। यह व्रत श्रावक-श्राविका अपनी शक्ति के अनुसार कर सकते हैं। उत्तम विधि तो उपवास करना है, मध्यम विधि में एक बार पानी ले सकते हैं तथा जघन्य में एक या दो रसों से एक बार भोजन (शुद्ध मयोदित) ले सकते हैं।
जो प्रावक-श्राविका बड़ी जाप नहीं कर सकते तो वे छोटी जाप भी। कर सकते हैं।
मंत्र :- ॐ हीं असिआउसा चारित्रशुद्धि व्रतेम्योनमः ।
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श्री जिनेन्द्राय नमः
समुच्चय पूजन चारित्र शुद्धि व्रत की पूजा
ईश ।
शीश ।। १ ।।
शुद्ध सुगुण छ्यालिस युत, समोशरण के निज आलम उद्धार हिल, नमत चरण में आत्म-शुद्धि के अर्थ हम जिनवर गूज रचायें । श्री जिनेन्द्र गुण गायें ||२||
रत्नत्रय की प्राप्ति हित, करूं त्रिविधि शुधियोग से ..आबहु तिष्ठहु हृदय में
आह्यनंन् विधि सार । नाथ त्रिलोक
आधार । । ३ । ।
- सोरठा
व्रत चरित्र महान इस बिन मुक्ति न पावहीं। चारित्र शुद्धि विधान इसीलिए अर्चन करूं ।।
ॐ ह्रीं अष्टदश दोष रहित षट् चत्वारिंशद् गुण सहित अर्हन्त् परमेष्ठिन् अत्र अवतर अवतर संवौषट् ।
ॐ हीं अष्टदश दोष रहित षट् चत्वारिंशद् गुण सहित अहंन्त् परमेष्ठिन अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ ठः ठः ।
ॐ ह्रीं अष्टदश दोष रहित षट् चत्वारिंशद् गुण सहित अर्हन्त् परमेष्ठिन् अत्र सम सन्निहितो भव भव सम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधिकरणं परिपुष्पांजलि क्षिपत् ।
(अष्टक)
गंगादिक निर्मल नीर कंचन कलश भरूं । प्रभु वेग हरो भव पीर, चरणन धार करूं ।।
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बारह सौ चौंतिससार, प्रोषध सुख कारी।
मैं पूजों विविध प्रकार, आतम हितकारी।। ॐ हीं अष्टदश दोष रहित षट् चत्वारिंशद गुण सहिताय बारह सं चौतीस शुद्ध चारित्र व्रत मंडिताय अर्हन्त परमेष्टिने जल निर्वपामिति स्वाहा ।
मलयागिरि चन्दन सार, केशर रंग भरी। प्रभु भव आताप निवार, यह बिनती हमरी ।। बारह सौ चौतिससार. प्रोषध सुख कारी।
मैं पूजों विविध प्रकार, आतम हितकारी ।। .......: ॐही अशानशा लोन सहित पद इत्यारिंशद् गुण सहिताय बारह सौ
चौंतीस शुद्ध चारित्र व्रत मंडिताय अर्हन्त परमेष्टिने चन्दन निर्वपामिति स्वाहा।
ले चन्द्र किरण समशुद्ध, अक्षत शुचि सारे। तसु पुंज धरूं अवरुद्ध, तुम पग तल धारे।। बारह सौ चौंतिससार, प्रोषध सुख कारी ।
मैं पूजों विविध प्रकार. आतम हितकारी ।। ॐ हीं अष्टदश दोष रहित षट् चत्वारिंशद् गुण सहिताय बारह सौ चौंतीस शुद्ध चारित्र व्रत मंडिताय अर्हन्त परमेष्ठिने अक्षतम निर्वपामिति स्वाहा।
सुरततरु के सुमन समेत. अलि गुंजार करें। मैं जजू चरण, निज हेतु, मद गद व्याघ हरे।। बारह सौ चौतिससार. प्रोषध सुख कारी।
मैं पूजों विविध प्रकार, आतम हितकारी।। ॐ ही अष्टदश दोष रहित षट् चत्वारिंशद गुण सहिताय बारह सौ
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5 चौंतीस शुद्ध चारित्र व्रत मंडिताय अर्हन्त परमेष्टिने पुष्पम । निर्वपामिति स्वाहा।
नानाविधि के पकवान, कंचन थाल भरूं । मैं जंजू चरण ढिग आन. भूख व्यथा जुहरू ।। बारह सौ चौंतिससार. प्रोषध सुख कारी।
मैं पूजों विविध प्रकार, आतम हितकारी ।। ॐ हीं अष्टदश दोष रहित षट् चत्वारिंशद गुण सहिताय बारह सौ चौं तीस शुद्ध चारित्र व्रत मंडिताय अर्हन्त परमेष्ठिने नैवेद्यं निर्वपामिति स्वाहा।
तम खण्डन दीप अनूध, तुम पर निकले . . मम मोह हरो शिव भूप. याते पूज करूं।। बारह सौ चौंतिससार. प्रोषध सुख कारी।
मैं पूजा विविध प्रकार, आतम हितकारी ।। ॐ हीं अष्टदश दोष रहित षट् चत्वारिंशद् गुण सहिताय बारह सौ चौं तीस शुद्ध चारित्र व्रत मंडित्ताय अर्हन्त परमेष्ठिने दीपम् निर्वपामिति स्वाहा।
दसविधि की धूप बनाय, पादक में खेऊ । मम दुष्ट करम जल जाय, तुम पद नित खेऊ ।। बारह सौ चौं तिससार. प्रोषध सुख कारी।
मैं पूजी विविध प्रकार. आतम हितकारी।। ॐ हीं अष्टदश दोष रहित षट् चत्वारिंशद् गुण सहिताय बारह सौ चौतीस शुद्ध चारित्र व्रत मंडिताय अर्हन्त परमेष्ठिने धूपम् निर्वपामिति स्वाहा
बादाम सुपारी लाय, केला फल प्यारे । तुम शिव फल देहु दयाल तुम पद फल धारे।।
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बारह सौ चौतिससार, प्रोषध सुख कारी।
मैं पूजों विविध प्रकार. आतम हितकारी।। ॐ हीं अष्टदश दोष रहित षट् चत्वारिंशद गुण सहिताय बारह सौ चौंतीस शुद्ध चारित्र व्रत मंडिताय अर्हन्त परमेष्ठिने फलम् : निर्माणामिति स्वाहा: :: :: : :: :.:....:
जल फल वसु कंचन थाल. आठी द्रव्य धरूं । 'छोटे" नित नावत भाल तुम पद अध धरूं ।। बारह सौ चौतिससार, प्रोषध सुख कारी।
मैं पूजों विविध प्रकार, आतम हितकारी ।। ॐ हीं अष्टदश दोष रहित षट् चत्वारिंशद् गुण सहिताय बारह सौ चौंतीस शुद्ध चारित्र व्रत मंडिताय अर्हन्त परमेष्ठिने अर्घ निर्वपामिति स्वाहा।
-चाल योगीरासामंगल अर्ध बनाय गाय गुण, कंचन थाली भरिये। अर्ध देत जिनराज-चरण में, महा हर्ष उर धरिये ।। चारित शुद्धि व्रत के हित मैं, जिन पद पूज रचाऊं।
आतम हित के हेतु जिनेश्वर, पद में शीश नवाऊं।। ॐ ह्रीं अष्टादश दोष रहिताय षट्चत्वारिंशद् गुण सहिताय बारह सौ चौतीस शुद्ध चारित्र गुण मंडिताय श्री अहंत परमेष्ठिने महार्घ निर्वपामीति स्वाहा।
जयमाला
-दोहाजिसकी शुद्धि के बिना, जिनवर सीझे नाहिं। उसकी शुद्धि के लिए, जिनवर पूज रचाहिं ।।९।।
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व्रत चारित को शुद्ध कर पहुंचे अविचल थान।
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उन्ही के पद कमल का धरूं हृदय में ध्यान ||२ ||
पद्धडी- छन्द *
अि
जय जय जय जिनदर देव भूप, जय जय जय शिव बन्ने अनूप: जय जगत पति जय जगन्नाथ, जय मंगलमय हम नमत माथ । । ३ । । जय शिवशंकर जय विष्णु देव जय ब्रह्मा जय मंगल विशेष 1 जय कमलासन कृत कर्म ईश, इन्द्रादि चरण नित नमत शीश । १४ ॥ अष्टा दश दोष विमुक्त धीर, जय मंगल भव हरत पीर ! जय अन्तरिक्ष राजत जिनेश जय चतुर्गती कारण कलेश ||५| जय इन्द्रियजय, जय धर्म व कर्म जय जगत शिरोमणि गुण निधान, जय शत्रु मित्र जानत समान | | ६ ।। जय व्रत चारित धारी करण्ड, जय शुद्ध बिहारी आत्म पिण्ड जय सत् चित् घन आनन्द रूप, जय शुद्ध चिदानन्द सत् स्वरूप | ७३ । जय पंच महाव्रत धरन धीर, जय पच समिति पालक सुवीर । जय तीन गुप्ति के रथ सवार, यह तेरह विधि चारित्र धार ।।८।। जय चरित शुद्ध घर व्रत दयाल, इक क्षण में तोड़े कर्म जाल । ऐसे विशुद्ध वर व्रत प्रधान ऐसे व्रत को पूल सुजान ॥ १६ ॥ | यह व्रत है सब जग में प्रसिद्ध है नित्य अनादि स्वय सिद्ध । इसके दिन मुक्ति नहीं हो यह व्रत है वारण सिनः तोय ||१०| हे प्रताधीश हे व्रत दिनेश हे शिप वल्लभ का कलेश | अब तेरा शरण गहा सुअन "छोटे चाहत निज आत्म ज्ञान | | ११ ||
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.
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* सोरठा * व्रत चारित्र प्रमाण चारित्र पालें वीर वर ।
ते पायें निर्वाण आगे कर्म नशाय के ।। ॐ ह्रीं अष्टादश रहिताय षट् चत्वारिंशत गुण सहिताय बारह सौ चौंतीस चारित्र गुण मंडिताय श्री अर्हन्त परमेष्ठिने पूर्णा निर्वपामिलि स्याहा।
जो विशुद्ध मन से सदा चारित पाले वीर । ते वसु कर्म नशाय के पहुंचे भव के तीर ।।
"इत्याशीर्वाद" पुष्पाञ्जलि क्षिपेत्।
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आद्य व्यक्तध्या
जैनों में चारित्र धारण करने का अत्यधिक महत्व है। दर्शन ज्ञान की आवश्यकता होने पर भी बे अपने आप में तब तक पूज्य नहीं माने जाले जब तक व्रत ला चारित्र का उनके साथ सहयोग न हो । जहां तक संसारोच्छेद का प्रश्न है वह तो चारित्र के बिना हो ही नहीं सकत । इसीलिए भगवान समन्तभद्र ने रत्नकरणड श्रावकचार में लिखा है।
मोहतिमिरापहरणे दर्शनलाभादवाप्तसंज्ञानः |
रागद्वेषनिवृत्यै चरण प्रतिपद्यते साधुः ।। अर्थात-- दर्शन मोह का अभाव हो जाने पर सम्यगदर्शन होता है, और सम्यग्दर्शन के लाभ से सम्यग्ज्ञान प्राप्त होता है । इसके बाद रागद्वेष की निवृत्ति के लिए साधु चारित्र धारण करता है।
इस कथन से स्पष्ट है कि दर्शन ज्ञान हो जाने पर भी रागद्वंष तय तक दूर नहीं होते जब तक चारित्र धारण न किया जाय ।
इस आत्मा का मुख्य ध्येय रागादि से निवृत्ति प्राप्त करना है। यह रागादि की पूर्ण निवृत्ति ही मुक्ति है जो चारित्राश्रित है अतः मुमुक्षु को चारित्र धारण करना उतना ही आवश्यक है। जितना जीवन के इच्छुक को आहार करना।
इस घोर कलिकाल में इस चारित्र की ही उपेक्षा की जा रही है और इस कलिकाल की भीषणता तब और बढ़ जाती है जब चारित्र को संसार पतन का कारण बताया जाता है।
जब लोग चारित्र में स्वतः उपेक्षित हैं और सब प्रकार की भक्ष्याभक्ष्य प्रवृत्ति से परहेज नहीं करना चाहतं तब व्रतादि रूप चारित्र को अधर्म कहना, संसार का कारण बतलाना 'अन्ध असूझन की अखियन में झोंकत
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हैं रज रामदुहाई' का स्मरण कराता है। ___ आवश्यकता इस बात की है कि अन्धों की आख में धूल झोंकने वाले इन कलि-प्रचारकों से जन साधारण को जागृत किया जाय. और उसका एक ही उपाय है कि जनता को इस प्रकार का साहित्य दिया जाय जिससे वह मार्गदर्शन कर सके।
इसमें १२३४ उपवासों की व्यवस्था है। इन उपवासों को किस विधि से करना चाहिए और ये कितने समय में पूर्ण होने चाहिए इत्यादि सम्पूर्ण विधि-विधान का इसमें दिग्दर्शन है। इस विधान को करने से जिन पौराणिक महापुरुषों ने फल प्राप्त किया है उसकी सुन्दर कथा भी दी है। सभी उपयास तेरह प्रकार के चारित्र से संबंधित हैं। ये तेरह प्रकार के ५ महाव्रत, ५ समिति और ३ गुप्ति हैं। इनमें से किस चारित्र से संबंधित कितने उपवास हैं उनकी गणना दी है। इस विधान का स्रोत हरिवंश पुराण का ३४ वां सर्ग है। विधान के अन्त में लिखा है।
त्रयोदशविधस्यैव चारित्रस्य विशुद्धये !
विधौ चारित्रशुद्धो स्युरुपवासा - प्रकीर्तिता । । १०६ ।। तेरह प्रकार के चारित्र की शुद्धि के लिए इस चारित्र शुद्धि विधान में उक्त उपवासों का कथन किया।
इस तरह इन उपवासों का फल तेरह प्रकार की चारित्र शुद्धि है। शुद्ध चारित्र का पालन करते हुए तीर्थकर प्रकृति का बन्ध होना स्वाभाविक ही है। यही कारण है कि कथा के प्रारंभ में सम्राट श्रेणिक द्वारा तीर्थंकर प्रकृति बंध के कारणों को गौतम गणधर से पूछा गया है।
पुस्तक समयोपयोगी है और चारित्र पालन के लिए विशुद्ध प्ररेणा देती है।
पमा
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अथ चारित्र शुद्धि व्रत (बारह से चौतीस)
व्रत कथा रचियता- श्री जिनेन्द्र भूषणजी भट्टारक। बंदौं श्री अरहंत को, व कर शीस नमाय ।। बारह से चौतीस व्रत, करौ भव्य मन लाय ।।१।। जम्बूद्वीप दीपन में सार, भरत क्षेत्र तहाँ कही अपार। मगध देश देशन में बनी. राजगृह नगरी तहा बनी ।।२।। सजा श्रेणिक राज करत, पटारानी चेलना महत । एक समय मिलाचल . श्रीम.. बर्द्धमान आदो गंभीर ! ५३ ।। छह ऋतु के फल देखौ राई, वनमाली ने भाषी आई। वंदन गये राइ गुनमान. वीरनाथ स्वामी भगवान।।४।। नर कोठा नृप बैठन लग्यौ, मानो भव अंजुलि उन दयौ ।। तब नृप बोले मस्तक नाय, मो सौ बात कही समझाय ||५|| सोलह कारण प्रत घिन करो, तीर्थकर पद क्यौं कारे धरौं । तब बोले गौतम विहसाय. सुनि नृप कहौ महागुणगाई।।६।। बारह से चौतीसा नाम, ता व्रत करि तीर्थंकर पद पाई। ता व्रत करै महाफल होई, तो सौ भाषत ही अब सोई।। ७ ।। किन व्रत करो कौन फल आय.. कैसी विधि सौं व्रत कराय। मैं सौ सब भाषो मगधेश, तो सौं कहीं धरम को वेस | |- || जम्बूद्वीप सुदर्शन मेरु. लवणोदधि फेरौ चहुँ ओर । तामै देश अवंति वसै. उज्जैनी नगरी सख लैस ।।६।।
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राजा हेमवरण परवीन, रानी शिवसुंदरी गुन धीर! • एक समय नृप वन को जाय, चारण मुनि देखे सुखपाय ।।१०।।
गुनजय वरजय नाम जतीश, राति दिवस ध्याय जगदीश नमस्कार नृप नै तब करौ, समता भाव चित्त में धरौ । ११ ।। हे गुरु मो पर कृपा करेउ, व्रत जु एक मोकू तुम देउ । जासौं पद तीर्थकर पाय, अंतकाल सो शिवपुर जाई ।।१२।। तब भाषी गुरु कृपा निधान, भादव मास से करौ विधान | साहिलो बन पड़वा में लीनै: बारह से चौतीस करीजे ।।१३।। जब व्रत पूरन होई महान उद्यापन विधि सुनौ सुजान। झारी थाली कलशा लेउ. सो जिनके चैत्यालय देउ ।।१४।। करो रकेवी चौसठ सार, मूढा जाय एक दे धार। लाडू बारह सौ चौतीस, दीजो श्रावक को गुन धीस ।।१५।। दूध धीउ दधिरा देउ, तातै जनम सफल करि लेउ ! दश वरषै जु मास धरितीन, ता पर आधो पक्ष सुलीन ।।१६।। अथया एकान्तर जो करें, पांच वरस में निश्रय भरै। पौने दो मास अधिकाय, ऐसो व्रत करियै गुन ज्ञान ।।१७।। जह व्रत सुनि गुरु के मुख सोई, नृप परम आनंदो लेइ । लीनी व्रत रानी अरु राय: तामै भाव भये अधिकाय ! |१८ || राजा नै व्रत पूरै करौ. उद्यापन विधि पूरव धरौ। अंत अवस्था धरि संन्यास, अच्युतेन्द्र पद पायौ जासु ।। १६|| बाईस सागर आयु जु धरी, तहां के सुख भुगतै गुनभरी। अंत देव सौ भयौ निदान, क्षेत्र विदेह महा सुखदान ।।२०।। नगरी विजिया पुरी है एक, जैन धरम की जातै टेक। राजा तहां धनुजय लहौ, रानी सौमश्री सुख रहौ ।।२१।।
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ताकै देय लियौ अवतार, तीर्थकर पद पायो सार । चंद्रभानप्रभ तिन को नाम पंच कल्याणक है गुणठाम । ।२२ ।। केवलि लहि प्रभु मुक्तिहि गयो, सिद्धसु जुक्ति निरंजनभयो । एसौ यह तं जानो भव्य, पाल शिवपुर गया।२३।। राजा श्रेणिक ने व्रतलियो, भाव सहित संपूरण कियौ । शिवसुन्दरी रानी व्रतलियौ, सोलह स्वर्ग देवता भयौ । ।२४।। नरनारी जा व्रत को करे, ते तीर्थकर पदवी धरै। जह व्रत करो भविक मनलाय, सो शिवपुर पदवीको पाई।।२५।। कथा कोश में बहु भाषी आई, तामै ते यह कथा बनाई। जैसी विधि गुरुनै कही, तैसी कथा कोश में लही । १२६ ।। संवत अठारह से बाईस. ता पै रचौ महा गुणईश। सहारपुर गुनह निधान, सब श्रावक जे सुनै पुरान ।।२७ ।। मूलसघ सरस्वती गच्छ, ऐसौ निश्रय जानो वच्छ। पद गुआलि अरु मुनि २ भयौ, भट्टारक पद तिनकौठयो । २८ ।। विश्वभूषण पद जजु महान. जिनेन्द्रभूषण यह रचौ महान । भूले अक्षर लेहु संभार. गुणी पुरुष तुमको यह भार ।।२६ ।।
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श्री चारित्र शुद्धि (बारह सौ चौतीस )
व्रत कथा
जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में मगध नाम का एक सुन्दर देश है। तदन्तर्गत राजगृही नाम की एक सुन्दर नगरी है। उस नगरी का राजा श्रेणिक अपनी पट्टरानी चेलना सहित सुख पूर्वक राज्य करता था। एक दिन विपुलाचल पर्वत पर श्री १०८ महावीर स्वामी का समवसरण आया। भगवान के शुभागमन से छहों ऋलों के फल्न एक गये माती इसे देखकर अत्यंत हर्षित हुआ और उन फलफूलों को लेकर राजा की सेवा में उपस्थित हुआ। राजा ने इस आश्चर्य को देखकर अत्यन्त प्रसन्नता प्रकट की और वनमाली को अपने गले का हार देकर विदा किया।
राजा समझ गया था कि वह भगवान महावीर का अतिशय है, विपुलाचल पर्वत पर भगवान के दर्शनार्थ चलना चाहिए। अतः वह सम्पूर्ण नगर की प्रजा को साथ लेकर अपने परिवार सहित प्रभु की वंदना के हेतु विपुलाचल पर्वत पर गया और समवसरण में पहुंचकर भगवान के दर्शन एवं वंदना कर मनुश्यों के कोठे में जा बैठा ।
अथानन्तर मोक्ष का अभिलाषी राजा श्रेणिक मस्तक नवा कर प्रार्थना करने लगा कि हे प्रभो ! मुझे समझाइये कि षोडश कारण व्रत करने सिवाय तीर्थंकर पद प्राप्त करने का अन्य साधन भी है या नहीं। इस प्रश्न का उत्तर गणधर देव ने किया "हे राजन् ! बारह सौ चौंतीस व्रत करने से उत्तम तीर्थंकर पद की प्राप्ति होती है। यह व्रत किसने किस प्रकार किये और उसका क्या फल मिला यह सब मैं सविस्तार कहता हूं, तुम एक चित्त होकर सुनो ।
हे मगधाधीश ! इस जम्बूद्वीप में अवंती नाम का सुन्दर देश है। इसमें धनधान्य से परिपूर्ण उज्जयनी नाम की सुन्दर नगरी है। इसमें हेमवर्ण नाम
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का गुणवान राजा राज्य करता था। उसकी रानी का नाम शिवसुन्दरी था। एक दिन राजा वनक्रीड़ा करने के हेतु वन में गया । उसे मार्ग में गुणंजय और वरंजय नाम के दो चारण ऋद्धि धारी मुनिश्वर दृष्टिगोचर हुए। वे दिन-रात आत्म-चिन्तन में रहन वाले तथा मध्यजीयों का उद्धार करन वाले थे। राजा ने मुनि युगल को देखकर भक्ति सहित प्रणाम किया और विनम्र भाव से प्रश्न किया - हे भगवन् ! मुझे कृपा करके ऐसा व्रत दीजिये जिसके प्रसाद से मैं तीर्थकर पद प्राप्त कर मुक्ति प्राप्त कर सकू। यह सुनकर करुणासागर मुनिराज बोले. हे मुमुक्षु ! चारित्र शुद्धि (बारहसो चौंतीस) व्रत करने से तीर्थकर पद की प्राप्ति होती है जिससे मुक्ति को प्राप्त करना नियम से है ही। यह व्रत भाद्रपद मास की शुक्ला प्रतिपदा से प्रारंभ किया जाता है। एक महीने में दस उपवास किये जाये तो इस प्रकार दस वर्ष ३ || माह में कुल १२३४ उपवास पूर्ण होते हैं और यदि इन उपवासों को एकांतरे से किया जावे तो ६ वर्ष १० महीने और - दिन में पूर्ण होते हैं। कदाचित् ऐसी शक्ति न हो तो यह उपवास बीच-बीच में किये जा सकते हैं और पचीस वर्ष में भी समाप्त कर सकते हैं किन्तु उपवासों की संख्या १२३४ हो जानी चाहिए।
सब ही व्रतों की शोभा उद्यापन से होती है अतः इसके उद्यापन को भी । इस प्रकार करना चाहिए :
जिन मन्दिर में झारी, थाली, कलश इत्यादि उपकरण चढ़ावें और ६४ रकाबियां साधर्मियों को बांटे तथा १२३४ लडू भी प्रावकों को बांटे, भगवान जिनेन्द्र का भक्ति भाव से पंचामृताभिषेक पूर्वक चारित्र शुद्धि मण्डल विधान की पूजा करे एवं दानादि दे कर अपना जन्म सफल करें। ___इस प्रकार गुरुओं के श्रीमुख से व्रत का विधान सुनकर दोनों दम्पत्ति अत्यन्त प्रसन्न हुए और दोनों ने ही श्री गुरु के पादमूल से व्रत ग्रहण किये। व्रतों को विधि से पूर्ण कर उद्यापन किया और अन्त समय सन्यास पूर्वक समाधिमरण कर राजा अच्युत स्वर्ग में इंद्र और सनी उसकी इन्द्राणी हुई। वहां सोलहवें स्वर्ग में बाईस सागर की उत्कृष्ट आयु का उपमोग कर विदेह
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क्षेत्र में विजयापुरी नाम की सुन्दर नगरी के धर्म बुद्धि राजा धनंजय के सोम श्री नाम की राणी के गर्भ में अवतरित हुए और श्री चन्द्रभानु नाम के तीर्थंकर हुए। इस प्रकार हेमवर्ण राजा के जीव ने १२३४ व्रतों को धारण कर तीर्थंकर पद प्राप्त किया और पांचों कल्याण को प्राप्त होकर नित्य निरंजन पद अर्थात् सिद्ध पद प्राप्त किया ।
व्रत के महान महात्म्य को समझ कर जो भव्य जीव १२३४ व्रत को विधिपूर्वक पालेंगे और अन्त समय में समाधिमरण पूर्वक पर्याय त्यागेंगे वे निश्चय से शाश्वत सुख स्वरूप तीर्थंकर पद प्राप्त कर मुक्ति रूपी लक्ष्मी को वरेंगे।
इस प्रकार श्री गौतम गणधर से बारह सौ चौतीस व्रतों की विधि को श्रद्धापूर्वक सुनकर राजा श्रेणिक ने अंगीकार की।
यह कथा जैसी कथाकोशों में गुरु परम्परा से चलती आ रही है। वैसी ही यहां लिखी गई है। इस कथा का मूल कथानक विक्रम संवत् ११२२ में अनेकों श्रावक श्राविकाओं में सम्पन्न शास्त्र तथा पुराणों के परम श्रद्धालु सदान्तर ग्राम में निवास करने वाले मूलसंघ एवं सरस्वती गच्छान्तर्गत विश्वभूषण भट्टारक गुवाली मुनि के शिष्य जिनेन्द्र भूषण भट्टारक द्वारा रचा
·
गया ।
इस व्रत में प्रत्येक उपवास की जाप्य अलग-अलग है। यहाँ सर्व सा रण के लिए छोटा सा जाप्य मंत्र लिख दिया है। इस व्रत के धारक शुद्ध मन होकर १०८ बार जपें।
जाप्य मंत्र
मंत्र :- ॐ ह्रीं असिआउसा चारित्रशुद्धि व्रतेभ्योनमः ।
(इस व्रत की विधि जिनसेनाचार्य विरचित हरिवंश पुराण के ३४वें पर्व में निम्न प्रकार दी है ।)
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विधि-चारित्रशुद्धि
चारित्र तेरह प्रकार का आचार्यों ने माना है। । महाव्रत:- अहिं सा महाव्रत. सत्यमहाव्रत, अचौर्य महात. बहाया
महाव्रत. परिग्रहत्याग महाव्रत । पांच समिति- ईर्ष्या समिति, भाषण समिति, एषणा समिति. आदान
निक्षेप समिति और प्रतिष्ठापन समिति। तीन गुप्ति- मनो गुप्ति, वचन गुप्ति और कायगुप्ति
इनमें सर्व प्रथम अहिंसा महाव्रत के उपवासों को आचा" श्री कहते हैं
चतुर्दशस्वहिसार्थ जीव--स्थानेषु भाविताः ।
त्रियोगनवकोटिनेस्ते षड्विंशं शतस्फुटम् ।।१०७ ।। (१) एकेंद्रिय बादर (२) एकेन्द्रियसूक्ष्म (३ द्विइद्रिय (४) तीन इंद्रिय (५) चतुरिद्रिय (६) पंचन्द्रिय असंही र पंचेन्द्रिय संजी इन सातों को पर्याप्त और अपर्याप्त से गुणा करने पर कुल १५ जीव समास के भेद होते हैं अर्थात् इन १४ स्थलों में जीव पाये जाते हैं इनकी (१) अपने मन से हिंसा न करना (२) दूसरे से हिंसा न कराना और (३) करते हुए की अनुमोदना न करना ।
(१) स्वयं अपने बचन से हिंसा नहीं करना और, (२) दूसरों के वचनों से हिंसा नहीं करना. (३) करते हुए अनुमोदना नहीं कराना. (१) स्वयं अपने शरीर से इनकी हिंसा नहीं करना । (२) दूसरे के शरीर से हिंसा नहीं कराना । (३) एवम करते हुए की शरीर से अनुमोदना नहीं करना । इस प्रकार १४ जांच स्थानों (जीव समारस) का नव कोटि से त्याग करने पर १२६ भेद (१४ x ६=१२६)
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रूप हिंसा टलती है इसलिए अहिंसा व्रत के १२६ भेद होते है ब्रतों के ५२६ उपवास और इतने हीपारणा होते है।
सत्यव्रत के उपवास भीा-स्वपक्ष-पैशुन्य-क्रोध-लाभात्माशंसनैः ।
द्वासप्तत्तिर्न वध्नै स्ते पदनिंदानिवतैरिति । ।१०५।! असत्य भाषण - प्रकार से होता है जैसे- भय, ईर्ष्या, स्वपक्ष समर्थन चुगलखोरी, क्रोध, लोभ, आत्मप्रशंसा और पर की निंदा । इन आठ प्रकार से होने वाली असत्य का नव कोटी त्याग अर्थात मन, वचन. काय कृतकारित और अनुमोदना से त्याग करना चाहिए इस कारण इसके ८ x ६= ७२ उपकास होते हैं और एक एक उपवास के बाद एक एक पारण! इस प्रकार ७२ उपवास और इतने ही पारण होते हैं।
अचौर्यव्रत पालन के उपवास ग्रामरण्यखलैकान्तरन्यत्रोन्योपध्यभुक्तकैः ।
सपृष्ट ग्रहणैः प्राग्वद् द्वासप्ततिरमी स्मृतः ।। १०२ ।। चोरी आट स्थानों से हो सकती है जैसे १ ग्राम, २ जंगल ३ लिहान. ४. एकान्त. ५ अयन्त्र, ३ उपधि ७. अभुक्तक ८ और पृष्ट ग्रहण (पीछा करना) इन आठो को उक्त मन वचन काय, कृत कारित अनुमोदन इस प्रकार नव कोटि से त्याग करना चाहिए। इस प्रकार इस अभिप्राय को लेकर अचौर्य महाव्रत के (8X9% 72) ७२ उपवास होते हैं तथा पूर्वोक्त उपवास की एक-एक पारणा होने से ७२ ही पारणा होते हैं।
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ब्रह्मचर्य पालन के उपवास नदेव-चित्र-तिर्यक स्त्रीरूपैः पंचेन्द्रि याहतैः ।
नवध्नै ब्रह्मचर्येः स्युः शतं तेऽशीतिमिश्रतम् ।।१०३ ।। ब्रह्मचर्य भंग चार प्रकार की स्त्रियों से होता है अर्थात् मनुष्य स्त्री. देवांगना, अचेतन स्त्री (पुलती या फोटो) और तिर्यच स्त्री (गाय घोडी आदि !) इन चारों से पंचेन्द्रिय भोग भोगना कुशील है। इनके परिहार से ब्रह्मचर्य पालन होता है। अतः ४ x ५ =२० और इनका नव कोटि से त्याग करना २० x ६= १८० भेद रूप त्याग कहलाता है। इस हेतू ब्रह्मचर्य महाव्रत में 40 उपवास और इतने ही पारणा होते हैं।
परिग्रहत्याग महाव्रत के उपवास चतुः कषाया नव नोकषाया मिथ्यात्वमेते द्विचतुः पदे च क्षेत्रं च धान्यं च हि कपाभाण्ड़े धनं च यानं शयनासनं च ।। १०४ ।। अंतर्बहिर्भेदपरिग्रहास्ते रंधैश्रतुर्विशतिराहतास्तु । ते ट्वे शते षोडश संयुते स्यु. महाव्रते स्यादुपवासभेदाः ।। १०५ | 1
परिग्रहं अतरंग और बहिरंग भेद से दो प्रकार का बतलाया गया । है। उनमें अंतरंग परिग्रह चौदह प्रकार 1 है- चार क्रोधादिकषाय.
हास्यादि नोकषाय और एक मिथ्यात्व इस प्रकार कुल १४ अतरग प्ररिग्रह हैं । बहिरंग परिग्रह के दस भेद होते हैं उनमें-द्विपद (दास दासी स्त्री इत्यादि) चतुष्पद (गाय घोडा बैल इत्यादि) खेत, धान्य, कुप्य (कपडे) भाण्ड (बरतन) धन (रुपया पैसा) यान (सवारी) शयन (पलंग आदि) आसन ये दस भेद ओर उक्त १४ भेद मिलकर २४ प्रकार का परिग्रह होता है इनकः मन, वचन, काय, कृत, कारित और अनुमोदना रूप नव कोटि से करना चाहिए। इस अभिप्राय को लेकर परिग्रह महारत्त के
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२४ ४ ६- २१६ उपवास व इतने ही पारणा होते हैं।
इस प्रकार पाच महाव्रत के १२६ + ७२+७२+१८०+२१६-६६६ उपवास तथा ६६६ पारण होते हैं ।
षष्ठम रात्रिभोजनत्याग व पंच समिति व तीन गुप्ति के उपवास षष्ठे दशोपवासाः स्युरनिच्छा नव कोटिभिः । प्रत्येकं नव विज्ञेया त्रिगुप्तिसमितित्रिके । ११०६ ।। पांच समिति के उपवास
समितियां पांच होती हैं-ईया भाषा, एषणा आदान निक्षेपण और प्रतिष्ठापन व्युत्सर्ग इनमें ईर्ष्या समिति, आदान निक्षेपण और व्युत्सर्ग समिति इन तीनों के एक-एक भेद हैं अतः इनको नव कोटि पालन करने से 3X9= 27 भेद हैं होते अतः इनके पालनार्थ २७ उपवास व २७ पारणे होते हैं ।
भाषा समिति के उपवास
भावोपमा-व्यवहार- प्रतीत्य- संभावना - सुभाषायाम् ।
जनपद संवृद्धि नाम स्थापना रूप दश नवधना ||१०७ || भाषा समिति में भाव सत्य, उपमा सत्य, व्यवहार सत्य प्रतीत्यसत्य, संभावना सत्य और रूप सत्य इस प्रकार दश भेद रूप असत्य को नव कोटि से त्यागना १०x६- ६० नव्वे भेद रूप । इनके ६० ही उपवास और इतने ही पारणे होते हैं ।
एषणा समिति के उपवास
षट् चत्वारिंशतों दोष नेषणासमितौ मतान् । नवध्नान् विधिद्यं कार्यास्तावन्त उपवासका ||१०८ ||
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एषणा समिति में उद्ामादि ४६ दोषों को मन, वचन, काय, कृत, कारित और अनुमोदना इन नव कोटियों से त्याग करना कहा है। ४६ दोष-- १ धात्री दोष र दूत दोष ३ निमित्त दोष ४ आजीवन दोष. ५ वनीषक दोष ६ चिकित्सा दोष ७ क्रोधदोष - मान दोष, ६ माया दोष १० लोभ दोष ११ पूर्व स्तुति दोष १२ पश्चात् स्तुति दोष १३ विद्या दोष १४ मंत्र दोष १५ चित्रयोगदोष १६ मूलक्रम दोष १७ शंकित दोष १८ मुक्षित दोष [ १६ निक्षिप्त दोष २० पिहित दोष २१ व्यवहरण दोष २२ दायक दोष २३ उन्मिश्रदोष २४ अपरिणत दोष २५ लिप्त दोष २६ छोटित दोष २७ औद्देशिक दोष २८ साधित दोष २६ पति दोष ३० प्राभृतक दोष ३१ मिश्रदोष ३२ बलिदोष ३३ न्यस्तदोष ३४ प्रादुष्कृत्त दोष ३५ क्रीत दोष ३६ प्राभित्य दोष ३७ परिवर्तितदोष ३८ निषिद्धदोष ३६ अभिहृत दोष ४० उदिन्न दोष ४१ उच्छेद्य दोष ४२ माला दोष ४३ अंगार दोष ४४ धूम्र दोष ४५ संयोजना ४६ प्रमाणातिक्रम दोष, इनको नव कोटि से त्याग करने पर ४६x६=४१४ भेद रूप ४१४ उपवास तथा इतने ही पारण होते हैं।
तीन गुप्ति पालनार्थ उपवास गुपित तीन के भेद होते है- मनोगुप्ति. वचन गुप्ति, काय गुप्ति इन तीन गुप्तियों को उक्त नव कोटि री पालना चाहिए। इसके हेतु ३४६-२७ उपवास और इतने ही परणा होते हैं।
उक्त प्रयोदश चारित्र का पूर्णतया पालन रात्रि मुक्ति त्याग से होता है । अत. चारित्र शुद्धि अधिकार में रात्रि भोजन त्याग को भी नहीं भूलना चाहिए । अत इसके लिए आचार्यों ने १० उपवास बतलायें है अर्थात् रात्रि भोजन त्याग का एक भेद इसको नव कोटि से गुणा करने पर ६ भेद व अनिच्छा भेद भी सम्मिलित है। इस प्रकार १० उपवास व १० पारणे होते हैं।
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७२ ७२
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उपसहार त्रयोदशविधस्यैव चारित्रस्य विशुद्धये!
विधौ चारित्रशुद्धोस्युरुपवासाः प्रकीर्तिताः ।। १०६ ।। इस प्रकार तेरह चारित्र की शद्धि करने के लिए उक्त प्रकार १२३४ उपवास व १२३४ पारणे करने चाहिए।
उपवांसों की संख्या इस यंत्र से स्पष्ट जानना चाहिए:अहिंसा महाव्रत
१२६ सत्य महाव्रत अचौर्य महाव्रत ब्रह्मचर्य महाव्रत अपरिग्रह महाव्रत रात्रिभोजन त्याग अणुव्रत ईर्यासमिति भाषा समिति एषणा समिति आदान निक्षेपण समिति प्रतिष्ठापना समिति कायगुप्ति बचन गुप्ति मनो गुप्ति
१२३४ इस प्रकार १२३४ उपवास व इतने ही पारणे होते हैं।
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विधि
प्रथम उपवास प्रथम पारणा. द्वितीय उपवास द्वितीय पारणा तीसरा उपवास तीसरा पारणा, इस प्रकार आगे-आगे करते रहने से यह व्रत ६ वर्ष १० महीने और ८ दिन में पूर्ण होता है और महीने में १० उपवास करने पर १० वर्ष ३ माह १५ दिन में पूर्ण होते हैं।
कदाचित ऐसी शक्ति न हो तो बीच-बीच में भी उपवास किये जा सकते हैं और २५-३० वर्ष से समाप्त किये जा सकते हैं पर उपवासों की संख्या कुल १२३४ होने चाहिए।
जो महापुरुष इस व्रत को निरतिचार पालन करता है उसके १३ प्रकार का निर्मल चारित्र पलता है। इस व्रत का विधान हरिदशपुराण के ३४३ सर्ग लिया गया है।
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।। श्रीवीतरागाय नमः ।। अथ चारित्रशुद्धिमंत्रजाप्याः
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अहिंसाव्रतस्य जाप्य मंत्र ॐ हीं मनसा कृत बादरपर्याप्तकेंद्रियहिंसाविरति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। १।। ॐ हीं मनसा कारितबादरपर्याप्तैकेंद्रियहिंसाविरति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।।२।। ॐ ह्रीं मनसानुमोदिबादरपर्याप्तैकेंद्रियहिंसा विरति सहाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ३ ।। ॐ हीं वचसा कृतबादरपर्याप्त केंद्रियहिंसाविरति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ४।। ॐ हीं वचसा कारितबादरपर्याप्तैकेंद्रियहिंसाविरति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ५।। ॐ ह्रीं वचसानुमोदितबादरपर्याप्त केंद्रियहिंसाविरति महाव्रतप्रोषद्योतनाय नमः ।।६।। ॐ हीं वपुषा कृत्तबादरपर्याप्तकेंद्रियहिंसाविरतिमहाव्रत प्रोषद्योतनाय नमः ।। ७।। ॐ ह्रीं वपुषा कारितबादपर्याप्तैकेंद्रियहिंसाविरति महाव्रतप्रोषद्योतनाय नमः।। ८ ॐ ह्रीं वपुषानुमोदितबादरपर्याप्तकेंद्रियहिंसाविरति महाव्रतप्रोषद्योतनाय नमः ।। ६||
इति अहिंसाव्रतस्य प्रथमः प्रकारः ।।१।।
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ॐ ह्रीं मनसा कृतबादरापर्याप्तक द्रियहिंसाविरति महाव्रतप्रोषद्योतनाय नमः ।। १ ।।
ॐ ह्रीं मनसा कारितबादरापर्याप्तैकेंद्रियहिंसाविरति महाव्रतप्रोषद्योतनाय नमः ।। २।।
ॐ ह्रीं मनसानुमोदितबादरापर्याप्तैकेंद्रियहिंसाविरति महाव्रतप्रोषद्योतनाय नमः ।। ३ ।।
ॐ ह्रीं वचसा कृतबादरापर्याप्तैकेंद्रियहिंसाविरति महाव्रतप्रोषद्योतनाय नमः || ४ ||
ॐ ह्रीं वचसा कारितबादरापर्यासंकेंद्रियहिंसाविरति महाव्रतप्रोषद्योतनाय नमः ।। ५ ।।
ॐ ह्रीं वचसानुमोदितबादरापर्याप्तैकेंद्रियहिंसाविरति महाव्रतप्रोषद्योतनाय नमः ।। ६ ।।
ॐ ह्रीं वपुषा कारितबादरापर्याप्तैकेंद्रियहिंसाविरति महाव्रतप्रोषद्योतनाय नमः ।। ७।।
ॐ ह्रीं वपुषा कारितबादरापर्याप्तैकेंद्रियहिंसाविरति महाव्रतप्रोषद्योतनाय नमः ।। ८ ।।
ॐ ह्रीं वपुषानुमोदितबादरापर्याप्तैकेंद्रियहिंसाविरति महाव्रतप्रोषद्योतनाय नमः ।। ६ ।।
इत्यहिंसाव्रतस्य द्वितीय प्रकार ?
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ॐ ह्रीं मनसा कृतसूक्ष्मपर्याप्त केंद्रियहिंसा विरतिमहाव्रतप्रोषद्योतनाय नमः || १||
ॐ ह्रीं मनसा कारितसूक्ष्मपर्याप्तै केंद्रियहिंसा विरतिमहाव्रतप्रोषद्योतनाय नमः | २|| ॐ ह्रीं मनसानुमोदितसूक्ष्मपर्याप्त केंद्रियहिंसा विरतिमहाव्रतप्रोषद्योतनाय नमः ।। ३ ।।
ॐ ह्रीं वचसा कृतसूक्ष्मपर्याप्त केंद्रियहिंसा विरतिमहाव्रतप्रोषद्योतनाय नमः || ४ |
ॐ ह्रीं वचसा कारितसूक्ष्मपर्याप्त केंद्रियहिंसा विरतिमहाव्रतप्रोषद्योतनाय नमः ।। ५ ।।
ॐ ह्रीं वचसानुमोदितसूक्ष्मपर्याप्तै केंद्रियहिंसा विरतिमहाव्रतप्रोषद्योतनाय नमः || ६ ||
ॐ ह्रीं वपुषा कृतसूक्ष्मपर्याप्त केंद्रियहिंसा विरतिमहाव्रतप्रोषद्योतनाय नमः ।। ७ ।।
ॐ ह्रीं वपुषा कारितसूक्ष्मपर्याप्त केंद्रियहिंसा विरतिमहाव्रतप्रोषद्योतनाय नमः ।। ८ ।
ॐ ह्रीं वपुषानुमोदितसूक्ष्मपर्याप्तै केंद्रियहिंसा विरतिमहाव्रतप्रोषद्योतनाय नमः || ६ |
इत्यहिंसाव्रतस्य तृतीयः प्रकारः ३
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ॐ हीं मनसाकृतसूक्ष्मापर्याप्त केंद्रियहिंसाविरति महाव्रतप्रोषद्योतनाय नमः।। १।। ॐ हीं मनसा कारितसूक्ष्मापर्याप्तकेंद्रियहिंसाविरति महाव्रतप्रोषद्योतनाय नमः ।। २।। ॐ हीं मनुसानुमोदितसूक्ष्मापर्याप्तकेंद्रियहिंसाविरति महाव्रतप्रोषद्योतनाय नमः।। ३।। ॐ हीं वचसा कृतसूक्ष्मापर्याप्तकेंद्रियहिंसाविरति महाव्रतप्रोषद्योतनाय नमः।। ४।।। ॐ हीं वचसा कारितसूक्ष्मापर्याप्तकेंद्रियहिंसाविरति महावतप्रोषद्योतनाय नमः ।। ५।। ॐ हीं वचसानुमोदितसूक्ष्मापयाप्तौद्रयहिंसाविरति महाव्रतप्रोषद्योतनाय नमः।। ६।। ॐ हीं वपुषा कृतसूक्ष्मापर्याप्तकेंद्रियहिंसाविरति महाव्रतप्रोषद्योतनाय नमः ।। ७ ।। ॐ हीं वपुषा कारितसूक्ष्मापर्याप्त के द्रियहिंसा विरतिमहाव्रतप्रोषद्योतनाय नमः।। ८॥ ॐ ह्रीं वपुषानुमोदितसूक्ष्मापर्याप्तैकेंद्रियहिंसाविरति महाव्रतप्रोषद्योतनाय नमः ।। ६॥
इत्यहिंसाव्रतस्य चतुर्थः प्रकार : ४
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ॐ हीं मनसा कृतींद्रियपर्याप्तहिंसाविरतिमहाव्रत प्रोषधोतनाय नमः ।। १।। ॐ ह्रीं मनसा कारितींद्रियपर्याप्तहिंसाविरतिमहाव्रत प्रोषद्योतनायं नमः।। २।। ॐ हीं मनसानुमोदितींद्रियपर्याप्तहिंसाविरतिमहाव्रत प्रोषद्योतनाय नमः ।। ३।। ॐ ह्रीं वचसा कृतींद्रियपर्याप्तहिंसाविरतिमहाव्रत प्रोषद्योतनाय नमः।। ४।। ॐ ह्रीं वचसा कारितद्वींद्रियपर्याप्तहिंसाविरतिमहाव्रत प्रोषद्योतनाय नमः।। ५।। ॐ हीं वचसानुमोदितींद्रियपर्याप्तहिंसाविरतिमहाव्रत प्रोषधोतनाय नमः।। ६।। ॐ हीं वपुषा कृतींद्रियपर्याप्तहिंसाविरतिमहाव्रत प्रोषद्योतनाय नमः।। ७। ॐ हीं वपुषा कारितींद्रियपर्याप्तहिंसाविरतिमहाव्रत प्रोषद्योतनाय नमः ।। ८।। ॐ हीं वपुषानुमोदितींद्रियपर्याप्तहिंसाविरतिमहाव्रत प्रोषद्योतनाय नमः ।। ६||
इति हिंसाविरतिव्रतस्य पंचम : प्रकार : ५
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ॐ हीं मनसा कृतींद्रियापर्याप्तहिंसाविरतिमहाव्रत प्रोषद्योतनाय नमः ।। १।। ॐ हीं मनसा कारितींद्रियापर्याप्तहिंसाविरतिमहाव्रत प्रोषद्योतनाय नमः ।। २।। ॐ ह्रीं मनसानुमोदितींद्रियापर्याप्तहिंसाविरतिमहाव्रत प्रोषद्योतनाय नमः ।। ३।। ॐ हीं वचसा कृतींद्रियापर्याप्तहिंसाविरतिमहाव्रत प्रोषद्योतनाय नमः।। ४।। ॐ हीं वचसा कारितींद्रियापर्याप्तहिंसाविरतिमहाव्रत प्रोषद्योतनाय नमः।। ५।। ॐ हीं वचसानुमोदितींद्रियापर्याप्तहिंसाविरतिमहाव्रत प्रोषद्योतनाय नमः।। ६।। ॐ हीं वपुषा कृतींद्रियापर्याप्तहिंसाविरतिमहाव्रत प्रोषद्योतनाय नमः ।। ७ ।। ॐ हीं वपुषा कारितींद्रियापर्याप्तहिंसाविरतिमहाव्रत प्रोषद्योतनाय नमः ।। ८ ।। ॐ हीं वपुषानुमोदितींद्रियापर्याप्तहिंसाविरतिमहाव्रत प्रोषद्योतनाय नमः ।। ६ ।।
इत्यहिसाव्रतस्य षष्ठः प्रकार ,
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ॐ हीं मनसा कृतींद्रियपर्याप्तहिंसाविरतिमहाव्रत प्रोषद्योतनाय नमः ।। १।। ॐ हीं मनसा कारितींद्रियपर्याप्तहिंसाविरतिमहाव्रत प्रोषद्योतनाय नमः।। २।। ॐ हीं मनसानुमोदितीन्द्रियपर्याप्तहिंसाविरतिमहाव्रत प्रोषद्योतनाय नमः।। ३।। ॐ हीं चला कृतदिगमाप्तगिविरतिमहावत प्रोषद्योतनाय नमः।। ४।। ॐ ह्रीं वचसा कारितत्रींद्रियपर्याप्तहिंसाविरतिमहाव्रत प्रोषद्योतनाय नमः ।। ५।। ॐ हीं वचसानुमोदितींद्रियपर्याप्तहिंसाविरतिमहाव्रत प्रोषद्योतनाय नमः।। ६।। ॐ हीं वपुषा कृतींद्रियपर्याप्तहिंसाविरतिमहाव्रत प्रोषद्योतनाय नमः ।। ७11 ॐ हीं वपुषा कारितींद्रियपर्याप्तहिंसाविरतिमहाव्रत प्रोषद्योतनाय नमः।। ८1। ॐ हीं वपुषानुमोदितींद्रियपर्याप्तहिंसाविरतिमहाव्रत प्रोषद्योतनाय नमः।। ६||
इति अहिंसावतस्य सप्तमः प्रकार : १
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ॐ ह्रीं मनसा कृतींद्रियापर्याप्त हिंसाविरति महाव्रताय नमः ।। १।। ॐ हीं मनसा कारितींद्रियापर्याप्तहिंसाविरति महाव्रताय नमः ।। २।। . ॐ हीं मनसानु मोदितींद्रियापर्याप्तहिंसाविरति महाव्रताय नमः ।। ३।। ॐ ह्रीं वचसा कृतींद्रियापर्याप्त हिंसाविरति महाव्रताय नमः ।। ४।। ॐ ह्रीं वचसा कारितींद्रियापर्याप्तहिंसाविरति महाव्रताय नमः ।। ५!! ॐ हीं वचसानुमोदितत्रींद्रियापर्याप्तहिंसाविरति महाव्रताय नमः।। ६ ।। ॐ हीं वपु साकृतींद्रियापर्याप्तहिंसाविरति महाव्रताय नमः।। ७।। ॐ हीं मनसा कारिततींद्रियापर्याप्तहिंसाविरति महाव्रताय नमः ।। ८।। ॐ हीं वपुषानुमोदितींद्रियापर्याप्तहिंसाविरति महावताय नमः ।। ६।।
डोले अहिंसावतरमा
प्रकार :
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ॐ हीं मनसा कृतचतुरिंद्रियपर्याप्तहिंसाविरति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। १।। ॐ हीं मनसा कारितचतुरिंद्रियपर्याप्तहिंसाविरति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। २।। ॐ हीं मनसानु मोदितचतुरिंद्रियपर्याप्तहिंसाविरति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ३।। ॐ हीं वचसा कृतचतुरिंद्रियपर्याप्तहिंसाविरति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ४।। ॐ ह्रीं वचसा कारितचतुरिंद्रियपर्याप्तहिंसाविरति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ५।। ॐ हीं वचसानुमोदितचतुरिंद्रियपर्याप्तहिंसाविरति महाव्रतप्रोषोद्योतनाय नमः ।। ६।। ॐ हीं वपुषा कृतचतुरिंद्रियपर्याप्तहिंसाविरति . महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ७।। ॐ हीं वपुषा कारितचतुरिंद्रियपर्याप्तहिंसाविरति महानतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ८।। ॐ हीं वपुषानुमोदिततचतुरिंद्रियपर्याप्तहिंसाविरति महानतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ६।। इति हिंसाविरतिमहाव्रतस्य नवमः प्रकार - ६
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ॐ ह्रीं मनसा कृतचतुरिंद्रिया पर्याप्तहिंसाविरति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। १।।
ॐ ह्रीं मनसा कारितचतुरिंद्रियापर्याप्तहिंसाविरति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ||२||
ॐ ह्रीं मनसानु मोदितचतुरिंद्रियापर्याप्तहिंसाविरति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ३।।
ॐ ह्रीं वचसा कृतचतुरिंद्रियापर्याप्तहिंसाविरति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ४ ।।
ॐ ह्रीं वचसा कारितचतुरिंद्रियापर्याप्तहिंसाविरति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ५।।
ॐ ह्रीं वचसानुमोदिततचतुरिंद्रियापर्याप्तहिंसाविरति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ६ ।।
ॐ ह्रीं वपुषा कृतचतुरिंद्रियापर्याप्तहिंसाविरति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ७।।
ॐ ह्रीं वपुषा कारितचतुरिंद्रियापर्याप्तहिंसाविरति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ८ ।। ॐ ह्रीं वपुषानुमोदितचतुरिंद्रियापर्याप्तहिंसाविरति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ६ ।।
इत्यहिंसाव्रतस्य दशमः प्रकार १०
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ॐ हीं मनसाकृतसंज्ञिपंचेंद्रियपर्याप्तहिंसाविरति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। १।! ॐ हीं मनसाकारितसंझिपंचेंद्रियपर्याप्तहिंसाविरति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। २।। ॐ हीं मनसानुमोदितसंज्ञिपंचेंद्रियपर्याप्तहिंसाविरति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ३।। ॐ हीं वचसाकृतसज्ञिपंचेंद्रियपंयाप्तहिंसाविरति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ४।। ॐ ह्रीं वचसाकारितसंज्ञिपंचेंद्रियपर्याप्तहिंसाविरति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ५।। ॐ ह्रींवचनानुमोदितसंज्ञिपंचेंद्रियपर्याप्तहिंसाविरति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। । ॐ ह्रीं वपुषाकृतसंज्ञिपंचेंद्रियपर्याप्तहिंसाविरति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ७।।। ॐ हीं वपुषाकारितसंज्ञिपंचेंद्रियपर्याप्तहिंसाविरति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ८1। ॐ ह्रींवपुषानुमोदितसंज्ञिपंचेंद्रियपर्याप्तहिंसाविरक्ति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ६।।
इतिहिंसाव्रतस्य एकादशः प्रकार :११
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ॐ ह्रीं मनसाकृतसंज्ञिपंचेंद्रियापर्याप्तहिंसाविरति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। १।। ॐ ह्रीं मनसाकारितसंज्ञिपंचेंद्रियापर्याप्तहिंसाविरति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ।। ॐ हीं मनसानुमोदितसंज्ञिपंचेंद्रियापर्याप्तहिंसाविरति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ३।। ॐ हीं वचसाकृतसंज्ञिपंचेंद्रियापर्याप्तहिंसाविरति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ४।! ॐ हीं वचसाकारितसंज्ञिपंचेंद्रियापर्याप्तहिंसाविरति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ५।। ॐ हीं वचसानुमोदितसंज्ञिपंचेंद्रियापर्याप्तहिंसाविरति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ६।। ॐ ह्रीं वपुसा कृतसंज्ञिपंचेंद्रियापर्याप्तहिंसाविरति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ७ ।। ॐ हीं वपुषा कारितसंज्ञिपंचेंद्रियापर्याप्तहिंसाविरति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ८।। ॐ हीं वपुषानुमोदितसंज्ञिपंचेंद्रियापर्याप्तहिंसाविरति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ६]}
इति हिंसाविरतिव्रतस्य द्वादश. प्रकार : १२
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ॐ हीं मनसा कृतासंज्ञिपंचेंद्रियपर्याप्तहिंसाविरति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। १।। ॐ हीं मनसा कारितासंक्षिपंचेंद्रियपर्याप्तहिंसामिति महाव्रतप्रोषधोयोतनाय नमः ।। २।। ॐ ह्रीं मनसानु मोदितासंज्ञिपंचेंद्रियपर्याप्तहिंसाविरति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ३।। ॐ ह्रीं वचसा कृतासंज्ञिपंचेंद्रियपर्याप्तहिंसाविरति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ४।। ॐ हीं वचसा कारितासंज्ञिपंचेंद्रियपर्याप्तहिंसाविरति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ५।। ॐ ह्रीं वचसानुमोदितासंज्ञिपंचेंद्रियपर्याप्तहिंसाविरति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ६।। ॐ ह्रीं वपुषा कृतासंज्ञिपंचेंद्रियपर्याप्तहिंसाविरति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ७।। ॐ हीं वपुषा कारितासंज्ञिपंचेंद्रियपर्याप्तहिंसाविरति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ८! ॐ ह्रीं वपुषानुमोदितासंज्ञिपंचेंद्रियपर्याप्तहिंसाविरति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ६।।
इतिहिंसाव्रतस्य त्रयोदशः प्रकार: १३
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ॐ हीं मनसा कृतासंज्ञिपंचेंद्रियापर्याप्तहिंसाविरति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। १।। ॐ हीं मनसा कारितासंज्ञिपंचेंद्रियापर्याप्तहिंसाविरति महाव्रतप्रोषधोद्योशनाय नमः ।। ॐ हीं मनसानु मोदितासंज्ञिपंचेंद्रियापर्याप्तहिंसाविरति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ३।। ॐ हीं वचसा कृतासंज्ञिपंचेंद्रियापर्याप्तहिंसाविरति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ४।। ॐ हीं वचसा कारितासंज्ञिपंचेंद्रियापर्याप्तहिंसाविरति महानतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ५।। ॐ हीं वचसानुमोदितासंज्ञिपंचेंद्रियापर्याप्तहिंसाविरति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ६।। ॐ ह्रीं वपुषा कृतासंज्ञिपंचेंद्रियापर्याप्तहिंसाविरति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ७।। ॐ ह्रीं वपुषा कारितासंज्ञिपंचेंद्रियापर्याप्तहिंसाविरति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ८ ।। ॐ हीं वपुषानुमोदितासंज्ञिपंचेंद्रियापर्याप्तहिंसाविरति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ६।।
इति अहिंसाव्रतस्थ चतुद्रशः प्रकार: १४
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सत्यमहाव्रतस्य जाप्यमंत्र
ॐ ह्रीं मनसा कृताभिख्यासत्यविरतिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः || १||
ॐ ह्रीं मनसा कारिताभिख्यासत्यविरतिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः ।। २।।
ॐ ह्रीं मनसानुमोदिताभिख्यासत्यविरतिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ३।।
ॐ ह्रीं वचसाकृताभिख्यासत्यविरतिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ४।।
ॐ ह्रीं वचसा कारिताभिख्यासत्यावर तिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ५ ।।
ॐ ह्रीं वचसानुमोदिताभिख्यासत्यविरतिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ६ ।।
ॐ ह्रीं वपुषा कृताभिख्यासत्यविरतिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ७ ।।
ॐ ह्रीं वपुषा कारिताभिख्यासत्यविरतिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ८ ।।
ॐ ह्रीं वपुषानुमोदिताभिख्या सत्यविरतिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ६ ।।
इति सत्यमहाव्रतस्य प्रथमः प्रकारः १५
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ॐ हीं मनसा कुलस्वपक्षासत्यविरति महा व्रताय नमः || १|! ॐ हीं मनसा कारितस्वपक्षासत्यविरति महा व्रताय नमः।। २ ॐ हीं मनसानुमोदितस्वपक्षासत्यविरति महा व्रताय नमः।! ३|| ॐ हीं वसा कृत स्वपक्षासत्यविरति मही व्रताय नमः।। ४।। ॐ हीं वचसा कारितस्वपक्षासत्यविरति महा व्रताय नमः।। ५।। ॐ हीं वचसानुमोदितस्वपक्षासत्यविरति महा व्रताय नमः ।। ६।। ॐ ह्रीं वपुषा कृत स्वपक्षासत्यविरति महा व्रताय नमः ।। ७।। ॐ हीं वपुषा कारितस्यपक्षासत्यविरति महा प्रताय नमः।। ८| ॐ हीं वपुषानुमोदितस्वपक्षासत्यविरति महा व्रताय नमः।। ६।
इति सत्यव्रतस्य षोडशः प्रकार. १६
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ॐ हीं मनसा कसरपक्षासत्यदिति महादतानाः || १|
ॐ हीं मनसा कारितपरपक्षासत्यविरतिमहाव्रताय नमः।। २।
ॐ हीं मनसानुमोदितपरपक्षासत्यविरतिमहाव्रतायनमः ।। ३।
ॐ ह्रीं वचसा कृतपरपक्षासत्यविरतिमहाव्रताय नमः ।। ४।।
ॐ हीं वचसा कारितपरपक्षासत्यविरतिमहाव्रताय नमः ।।५।।
ॐ हीं वचसानुमोदितपरपक्षासत्यविरतिमहाव्रताय नमः ।।६।।
ॐ हीं वपुषा कृतपरपक्षासत्यविरतिमहावताय नमः ।। ७।।
ॐ ह्रीं वपुषा कारितपरपक्षासत्यविरतिमहाव्रताय नमः ।। ८॥
ॐ हीं वपुषानुमोदितपरपक्षासत्यविरतिमहाद्रताय नमः ।। ६ ।
इति सत्यव्रतस्य तृतीयः प्रकार: १७
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ॐ हीं मनसा कृतपैशुन्यासत्यविरतिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः।। १।। ॐ हीं मनसा कारितपैशुन्यासत्यविरतिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः।। २।। ॐ ह्रींमनसानुमोदितपेशुन्यासत्यविरतिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः।। ३।। ॐ ह्रीं वचसा कृतपैशुन्यासत्यविरतिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ४।। ॐ हीं वचसाकारितपैशुन्यासत्यविरतिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ५।। ॐ हीं वचसानुमोदितपैशुन्यासत्यविरतिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ६।। ॐ हीं वपुषा कृतपैशुन्यांसत्यविरतिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ७।। ॐ हीं वपुषा कारितपैशुन्यासत्यविरतिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः।। ८।। ॐ हीवपुषानुमोदितपैशुन्यासत्यविरतिमहाग्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः।। ६।।
इति सत्यमहाव्रतस्य चतुर्थः प्रभेद : १८
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ॐ हीं मनसा कृतक्रोधासत्यविरतिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः ।। १।।
ॐ ह्रीं मनसा कारितक्रोधासत्यविरतिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः ।। २।।
ॐ ह्रीं मनसानुमोदितक्रोधासत्यविरतिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः || ३||
ॐ ह्रीं वचसा कृतक्रोधासत्यविरतिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः । । ४ । ।
ॐ ह्रीं वचसा कारितक्रोधासत्यविरतिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ५ ।।
ॐ ह्रीं वचसानुमोदितक्रोधासत्यविरतिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ६ ।।
ॐ ह्रीं वपुषा कृतक्रोधासत्यविरतिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ७ ।।
ॐ ह्रीं वपुषा कारितक्रोधासत्यविरतिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ८ ।।
ॐ ह्रीं वपुषानुमोदितक्रोधासत्य विरति महाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ६ ।।
इति सत्यव्रतस्य पंचमः प्रकारः १६
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ॐ हीं मनसा कृतलो भासत्यविरतिमहावत प्रोषधोद्योतनाय नमः।। १।। ॐ हीं मनसा कारितलोभारात्यविरतिमहाव्रत प्रोषधोद्योतन्गय नमः।।२।। ॐ हीं मनसानुमोदितलोभासत्यविरतिमहाव्रत पोषधोद्योतनारा ना!! ३ !!.... ॐ हीं वचसा कृतलोभासत्यविरतिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ४।। ॐ हीं वचसा कारितलोभासत्यविरतिमहावत प्रोषधोद्योतनाय नमः।। ५।। ॐ हीं वचसानुमोदितलोभासत्यविरतिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः।। ६।। ॐ हीं वपुषा कृतलोभासत्यविरतिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः।। ७ ।। ॐ हीं वपुषा कारितलोभासत्यविरतिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः।। ८।। ॐ हीं वपुषानुमोदितलोभासत्यविरतिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ६।।
इति सत्यव्रतस्य षष्ठः प्रकार: २०
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ॐ ह्रीं मनसा कृतात्मप्रशंसासत्यविरतिमहाव्रत प्रोषधोधोतनाय नमः ।। १।। ॐ हीं मनसा कारितात्मप्रशंसासत्यविरति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।।२।। ॐ हीं मनसानुमोदितात्मप्रशंसासत्यविरति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ३|| ॐ हीं वचसा कृतात्मप्रशंसासत्यविरतिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः।। ४।। ॐ हीं वचसा कारितात्मप्रशंसासत्यविरतिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ५।। ॐ हीं वचसानुमोदितात्मप्रशंसासत्यविरतिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः।। ६।। ॐ हीं वपुषा कृतात्मप्रशंसासत्यविरतिमहाव्रत , प्रोषधोद्योतनाय नमः।। ७|| ॐ हीं वपुषा कारितात्मप्रशंसासत्यविरतिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ८।। ॐ हीं वपुषानुमोदितात्मप्रशंसासत्यविरतिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः।। ६।।
इति सत्यव्रतस्य सप्तमः प्रकार २१
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ॐ हीं मनसा कृतपराप्रशंसनासत्यविरतिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः।। १।। ॐ हीं मनसा कास्तिपराप्रशंसनासत्यविरतिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः।। २।। ॐ हीं मनसानुमोदितपराप्रशंसनासत्यविरतिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः।। ३॥ . .... ॐ हीं वचसा कृतपराप्रशंसनासत्यविरतिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः।। ४।। ॐ ह्रीं वचसा कारितपराप्रशंसनासत्यविरतिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः।। ५।। ॐ हीं वचसानुमोदितपराप्रशंसनासत्यविरतिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः।। ६।। ॐ हीं वपुषा कृतपराप्रशंसनासत्यविरतिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ७।। ॐ हीं वपुषा कारितपराप्रशंसनासत्यविरतिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः।। ८।। ॐ हीं वपुषानुमोदितपराप्रशंसनासत्यविरतिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः।। ६ ।।
इति सत्यव्रतस्याष्टमः प्रकार: २२
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(अथाचौर्यव्रतस्य जाप्यमंत्राः) ॐ हीं मनसा कृतग्रामादत्तग्रहणविरतिमहाव्रतप्रोषधो द्योतनाय नमः।। १।। ॐ हीं मनसा कारितग्रामादत्तग्रहणविरतिमहाव्रतप्रोषधो द्योतनाय नमः।। 1 ॐ हीं मनसानुमोदितग्रामादत्तग्रहणविरतिमहाव्रतप्रोषधो द्योतनाय नमः।। ३।। ॐ हीं वचसा कृतग्रामादत्तग्रहणविरतिमहाव्रतप्रोषधो द्योतनाय नमः।।४।। ॐ हीं वचसा कारितग्रामादत्तग्रहणविरतिमहाव्रत प्रोषधोधोतनाय नमः।। ५।। ॐ हीं वचसानुमोदितग्रामादत्तग्रहणविरतिमहाव्रतप्रोषधो द्योतनाय नमः।।६।। ॐ ह्रीं वपुषा कृतग्रामादत्तग्रहणविरतिमहाव्रतप्रोषधो । द्योतनाय नमः।। ७।। ॐ हीं वपुषा कारितग्रामादत्तग्रहणविरतिमहाव्रतप्रोषधो द्योतनाय नमः।। ८ ॐ ह्रीं वपुषानुमोदितम्रामादत्तग्रहणविरतिमहाव्रतप्रोषधो द्योतनाय नमः।। ६।।
इति अचौर्यव्रतस्य प्रथमः प्रकारः २३
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ॐ हीं मनसा कृतारण्यादत्तग्रहणविरतिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः।। १।। ॐ हीं मनसा कारितारण्यादत्तग्रहणविरतिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः।। २।। . ॐ हीं मनसानुमोदितारण्यादत्तग्रहणविरतिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ३|| ॐ ह्रीं वचसा कृतारण्यादत्तग्रहणविरतिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः।। ४।। ॐ हीं वचसा कारितारण्यादत्तग्रहणविरतिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः!। ५।। ॐ हीं वचसानुमोदितारण्यादत्तग्रहणविरतिमहावत प्रोषधोद्योतनाय नमः ।।६।। ॐ हीं चपुसा कृतारण्यादत्तग्रहणविरतिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ७।। ॐ हीं वपुषा कारितारण्यादत्तग्रहणविरतिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ८।। ॐ हीं. वपुषानुमोदितारण्यादत्तग्रहणविरतिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ६।।
इति अचौर्यव्रतस्य द्वितीयः प्रकार. २४
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ॐ ही मनसः कृतमसाइतहानिरतिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः।। १।। ॐ ह्रीं मनसा कारितखलादत्तग्रहणविरतिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः ।। २।। ॐ ह्रीं मनसानुमोदितखलादत्तग्रहणविरतिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ३।।। ॐ हीं वचसा कृतखलादत्तग्रहणविरतिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः।। ४।। ॐ हीं वचसा कारितखलादत्तग्रहणविरतिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ५।। ॐ हीं वचसानुमोदितखलादत्तग्रहणविरतिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ६।। ॐ हीं वपुषा कृतखलादत्तग्रहणविरतिमहाव्रत प्रोषधोधोतनाय नमः।। ७।। ॐ हीं वपुषा कारितखलादत्तग्रहणविरतिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः।। ८ ।। | ॐ हीं वपुषानुमोदितखलादत्तग्रहणविरतिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः ।! ६||
इति अचौर्यव्रतस्य तृतीयः प्रकार: २५
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ॐ ह्रीं मनसा कृतैकांतादत्तग्रहणविरतिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः || १||
ॐ ह्रीं मनसा कारितैकांतादत्तग्रहणविरतिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः ।। २।।
ॐ ह्रीं मनसानुमोदितैकांतादत्तग्रहणविरतिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ३।।
ॐ ह्रीं वचसा कृत्तै कांतादत्तग्रहणविरतिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः । । ४ । ।
ॐ ह्रीं वचसा कारितैकांतादत्तग्रहणविरतिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ५ ।।
ॐ ह्रीं वचसानुमोदितैकांतात हरितमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः । । ६ । ।
ॐ ह्रीं वपुषा कृतै कांतादत्तग्रहणविरतिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ७।।
ॐ ह्रीं वपुषा कारितैकांतादत्तग्रहणविरतिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ८ ।।
ॐ ह्रीं वपुषानुमोदितैकांतादत्तग्रहणविरतिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ६ ।।
इति अचौर्यव्रतस्य चतुर्थः प्रकारः २६
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ॐ हीं मनसा कृतान्यत्रादत्तग्रहणविरतिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः।। १।। ॐ ह्रीं मनसा कारितान्यत्रादत्तग्रहणविरतिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः | ॐ हीं मनसानुमोदितान्यत्रादत्तग्रहणविरतिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः।। ३।। ॐ हीं वचसा कृतान्यत्रादत्तग्रहणविरतिमहावत प्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ४।। ॐ हीं वचसा कारितान्यत्रादत्तग्रहणविरतिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः।। ५।। ॐ ह्रीं वचसानुमोदितान्यत्रादत्तग्रहणविरतिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः।। ६।। ॐ हीं वपुषा कृतान्यत्रादत्तग्रहणविरतिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ७।। ॐ ह्रीं वपुषा कारितान्यत्रादत्तग्रहणविरतिमहाव्रत : प्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ८।। ॐ ह्रीं वपुषानुमोदितान्यत्रादत्तग्रहणविरतिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ६।।
इति अचौर्यव्रतस्य पंचमः प्रकार: २७
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ॐ हीं मनसा कृतपानादत्तग्रहणविरतिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः।। १।। ॐ हीं मनसा कारितपानादत्तग्रहणविरतिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः।। २।। ॐ हीं मनसानुमोदितपानादत्तग्रहणविरतिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः।। ३।। ॐ हीं वचसा कृतपानादत्तग्रहणविरतिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः।। ४।। ॐ हीं चचसा कारितपानादत्तग्रहणविरतिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः।। ५।। ॐ हीं यचसानुमोदितपानादत्तग्रहणविरतिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः ।।६।। ॐ हीं वपुषा कृतपानादत्तग्रहणविरतिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः।। ७।। ॐ हीं वपुषा कारितपानादत्तग्रहणविरतिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः।। ८ ।। ॐ हीं वपुषानुमोदितपानादत्तग्रहणविरतिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ६।।
इति अचौर्यव्रतस्य षष्ठः प्रकार: २८
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ॐ ह्रीं मनसा कृताऽहारादत्तग्रहणविरतिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः || १||
ॐ ह्रीं मनसा कारिताऽहारादत्तग्रहणविरतिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः ।। २।।
ॐ ह्रीं मनसानुमोदिताऽहारादत्तग्रहणविरतिमहाव्रत ! प्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ३ ।।
ॐ ह्रीं वचसा कृताऽहारादत्तग्रहणविरतिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ४।।
ॐ ह्रीं वचसा कारिताऽहारादत्तग्रहणविरतिमहाव्रत' प्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ५।।
ॐ ह्रीं वचसानुमोदिताऽहारादत्तग्रहणविरतिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः || ६ ||
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ॐ ह्रीं वपुषा कृताऽहारादत्तग्रहणविरतिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ७ ।।
ॐ ह्रीं वपुषा कारिताऽहारादत्तग्रहणविरतिमहाव्रत : प्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ८ ।।
ॐ ह्रीं वपुषानुमोदिताऽहारादत्तग्रहणविरतिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ६ ।।
इति अचौर्यव्रतस्य सप्तमः प्रकारः २६
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,
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ॐ हीं मनसा कृतापृच्छादत्तग्रहणविरतिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः।। १।। ॐ हीं मनसा कारितापृच्छादत्तग्रहणविरतिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः।। २।। ॐ हीं मनसानुमोदितापृच्छादत्तग्रहणविरतिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ३।। ॐ हीं वचसा कृतापृच्छादनाहालिगतिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ४।। ॐ हीं वचसा कारितापृच्छादत्तग्रहणविरतिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः।। ५।। ॐ हीं वचसानुमोदितापृच्छादत्तग्रहणविरतिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः।। ६।। ॐ हीं वपुषा कृतापृच्छादत्तग्रहणविरतिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ७।। ॐ हीं वपुषा कारितापृच्छादत्तग्रहणविरतिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ८ ।। ॐ हीं वपुषानुमोदितापृच्छादत्तग्रहणविरतिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः।। ६ ।।
५५ यवतरयाष्टमः प्रकार ३०
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ब्रहमचर्य व्रतस्य जाप्य मंत्राः
ॐ ह्रीं मनसाकृतनरस्त्रीस्पर्शनेंद्रियविषयाब्रह्मविरति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। १।।
ॐ ह्रीं मनसा कारितनरस्त्रीस्पर्शनेंद्रियविषयाब्रह्मविरति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। २।।
ॐ ह्रीं मनसानुमोदितनरस्त्रीस्पर्शनेंद्रियविषयाब्रह्मविरति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ३।।
ॐ ह्रीं वचसा कृतनरस्त्रीस्पर्शनेंद्रियविषयाब्रह्मविरति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः || ४ ||
ॐ ह्रीं वचसा कारितनरस्त्रीस्पर्शनेंद्रियविषयाब्रह्मविरति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ५ ।।
ॐ ह्रीं वचसानुमोदितनरस्त्रीस्पर्शनेंद्रियविषया ब्रह्मविरति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ६ ।।
ॐ ह्रीं वपुषा कृतनरस्त्रीस्पर्शनेद्रियविषया ब्रह्मविरति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ७ ।।
ॐ ह्रीं वपुषा कारितनरस्त्रीस्पर्शनेंद्रियविषया ब्रह्मविरति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ८ ।।
ॐ ह्रीं वपुषानुमोदितनरस्त्रीस्पर्शनेंद्रियविषया ब्रह्मविरति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ६ ।।
इति ब्रह्मव्रतस्य प्रथमभेद: ३१
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ॐ हीं मनसा कृतनरस्त्रीरसनेंद्रियविषयाब्रह्मविरति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। १]! ॐ हीं मनसा कारितनरस्त्रीरसनेंद्रियविषयाब्रह्मविरति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। २।। ॐ हीं मनसानुमोदितनरस्त्रीरसनेंद्रियविषयाब्रह्मविरति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ३।। ॐ हीं वचसा कृतनरस्त्रीरसनेंद्रियविषयाब्रह्मविरति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ४।। ॐ हीं वचसा कारितनरस्त्रीरसनेंद्रियविषयाब्रह्मविरति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ५।। ॐ हीं वचसानुमोदितनरस्त्रीरसनेंद्रियविषयाब्रह्मविरति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ६।। ॐ हीं वपुषा कृत्तनरस्त्रीरसनेंद्रियविषयाब्रह्मविरति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ७।। ॐ हीं वपुषा कारितनरस्त्रीरसनेंद्रियविषयाब्रह्मविरति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ८।। ॐ हीं वपुषानुमोदितनरस्त्रीरसनेंद्रियविषयाब्रह्मविरति महाव्रतम्रोषधोद्योतनाय नमः ।।६।।
इति ब्रह्मावतस्य द्वितीय प्रकार ३२
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ॐ ह्रीं मनसा कृतनरस्त्रीघाणेंद्रियविषयाब्रह्मविरति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। १।। ॐ हीं मनसा कारितनरस्त्रीघ्राणेंद्रियविषयाब्रह्मविरति महानतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। २।। ॐ हीं मनसानुमोदितनरस्त्रीघ्राणेंद्रियविषयाब्रह्मविरति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ३।। ॐ ही वचसा कृतनरस्त्रीघ्राणेंद्रियविषयाब्रह्मविरति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ४।। ॐ ह्रीं वचसा कारितनरस्त्रीघ्राणेंद्रियविषयाब्रह्मविरति : महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ५।। ॐ हीं व देतनरस्त्रीघ्राणेंद्रियविषयाब्रह्मविरति महाव्रतप्रोषोद्योतनाय नमः ।। ६।। ॐ हीं वपुषा कृतनरस्त्रीघ्राणेंद्रियविषयाब्रह्मविरति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ७। ॐ ह्रीं वपुषा कारितनरस्त्रीघाणेंद्रियविषयाब्रह्मविरति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ८।। ॐ ह्रीं वपुषानुमोदितनरस्त्रीघ्राणेंद्रियविषयाब्रह्मविरति महाव्रतप्रोषधोद्योलनाय नमः।। ६।।
इति ब्रह्मव्रतस्य तृतीयः प्रकारः ३३
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ॐ हीं मनसा कृतनरस्त्रीचक्षुरिंद्रियविषयाब्रह्मविरति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। १।। ॐ हीं मनसा कारितनरस्त्रीचक्षुरिंद्रियविषयाब्रह्मविरति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।।२।। ॐ हीं मनसानुमोदितनरस्त्रीचक्षुरिंद्रियविषयाब्रह्मविरति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ३|| ॐ हीं वचसा कृतनरस्त्रीचक्षुरिंद्रियविषयाब्रह्मविरति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ४।। ॐ हो वचसा कारितनरस्त्रीचक्षुरिंद्रियविषयाब्रह्मविरति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ५।। ॐ हीं बचसानुमोदितनरस्त्रीचक्षुरिद्रियविषयाब्रह्मविरति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ६।। ॐ हीं वपुषा कृतनरस्त्रीचक्षुरिंद्रियविषयाब्रह्मविरतिम हाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ७।। ॐ हीं वपुषा कारितनरस्त्रीचक्षुरिंद्रियविषयाब्रह्मविरति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ८।। ॐ हीं वपुषानुमोदितनरस्त्रीचक्षुरिंद्रियविषयाब्रह्मविरति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ६ ।।
इति ब्रह्मव्रतस्य चतुर्थः प्रकार . ३४
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ॐ हीं मनसा कृतनरस्त्रीकर्णेद्रियविषयाब्रह्मविरति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। १।। ॐ हीं मनसा कारितनरस्त्रीकणेंद्रियविषयाब्रह्मविरति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। २।। ॐ हीं मनसानुमोदितनरस्त्रीकर्णेद्रियविषयाब्रह्मविरति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ३।। ॐ हीं वचसा कृतनरस्त्रीकर्णेद्रियविषयाब्रह्मविरति महाव्रतपोषधोद्योतनाय नमः।। ४| ॐ हीं वचसा कारितनरस्त्रीकर्णेद्रियविषयाब्रह्मविरति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ५।! ॐ हीं वचसानुमोदितनरस्त्रीकर्णेद्रियविषयाब्रह्मविरति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ६ ।। ॐ हीं वपुषा कृतनरस्त्रीकर्णेद्रियविषयाब्रह्मविरति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ७।। ॐ ह्रीं वपुषा कारितनरस्त्रीकर्णेद्रियविषयाब्रह्मविरति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ८।। ॐ हीं वपुषानुमोदितनरस्त्रीकर्णेद्रियविषयाब्रह्मविरति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः || ६।।
इति ब्रह्मविरतिव्रतस्य पंचमः प्रकार: ३५
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ॐ हीं मनसा कृतदेवस्त्रीस्पर्शनेंद्रियविषयाब्रह्मविरति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। १।। ॐ हीं मनसा कारितदेवस्त्रीस्पर्शनेंद्रियविषयाब्रह्मविरति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। २।। ॐ हीं मनसानुमोदितदेवस्त्रीस्पर्शनेंद्रियविषयाब्रह्मविरति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ३।। ॐ हीं वचसा कृतदेवस्त्रीस्पर्शनेंद्रियविषयाब्रह्मविरति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ४।। ॐ हीं वचसा कारितदेवस्त्रीस्पर्शनेंद्रियविषयाब्रह्मविरति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ५।। ॐ हीं वचसानुमोदितदेवस्त्रीरपर्शनेंद्रियविषयाब्रह्मविरति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।।६।। ॐ ह्रीं वपुषा कृतदेवस्त्रीस्पर्शनेंद्रियविषयाब्रह्मविरति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ७।। ॐ हीं वपुषा कारितदेवस्त्रीस्पर्शनेंद्रियविषयाब्रह्मविरति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ८।। ॐ हीं वपुषानुमोदितदेवस्त्रीस्पर्शनेंद्रियविषयाब्रह्मविरति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ६।।
इति ब्रह्मव्रतस्य षष्ठः प्रकार: ३६
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ॐ हीं मनसा कृतदेवस्त्रीरसनेंद्रियविषयाब्रह्मविरति महावतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। १।। ॐ हीं मनसा कारितदेवस्त्रीरसनेंद्रियविषयाब्रह्मविरति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। २।। ॐ ह्रीं मनसानुमोदितदेवस्त्रीरसनेंद्रियविषयाब्रह्मविरति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ३|| ॐ हीं वचसा कृतदेवस्त्रीरसनेंद्रियविषयाब्रह्मविरति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ४।। ॐ हीं वचसा कारितदेवस्त्रीरसनेंद्रियविषयाब्रह्मविरति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ५।। ॐ हीं वचसानुमोदितदेवस्त्रीरसनेंद्रियविषयाब्रह्मविरति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ६।। ॐ हीं वपुषा कृतदेवस्त्रीरसनेंद्रियविषयाब्रह्मविरति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ७।। ॐ हीं वपुषा कारितदेवस्त्रीरसनेंद्रियविषयाब्रह्मविरति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ।। ॐ हीं वपुषानुमोदितदेवस्त्रीरसनेंद्रियविषयाब्रह्मविरति महाबलप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ६||
इति ब्रह्मव्रतस्य सप्तमः प्रकार: ३७
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* हीं मनसा कृतदेवस्तीशाणेंद्रिगविण्याब्रह्मविरति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। १।। ॐ ह्रीं मनसा कारितदेवस्त्रीघ्राणेंद्रियविषयाब्रह्मविरति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। २।। ॐ हीं मनसानुमोदितदेवस्त्रीघ्राणेंद्रियविषयाब्रह्मविरति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ३।। ॐ ह्रीं वचसा कृतदेवस्त्रीघ्राणेंद्रियविषयाब्रह्मविरति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ४।। ॐ हीं वचसा कारितदेवस्त्रीघ्राणेंद्रियविषयाब्रह्मविरति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ५।। ॐ हीं वचसानुमोदितदेवस्त्रीघ्राणेंद्रियविषयाब्रह्मविरति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ६।। ॐ हीं वपुषा कृत्तदेवस्त्रीघ्राणेंद्रियविषयाब्रह्मविरति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ७।। ॐ हीं वपुषा कारितदेवस्त्रीघ्राणेंद्रियविषयाब्रह्मविरति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।।८।। ॐ हीं वपुषानुमोदितदेवस्त्रीघ्राणेंद्रियविषयाब्रह्मविरति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ६||
इति ब्रह्मव्रतस्याष्टमः प्रकार: ३८
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ॐ हीं मनसा कतदेवस्त्रीचक्षरिद्रियविषयाब्रह्मविरति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाथ नमः || १||
ॐ ह्रीं मनसा कारितदेवस्त्रीचक्षुरिंद्रियविषयाब्रह्मविरति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः || २ ||
ॐ ह्रीं मनसानु मोदितदेवस्त्रीचक्षुरिंद्रियविषयाब्रह्मविरति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ३ ।।
ॐ ह्रीं वचसा कृतदेवस्त्रीचक्षुरिंद्रियविषयाब्रह्मविरति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः । । ४ । ।
ॐ ह्रीं वचसा कारितदेवस्त्रीचक्षुरिंद्रियविषयाब्रह्मविरति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ५ ।।
ॐ ह्रीं वचसानुमोदितदेवस्त्रीचक्षुरिंद्रियविषयाब्रह्मविरति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ६ ।।
ॐ ह्रीं वपुषा कृतदेवस्त्रीचक्षुरिंद्रियविषयाब्रह्मविरति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ७ ।।
ॐ ह्रीं वपुषा कारितदेवस्त्रीचक्षुरिंद्रियविषयाब्रह्मविरति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ८ ।। ॐ ह्रीं वपुषानुमोदितदेवस्त्रीचक्षुरिंद्रियविषयाब्रह्मविरति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ६ ।।
इति ब्रह्मव्रतस्य नवमः प्रकारः ३६
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ॐ ह्रीं मनसा कृतदेवस्त्रीकणेंद्रियविषयाब्रह्मविरति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। १।। ॐ हीं मनसा कारितदेवस्त्रीकणेंद्रियविषयाब्रह्मविरति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। २।। ॐ हीं मनसानुमोदितदेवस्त्रीकर्णेद्रियविषयाब्रह्मविरति महासषधोधोलनाय नमः।। ३।। ॐ हीं वचसा कृतदेवस्त्रीकर्णेद्रियविषयाब्रह्मविरति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ४।। ॐ हीं वचसा कारितदेवस्त्रीकर्णेद्रियविषयाब्रह्मविरति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ५।। ॐ हीं वचसानुमोदितदेवस्त्रीकर्णेद्रियविषयाब्रह्मविरति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।।६।। ॐ हीं वपुषा कृतदेवस्त्रीकर्णेद्रियविषयाब्रह्मविरति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ७ ।। ॐ हीं वपुषा कारितदेवस्त्रीकणेंद्रियविषयाब्रह्मविरति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ८ ।। ॐ हीं वपुषानुमोदितदेवस्त्रीकणेंद्रियविषयाब्रह्मविरति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ६||
इति ब्रह्मव्रतस्य दंशमः प्रकार: ४॥
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ॐ ह्रीं मनसा कृततिर्यग्नारीस्पर्शनेंद्रियविषया ब्रह्मविरतिमहाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। १।। ॐ हीं मनसा कारिततिर्यग्नारीस्पर्शनेंद्रियविषया ब्रह्मविरतिमहाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। २।। ॐ हीं मनसानुमोदिततिर्यग्नारीस्पर्शनेंद्रियविषया ब्रह्मविरतिमहातनायोषधोहबोलनाम नमः ।!!! ॐ ह्रीं वचसा कृततिर्यग्नारीस्पर्शनेंद्रियविषया ब्रह्मविरतिमहाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ४।। ॐ हीं वचसा कारिततिर्यग्नारीस्पर्शनेंद्रियविषया ब्रह्मविरतिमहाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ५|| ॐ ह्रीं वचसानुमोदिततिर्यग्नारीस्पर्शनेंद्रियविषया ब्रह्मविरतिमहाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ६।। ॐ हीं वपुषा कृततिर्यग्नारीस्पर्शनेंद्रियविषया ब्रह्मविरतिमहाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ७।। ॐ ह्रीं वपुषा कारिततिर्यग्नारीस्पर्शनेंद्रियविषया ब्रह्मविरतिमहाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ८।। ॐ ह्रीं वपुषानुमोदिततिर्यग्नारीस्पर्शनेंद्रियविषया ब्रह्मविरतिमहाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।।६।।
इति ब्रह्मवतस्यैकादशः प्रकार: ४१
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I
!
ॐ ह्रीं मनसा कृततिर्य्यग्नारीरसनेंद्रियविषयात्राः विरति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। १।।
ॐ ह्रीं मनसाकारिततिर्य्यग्नारीरसनेंद्रियविषयाब्रह्म विरतिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः ।। २॥ ॐ हींमनसानुमोदिततिर्य्यग्नारीरसनेंद्रियविषयाब्रह्म विरति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ३।। ॐ ह्रीं वचसा कृततिर्य्यग्नारीरसनेंद्रियविषयाब्रह्म विरतिमहाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ४।। ॐ ह्रीं वचसा कारिततिर्य्यग्नारीरसनेंद्रियविषयाब्रह्म विरतिमहाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ५ ।। ॐ ह्रीं वचसानुमोदिततिर्य्यग्नारीरसनेंद्रियविषयाब्रह्म विरतिमहाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ६ ।। ॐ ह्रीं वपुषा कृततिर्य्यग्नारीरसनेंद्रियविषयाब्रह्म विरतिमहाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ७ ।।
ॐ ह्रीं वपुषा कारिततिर्य्यग्नारीरसनेंद्रियविषयाब्रह्म विरतिमहाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः || ८||
ॐ ह्रीं वपुषानुमोदिततिर्य्यग्नारीरसनेंद्रियविषयाब्रह्म विरतिमहाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ६ ।।
इति ब्रह्मव्रतस्य द्वादशः प्रकार: ४२
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ॐ हीं मनसा कृततिर्यग्नारीघ्राणेंद्रियविषयाब्रह्मविरति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। १।। ॐ हीं मनसा कारितत्तिर्यग्नारीघ्राणेंद्रियविषयाब्रह्मविरति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। २।। ॐ हीं मनसानुमोदिततिर्यग्नारीघ्राणेंद्रियविषयाब्रह्म विरतिमहाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ३।। ॐ ह्रीं मनसा कृततिर्यनारीघ्राणेंद्रियविषयाब्रह्मविरति महाव्रतप्रोषोद्योतनाय नमः ।। ४।। ॐ हीं वचसा कारिततिर्यग्नारीघ्राणेंद्रियविषयाब्रह्मविरति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।।५।। ॐ ह्रीं वचसानु मोदिततिर्यग्नारीघाणेंद्रियविषयाब्रह्म विरतिमहाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ६।। ॐ ह्रीं वपुषा कृततिर्यग्नारीघ्राणेंद्रियविषयाब्रह्मविरति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।।७।। ॐ हीं वपुषा कारिततिर्यग्नारीध्राणेंद्रियविषयाब्रह्मविरति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।।८।। ॐ हीं वपुषानुमोदिततिर्यग्नारीघ्राणेंद्रियविषया ब्रह्मविरतिमहाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ६।।
इति ब्रह्मवतस्य ब्रह्मव्रतस्यः प्रकारः ४३
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ॐ हीं मनसा कृततिर्यग्नारीचक्षुरिंद्रियविषया ब्रह्मविरतिमहाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। १।। ॐ हीं मनसा कारिततिय्यग्नारीचक्षुरिंद्रियविषया ब्रह्मविरतिमहाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। २|| ॐ ह्रीं मनसानुमोदिततिर्यग्नारीचक्षुरिंद्रियविषया ब्रह्मविरतिमहाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ३।। ॐ ह्रीं मनसा कृततिर्यग्नारीचक्षुरिंद्रियविषया ब्रह्मविरतिमहाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ४।। ॐ हीं वचसा कारिततिर्यग्नारीचक्षुरिंद्रियविषया ब्रह्मविरतिमहाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।।५।। ॐ हीं वचसानुमोदिततिर्यग्नारीचक्षुरिंद्रियविषया ब्रह्मविरतिमहाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ६।। ॐ हीं वपुषा कृततिर्यग्नारीचक्षुरिंद्रियविषया ब्रह्मविरतिमहाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ७ ।।
ॐ हीं वपुषा कारिततिर्यग्नारीचक्षुरिंद्रियविषया ब्रह्मविरतिमहाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।।८।। ॐ हीं वपुषानुमोदिततिर्यग्नारीचक्षुरिंद्रियविषया ब्रह्मविरतिमहाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ६।।
इति ब्रहाव्रतस्य चतुद्रशः प्रकारः ४४
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ॐ ह्रीं मनसा कृततिर्यग्नारीकर्णेद्रियविषयाब्रह्मविरति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। १।। ॐ हीं मनसा कारिततिर्यग्नारीकर्णेद्रियविषयाब्रह्मविरति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। २।। ॐ हीं मनसानुमोदिततिर्यग्नारीकर्णेद्रियविषयाब्रह्म विरतिमहाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ३।। ॐ हीं वधसा कृततिर्यग्नारीकर्णेद्रियविषयाब्रह्मविरत्ति महाधसमोषधोधोसनाय नमः।। ४।। ॐ हीं वचसा कारिततिर्यग्नारीकणेंद्रियविषयाब्रह्मविरति . महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ५| ॐ ह्रींवचसानुमोदिततिर्यग्नारीकर्णेद्रियविषयाब्रह्म विरतिमहाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ६।। ॐ हीं वपुषा कृततिर्यग्नारीकर्णेद्रियविषयाब्रह्मविरति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ७।। ॐ ह्रीं वपुषा कारिततिर्यग्नारीकर्णेद्रियविषयाब्रह्मविरति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ८ ।। ॐ हीं वपुषानुमोदितत्तिर्यग्नारीकर्णेद्रियविषयाब्रह्मविरति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।।६।।
इति ब्रह्मव्रतस्य पंचदशः प्रकारः ४५
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ॐ हीं मनसा कृतचित्रिणीनारीस्पर्शनेंद्रियविषया ब्रह्मविरतिमहाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। १।। ॐ हीं मनसा कारितचित्रिणीनारीस्पेशनेंद्रियविषया ब्रह्मविरतिमहाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः11 | ॐ हीं मनसानुमोदितचित्रिणीनारीस्पर्शनेंद्रियविषया ब्रह्मविरतिमहाव्रतप्रोषधाधोतनाय नमः।। ३।। ॐ हीं वचसा कृतचित्रिणीनारीस्पर्शनेंद्रियविषया ब्रह्मविरतिमहाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ४।। ॐ ह्रीं वचसा कारितचित्रिणीनारीस्पर्शनेंद्रियविषया ब्रह्मविरतिमहाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ५ ।। ॐ हीं वचसानुमोदितचित्रिणीनारीस्पर्शनेंद्रियविषया ब्रह्मविरतिमहाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ६।। ॐ ह्रीं वपुषा कृतचित्रिणीनारीस्पर्शनेंद्रियविषया ब्रह्मविरतिमहाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ७।। ॐ ह्रीं वपुषा कारितचित्रिणीनारीस्पर्शनेंद्रियविषया ब्रह्मविरतिमहाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः | ८|| ॐ हीं वपुषानुमोदितचित्रिणीनारीस्पर्शनेंद्रियविषया ब्रह्मविरतिमहाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ६||
इति ब्रह्मव्रतस्य षोड़शः प्रकार: ४६
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ॐ ह्रीं मनसा कृतचित्रिणी नारीरसनेंद्रियविषयाब्रह्म विरतिमहाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। १।।
ॐ ह्रीं मनसा कारितचित्रिणी नारीरसनेंद्रियविषयाब्रह्म विरतिमहाव्रतप्रोषधोद्योतनाथ नमः ।। २।। ॐ ह्रीं मनसानुमोदितचित्रिणी नारीरसनेंद्रियविषयाब्रह्म विरतिमहाव्रतप्रोषधोद्योतनाथ नमः ।। ३।। ॐ ह्रीं वचसा कृतचित्रिणीनारीरसनेंद्रियविषयाब्रह्म विरतिमहाव्रतप्रोपोले नमः ४॥
ॐ ह्रीं वचसा कारित चित्रिणीनारीरसनेंद्रियविषयाब्रह्म विरतिमहाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः || ५ ||
ॐ ह्रीं वचसानुमोदितचित्रिणीनारीरसनेंद्रियविषयाग्रहा विरतिमहाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ६।। ॐ ह्रीं वपुषा कृतचित्रिणीनारीरसनेंद्रियविषयाब्रह्म विरतिमहाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ७।।
ॐ ह्रीं
वपुषा कारितचित्रिणीनारीरसनेंद्रियविषयाब्रह्म विरतिमहाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ८ ।। ॐ ह्रीं वपुषानुमोदितचित्रिणी नारीरसनेंद्रियविषयाब्रह्म विरतिमहाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ॥ ६॥
इति न सप्तदशः प्रकार ४५
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·|·
ॐ ह्रीं मनसा कृतचित्रिणीनारीघ्राणेंद्रियविषया ब्रह्मविरतिमहाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। १ ।। ॐ ह्रीं मनसा कारितचित्रिणीनारीघ्राणेंद्रियविषया ब्रह्मविरतिमहाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। २।। ॐ ही मनसानुमोदितचित्रिणीनारीचाद्रियविषया ब्रह्मविरतिमहाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ३ । । ॐ ह्रीं वचसा कृतचित्रिणीनारीघ्राणेंद्रियविषया ब्रह्मविरतिमहाव्रतप्रोषधांद्योतनाय नमः ।। ४।। ॐ ह्रीं वचसा कारितचित्रिणीनारीघ्राणेंद्रियविषया ब्रह्मविरतिमहाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ५ ।। ॐ ह्रीं वचसानुमोदितचित्रिणीनारीघ्राणेंद्रियविषया ब्रह्मविरतिमहाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ६ ।।
ॐ ह्रीं वपुषा कृतचित्रिणीनारीघाणेंद्रियविषया ब्रह्मविरतिमहाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ७ ।। ॐ ह्रीं वपुषा कारितचित्रिणीनारीघ्राणद्रियविषया ब्रह्मविरतिमहाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ८ ।। ॐ ह्रीं वपुसानुमोदितचित्रिणीनारीघ्राणेंद्रियविषया ब्रह्मविरतिमहाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ६ ।।
इति श्रावत्यण्ठादन प्रकार ४८
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ॐ ह्रीं मनसा कृतचित्रिणी नारीकर्णेद्रियविषया ब्रह्मविभोतनाय नमः ।।१!! ॐ ह्रीं मनसा कारितचित्रिणीनारीकर्णेद्रियविषया ब्रह्मविरतिमहाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। २।। ॐ ह्रीं मनसानुमोदितचित्रिणीनारीकर्णेद्रियविषया ब्रह्मविरतिमहाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ३।। ॐ ह्रीं वचसा कृतचित्रिणीनारीकर्णेद्रियविषया ब्रह्मविरतिमहाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः । । ४ । । ॐ ह्रीं वचसा कारितचित्रिणीनारीकर्णेद्रियविषया ब्रह्मविरतिमहाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ५।। ॐ ह्रीं वचसानुमोदितचित्रिणीनारीकर्णेद्रियविषया ब्रह्मविरतिमहाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ६ ।। ॐ ह्रीं वपुषा कृतचित्रिणीनारीकर्णेद्रियविषया ब्रह्मविरतिमहाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ७।। ॐ ह्रीं वपुषा कारितचित्रिणीनारीकर्णेद्रियविषया ब्रह्मविरतिमहाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ५ ।। ॐ ह्रीं वघुसानुमोदितचित्रिणीनारीकर्णेद्रियविषया ब्रह्मविरतिमहाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः || ६ ||
इति ब्रह्मव्रतस्यैकोनविंशः प्रकारः ४६
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ॐ ह्रीं मनसा कृतचित्रिणीनारीचक्षरिंद्रियविषया ब्रह्मविरतिमहाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। १।। ॐ हीं मनसा कारितचित्रिणीनारीचक्षुरिंद्रियविषया ब्रह्मविरतिमहाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। २।। ॐ हीं मनसानुमोदितचित्रिणीनारीचक्षुरिंद्रियविषया ब्रह्मविरतिमहाव्रतम्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ३।। ॐ हीं वचसा कृतचित्रिणीनारीचक्षुरिंद्रियविषया ब्रह्मविरतिमहाव्रतप्रोषोद्योतनाय नमः।। ४।। ॐ हीं वचसा कारितचित्रिणीनारीचक्षुरिंद्रियविषया ब्रह्मविरतिमहाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ५।। ॐ हीं वचसानुमोदितचित्रिणीनारीचक्षुरिद्रियविषया ब्रह्मविरतिमहाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ६ ।। ॐ ह्रीं वपुषा कृतचित्रिणीनारीचक्षुरिंद्रियविषया ब्रह्मविरतिमहाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ७।।
ॐ ह्रीं वपुषा कारितचित्रिणीनारीचक्षुरिंद्रियविषया ब्रह्मविरतिमहाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ८ ।। ॐ हीं वपुषानुमोदितचित्रिणीनारीचक्षुरिद्रियविषया ब्रह्मविरतिमहाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ६।।
इति ब्रह्मव्रतस्य विंशतिः प्रकार: ५०
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अथ परिग्रहविरतिमहाव्रतस्य जाप्य मंत्र
ॐ ह्रीं मनसा कृतक्रोधाभ्यंतरपरिग्रहविरांतमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः ।। १।।
ॐ ह्रीं मनसा कारितक्रोधाभ्यंतरपरिग्रहविरतिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः ।। २।।
ॐ ह्रीं मनसानुमोदितक्रोधाभ्यंतरपरिग्रहविरतिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ३।।
ॐ ह्रीं वचसा कृतक्रोधाभ्यंतरपरिग्रहविरतिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ४।।
ॐ ह्रीं वचसा कारितक्रोधाभ्यंतरपरिग्रहविरतिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ५।।
ॐ ह्रीं वचसानुमोदितक्रोधाभ्यंतरपरिग्रहविरतिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ६ ।।
ॐ ह्रीं वपुषा कृतक्रोधाभ्यंतरपरिग्रहविरतिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ७।।
ॐ ह्रीं वपुषा कारितक्रोधाभ्यंतरपरिग्रहविरतिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ८ ।।
ॐ ह्रीं वपुषानुमोदितक्रोधाभ्यंतरपरिग्रहविरतिमहात्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ६ ।।
इति परिग्रहव्रतस्य प्रथमः प्रकारः ५१
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ॐ हीं मनसा कृतमानाभ्यंतरपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। १।। ॐ हीं मनसा कारितमानाभ्यंतरपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। २।। ॐ हीं मनसानुमोदितमानाभ्यंतरपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ३।। ॐ हीं वचसा कृतमानाभ्यंतरपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ४।। ॐ हीं वचसा कारितमानाभ्यंतरपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ५।। ॐ ह्रीं वचसानुमोदितमानाभ्यंतरपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ६ ।। ॐ हीं वपुषा कृतमानाभ्यंतरपरिग्रहविरतिमहा व्रतम्रोषधोद्योतनाय नमः।। ७ ।। ॐ हीं वपुषा कारितमानाभ्यंतरपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ८ ।। ॐ हीं वपुसानुमोदितमानाभ्यंतरपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ६ ।।
इति परिग्रहव्रतस्य द्वितीयः प्रकार: ५२
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ॐ हीं मनसा कृतमायाभ्यंतरपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। १।। ॐ ह्रीं मनसा कारितमायारांतरपरिगहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। २।। ॐ हीं मनसानुमोदितमायाभ्यंतरपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ३।। ॐ हीं वचसा कृतमायाभ्यंतरपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ४।। ॐ हीं वचसा कारितमायाभ्यंतरपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ५।। ॐ हीं वचसानुमोदितमायाभ्यंतरपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ६।। ॐ हीं वपुषा कृतमायाभ्यंतरपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ७ ।। ॐ ह्रीं वपुषा कारितमायाभ्यंतरपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ८।। ॐ हीं वपुषानुमोदितमायाभ्यंतरपरिग्रहविरतिमह! व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ६।। इति परिग्रहविरतिव्रतस्य तृतीयः प्रकारः ५३
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ॐ ह्रीं मनसा कृतलोभाभ्यंतरपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः || १ ||
ॐ ह्रीं मनसा कारितलोभाभ्यंतरपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। २।।
ॐ ह्रीं मनसानुमोदितलोभाभ्यंतरपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ३।।
ॐ ह्रीं वचसा कृतलोभाभ्यंतरपरिग्रहविरतिमहा वसप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ४।।
ॐ ह्रीं वचसा कारितलोभाभ्यंतरपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ५ ।।
ॐ ह्रीं वचसानुमोदितलोभाभ्यंतरपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ६ ।।
ॐ ह्रीं वपुषा कृतलोभाभ्यंतरपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ७ ।।
ॐ ह्रीं वपुषा कारितलोभाभ्यंतरपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः || ८||
ॐ ह्रीं वपुषानुमोदितलोभाभ्यंतरपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ६ ।।
इति परिग्रहविरतिव्रतस्य चतुर्थः प्रकारः ५४
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ॐ ह्रीं मनसा कृतहास्याभ्यंतरपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। १।। ॐ ह्रीं मनसा कारितहास्याभ्यंतरपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। २।। ॐ ह्रीं मनसानुमोदितहास्याभ्यंतरपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ३।। ॐ ह्रीं वचसा कृतहास्याभ्यंतरपरिग्रहविरत्तिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ४|| ॐ ह्रीं वचसा कारितहास्याभ्यंतरपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ५।। ॐ हीं वचसानुमोदितहास्याभ्यंतरपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ६।। ॐ हीं वपुषा कृतहास्याभ्यंतरपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ७।1 ॐ हीं वपुषा कारितहास्याभ्यंतरपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ८|| ॐ ह्रीं वपुषानुमोदितहास्याभ्यंतरपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ६।।
इति परिग्रहविरतिव्रतस्य पंचमः प्रकार: ५५
___78
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ॐ . ही सरला हारयंतराविण हविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। १।। ॐ हीं मनसा कारितरत्यभ्यंतरपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। २।। ॐ हीं मनसानुमोदितरत्यभ्यंतरपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ३।। ॐ हीं वचसा कृतरत्यभ्यंतरपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ४।। ॐ हीं वचसा कारितरत्यभ्यंतरपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ५ ।। ॐ हीं वचसानुमोदितरत्यभ्यंतरपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ६।। ॐ ह्रीं वपुषा कृतरत्यभ्यंतरपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ७ ।। ॐ हीं वपुषा कारितरत्यभ्यंतरपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ८।। ॐ हीं वपुसानुमोदितरत्यभ्यंतरपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ६।।
इति ब्रह्मविरतिव्रतस्य षष्ठः प्रकारः ५६
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ॐ हीं मनसा कृताऽरत्यभ्यंतरपरिग्रहविरतिमहा प्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। १।। ॐ हीं मनसा कारिताऽरत्यभ्यंतरपरिग्रहविरतिमहा | व्रतोषचौधोत्तनाथ नमः।। ।। ॐ हीं मनसानुमोदिताऽरत्यभ्यंतरपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ३।। ॐ हीं वचसा कृताऽरत्यभ्यंतरपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ४।। ॐ हीं वचसा कारिताऽरत्यभ्यतरपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ५।। ॐ हीं वचसानुमोदिताऽरत्यभ्यंतरपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ६।। ॐ हीं वपुषा कृताऽरत्यभ्यंतरपरिग्रहविरतिमहा , व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ७।। ॐ ह्रीं वपुपा कारिताऽरन्यभ्यंतरपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ८।। ॐ हीं वपुषानुमोदिताऽरत्यभ्यंतरपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।।६।।
इति परिग्रहदतरय सप्तमः
१५
BO
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ॐ हीं मनसा कृतशोकाभ्यांतरपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। १।। ॐ ह्रीं मनसा कारितशोकाभ्यंतरपरिग्रहविरतिमहा वतपोषधोद्योतनाय नमः ।। 1।'
. ॐ हीं मनसानुमोदितशोकाभ्यंतरपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ३।। ॐ हीं वचसा कृतशोकाभ्यंतरपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ४।। ॐ ह्रीं वचसा कारितशोकाभ्यंतरपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ५।। ॐ हीं वचसानुमोदितशोकाभ्यंतरपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ६।। ॐ हीं वपुषा कृतशोकाभ्यंतरपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ७।। ॐ हीं वपुषा कारितशोकाभ्यंतरपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ८|| ॐ हीं वपुषानुमोदितशोकाभ्यंतरपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ६||
इति परिग्रहविरतिमहाव्रतस्याष्टमः प्रकारः ५.
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ॐ हीं मनसा कृतभयाभ्यंतरपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। १|| ॐ ह्रीं मनसा कारितभयाभ्यंतरपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। २।। ॐ हीं मनसानुमोदितभयाभ्यंतरपरिग्रहविरतिमहा : सत्ताधोषधोद्योतनाय नमः।। ३।।। ॐ हीं वचसा कृतभयाभ्यंतरपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ४।। ॐ ह्रीं वचसा कारितभयाभ्यंतरपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।।५।। ॐ हीं वचसानुमोदितभयाभ्यंतरपरिप्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ६।। ॐ हीं वपुषा कृतभयाभ्यंतरपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ७ ।। ॐ हीं वपुषा कारितभयाभ्यंतरपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ८ ।। ॐ हीं वपुषानुमोदितभयाभ्यंतरपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ६।।
इति परिग्रहविरतिमहाव्रतस्य नवमः प्रकार: ५६
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ॐ हीं मनसा कृतजुगुप्साभ्यंतरपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। १।। ॐ हीं मनसा कारितजुगुप्साभ्यंतरपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्राययोद्योतनाय नमः ; : 2}.! ॐ हीं मनसानुमोदितजुगुप्साभ्यंतरपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ३।। ॐ हीं वचसा कृतजुगुप्साभ्यंतरपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ४।। ॐ हीं वचसा कारितजुगुप्साभ्यंतरपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोपधोद्योतनाय नमः ।। ५।। ॐ हीं वचसानुमोदितजुगुप्साभ्यंतरपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ६ ।। ॐ हीं वपुषा कृतजुगुप्साभ्यंतरपरिग्रहविरतिमहा प्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ७।। ॐ हीं वपुपा कारितजुगुप्साभ्यंतरपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। , । ॐ हीं वपुषानुमोदितजुगुप्ताभ्यंतरपरिग्रहविरातेिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ६।।
इति परिग्रहधिरतिमहानतरण दशगः प्रकारः ६०
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ॐ ह्रीं मनसाकृतस्त्रीवेदाभ्यंतरपरिग्रहविरतिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः || १||
ॐ ह्रीं मनसा कारितस्त्रीवेदाभ्यंतरपरिग्रहविरतिमा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ॥ २॥
ॐ ह्रीं मनसानुमोदितस्त्रीवेदाभ्यंतरपरिग्रहविरति महाततमोऽधोयोतनाय नमः। ३।।
ॐ ह्रीं वचसा कृतस्त्रीवेदाभ्यंतरपरिग्रहविरतिमहा व्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ४।।
ॐ ह्रीं वचसा कारितस्त्रीवेदाभ्यतरपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः । । ५ । ।
ॐ ह्रीं वचसानुमोदितस्त्रीवेदाभ्यंतरपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः || ६ ||
ॐ ह्रीं वपुषा कृतस्त्रीवेदाभ्यंतरपरिग्रहविरतिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ७।।
ॐ ह्रीं वपुषा कारितस्त्री वेदाभ्यंतरपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ८ ।।
ॐ ह्रीं वपुषानुमोदितस्त्रीवेदाभ्यंतरपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ६ ।।
इति परिग्रहविरतिमहाव्रतस्यकादशः प्रकारः ६१
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ॐ हीं मनसा कृत'वेदाभ्यंतरपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। १।। ॐ हीं मनसा कारित'वेदाभ्यंतरपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। २।। ॐ हीं मनसानुमोदितपुवेदाभ्यंतरपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ३।। ॐ हीं वचसा कृत'वेदाभ्यंतरपरिग्रहविरतिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः।। ४।। ॐ हीं वचसा कारित'वेदाभ्यंतरपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रांषधोधातनाय नमः।। ५।। .. ॐ हीं वचसानुमोदितपुंवेदाभ्यंतरपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ६।। ॐ हीं वपुषा कृत'वेदाभ्यंतरपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ७।। ॐ हीं वपुषा कारिततपुवेदाभ्यंतरपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ८ ।। ॐ हीं वपुषानुमोदितपुंवेदाभ्यंतरपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ६11
इति परिग्रहमहाव्रतस्य द्वादशः प्रकार: ६२
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ॐ हीं मनसाकृतनपुंसकवेदाभ्यंतरपरिग्रहविरतिमहा व्रतपोषधोद्योतनाय नमः।। १।। ॐ हीं मनसाकारितनपुंसकवेदाभ्यंतरपरिग्रहविरति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। २।। ॐ हीमनसानुमोदितनपुंसकवेदाभ्यंतरपरिग्रहविरति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ३।। ॐ हीं वचसाकृतनपुंसकवेदाभ्यंतरपरिग्रहविरतिमहा व्रतपोषधोद्योतनाय नमः।। ४।। ॐ हीं वचनाकारितनकदारपरिग्रहदिरति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ५।। ॐ हींवचसानुमोदितनपुंसकवेदाभ्यंतरपरिग्रहविरति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ६।। ॐ हीं वपुषाकृतनपुंसकवेदाभ्यंतरपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ७।। ॐ हीं वपुषाकारितनपुंसकवेदाभ्यंतरपरिग्रहविरति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ८।। ॐ हीं वपुषानुमोदितनपुंसकवेदाभ्यंतरपरिग्रहविरति महाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः।।६।। इति परिग्रहविरतिमहाद्रतस्य जयादश. प्रकारः ६१
86
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ॐ ह्रीं मनसा कृतमिथ्यात्वाभ्यंतरपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। १।। ॐ ह्रीं मनसाकारितमिथ्यात्वाभ्यंतरपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। २!! ॐ ह्रीं मनसानुमोदितमिथ्यात्वाभ्यंतरपरिग्रहविरति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ३।। ॐ हीं वचसा वृत्तमिथ्यात्वाभ्यंतरपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।! ४|| ॐ ह्रीं वचसाकारितमिथ्यात्वाभ्यंतरपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ५।। ॐ हीं वचसानुमोदितमिथ्यात्वाभ्यंतरपरिग्रहविरति महा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ६।। ॐ हीं वपुषा कृतमिथ्यात्वाभ्यंतरपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः !! ७।। ॐ हीं वपुषाकारितमिथ्यात्वाभ्यतरपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ८ ।। ॐ हीं वपुषासुमोदितमिथ्यात्वाभ्यंतरपरिग्रहविरति महाव्रतप्रोपधोद्योतनाय नमः ।। ६।। इति परिताविरतिमहालत तु . ५.!.' '
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ॐ हीं मनसा कृतद्विपदबाह्यपरिगृहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। १।। ॐ हीं मनसा कारितद्विपदबाह्यपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। २।। ॐ हीं मनसानुमोदितद्विपदबाह्यपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ३।। ॐ हीं वचसा कृतद्विपदबाह्यपरिग्रहचिरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ४ ।। ॐ हीं वचसा कारितद्विपदवाह्यपरिग्रहदिरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ५।। ॐ हीं वचसानुमोदितद्विपदबाह्यपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ६।। ॐ हीं वपुषा कृतद्विपदबाहापरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। 19 || ॐ हीं वपुषा कारितद्विपदबाह्यपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ८|| ॐ हीं वपुषानुमोदितद्विपदबाह्यपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ६||
इति परिग्रहविरतिमहाव्रतरग पचदशः प्रकार: ५
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ॐ हीं मनसा कृतचतुष्पदबाह्यपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। १।। ॐ हीं मनसा कारितचतुष्पदबाह्यपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। २।। ॐ ह्रीं मनसानुमोदितचतुष्पदबाह्यपारग्रहावरतिमाह व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ३।। ॐ ह्रीं वचसा कृतचतुष्पदबाह्यपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ४।। ॐ हीं वचसा कारितचतुष्पदबाह्यपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ५।। ॐ हीं वचसानुमोदितचतुष्पदबाह्यपरिग्रहविरतिमहा व्रतोषधोद्योतनाय नमः।। ६।। ॐ हीं वपुषा कृतचतुष्पदबाह्यपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ७।।
ॐ ह्रीं वपुषा कारितचतुष्पदबाह्यपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ८ ।। ॐ हीं वपुषानुमोदितचतुष्पदबाह्यपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ६।। इतिपरिग्रहविरतिमहाव्रतस्य षोडषः प्रकार: ६६
४५
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ॐ ह्रीं मनसा कृतक्षेत्रापरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः || १||
ॐ ह्रीं मनसा कारित क्षेत्रबाह्यपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः || २ ||
ॐ ह्रीं मनसानुमोदितक्षेत्रबाह्यपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ३ ।।
ॐ ह्रीं वचसा कृतक्षेत्रबाह्यपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः || ४ ||
ॐ ह्रीं वचसा कारित क्षेत्रबाह्यपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ५ ।।
ॐ ह्रीं वचसानुमोदितक्षेत्रबाह्यपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ६ ।।
ॐ ह्रीं वपुषा कृतक्षेत्रबाह्यपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ७ ।।
ॐ ह्रीं वपुषा कारित क्षेत्रबाह्यपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ॥ ८ ॥
ॐ ह्रीं वपुषानुमोदितक्षेत्रबाह्यपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ६ ।।
इति परिग्रहविरतिमहाव्रतस्य सप्तदशः प्रकारः ६७
90
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ॐ हीं मनसा कृतधनबाह्यपरिग्रहविरतिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः।। १।। ॐ हीं मनसा कारितधनबाह्यपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। २।। ॐ हीं मनसानुमोदितधनबाह्यपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ३।। ॐ हीं वचसा कृतधनबाह्यपरिग्रहांवेरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ४।। ॐ ह्रीं वचसा कारितधनबाह्मपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ५।। ॐ हीं वचसानुमोदितधनबाह्यपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ६ ।। ॐ हीं वपुषा कृतधनबाह्यपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ७ ।। ॐ हीं वपुषा कारितधनबाह्यपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ८ ।। ॐ हीं वपुषानुमोदितधनबाह्यपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।।६।। इति परिग्रहावरांतमहाव्रतस्य अष्टादशः प्रकारः ..
५)1
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ॐ ह्रीं मनसा कृतकुप्यबाह्यपरिग्रहविरतिमहा अपोषधोद्योतनाय नमः।। ५।। . ॐ हीं मनसा कारितकुप्यबाह्यपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। २।। ॐ हीं मनसानुमोदितकुप्यबाह्यपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ३।। ॐ ह्रीं वचसा कृतकुप्यबाह्यपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ४।।। ॐ हीं वचसा कारितकुप्यबाह्यपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ५।। ॐ हीं वचसानुमोदितकुप्यबाह्यपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ६।। ॐ हीं वपुषा कृतकुप्यबाह्यपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।।७।। ॐ ह्रीं वपुषा कारितकुप्यबाह्यपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ८।। ॐ हीं वपुषानुमोदितकुप्यबाह्यपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ६।। इति परिग्रहविरतिमहाव्रतस्यैकोनविंशः प्रभेदः ६६
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ॐ ह्रीं मनसा कृतभांडबाह्यपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। १।। ॐ हीं मनसा कारितभांडबाह्यपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। २।। ॐ हीं मनसानुमोदितभांडबाह्यपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ३।। ॐ ह्रीं वचसा कृतभांडबाह्यपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ४।। ॐ हीं वचसा कारितभांडबाह्यपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ५।। ॐ हीं वचसानुमोदितभांडबाह्यपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नम: ।। ६ ।। ॐ ह्रीं वपुषानु कृतभांडबाह्यपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ७ ।। ॐ हीं वपुषा कारितभाडबाह्यपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ८।। ॐ हीं वपुषानुमोदितभांडबाह्यपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ६ ।।
इति परिग्रहविरतिमहाद्रतस्य दिशति प्रकार: ७०
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ॐ ह्रीं मनसा कृतधान्यबाह्मपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः || ॐ हीं मनसा कारितधान्यबाह्यपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। २।। ॐ हीं मनसानुमोदितधान्यबाह्यपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ३।। ॐ ह्रीं वचसा कृतधान्यबाह्यपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ४।। ॐ हीं वचसा कारितधान्यबाह्यपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ५।। ॐ ह्रीं वचसानुमोदितधान्यबाह्यपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ६।। ॐ हीं वपुषा कृतधान्यबाह्यपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ७।। ॐ हीं वपुषा कारितधान्यबाह्यपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ८ ।। ॐ हीं वपुषानुमोदितधान्यबाह्यपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ६ ।। इति परिग्रहविरतिमहाव्रतस्यैकविंशः प्रकार 199
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ॐ हीं मनसा कृतयानबाह्यपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। १।।
ॐ हीं मनसा कारितयानबाह्यपरिग्रहविरतिमहा गोषधोहोजनाय नमः । २ .
ॐ हीं मनसानुमोदितयानबाह्यपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ३।।
ॐ हीं वचसा कृतयानबाह्यपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ४।।
ॐ हीं वचसा कारितयानबाह्मपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ५।। __ ॐ ह्रीं वचसानुमोदितयानबाह्यपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ६।1
ॐ ह्रीं वपुषा कृतयानबाह्यपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ७ ।।
ॐ हीं वपुषा कारितयानबाह्यपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ८।।
ॐ हीं वपुषानुमोदितयानबाह्यपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।।६।।
इति परिग्रहविरतिमहा रस द्वालिश प्रकार. १२
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ॐ ह्रीं मनसा कृतशयनबाह्यपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। १।। ॐ हीं मनसा कारितशयनबाह्यपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।।२।। ॐ हीं मनसानुमोदितशयनबाह्यपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ३।। ॐ हीं वचसा कृतशयनबाह्यपरिग्रहविरतिमहा वतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ४।। ॐ हीं वचसा कारितशयनबाह्यपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोहयोतनाय नमः!। ५!! ॐ हीं वचसानुमोदितशयनबाह्यपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ६।। ॐ ह्रीं वपुषा कृतशयनबाह्यपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ७ ।। ॐ हीं वपुषा कारितशयनबाह्यपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ८ ।। ॐ हीं वपुषानुमोदितशयनबाह्यपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ६।। इति परिग्रहविरतिमहाव्रतस्य त्रयोविंशः प्रकारः ७३
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ॐ हीं मनसा कृताशनबाह्यपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। १।।
ॐ ह्रीं मनसा कारिताशनबाह्यपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। २।।
ॐ ह्रीं मनसानुमोदिताशनबाह्यपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ३ ।।
ॐ ह्रीं वचसा कृताशनबाह्यपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ४।।
ॐ ह्रीं वचसा कारिताशनबाह्यपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ५ ।।
ॐ ह्रीं वचसानुमोदिताशनबाह्यपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ६ ।।
ॐ ह्रीं वपुषा कृताशनबाह्यपरिग्रहविरतिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ७ ।।
ॐ ह्रीं वपुषा कारिताशनबाह्यपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ८ ।।
ॐ ह्रीं वपुषानुमोदिताशनबाह्यपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ६ ।।
इति परिग्रहविरति महाव्रतस्य चतुविंशः प्रकारः ७४
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अथ रात्रि भोजनविरतिअणुव्रत जाप्यमंत्राः
ॐ ह्रीं मनसा कृतरात्रिभोजनविरत्यणुव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः।। १।। ॐ ह्रीं मनसा कारितरात्रिभोजनविरत्यणुव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः ।। २।। ॐ हीं मनसानुमोदितरानिभोजनविरत्यणुव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ३।। ॐ ह्रीं वचसा कृतरात्रिभोजनविरत्यणुव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः। Cli ॐ हीं वचसा कारितरात्रिभोजनविरत्यणुव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः।। ५।। ॐ हीं वचसानमोदितरात्रिभोजनविरत्यणव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः।। ६।।। ॐ ह्रीं वपुषा कृतरात्रिभोजनविरत्यणुव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः।। ७।। ॐ हीं वपुषा कारितरात्रिभोजनविरत्यणुव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः ।।८।। ॐ हीं वपुषानमोदितरात्रिभोजनविरच्यणुव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः।।६।।
इति रात्रिभोजनस्य प्रकार: ७५
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अथ मनोगुप्तिमहाव्रत- जाप्य-मंत्र- प्रथमः
ॐ ह्रीं मनसा कृतमनोगुप्तिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनायनमः ।। १।। ॐ ह्रीं मनसाकारितमनोगुप्तिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः ।। २।। ॐ ह्रीं मनसानुमोदितमनोगुप्तिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ३।। ॐ ह्रीं वचसा कृतमनोगुप्तिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ४।। ॐ ह्रीं वचसा कारितमनोगुप्तिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ५ ।। ॐ ह्रीं वचसानुमोदितमनोगुप्तिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ६ ।। ॐ ह्रीं वपुषा कृतमनोगुप्तिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ७ । । ॐ ह्रीं वपुषा कारितमनोगुप्तिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ८ ।। ॐ ह्रीं वपुषानुमोदितमनोगुप्तिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ६ ।।
इति मनोगुप्तिव्रतस्य प्रथमः प्रकार ७६
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[ वचनगुप्ति महाव्रत जाप्यमंत्रः । ॐ ही मनसा कृतवाग्गुप्तिमहाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। १॥ ॐ हीं मनसा कारितवाग्गुप्तिमहाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। २।। ॐ हीं मनसानुमोदितवाग्गुप्तिमहाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ३।। ॐ हीं वचसा कृतवाग्गुप्तिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः।। ४।। ॐ हीं वचसा कारितवाग्गुप्तिमहाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।।५।। ॐ ह्रीं वचसानुमोदितवाग्गुप्तिमहाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।।६।। ॐ हीं वपुषा कृतवाग्गुप्तिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ७।। ॐ हीं वपुषा कारितवाग्गुप्तिमहाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ८|| ॐ हीं वपुषानुमोदितवाग्गुप्तिमहाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ६
इतिवचनगुप्तिव्रतस्य प्रथमः प्रकारः ७७
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कायगुप्ति महाव्रतस्य जाप्य मंत्रः
ॐ ह्रीं मनसा कृतकायगुप्तिमहाव्रतप्रोषधोद्योतनाय
नमः ।। १।।
ॐ ह्रीं मनसाकारितानिमातपोषधोद्योतनाय
नमः ।। २।।
ॐ ह्रीं मनसानुमोदितकायगुप्तिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः । । ३ । ।
ॐ ह्रीं वचसा कृतकायगुप्तिमा व्रतप्रोषधोद्योतनाय
नमः ।। ४।।
ॐ ह्रीं वचसाकारितकायगुप्तिमहाव्रतप्रोषधोद्योतनाय
नमः ।। ५ ।।
ॐ ह्रीं वचसानुमोदितकायगुप्तिमहाव्रतप्रोषधा
द्योतनाय नमः ।। ६ ।।
ॐ ह्रीं वपुषा कृतकायगुप्तिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय
नमः ।। ७ ।।
ॐ ह्रीं वपुषा कारितकायगुप्तिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ५ ।। ॐ ह्रीं वपुषानुमोदितकायगुप्तिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ६ ।।
इतिक! यगुप्तिमहाव्रतस्य प्रथमः प्रकारः ७
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¿
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अथेर्यासमितिमहाव्रतस्य जाप्य - मंत्रः
ॐ ह्रीं मनसा कृतेर्य्यासमितिमहाव्रतप्रोषधो द्योतनाय नमः || १||
ॐ ह्रीं मनसाकारितेयसमितिमहाव्रत प्रोषधो द्योतनाय नमः ।। २।।
ॐ ह्रीं मनसानुमोदितेयसमितिमहा व्रतप्रोषधो द्योतनाय नमः ।। ३।।
ॐ ह्रीं वचसा कृतेयसमितिमहा व्रतप्रोषधो द्योतनाय नमः ।। ४।।
ॐ ह्रीं वचसा कारितेयसमितिमहा व्रतप्रोषधो द्योतनाय नमः || ५||
ॐ ह्रीं वचसानुमोदितेर्य्यासमितिमहा व्रतप्रोषधो द्योतनाय नमः ।। ६॥
ॐ ह्रीं वपुषा कृतेर्य्यासमितिमहा व्रतप्रोषधो द्योतनाय नमः ।। ७॥
ॐ ह्रीं वपुषा कारितेर्थ्यासमितिमहा व्रतप्रोषधो द्योतनाय नमः ।। ८||
ॐ ह्रीं वपुषानुमोदितेयसमितिमहा व्रतप्रोषधो द्योतनाय नमः ।। ६।।
इतीर्थ्यासमितिव्रतस्य प्रथम प्रकार:
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:
......
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(अथ भाषासमितिव्रतस्य जाप्य-मंत्राः)
ॐ हीं मनसाकृतभाविसत्यभाषासमितिमहाव्रतप्रोषधो द्योतनाय नमः।। १।। ॐ ह्रीं मनसाकारितभाविसत्यभाषासमितिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः।। २।। ॐ हीं मनसानुमोदितभाविसत्यभाषामितिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ३।। ॐ हीं वचसा कृतभाचिसत्यभाषासमितिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः।। ४ ।। ॐ हीं वचसा कारितभाविसत्यभाषासमितिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः।। ५।। ॐ ह्रीं वचसानुमोदितभाविसत्यभाषासमितिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः।। ६।। ॐ हीं वपुषाकृतभाविसत्यभाषासमितिमहाव्रतप्रोषधो द्योतनाय नमः ।। ७।! ॐ हीं वपुषा कारितभाविसत्यभाषासमितिमहाव्रत प्रोषधो द्योतनाय नमः || ८|| ॐ हीं वपुषानुमोदितभाविसत्यभाषासमितिमहायत प्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ६।।
इति भाषासम्मिलिमहातरम् प्रथम प्रकार --
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ॐ हीं मनसा कृतोपमासत्यभाषा समितिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः ।। १।। ॐ हीं मनसा कारितोपमासत्यभाषा समितिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः।। २।। ॐ ह्रीं मनसानुमोदितोपमासत्यभाषासमितिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः!३!! ॐ हीं वचसा कृतोपमासत्यभाषासमितिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः।। ४।। ॐ हीं वचसा कारितोपमासत्यभाषासमितिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः।। ५।। ॐ हीं वचसानुमोदितोपमासत्यभाषासमितिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः।। ६।। ॐ ह्रीं वपुषा कृतोपमासत्यभाषसमितिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ७।। ॐ ह्रीं वपुषा कारितोपमासत्यभाषासमितिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः।। ८।। ॐ हीं वपुषानुमोदितोपमासत्यभाषासमितिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ६।।
इति भाषासमितिमहाव्रतस्य द्वितीय प्रकार: .."
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ॐ हीं मनसा कृतव्यवहारसत्यभाषासमितिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः ।। १।। ॐ हीं मनसाकारितव्यवहारसत्यभाषासमितिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः ।। २।। ॐ हीं मनसानुमोदितव्यवहारसत्यभाषासमितिमहा व्रतप्रोषधोधोमाय नमः ।। ॐ हीं वचसा कृतव्यवहारसत्यभाषासमितिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ४।। ॐ ह्रीं वचसा कारितव्यवहारसत्यभाषसमितिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः।। ५।। ॐ ह्रीं वचसानुमोदितव्यवहारसत्यभाषासमितिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ६।। ॐ ह्रीं वपुषा कृतव्यवहारसत्यभाषासमितिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः।। ७।। ॐ ह्रीं वपुषा कारितव्यवहारसत्यभाषा समितिमहाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ८।। ॐ हीं वपुषानुमोदितव्यवहारसत्यभाषा समिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ६ ।। इति भाषासमितिमहाव्रतस्य तृती. प्रकारः ८.२
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ॐ ह्रीं मनसा कृतप्रतीतसत्यभाषासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः || १ ||
ॐ ह्रीं मनसा कारितप्रतीतसत्यभाषासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। २।। ॐ ह्रीं मनसानुमोदितप्रतीतसत्यभाषासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ३।।
ॐ ह्रीं वचसा कृतप्रतीतसत्यभाषासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ४।। ॐ ह्रीं वचसा कारितप्रतीतसत्यभाषा समिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ५ ।। ॐ ह्रीं वचसानुमोदितप्रतीतसत्यभाषासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ६ ।। ॐ ह्रीं वपुषा कृतप्रतीतसत्यभाषासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ७ ।।
ॐ ह्रीं वपुषा कारितप्रतीतसत्यभाषासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ८ ।।
ॐ ह्रीं वपुषानुमोदितप्रतीत सत्यभाषासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ६ ।।
इति भाषासमितिमहाव्रतस्य चतुर्थः प्रकारः ८३
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ॐ ह्रीं मनसा कृतसंभावनासत्यभाषासमितिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः ।। १।।
ॐ ह्रीं मनसा कारितसंभावनासत्यभाषासमितिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः ।। २।।
ॐ ह्रीं मनसानुमोदितसंभावनासत्यभाषासमितिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ३।।
ॐ ह्रीं वचसा कृतसंभावनासत्यभाषा समितिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः॥४॥
ॐ ह्रीं वचसा कारितसंभावनासत्यभाषासमितिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ५ ।।
ॐ ह्रीं वचसानुमोदितसंभावनासत्यभाषासमितिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ६ ।।
ॐ ह्रीं वपुषा कृतसंभावनासत्यभाषासमितिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ७ ।।
ॐ ह्रीं वपुषा कारितसभावनासत्यभाषासमितिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ८ ।।
ॐ ह्रीं वपुषानुमोदितसंभावनासत्यभाषासमितिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ६।।
इति भाषासमितिमहाव्रतस्य पंचमः प्रकारः ८४
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ॐ हीं मनसा कृतजनपदसत्यभाषासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। १।। ॐ हीं मनसा कारितजनपदसत्यभाषासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। २।। ॐ हीं मनसानुमोदितजनपदसत्यभाषासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ३।। ॐ ह्रीं वचसा कृत्तजनपदसत्यभाषासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ४।। ॐ हीं वचसा कारितजनपदसत्यभाषासमितिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः।। ५।। ॐ ह्रीं वचसानुमोदितजनपदसत्यभाषासमितिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ६।। ॐ हीं वपुषा कृतजनपदसत्यभाषासमितिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः।। ७।। ॐ हीं वपुषा कारितजनपदसत्यभाषासमित्तिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ८|| ॐ हीं वपुषानुमोदितजनपदसत्यभाषासमितिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः ।।६।। इति भाषासमितिमहाव्रतस्य षष्ठः प्रकारः ८५
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ॐ ह्रीं मनसा कृतसंवृतिसत्यभाषा समितिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः ।। १ ।।
ॐ ह्रीं मनसा कारितसंवृतिसत्यभाषा समितिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः ।। २।।
ॐ ह्रीं मनसानुमोदितसंवृतिसत्यभाषासमितिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ३ ।।
ॐ ह्रीं वचसा कृतसंवृतिसत्यभाषासमितिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ४।।
ॐ ह्रीं वचसा कारितसंवृतिसत्यभाषासमितिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ५।।
ॐ ह्रीं वचसानुमोदितसंवृति सत्यभाषा समितिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ६ ।।
ॐ ह्रीं वपुषा कृतसंवृतिसत्यभाषासमितिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ७।।
ॐ ह्रीं वपुषा कारितसंवृतिसत्यभाषासमितिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ८ ।।
ॐ ह्रीं वपुषानुमोदितसंवृतिसत्यभावासमितिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ६ ।।
इति भाषासमितिमहाव्रतस्य सप्तमः प्रकारः ८६
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ॐ ह्रीं मनसा कृतनामसत्यभाषा समितिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः ।। १।।
ॐ ह्रीं मनसा कारितनामसत्यभाषासमितिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः ।। २।।
ॐ ह्रीं मनसानुमोदितनामसत्यभाषासमितिमहाव्रत गोषवोद्योतनाय नमः। ३०
ॐ ह्रीं वचसा कृतनामसत्यभाषासमितिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः । । ४ । ।
ॐ ह्रीं वचसा कारितनामसत्यभाषासमितिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ५ ।।
ॐ ह्रीं वचसानुमोदितनामसत्यभाषासमितिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः || ६ ||
ॐ ह्रीं वपुषा कृतनामसत्यभाषासमितिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ७ । ।
ॐ ह्रीं वपुषा कारितनामसत्यभाषासमितिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ८ ।।
ॐ ह्रीं वपुषानुभोदितनाम सत्यभाषा समितिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ६ ।।
इति भाषासमितिव्रतस्याष्टमः प्रकारः ८७
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ॐ ह्रीं मनसा कृतरथापनासत्यभाषासमितिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः ।। १।।
ॐ ह्रीं मनसाकारितस्थापनासत्यभाषासमितिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः ।। २।। ॐ ह्रीं मनसानुमोदितस्थापनासत्यभाषासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ३ ।।
ॐ ही वचसा कृतस्थापनासत्यभाषासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ४ । ]
ॐ ह्रीं वचसा कारितस्थापनासत्यभाषासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ५ ।। ॐ ह्रीं वचसानुमोदितस्थापनासत्यभाषासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ६ ।। ॐ ह्रीं वपुषा कृतस्थापनासत्यभाषासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ७।। ॐ ह्रीं वपुषा कारितस्थापनासत्यभाषासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ८ ।।
ॐ ह्रीं वपुषानुमोदितस्थापनासत्यभाषासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ६ ।।
इति भाषा समितिमहाव्रतस्य नवमः प्रकारः ८
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ॐ हीं मनसा कृतरूपसत्यभाषा समितिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः ।। १।। ॐ ह्रीं मनसा कारितरूपसत्यभाषा समितिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः ।। २।। ॐ हीं मनसानुमोदितरूपसत्यभाषासमितिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः।। ३।। ॐ हीं वचसा कृतरूपसत्यभाषासमितिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः।। ४।। ॐ हीं वचसा कारितरूपसत्यभाषासमितिमहाव्रत प्रोमोशेतनार नया ॐ हीं यचसानुमोदितरूपसत्यभाषासमितिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ६।। ॐ हीं वपुषा कृतरूपसत्यभाषासमितिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः।। ७|| ॐ ह्रीं वपुषा कारितरूपसत्यभाषासमितिमहानत प्रोषधोद्योतनाय नमः।। ८।। ॐ हीं वपुषानुमोदितरूपसत्यभाषासमितिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः।। ६|| इति भाषासमितिमहाव्रतस्य दशमः प्रकारः ८६
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( एषणासमितिमहाव्रतस्य जाप्यमंत्रमिदं ) ॐ ह्रीं मनसा कृतधालीदोषरहितैषणासमितिमहावत प्रोषधोद्योतनाय नमः।। १।।। ॐ ह्रीं मनसाकारितधात्रीदोषरहितैषणासमिति महाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः।। २।। ॐ ह्रीं मनसानुमोदितधात्रीदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ३।। ॐ ह्रीं वचसा कृतधात्रीदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ४।। ॐ ह्रीं वचसा कारितधात्रीदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ५।। ॐ हीं वचसानुमोदितधात्रीदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ६।। ॐ हीं वपुषा कृतधात्रीदोषरहितषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ७ ।। ॐ ह्रीं वपुषा कारितधात्रीदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ८।। ॐ हीं वपुषानुमोदितधात्रीदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ६।!।
इति धात्रीदोषरहितैषणासमितिनतम ६०
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ॐ ह्रीं मनसा कृतदूतदोषरहितैषणासमितिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः।। १।। ॐ हीं मनसाकारितदूतदोषरहितैषणासमितिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः ।। २।। ॐ ह्रीं मनसानुमोदितदूतदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ३।। ॐ ह्रीं वचसा कृतदूतदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ४।। ॐ हीं वचसा कारितदूतदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ५।। ॐ हीं वचसानुमोदितदूतदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ६।। ॐ ह्रीं वपुषा कृतदूतदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ७।। ॐ हीं वपुषा कारितदूतदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ८ ।। ॐ हीं वपुषानुमोदितदूतदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ६|!
इति दूतदोषरहितैषणासमितिव्रतम् ६१
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ॐ ह्रीं मनसा कृतनिमित्तदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। १।।
ॐ ह्रीं मनसा कारितनिमित्तदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः || २|| ॐ ह्रीं मनसानुमोदितनिमित्तदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ३ ।।
ॐ ह्रीं वचसा कृतनिमित्तदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः । । ४ । ।
ॐ ह्रीं वचसा कारितनिमित्तदोराहेषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ५।।
ॐ ह्रीं वचसानुमोदितनिमित्तदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ६ ।।
ॐ ह्रीं वपुषा कृतनिमित्तदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ७ ।।
ॐ ह्रीं वपुषा कारितनिमित्तदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ८ ।।
ॐ ह्रीं वपुषानुमोदितनिमित्तदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ६ ।।
इति निभित्तदोषरहितैषणासमितिव्रतम् ६२
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ॐ ह्रीं मनसा कृताऽजीवनदोषरहितैषणा समिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। १ ।।
ॐ ह्रीं मनसा कारिताऽजीवनदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। २।। ॐ ह्रीं मनसानुमोदिताऽजीवनदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ३ ।।
ॐ ह्रीं वचसा कृताऽजीवनदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ४।।
ॐ ह्रीं वचसा कारिताऽजीवनदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ५ ।।
ॐ ह्रीं वचसानुमोदिताऽजीवनदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः || ६ ||
ॐ ह्रीं वपुषा कृताऽजीवनदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः । । ७ । ।
ॐ ह्रीं वपुषा कारिताऽजीवनदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ८ ।।
ॐ ह्रीं वपुषानुमोदिताऽजीवनदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ६ ।।
इत्याजीवनदोषरहितैषणासमितिमहाव्रतम् ६३
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ॐ हीं मनसा कृतव्यपनिकदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। || ॐ हीं मनसा कारितव्यपनिकदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। २।। ॐ ही मनसानुमोदितव्यपनिकदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ३।। ॐ हीं वचसा कृतव्यपनिकदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ४।। ॐ हीं वचसा कारितव्यपनिकदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ५।। ॐ हीं वचसानुमोदितव्यपनिकदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ६।। ॐ ह्रीं वपुषा कृतव्यपनिकदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ७।। ॐ हीं वपुषा कारितव्यपनिकदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।।८।। ॐ हीं वपुषानुमोदितव्यपनिकदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ६ ।। इतिव्यपनिकदोषरहितैषणासमितिमहानत्तम ६४
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ॐ हीं मन्स वृत्तचिकित्सा दोवरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। १।। ॐ हीं मनसा कारितचिकित्सादोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। २।। ॐ हीं मनसानुमोदितचिकित्सादोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ३।। ॐ ह्रीं वचसा कृतचिकित्सादोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ४।। ॐ हीं वचसा कारितचिकित्सादोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ५।। ॐ ह्रीं वचसानुमोदितचिकित्सादोषरहितैषणासमिनि महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ६।। ॐ हीं वपुषा कृतचिकित्सादोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतमाय नमः।। ७।। ॐ ह्रीं वपुषा कारितचिकित्सादोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ८।। ॐ हीं वपुषानुमोदितचिकित्सादोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ६।।
इति चिकित्सादोषरहितैषणासमितिव्रतम ६५
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ॐ हीं मनसा कृतक्रोधदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। १।। ॐ हीं मनसा कारितक्रोधदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। २।। ॐ ह्रीं मनसानुमोदितक्रोधदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ३।। ॐ हीं वचसा कृतक्रोधदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ४।। ॐ ह्रीं वचसा कारितक्रोधदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ५।। ॐ हीं वचसानुमोदितक्रोधोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ६।। __ ॐ ह्रीं वपुषा कृतक्रोधदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ७।1 ॐ हीं वपुषा कारितक्रोधदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ८ ।। ॐ हीं वपुषानुमोदितक्रोधदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ६ ।।
इति क्रोधदोषरहितैषप्पासमितिव्रतम ६६
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ॐ ह्रीं मनसा कतमानदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। १ ।।
ॐ ह्रीं मनसा कारितमानदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। २।। ॐ ह्रीं मनसानुमोदितमानदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ३ ।।
ॐ ह्रीं वचसा कृतमानदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः || ४ ||
ॐ ह्रीं वचसा कारितमानदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ५ ।।
ॐ ह्रीं वचसानुमोदितमानदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ६ ।।
ॐ ह्रीं वपुषा कृतमानदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ७ ।।
ॐ ह्रीं वपुषा कारितमानदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ८ । ।
ॐ ह्रीं वपुषानुमोदितमानदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ६ ।।
इति मानदोषरहितैषणासमितिव्रत ६७
120
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________________
ॐ हीं मनसा कृतमायादोषरहितैषणासमिति महातप्रोषधोटोलना नमः ।। !! ॐ हीं मनसा कारितमायादोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। २।। ॐ ह्रीं मनसानुमोदितमायादोषरहितषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ३।। ॐ ह्रीं वचसा कृतमायादोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ४।। ॐ ह्रीं वचसा कारितमायादोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ५।। ॐ ह्रीं वचसानु मोदितमायादोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ६।। ॐ हीं वपुषा कृतमायादोषरहितषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ७ ।। ॐ हीं वपुषा कारितमायादोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ८।। ॐ हीं वपुषानुमोदितमायादोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ६।।
इति मायादोषरहितैषणासमितिमावत र.
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________________
ॐ हीं मनसा कृतलोभदोषरहितैषणासमिति महातप्रोषधोद्योतनाय नमः।। १।। ॐ हीं मनसा कारितलोभदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। २।। ॐ ह्रीं मनसानुमोदितलोभदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ३।। ॐ हीं वचसा कृतलोभदोषरहितैषणासमिति महाव्रतोषधोद्योतनाय नमः।। ४।। ॐ हीं वचसा कारितलोभदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ५।। ॐ ह्रीं वचसानुमोदितलोभदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ६।। ॐ हीं वपुषा कृतलोभदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ७।। ॐ हीं वपुषा कारितलोभदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।।८।। ॐ हीं वपुषानुमोदितलोभदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।।६।।
इति लोभदोषरहितैषणासमितिमहाव्रतम ६६
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ॐ ह्रीं मनसा कृतपूर्वस्तुतिदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। १।। ॐ ह्रीं मनसा कारितपूर्वस्तुतिदोषरहितैषणासमिति महाव्रतोषधोद्योतनाय नमः ।। २।। ॐ हीं मनसानुमोदितपूर्वस्तुतिदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोधोलनाय नमः::३ ॐ हीं वचसा कृतपूर्वस्तुतिदोषरहितैषणासमिति महादतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ४।। ॐ हीं वचसा कारितपूर्वस्तुतिदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ५।। ॐ हीं वचसानुमोदितपूर्वस्तुतिदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ६।। ॐ हीं वपुषा कृतपूर्वस्तुतिदोपरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ७।। ॐ हीं वपुषा कारितपूर्वस्तुतिदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।।८।। ॐ हीं वपुषानुमोदितपूर्वस्तुतिदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ६।। इति पूर्वरस्तुतिदोघहितैषणा पमितिव्रताम १००
90
123
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________________
ॐ ह्रीं मनसा कृतपश्चात्स्तुतिदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। १ ।।
ॐ ह्रीं मनसाकारितपश्चात्स्तुतिदोषरहितैषणा समितिमहाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। २।। ॐ ह्रींमनसानुमोदितपश्चात्स्तुतिदोषरहितैषणा समितिमहाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ३।। ॐ ह्रीं वचसा कृतपश्चात्स्तुतिदोषरहितैषणा समितिमहाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ४।। ॐ ह्रीं वचसा कारितपश्चात्स्तुतिदोषरहितैषणा समितिमहाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ५ ।। ॐ ह्रीं वचसानुमोदितपश्चात्स्तुतिदोषरहितैषणा समितिमहाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ६ ।। ॐ ह्रीं वपुषा कृतपश्चात्स्तुतिदोषरहितैषणा समितिमहाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ७ ।। ॐ ह्रीं वपुषा कारितंपश्चात्स्तुतिदोषरहितैषणा समितिमहाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ८|| ॐ ह्रीं वपुषानुमोदितपश्चात्स्तुतिदोषरहितैषणा समितिमहाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ६।।
इति पश्चात्स्तुतिदोषरहितैषणासमितिव्रतम १०१
124
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2 ॐ हीं मनसा कृतविद्यादोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। १।। ॐ हीं मनसा कारितविद्यादोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।।२।। ॐ हीं मनसानुमोदितविद्यादोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ३।। ॐ हीं वचसा कृतविद्यादोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ४।। ॐ हीं वचसा कारितविद्यादोषरहितेषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ५।। ॐ हीं वचसानुमोदितविद्यादोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।।६।। ॐ हीं वपुषा कृतविद्यादोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ७।। ॐ हीं वपुषा कारितविद्यादोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ८ ।। ॐ हीं वपुषानुमोदितविद्यादोषरहितैषणासमिति महानतप्रोषधौद्योतनाय नमः।। ६।।
इति विद्यादोषरहितैषणासमितिमहाबलम १२
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ॐ ह्रीं मनसा कृतमंत्रदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। १।।
ॐ ह्रीं मनसा कारितमंत्रदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः || २ ||
ॐ ह्रीं मनसानुमोदितमंत्रदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ३।।
ॐ ह्रीं वचसा कृतमंत्रदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ४ ।।
ॐ ह्रीं वचसा कारितमंत्रदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ५ ।। ॐ ह्रीं वचसानुमोदितमंत्रदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ६ ।।
ॐ ह्रीं वपुषा कृतमंत्रदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ७ ।।
ॐ ह्रीं वपुषा कारितमंत्रदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः || ८ ||
ॐ ह्रीं वपुषानुमोदितमंत्रदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ६ ।।
इति मंत्रदोषरहितैषणा समितिमहाव्रतं १०३
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12:0
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ॐ ह्रीं मनसा कृतचित्रयोगदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः || १||
ॐ ह्रीं मनसा कारितचित्रयोगदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। २।। ॐ ह्रीं मनसानुमोदितचित्रयोगदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ३ ।।
ॐ ह्रीं वचसा कृतचित्रयोगदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ४।।
ॐ ह्रीं वचसा कारितचित्रयोगदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ५ ।।
ॐ ह्रीं वचसानुमोदितचित्रयोगदोषरहितेषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ६ ।।
ॐ ह्रीं वपुषा कृतचित्रयोगदोष रहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ७ ।।
ॐ ह्रीं वपुषा कारितचित्रयोगदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ८ ।।
ॐ ह्रीं वपुषानुमोदितचित्रयोगदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ६ ।।
इति चित्रयांगदोधरहितेषणासमिति १०४
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ॐ हीं मनसा कृतमूलकमदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। १।। ॐ हीं मनसा कारितमूलकर्मदोषरहितैषणासमिति । महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। २।। ॐ हीं मनसानुमोदितमूलकर्मदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ३।। ॐ हीं वचसा कृतमूलकर्मदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोशोलनाय नमः। ४: ... ॐ हीं वचसा कारितमूलकमदोषरहितैषणासमिति | महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।।५।। ॐ हीं वचसानुमोदितमूलकर्मदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।।६।। ॐ हीं वपुषा कृतमूलकर्मदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ७।। ॐ हीं दनुषा कारितमूलकर्मदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ८ ।। ॐ हीं वपुषानुमोदितमूलकर्मदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ६।। इति मूलकर्मदोषरहितैषणासमितिमहाव्रतं १०५
HIN
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ॐ हीं मनसा कृतशंकितदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। १।। ॐ ह्रीं मनसा कारितशंकितदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। २।। ॐ ह्रीं मनसानुमोदितशकितदोपराहतैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ३।1 ॐ ह्रीं वचसा कृतशंकितदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ४।। ॐ हीं वचसा कारितशंकितदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ५।। ॐ हीं वचसानुमोदितशंकित्तदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ६।। ॐ ह्रीं वपुषा कृतशकित्तदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ७।। ॐ ह्रीं वपुषा कारितशंकितदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ८।। ॐ हीं वपुषानुमोदितशंकितदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ६।।
इति शंकितदोषरहितैषणासमितिमहाव्रतं १०६
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ॐ ह्रीं मनसा कृतम्रक्षितदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। १।। ॐ हीं नासा कासितक्षितदोषाहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। २।। ॐ हीं मनसानुमोदितम्रक्षितदोषरहितैषणासमिति महाबतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ३।। ॐ ह्रीं वचसा कृतम्रक्षितदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ४।। ॐ ह्रीं वचसा कारितप्रक्षितदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ५।। ॐ ह्रीं वचसानुमोदितम्रक्षितदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ६।। ॐ ह्रीं वपुषा कृतम्रक्षितदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ७।। ॐ हीं वपुषा कारितम्रक्षितदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ८|| ॐ हीं वपुषानुमोदितम्रक्षितदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ६।। इति म्रक्षितदोषरहितैषणासमितिमहाव्रतम् १०७
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ॐ हीं मनसा कृतनिक्षिप्तदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। १।। ॐ ह्रीं मनसा कारितनिक्षिप्तदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ।। ॐ हीं मनसानुमोदितनिक्षिप्तदोषरहितैषणासमिति महाव्रतोषधोद्योतनाय नमः ।। ३।। ॐ ह्रीं वचसा कृतनिक्षिप्तदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ४।। ॐ हीं वचसा कारितनिक्षिप्तदोषरहिलेषणासमिति महानतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ५।। ॐ ह्रीं वचसानुमोदितनिक्षिप्तदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ६।। ॐ हीं वपुषा कृतनिक्षिप्तदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ७।। ॐ हीं वपुषा कारितनिक्षिप्तदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ८।। ॐ हीं वपुषानुमोदितनिक्षिप्तदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ६||
इति निक्षिप्तदोषरहितैषणासमितिमहाव्रतम् १०..
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ॐ ह्रीं मनसा कृतपिहितदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः || १ ||
ॐ ह्रीं मनसा कारितपिहितदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। २।। ॐ ह्रीं मनसानुमोदितपिहितदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ३ ।।
ॐ ह्रीं वचसा कृतपिहितदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ४ ।।
ॐ ह्रीं वचसा कारितपिहितदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ५ ।।
ॐ ह्रीं वचसानुमोदितपिहितदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ६ ।।
ॐ ह्रीं वपुषा कृतपिहितदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ७ ।।
ॐ ह्रीं वपुषा कारितपिहितदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ८ ।।
ॐ ह्रीं वपुषानुमोदितपिहितदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ६।।
इति पिहितदोषरहितैषणासमितिमहाव्रतम् १०६
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ॐ हीं मनसा कृतव्यवहरणदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। १।। ॐ हीं भनसा कारितव्यवहरणदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। २।। ॐ हीं मनसानुमोदितव्यवहरणदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ३।। ॐ ह्रीं वचसा कृतव्यवहरणदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ४।। ॐ हीं वचसा कारितव्यवहरणदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ५।। ॐ हीं वचसानुमोदितव्यपहरणदोषरहितपणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ६ ।। ॐ हीं वपुषा कृतव्यवहरणदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ७।। ॐ हीं वपुषा कारितव्यवहरणदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।।८।। ॐ ह्रीं वपुषानुमोदितव्यवहरणदोघरहितेषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः 1। ६।। इति व्यवहारणदोषहितैषणासांमतिव्रतम ११०
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ॐ ह्रीं मनसा कृतदायकदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। १।। ॐ हीं मनसा कारितदायकदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। २।। ॐ हीं मनसा दोहितला झोपर होगगासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ३।। ॐ हीं वचसा कृतदायकदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ४।। ॐ हीं वचसा कारितदायकदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ५।। ॐ हीं वचसानु मोदितदायकदोषरहितैषणासमिति महाव्रतम्रोषधोद्योतनाय नमः ।।६।। ॐ हीं वपुषा कृतदायकदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ७।। ॐ ह्रीं वपुषा कारितदायकदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ८।। ॐ हीं वपुषानु मोदितदायकदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ६||
इति दायकदोषरहितैषणासमितिमहानत ११५
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ॐ हीं मनसा कृतोन्मिश्रदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। १।। ॐ हीं मनसा कारितोन्मिश्रदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। २।। ॐ हीं मनसानुमोदितोन्मिश्रदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ३|| ॐ हीं वचसा कृतोन्मिश्रदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ४।। ॐ हीं वचसा कारितोन्मिश्रदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ५।। ॐ हीं वचसानुमोदितोन्मिश्रदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।।६।। ॐ हीं वपुषा कृतोन्मिश्रदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ७।। ॐ हीं वपुषा कारितोन्मिश्रदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ८।। ॐ ह्रीं वपुषानुमोदितोन्मिश्रदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।।६।। इत्युन्मिश्रदोषरहितैषणासमितिमहाव्रतम ११२
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ॐ हीं मनसा कृतापरिणतदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। १।। ॐ हीं भनसा कारितापरिणतदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषशो होकनाय नमः। ॐ ह्रीं मनसानमोदितापरिणतदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ३।। ॐ ह्रीं वचसा कृतापरिणतदोषरहितैषणासमिति । महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ४।। ॐ हीं वचसा कारितापरिणतदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ५।। ॐ हीं वचसानुमोदितापरिणतदोषरहितैषणासमिति | महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ६।। ॐ ह्रीं वपुषा कृतापरिणतदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ७।। ॐ ह्रीं वपुषा कारितापरिणतदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ८।। ॐ हीं वपुषानुमोदितापरिणतदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।।६।।
इत्यूपरिणतदोषरहितैषणासमितिव्रतम ११३
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ॐ ह्रीं मनसा कृतलिप्तदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। १।।
ॐ ह्रीं मनसा कारितलिप्तदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योत गय नमः ।। २।। ॐ ह्रीं मनसानुमोदितलिप्तदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ३ ।।
ॐ ह्रीं वचसा कृतलिप्तदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ४।।
ॐ ह्रीं वचसा कारितलिप्तदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ५।। ॐ ह्रीं वचसानुमोदितलिप्तदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ६ ।।
ॐ ह्रीं वपुषा कृतलिप्तदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ७ ।।
ॐ हीं वपुषा कारितलिप्तदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ८ । ।
ॐ ह्रीं वपुषानुमोदितलिप्तदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ६ ।।
इति लिप्तदोषरहितैषणासमितिव्रतम ११४
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ॐ हीं मनसा कृतछोटितदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। १।। ॐ हीं मनसा कारितछोटितदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनायः नमः ।। २।। ॐ हीं मनमानमोनितोटिसदोपहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनायः नमः ।। ३।। ॐ हीं वचसा कृतछोटितदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनायः नमः।। ४।। ॐ हीं वचसा कारितछोटितदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनायः नमः।। ५।। ॐ हीं वचसानुमोदितछोटितदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनायः नमः ।।६।। ॐ हीं वपुषा कृतछोटितदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनायः नमः।।७।। ॐ हीं वपुषा कारितछोटितदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनायः नमः।। || ॐ हीं वपुषानुमोदितछोटितदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनायः नमः।।६।।
इति छोटितदोषरहितैषणासमिति महाव्रतम ११५
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ॐ ह्रीं मनसा कृतौद्देशिकदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। १ ।।
ॐ ह्रीं मनसा कारितौद्देशिकदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनायः नमः ।। २।।
ॐ ह्रीं मनसानुमोदितौद्देशिकदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनायः नमः ।। ३।।
ॐ ह्रीं वचसा कृतोद्देशिकदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनायः नमः ।। ४ ।।
ॐ ह्रीं वचसा कारितौद्देशिकदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनायः नमः ।। ५ ।।
ॐ ह्रीं वचसानुमोदितौद्देशिकदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनायः नमः ।। ६ ।।
ॐ ह्रीं वपुषा कृतौद्देशिकदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनायः नमः ।। ७ ।।
ॐ ह्रीं वपुषा कारितौद्देशिकदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनायः नमः ।। ८ ।।
ॐ ह्रीं वपुषानुमोदितोद्देशिकदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनायः नमः ।। ६ ।।
इत्यौद्देशिकदोषरहितैषणासमिति महाव्रतम् ११६
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________________
ॐ हीं मनसा कृतसाधिकदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। १।। ॐ हीं मनसा कारितसाधिकदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। २।। ॐ हीं मनसानुमोदितसाधिकदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ३11 ॐ हीं. वचसा कृतसाधिकदोषरहितैषणासमिति महानतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ४।। ॐ हीं वचसा कारितसाधिकदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ५।। ॐ हीं धधमांनुमोदित साकिलो गहिलेषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।! ६।। ॐ ह्रीं वपुषा कृतसाधिकदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ७।। ॐ हीं वपुषा कारितसाधिकदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः || || ॐ हीं वपुषानुमोदितसाधिकोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ६ ।।
इति साधिकदोषरहितैषणासमितिव्रतम ११७
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________________
ॐ ह्रीं मनरा कृतपूतिदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। १।। ॐ हीं मनसा कारितपूतिदोषरहितैषणासमिति महानतपोषधोयोदनाय नमः ।। २। . ॐ हीं मनसानुमोदितपूतिदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ३।। ॐ हीं वचसा कृतपूतिदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ४।। ॐ हीं वचसा कारितपूतिदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ५।। ॐ हीं वचसानुमोदितपूतिदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ६।। ॐ हीं वपुषा कृतपूतिदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ७।। ॐ हीं वपुषा कारितपूतिदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।।८।। ॐ हीं वपुषानुमोदितपूतिदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ६।।
इति पूतिदोषरहितैषणासमितिव्रतम ११८
_
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ॐ हीं मनसाकृतप्राभृतिकदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। १।।
ही जसा कास्तिभूतिकालोपरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनायः नमः।। २।। ॐ हीं मनसानुमोदितप्राभृतिकदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनायः नमः ।। ३।। ॐ ह्रीं वचसा कृतप्राभृतिकदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनायः नमः।। ४।। ॐ हीं वचसा कारितप्राभृतिकदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनायः नमः ।।५।। ॐ हीं वचसानुमोदितप्राभृतिकोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनायः नमः ।। ६।। ॐ हीं वपुषा कृतप्राभृतिकदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनायः नमः ।।७।। ॐ हीं वपुषा कारितप्राभृतिकदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनायः नमः।। ८|| ॐ हीं वपुषानुमोदितप्राभृतिकदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनायः नमः।।६।।
इति प्राभृतिकदोषरहितैषणासमितिव्रतम् ११६
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ॐ ह्रीं मनसा कृतप्राभृतिकदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। १ ।।
ॐ ह्रीं मनसा कारितमिश्रदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनायः नमः ।। २।।
3.
सानुमोदितमिश्रदोषरहितैषणासमिति
महाव्रोषधोद्योतनायः नमः ।। ३।।
ॐ ह्रीं वचसा कृतमिश्रदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनायः नमः ।। ४ । ।
ॐ ह्रीं वचसा कारितमिश्रदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनायः नमः ।। ५ ।।
ॐ ह्रीं वचसानुमोदितमिश्रदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनायः नमः ।। ६ ।।
ॐ ह्रीं वपुषा कृतमिश्रदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनायः नमः ।। ७ ।।
ॐ ह्रीं वपुषा कारितमिश्रदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनायः नमः ।। ८ ।।
ॐ ह्रीं वपुषानुमोदितमिश्रदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनायः नमः ।। ६ ।।
इति मिश्रदोषरहितैषणासमितिव्रतम् १२०
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________________
ॐ ह्रीं मनसा कृतबलिदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। १।। ॐ हीं मनसा कारितबलिदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। २।। ॐ हीं मनसानुमोदितबलिदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ३।। ॐ ह्रीं वचसा कृतबलिदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ४।। ॐ हीं वचसा कारितबलिदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ५।। ॐ हीं वचसानुमादितबलिदोषरहितषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।।६।। ॐ ह्रीं वपुषा कृतवलिदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ७।। ॐ ह्रीं वपुषा कारितबलिदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ८।। ॐ हीं वपुषानुमोदितबलिदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ६||
इति बलिदोषरहितैषणासमितिमहाव्रतम् १२१
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ॐ ह्रीं मनसा कृतन्यस्तदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। १।।
ॐ ह्रीं मनसा कारितन्यस्तदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। २।। ॐ ह्रीं मनसानुमोदितन्यस्तदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ३।।
ॐ ह्रीं वचसा कृतन्यस्तदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ४ ।।
ॐ हीं वचसा कारितन्यस्तदोषरहितै पणासमिति महाव्रतप्रोषधोबोचनाय जगत। 144 ॐ ह्रीं वचसानुमोदितन्यस्तदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ६ ।।
ॐ ह्रीं वपुषा कृतन्यस्तदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ७ ।।
ॐ ह्रीं वपुषा कारितन्यस्तदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ८ ।।
ॐ ह्रीं वपुषानुमोदितन्यस्तदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ६ ।।
इति न्यस्तदोष हितैषणासमिति व्रतम १२३
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ॐ ह्रीं मनसा कृतप्रादुष्कृतदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। १।। ॐ ह्रीं मनसा कारितप्रादुष्कृतदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। २।। ॐ हीं मनसानुमोदितप्रादुष्कृतदोषरहितषणासांभात महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ३।। ॐ हीं वचसा कृतप्रादुष्कृतदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ४।। ॐ हीं वचसा कारितप्रादुष्कृतदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ५।। ॐ ह्रीं वचसानुमोदितप्रादुष्कृतदोषरहितैषणासमिति महानतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ६।। ॐ हीं वपुषा कृतप्रादुष्कृत्तदोषरहितैषणासमिति महानतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ७|| ॐ हीं वपुषा कारितप्रादुष्कृत्तदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ८ ।। ॐ हीं वपुषानुमोदितप्रादुष्कृतदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ६।। इति प्रादृष्कृतदोषरहितैषणासमितिमहाव्रतम १२३
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ॐ ह्रीं मनसा कृतक्रीतदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। १।।
ॐ ह्रीं मनसा कारितक्रीतदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। २।।
ॐ ह्रीं मनसानुमोदितक्रीतदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ३।।
ॐ हीं वचसा कृतक्रीतदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ४।।
ॐ हीं वचसा कारितक्रीतदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ५ ।।
ॐ हीं वचसानमोदितक्रीतदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ६।।। ___ॐ ह्रीं वपुषा कृतक्रीतदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ७।।
ॐ हीं वपुषा कारितक्रीतदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ८ ।।
ॐ ह्रीं वपुषानुमोदितक्रीतदोषरहितेषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ६ ।।
इति क्रीतदोषरहितेषणासमितिमहाव्रतम १२४
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ॐ ह्रीं मनसा कृतप्रामित्यदोषरहितैषणासमिति महावतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। १। ॐ हीं मनसा कारितप्रामित्यदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। २।। ॐ हीं मनसानुमोदितप्रामित्यदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ३।। ॐ हीं वचसा कृतप्रामित्यदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ४।। ॐ हीं वचसा कारितप्रामित्यदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ५।। ॐ ह्रीं वचसानुमोदितप्रामित्यदोषरहितेषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ६।। ॐ हीं वपुषा कृतप्रामित्यदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ७।। ॐ हीं वपुषा कारितप्रामित्यदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ८ ।। ॐ ह्रीं वपुषानुमोदितप्रामित्यदोषरहितैषणा समितिमहाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ६ ।।
इति प्रामित्यदोषरहितैषणासमितिमहाव्रत १२५
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ॐ हीं मनसा कृतपरिवर्तितदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोधोननाय नमः ।। १!! ॐ ह्रीं मनसा कारितपरिवर्तितदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। २।। ॐ हीं मनसानुमोदितपरिवर्तितदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ३।। ॐ हीं वचसा कृतपरिवर्तितदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ४।। ॐ हीं वचसा कारितपरिवर्तितदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ५।। ॐ हीं वचसानुमोदितपरिवर्तितदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ६।। ॐ हीं वपुषा कृतपरिवर्तितदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ७।। ॐ हीं वपुषा कारितपरिवर्तितदोषरहितैषणसमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ८॥ ॐ हीं वपुषानुमोदितपरिवर्त्तितदोषरहितैषणासमिति महाबलप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ६।। इति परिवर्त्तितदोषरहितेषणासमितिव्रता १२६,
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ॐ ह्रीं मनसा कृतनिषिद्धदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः || १||
ॐ ह्रीं मनसा कारितनिषिद्धदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः || २|| ॐ ह्रीं मनसानुमोदितनिषिद्धदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ३ ।।
ॐ ह्रीं वचसा कृतनिषिद्धदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः || ४ ||
ॐ ह्रीं वचसा कारितनिषिद्धदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ५ ।।
ॐ ह्रीं वचसानुमोदितनिषिद्धदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ६ ।।
ॐ ह्रीं वपुषा कृतनिषिद्धदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ७ ।।
ॐ ह्रीं वपुषा कारितनिषिद्धदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ८ ।।
ॐ ह्रीं वपुषानुमोदितनिषिद्धदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ६ ।।
इति निषिद्धदोषरहितैषणासमितिमहाव्रत १२७
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ॐ ह्रीं मनसा कृतअभिहतदेषरहितैपात महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। १ ।।
ॐ ह्रीं मनसा कारित अभिहृतदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः || २ || ॐ ह्रीं मनसानुमोदित अभिहतदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ३ ।।
ॐ ह्रीं वचसा कृतअभिहतदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ४ ।।
ॐ ह्रीं वचसा कारित अभिहृतदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ५ ।।
ॐ ह्रीं वचसानुमोदितअभिहतदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ६ ।।
ॐ ह्रीं वपुषा कृतअभिहृतदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ७ ।।
ॐ ह्रीं वपुषा कारित अभिहृतदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ८ ।।
ॐ ह्रीं वपुषानुमोदितअभिहतदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ६ ।।
इति अभिहतदोषरहितैषणासमितिमहाव्रतम १२८
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ॐ हीं मनसा कृत्तउदिभ्नदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। १।। ॐ हीं मनसा कारितउदिभ्नदोषरहितैषणासमिति , महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ।। ॐ ह्रीं मनसानुमोदितउदिभ्नदोषरहितैषणासमिति । महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ३।। ॐ हीं वचसा कृतउदिभ्नदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ४।। ॐ हीं पयसा कारिडदिनोपरहिलेषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ५।! ॐ ह्रीं क्चसानुमोदितउदिभ्नदोषरहितैषणासमिति ।। महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ६।। ॐ हीं वपुषा कृतउदिभ्नदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ७।। ॐ ह्रीं वपुषा कारितउदिभ्नदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ८।। ॐ हीं वपुषानुमोदितउदिभ्नदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ६।। इति उदभिन्नदोषरहितैषणासमितिव्रतम १२६
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ॐ ह्रीं मनसा कृतउच्छेद्यदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः || १ ||
ॐ ह्रीं मनसा कारितउच्छेद्यदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। २।। ॐ ह्रीं मनसानुमोदितउच्छेद्यदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ३।।
ॐ ह्रीं वचसा कृतउच्छेद्यदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ४ ।।
ॐ ह्रीं वचसा कारितउच्छेद्यदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ५ ।।
ॐ ह्रीं वचसानुमोदितउच्छेद्यदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ६ ।।
ॐ ह्रीं वपुषा कृतउच्छेद्यदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ७ ।।
ॐ ह्रीं वपुषा कारितउच्छेद्यदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ८ ।।
ॐ ह्रीं वपुषानुमोदितउच्छेद्यदोषरहितेषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ६ ।।
इति उच्छेद्यदोषरहितैषणासमितिमहाव्रतम १३०
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ॐ ह्रीं मनसा कृतमालादोषरहितैषणासमितिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः ।। १।।
ॐ ह्रीं मनसा कारितमालादोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। २।।
ॐ ह्रीं मनसानुमोदितमालादोषरहितैषणासमितिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ३।।
ॐ ह्रीं वचसा कृतमालादोषरहितैषणासमितिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः । । ४ । ।
ॐ ह्रीं वचसा कारितमालादोषरहितैषणासमितिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ५ ।।
ॐ ह्रीं वचसानुमोदितमालादोषरहितैषणासमितिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ६ ।।
ॐ ह्रीं वपुषा कृतमालादोषरहितैषणासमितिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ७ ।।
ॐ ह्रीं वपुषा कारितमालादोषरहितैषणासमितिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ८ ।।
ॐ ह्रीं वपुषानुमोदितमालादोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ६ ।।
इति मालादोषरहितैषणासमितिमहाव्रतम १३१
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ॐ हीं मनसा कृतअंगारदोषरहितैषणासमितिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। १।। ॐ हीं मनसा कारितअंगारदोषरहितैषणासमितिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। २।। ॐ हीं मनसानुमोदितअंगारदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ३।। ॐ हीं वचसा कृत्तअंगारदोषरहितैषणासमितिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ४।। ॐ ह्रीं वचसा कारितअंगारदोषरहितैषणासमितिमहा व्रतम्रोषधोद्योतनाय नमः।। ५।। ॐ ह्रीं वचसानुमोदितअंगारदोषरहितैषणासमितिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ६।। ॐ हीं वपुषा कृतअंगारदोषरहितैषणासमितिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ७।। ॐ ह्रीं वपुषा कारितअंगारदोषरहितैषणासमितिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ८।। ॐ हीं
तअंगारदोषरहितैषणासमितिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ६।।
इति अंगारदोषरहितैषणासमितिमहानतम १३२
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ॐ ह्रीं मनसा कृतधूम्रदोषरहितैषणासमितिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः || १||
ॐ ह्रीं मनसा कारितधूम्रदोषरहितैषणासमितिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। २ ।।
ॐ ह्रीं मनसानुमोदितधूम्रदोषरहितैषणासमितिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः || ३||
ॐ ह्रीं वचसा कृतधूम्रदोषरहितैषणासमितिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः । । ४ । ।
ॐ ह्रीं वचसा कारितधूम्रदोषरहितैषणासमितिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ५ ।।
ॐ ह्रीं वचसानुमोदितधूम्रदोषरहितैषणासमितिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ६ ।।
ॐ ह्रीं वपुषा कृतधूम्रदोषरहितैषणासमितिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ७ ।।
ॐ ह्रीं वपुषा कारितधूम्रदोषरहितैषणासमितिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ८ ।।
ॐ ह्रीं वपुषानुमोदितधूम्रदोषरहितैषणासमितिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ६ ।।
इति धूम्रदोषरहितैषणासमितिव्रतम १३३
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ॐ ह्रीं मनसा कृतसंयोजन दो परहितैषणासमितिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। १ ।।
ॐ ह्रीं मनसाकारितसंयोजन दोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषध द्योतनाय नमः ।। २।।
ॐ ह्रीं मनसानुमोदितसंयोजनदोषरहितैपणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ३।।
ॐ ह्रीं वचसा कृतसंयोजनदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः । । ४ । ।
ॐ ह्रीं वचसा कारितसंयोजनदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाथ नमः ।। ५ ।।
ॐ ह्रींवचसानुमोदिततसंयोजनदोषरहितेषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः । । ६ । ।
ॐ ह्रीं वपुषाकृतसंयोजनदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ७।।
ॐ ह्रीं वपुषा कारितसंयोजनदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ८ ।।
ॐ ह्रीं वपुषानुमोदितसंयोजनदोषरहितैषणासमिति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ६ ।।
इति संयोजनदोषरहितैषणासमितिमहाव्रतम् १३४
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ॐ हीं मनसाकृतप्रमाणातिक्रमणदोषरहितैषणा समितिमहाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। १।। ॐ ही मनसा कारितप्रमाणातिक्रमणदोषरहितैषणा समितिमहाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। २।। ॐ ह्रीं मनसानुमोदितप्रमाणातिक्रमणदोषरहितैषणा समितिमहाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ३।। ॐ हीं वचसा कृतप्रमाणातिक्रमणदोषरहितैषणा समितिमहाव्रतप्रोपोगोनार , ॐ ह्रीं वचसा कारितप्रमाणातिक्रमणदोषरहितैषणा समितिमहाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ५।। ॐ ह्रीं वचसानुमोदितप्रमाणातिक्रमणदोषरहितैषणा समितिमहाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ६।। ॐ हीं वपुषा कृतप्रमाणातिक्रमणदोषरहितैषणा समितिमहाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ७।। ॐ हीं वपुषा कारितप्रमाणातिक्रमणदोषरहितैषणा समितिमहाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ८।। ॐ ह्रीं वपुषानुमोदितप्रमाणातिक्रमणदोषरहितैषणा समितिमहाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ।।
इति प्रमाणातिक्रमदोषरहितपणासमानतम १३५
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[अथादाननिक्षेपणसमितिमहाव्रतस्य जाप्यमन्त्राः)
ॐ हीं मनसा कृतादाननिक्षेपणसमितिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः।। १।। ॐ हीं मनसा कारितादाननिक्षेपणसमितिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः ।। २।। ॐ हीं मनसानुमोदितादाननिक्षेपणसमितिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ३।। ॐ हीं वचसा कृतादाननिक्षेपणसमितिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः।। ४।। ॐ ह्रीं वचसा कारितादाननिक्षेपणसमितिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः।। ५।। ॐ हीं वचसानुमोदितादाननिक्षेपणसमितिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः।। ६।। ॐ हीं वपुषा कृतादाननिक्षेपणसमितिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः।। ७।। ॐ हीं वपुषा कारितादाननिक्षेपणसमितिमहाव्रत प्रोषघोद्योतनाय नमः।। ८।।
तादाननिक्षेपणसमितिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः।। ६।।
इति भादाननिक्षेपण प्रथमः प्रकार: १२६
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________________ [ अथ प्रतिष्ठापनसमितिमहाव्रतस्य जाप्यमंत्रा / ॐ हीं मनसाकृतप्रतिष्ठापनासमितिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः।। 1 / ॐ ह्रीं मनसाकारितप्रतिष्ठापनासमितिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः।। 2 / / ॐ ह्रीं मनसानुमोदितप्रतिष्ठापनासमितिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः।। 3 / / ॐ हीं वचसाकृतप्रतिष्ठापनासमितिमहाव्रत प्रोषधोधोतनाय नमः / / 4 / / ॐ ह्रीं वचसाकारितप्रतिष्ठापनसमितिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः / / 5 / / ॐ ह्रीं वचसानुमोदितप्रतिष्ठापनासमितिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः / / 6 / / ॐ हीं वपुषा कृतप्रतिष्ठापनासमितिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः / / 7 / / ॐ हीं वपुषा कारितप्रतिष्ठापनासमितिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः / / 8 / / ॐ ह्रीं वपुषानुमादितप्रतिष्ठापनासमितिमहाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः || 6 || इति प्रतिष्टानसमिति महाव्रतस्य प्रकार. 137 -- समाप्त 160