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ॐ हीं मनसाकृतनपुंसकवेदाभ्यंतरपरिग्रहविरतिमहा व्रतपोषधोद्योतनाय नमः।। १।। ॐ हीं मनसाकारितनपुंसकवेदाभ्यंतरपरिग्रहविरति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। २।। ॐ हीमनसानुमोदितनपुंसकवेदाभ्यंतरपरिग्रहविरति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ३।। ॐ हीं वचसाकृतनपुंसकवेदाभ्यंतरपरिग्रहविरतिमहा व्रतपोषधोद्योतनाय नमः।। ४।। ॐ हीं वचनाकारितनकदारपरिग्रहदिरति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः ।। ५।। ॐ हींवचसानुमोदितनपुंसकवेदाभ्यंतरपरिग्रहविरति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ६।। ॐ हीं वपुषाकृतनपुंसकवेदाभ्यंतरपरिग्रहविरतिमहा व्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ७।। ॐ हीं वपुषाकारितनपुंसकवेदाभ्यंतरपरिग्रहविरति महाव्रतप्रोषधोद्योतनाय नमः।। ८।। ॐ हीं वपुषानुमोदितनपुंसकवेदाभ्यंतरपरिग्रहविरति महाव्रत प्रोषधोद्योतनाय नमः।।६।। इति परिग्रहविरतिमहाद्रतस्य जयादश. प्रकारः ६१
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