Book Title: Vyakaran Siddhant Param Laghu Manjusha
Author(s): Nagesh Bhatt, Kapildev Shastri
Publisher: Kurukshetra Vishvavidyalay Prakashan

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Page 7
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (ख) दुरुहता विद्यमान है । परन्तु पूर्ण अध्यवसाय एवं परिश्रम के साथ गवेषणा बुद्धि से यदि नागेश के ग्रन्थों, विशेषतः तीनों मंजूषानों, का मनन किया जाय तो व्याकरण दर्शन के सर्वागीण अध्ययन की दिशा में पर्याप्त नवीन सामग्री प्राप्त हो सकती है। नैयायिक परम्परा में जगदीश तलिंकार की शब्दशक्तिप्रकाशिका में भी व्याकरण दर्शन के तत्त्वों का नयी रीति से विवेचन किया गया है। नागेश के ग्रन्थों में शब्दशक्तिप्रकाशिका के कुछ सिद्धान्तों का खण्डन मिलता है। हमें यह प्रसन्नता है कि परमलघुमंजूषा के संस्कर्ता एवं समीक्षक डॉ० शास्त्री ने विशेष अध्यवसाय के साथ इस अति गहन एवं दुरूह ग्रन्थ का आदर्श सम्पादन तथा विवेचन एक विद्वान् गवेषक की दृष्टि से किया है। नागेश भट्ट कहाँ तक पूर्ववर्ती आचार्यों तथा व्याख्याताओं के ऋणी हैं इस का भी निर्णय इस अध्ययन में किया गया है । इस दृष्टि से भूमिका में किया गया कौण्ड भट्ट तथा नागेश भट्ट का तुलनात्मक अध्ययन विशेष महत्वपूर्ण है। मेरा पूर्ण निश्चय है कि परमलघुमंजूषा का यह संस्करण व्याकरण दर्शन के विद्वानों तथा अन्वेषक एवं जिज्ञासु छात्रों सभी के लिए विशेष उपयोगी सिद्ध होगा । डॉ० शास्त्री सम्प्रति नागेश भट्ट के अन्य ग्रन्थ वैयाकरणसिद्धान्तलघुमंजूषा, जिसे परमलघुमंजूषा का बृहद् रूप माना जाता है तथा जो समुद्र के समान संस्कृत वाङ्मय के सभी ज्ञान-स्रोतों को अपने विशाल कलेवर में समन्वित किए हुए है, के सम्पादन में रत हैं । आशा है निकट भविष्य में वह ग्रन्थ भी इसी पद्धति से एक आदर्श संस्करण के रूप में उपलब्ध होगा तथा उसके द्वारा व्याकरण दर्शन को नागेश भट्ट के अद्भुत योगदान का एवं उनके असाधारण वैदुष्य का व्यापक चित्र हमारे समक्ष उपस्थित हो सकेगा। मेरी प्रभु से मंगल कामना है कि डॉ० शास्त्री की समर्थ लेखनी के द्वारा व्याकरण दर्शन का क्षेत्र अधिकाधिक प्रशस्त एवं आलोकित हो । गोपिका मोहन भट्टाचार्य संस्कृत विभाग, कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय २०-१-७५ For Private and Personal Use Only

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