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श्री जिनेन्द्राय नमः
समुच्चय पूजन चारित्र शुद्धि व्रत की पूजा
ईश ।
शीश ।। १ ।।
शुद्ध सुगुण छ्यालिस युत, समोशरण के निज आलम उद्धार हिल, नमत चरण में आत्म-शुद्धि के अर्थ हम जिनवर गूज रचायें । श्री जिनेन्द्र गुण गायें ||२||
रत्नत्रय की प्राप्ति हित, करूं त्रिविधि शुधियोग से ..आबहु तिष्ठहु हृदय में
आह्यनंन् विधि सार । नाथ त्रिलोक
आधार । । ३ । ।
- सोरठा
व्रत चरित्र महान इस बिन मुक्ति न पावहीं। चारित्र शुद्धि विधान इसीलिए अर्चन करूं ।।
ॐ ह्रीं अष्टदश दोष रहित षट् चत्वारिंशद् गुण सहित अर्हन्त् परमेष्ठिन् अत्र अवतर अवतर संवौषट् ।
ॐ हीं अष्टदश दोष रहित षट् चत्वारिंशद् गुण सहित अहंन्त् परमेष्ठिन अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ ठः ठः ।
ॐ ह्रीं अष्टदश दोष रहित षट् चत्वारिंशद् गुण सहित अर्हन्त् परमेष्ठिन् अत्र सम सन्निहितो भव भव सम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधिकरणं परिपुष्पांजलि क्षिपत् ।
(अष्टक)
गंगादिक निर्मल नीर कंचन कलश भरूं । प्रभु वेग हरो भव पीर, चरणन धार करूं ।।
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