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5 चौंतीस शुद्ध चारित्र व्रत मंडिताय अर्हन्त परमेष्टिने पुष्पम । निर्वपामिति स्वाहा।
नानाविधि के पकवान, कंचन थाल भरूं । मैं जंजू चरण ढिग आन. भूख व्यथा जुहरू ।। बारह सौ चौंतिससार. प्रोषध सुख कारी।
मैं पूजों विविध प्रकार, आतम हितकारी ।। ॐ हीं अष्टदश दोष रहित षट् चत्वारिंशद गुण सहिताय बारह सौ चौं तीस शुद्ध चारित्र व्रत मंडिताय अर्हन्त परमेष्ठिने नैवेद्यं निर्वपामिति स्वाहा।
तम खण्डन दीप अनूध, तुम पर निकले . . मम मोह हरो शिव भूप. याते पूज करूं।। बारह सौ चौंतिससार. प्रोषध सुख कारी।
मैं पूजा विविध प्रकार, आतम हितकारी ।। ॐ हीं अष्टदश दोष रहित षट् चत्वारिंशद् गुण सहिताय बारह सौ चौं तीस शुद्ध चारित्र व्रत मंडित्ताय अर्हन्त परमेष्ठिने दीपम् निर्वपामिति स्वाहा।
दसविधि की धूप बनाय, पादक में खेऊ । मम दुष्ट करम जल जाय, तुम पद नित खेऊ ।। बारह सौ चौं तिससार. प्रोषध सुख कारी।
मैं पूजी विविध प्रकार. आतम हितकारी।। ॐ हीं अष्टदश दोष रहित षट् चत्वारिंशद् गुण सहिताय बारह सौ चौतीस शुद्ध चारित्र व्रत मंडिताय अर्हन्त परमेष्ठिने धूपम् निर्वपामिति स्वाहा
बादाम सुपारी लाय, केला फल प्यारे । तुम शिव फल देहु दयाल तुम पद फल धारे।।