Book Title: Vishwashanti aur Ahimsa
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 45
________________ विश्व शान्ति और अहिंसा ___महाराजा ने नमस्कार किया और कालूगणी ने सामने तक नहीं देखा । अब क्या होगा? महाराजा क्रुद्ध हो जाएंगे। यह अच्छा नहीं हुआ। अब क्या करना चाहिए? मंत्रीमुनि और कुछ श्रावकों ने इस चिंतन में रात का बहुत भाग बिता दिया। पूज्य कालूगणी समय पर लेट गए। न कोई चिन्ता, न कोई भय । आपने उन सबसे कहा-“इतनी चिन्ता क्यों करते हो? हमने जानबूझ कर किसी की उपेक्षा नहीं की। हमें ज्ञात ही नहीं हुआ तो हम क्या करते ? अब हम किस बात के लिए भयभीत बनें?" उनके जीवन में यह अभयवृत्ति किसी भी प्रसंग में देखी जा सकती थी। सहिष्णुता की विजय . बीकानेर में चातुर्मास था। वहां जैनों के एक सम्प्रदाय ने पूज्य कालूगणी का प्रचण्ड विरोध किया। विरोध भी उतना तीव कि उसमें आयस अस्त्रों का प्रयोग तो नहीं हुआ, पर गालियों के अस्त्रों का प्रचुर मात्रा में प्रक्षेपण किया गया। विरोध की उपता देख पूज्य कालूगणी ने साधु-साध्वियों को एकत्रित किया । उनको निर्देश देते हुए आपने कहा-“कोई कुछ भी कहे, तुम्हें मौन और शान्त रहना है। कोई किसी प्रकार की उत्तेजना न करे। अपने रास्ते आना और अपने रास्ते जाना। तुम्हारी ओर जो तीर फेंके जाएं, उन्हें शान्ति से सहना है। किन्तु असहिष्णुता का प्रतिकार असहिष्णुता से नहीं करना है।" किसी प्रसंग में एक मुनि ने आवेशात्मक प्रतिकार किया। ज्ञात होने पर उन्हें प्रायश्चित् दिया गया। इससे अन्य सभी मुनियों को सजग रहने का अवसर मिल गया । सहिष्णुता का परिणाम आया। आवेश हारा, अनावेश की विजय हुई । आक्रोश हारा,शान्ति की विजय हुई । इस सहिष्णुता के पाठ ने मुझे इतना प्रभावित किया कि मैं उसी बीकानेर में एक भंयकर घटना को टालने में सफल हुआ। एक दुर्घटना टली मुझे आचार्य बने एक-सवा वर्ष ही हुआ था। उस वर्ष का चातुर्मास बीकानेर में था। चातुर्मास सम्पन्न होने पर मैं विहार कर रहा था। साथ में हजारों लोगों की भीड़ थी। जैसे ही हम बीकानेर की “लाल कोटड़ी” से बाहर मुख्य सड़क पर आए, सामने से एक दूसरे सम्प्रदाय के आचार्य का जुलूस आ रहा था। रांगड़ी चौक में हम आमने-सामने थे। कौन किसके लिए रास्ता छोड़े ऐसी फूसफुसाहट शुरु हो गई। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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