Book Title: Vishwashanti aur Ahimsa
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 21
________________ विश्व शान्ति और अहिंसा पदार्थवादी दृष्टिकोण मनुष्य में अहंकार की वृत्ति है इसलिए वह बड़ा बनना चाहता है । अथवा सबसे बड़ा बनना चाहता है । इस महत्त्वकांक्षा से पदार्थवाद की आधारशिला निर्मित हुई है। मनुष्य में संवेदन है। वह प्रिय संवेदन चाहता है। इस सुखवादी और सुविधावादी दृष्टिकोण ने पदार्थवाद का प्रासाद खड़ा किया है। पदार्थवाद के प्रासाद की ऊंचाई को छूने वाला कोई भी व्यक्ति नीचे खड़े लोगों की ओर देखना ही नहीं चाहता । आज व्यक्ति-शक्ति अपने अहंकार और सुख-सुविधा की दिशा में लगी हुई है। फिर हम विश्व शांति और अहिंसा की बात कैसे सोचें और कैसे उसकी क्रियान्विति करें? शांति और अहिंसा कोरा दर्शन ही नहीं है, वह एक आचरण है । सिद्धांत की अपेक्षा आचरण का पक्ष अधिक कठिन है। पूरे समाज का आचरण महत्त्वाकांक्षा और सुख-सुविधावाद से संप्रेरित है। इसका परिणाम अशांति और हिंसा है। उसे बदलने के लिए हम कैसे सफल हो सकते हैं? यह प्रश्न एक बार नहीं, अनेक बार मन को आंदोलित कर देता है । हम अहिंसा की बात सोचते हैं पर समझ नहीं पाते कि हिंसा के चक्र को कहां से तोड़े? क्या महत्त्वाकांक्षा को त्यागना इतना सरल है कि चर्चा और चिंतन-मात्र से आदमी उसे छोड़ देगा? क्या सुख-सुविधा को त्यागना इतना सहज है कि आदमी अहिंसा के विचार को पढ़कर सुख-सुविधा से विमुख हो जाएगा? महत्त्वाकांक्षी और सुख-सुविधा की विमुखता नहीं होगी तो शस्त्रीकरण की होड़, युद्ध, अशांति और हिंसा का चक्र भी नहीं टूटेगा। अमेरिका और रूस शस्त्र-परिशीलन के लिए तैयार होंगे तो कोई तीसरा-चौथा राष्ट्र परमाणु शस्त्रों को बढ़ाने की बात सोचेगा। फिर शक्ति-संतुलन का प्रश्न खड़ा हो जाएगा। शक्ति-संतुलन को बनाए रखने के लिए विकसित राष्ट्रों में फिर शस्त्र-निर्माण की होड़ शुरु हो जाएगी। इस प्रकार जागतिक अशांति और विश्व युद्ध का खतरा हमेशा बना रहेगा। निःशस्त्रीकरण युद्ध की समस्या का एक समाधान है किन्तु युद्ध की पृष्ठभूमि पर विचार किए बिना यह समाधान पर्याप्त नहीं है। विस्तारवादी मनोवृत्ति, अपनी राजनीतिक प्रणाली और जीवन-प्रणाली को व्यापक बनाने का प्रयत्न, अपने संप्रदाय में पूरे विश्व को दीक्षित करने का प्रयत्ल-यह सब युद्ध की पृष्ठभूमि है। हम लोग यदि विश्व शांति और युद्ध-वर्जना की बात सोचें तो हमें सबसे पहले पृष्ठभूमि की समस्याओं को सुलझाने की बात सोचनी चाहिए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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