Book Title: Vishwashanti aur Ahimsa
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 58
________________ अनेकान्त और अहिंसा विचार-भेद प्रत्येक मनुष्य का अस्तित्व स्वतन्त्र है इसलिए चिन्तन का भेद होना स्वाभाविक है। यदि वह यन्त्र द्वारा संचालित होता तो एक ही प्रकार से सोचता। वह वैसा नहीं है Raat अपनी-अपनी चेतना है, इसलिए अपना-अपना चिन्तन हो, यह अस्वाभाविक नहीं है। यह विचार का भेद संवेग से प्रभावित होकर संघर्ष की स्थिति का निर्माण करता है। रुचि-भेद इन्द्रिय संवेदना सब मनुष्यों की एक जैसी नहीं होती। एक ही वस्तु किसी मनुष्य के लिए सुख के संवेदन का हेतु बनती है और किसी के लिए दुःख के संवेदन का । संवेदन की भिन्नता में कोई संघर्ष नहीं है। इसमें संघर्ष की चिनगारी डालने वाला संवेग ही है। स्वभाव-भेद जितने मनुष्य उतने स्वभाव, नाना प्रकार की आदतें । स्वभाव भेद के लिए उत्तरदायी है मनुष्य के आन्तरिक व्यक्तित्व की संरचना | स्वभाव-भेद के कारण जो टकराव होता है, उसके लिए उत्तरदायी है संवेग । १ संवेग-भेद मनुष्य मनुष्य में होने वाले भेद का प्रमुख कारण है संवेग किन्तु सब मनुष्यों में संवेग समान नहीं होता । उसका तारतम्य ही भेद का सृजन करता है। संवेग की तरतमता के मुख्य प्रकार तीन और अवान्तर प्रकार नौ हैं १. मृदु अल्प मात्रा वाला संवेग । २. मध्य-मध्य मात्रा वाला संवेग । ३. तीव्र - अधिक मात्रा वाला संवेग । मृदु के तीन प्रकार हैं १. मृदु । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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