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* सोरठा * व्रत चारित्र प्रमाण चारित्र पालें वीर वर ।
ते पायें निर्वाण आगे कर्म नशाय के ।। ॐ ह्रीं अष्टादश रहिताय षट् चत्वारिंशत गुण सहिताय बारह सौ चौंतीस चारित्र गुण मंडिताय श्री अर्हन्त परमेष्ठिने पूर्णा निर्वपामिलि स्याहा।
जो विशुद्ध मन से सदा चारित पाले वीर । ते वसु कर्म नशाय के पहुंचे भव के तीर ।।
"इत्याशीर्वाद" पुष्पाञ्जलि क्षिपेत्।