Book Title: Yogvinshika Prakaranam
Author(s): Haribhadrasuri, Yashovijay Gani, Kirtiyashsuri
Publisher: Sanmarg Prakashan
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________________ 15 54. . 127 129 131 120 135 60. 136 61. 136 137 141 142 143 145 145 147 147 अचिकित्स्यः साधुसमयसद्भावः किञ्चिदपि विध्यनुष्ठानेनैव कल्याणाप्तिः चैत्यवन्दनं स्वातन्त्र्येण मोक्षहेतुः प्रीत्यादिचतुष्प्रकारमनुष्ठानम् प्रीत्यनुष्ठानस्वरूपम् भक्त्यनुष्ठानस्वरूपम् वचनानुष्ठानस्वरूपम् असङ्गानुष्ठानस्वरूपम् असङ्गानुष्ठानमेवानालम्बनो योगः सालम्बननिरालम्बनयोगयोः स्वरूपम् अनालम्बनयोगः सामर्थ्ययोगश्च केवलिनो व्यापारः - सालम्बन उत निरालम्बनः ? 19 केवलिनो ध्यानाभावः ध्यानस्वरूपम् त्रिविधध्यानम् जिनकल्पिकादीनां निरालम्बनध्यानसङ्गतिः निरालम्बनध्यानस्य फलपरम्परा 20 सम्प्रज्ञातासम्प्रज्ञातसमाधिस्वरूपम् / / परिशिष्टानि / / 1 : उपा. श्रीदेवचन्द्रगणिविरचितवृत्तिसमेतं - महो. श्रीयशोविजयजीगणिरचित ज्ञानसारान्तर्गतं योगाष्टकम् / 2 : स्वोपज्ञटबार्थयुक्तं - महो. श्रीयशोविजयजीगणिरचितज्ञानसारान्तर्गतं योगाष्टकम् / 3 : (A) उपदेशरहस्यप्रकरणान्तर्गतं पदार्थादीनां स्वरूपम् / (B) उपदेशपदग्रन्थान्तर्गतं पदार्थादीनां स्वरूपम् / 4 : योगविंशिकामूलग्रन्थस्याकारादिक्रमः / 5 : योगविंशिकाविवरणे विविधग्रन्थोद्धृतपाठाकारादिक्रमः / 6 : योगविंशिकाविवरणोपयुक्तव्याख्या / 7 : योगविंशिकाविवरणे यौगिकशब्दाः / 8 : योगविंशिका-टीप्पण्यामुपयुक्तानि ग्रन्थरत्नानि / 148 150 151 161 167 175 179 185 187 189 192 193

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