________________
!
व्रत चारित को शुद्ध कर पहुंचे अविचल थान।
1
उन्ही के पद कमल का धरूं हृदय में ध्यान ||२ ||
पद्धडी- छन्द *
अि
जय जय जय जिनदर देव भूप, जय जय जय शिव बन्ने अनूप: जय जगत पति जय जगन्नाथ, जय मंगलमय हम नमत माथ । । ३ । । जय शिवशंकर जय विष्णु देव जय ब्रह्मा जय मंगल विशेष 1 जय कमलासन कृत कर्म ईश, इन्द्रादि चरण नित नमत शीश । १४ ॥ अष्टा दश दोष विमुक्त धीर, जय मंगल भव हरत पीर ! जय अन्तरिक्ष राजत जिनेश जय चतुर्गती कारण कलेश ||५| जय इन्द्रियजय, जय धर्म व कर्म जय जगत शिरोमणि गुण निधान, जय शत्रु मित्र जानत समान | | ६ ।। जय व्रत चारित धारी करण्ड, जय शुद्ध बिहारी आत्म पिण्ड जय सत् चित् घन आनन्द रूप, जय शुद्ध चिदानन्द सत् स्वरूप | ७३ । जय पंच महाव्रत धरन धीर, जय पच समिति पालक सुवीर । जय तीन गुप्ति के रथ सवार, यह तेरह विधि चारित्र धार ।।८।। जय चरित शुद्ध घर व्रत दयाल, इक क्षण में तोड़े कर्म जाल । ऐसे विशुद्ध वर व्रत प्रधान ऐसे व्रत को पूल सुजान ॥ १६ ॥ | यह व्रत है सब जग में प्रसिद्ध है नित्य अनादि स्वय सिद्ध । इसके दिन मुक्ति नहीं हो यह व्रत है वारण सिनः तोय ||१०| हे प्रताधीश हे व्रत दिनेश हे शिप वल्लभ का कलेश | अब तेरा शरण गहा सुअन "छोटे चाहत निज आत्म ज्ञान | | ११ ||
**
.
7