________________
बारह सौ चौतिससार, प्रोषध सुख कारी।
मैं पूजों विविध प्रकार. आतम हितकारी।। ॐ हीं अष्टदश दोष रहित षट् चत्वारिंशद गुण सहिताय बारह सौ चौंतीस शुद्ध चारित्र व्रत मंडिताय अर्हन्त परमेष्ठिने फलम् : निर्माणामिति स्वाहा: :: :: : :: :.:....:
जल फल वसु कंचन थाल. आठी द्रव्य धरूं । 'छोटे" नित नावत भाल तुम पद अध धरूं ।। बारह सौ चौतिससार, प्रोषध सुख कारी।
मैं पूजों विविध प्रकार, आतम हितकारी ।। ॐ हीं अष्टदश दोष रहित षट् चत्वारिंशद् गुण सहिताय बारह सौ चौंतीस शुद्ध चारित्र व्रत मंडिताय अर्हन्त परमेष्ठिने अर्घ निर्वपामिति स्वाहा।
-चाल योगीरासामंगल अर्ध बनाय गाय गुण, कंचन थाली भरिये। अर्ध देत जिनराज-चरण में, महा हर्ष उर धरिये ।। चारित शुद्धि व्रत के हित मैं, जिन पद पूज रचाऊं।
आतम हित के हेतु जिनेश्वर, पद में शीश नवाऊं।। ॐ ह्रीं अष्टादश दोष रहिताय षट्चत्वारिंशद् गुण सहिताय बारह सौ चौतीस शुद्ध चारित्र गुण मंडिताय श्री अहंत परमेष्ठिने महार्घ निर्वपामीति स्वाहा।
जयमाला
-दोहाजिसकी शुद्धि के बिना, जिनवर सीझे नाहिं। उसकी शुद्धि के लिए, जिनवर पूज रचाहिं ।।९।।