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विश्व शान्ति और अहिंसा व्यवहार है। लोकसभा और विधानसभा में विपक्ष का महत्त्वपूर्ण स्थान है,फिर भी उसके प्रति आदर का दृष्टिकोण कम रहता है,विरोधी जैसी व्यवहार अधिक होता है।
साधना-पक्ष-प्रतिपक्ष का सिद्धांत सार्वभौम नियम है। फिर भी मनुष्य अपनी संवेगात्मक प्रकृति और विरोधी हितों के कारण प्रतिपक्ष को अपना शत्रु मान लेता है। इस संवेगात्मक दृष्टिकोण को बदलने के लिए सामंजस्य की साधना बहुत सहयोगी बनती है। प्रतिपक्ष का आदर करना अस्तित्व की सुरक्षा का महत्त्वपूर्ण पहलू है।
विरोधात्मक दृष्टिकोण को बदलने के लिए सामंजस्य की अनुप्रेक्षा की जाती
सह-अस्तित्व
दार्शनिक-पक्ष:-प्रत्येक वस्तु में अनन्त विरोधी युगल हैं। वे सब एक साथ रहते हैं।
व्यवहार-पक्ष:-दो विरोधी विचार वाले एक साथ रह सकते हैं। “तुम भी रहो और मैं भी रहूं", यही सूत्र हमारे जगत् का सौन्दर्य है । इसलिए विरोधी को समाप्त करने की बात.मत सोचो। सीमा का निर्धारण करो। तुम अपनी सीमा में रहो, वह अपनी सीमा में रहे। सीमा का अतिक्रमण मत करो।
'साधना-पक्ष :-विरोध हमारी मानसिक कल्पना है। सह-अस्तित्व में वही बाधक है। यदि हम भय और घृणा के संवेग का परिष्कार करें, तो सह-अस्तित्व की बाधा समाप्त हो सकती है। संवेग-परिष्कार के लिए सह-अस्तित्व की अनुप्रेक्षा उपयोगी है।
स्वतन्त्रता
दार्शनिक-पक्ष :-प्रत्येक पदार्थ का अस्तित्व स्वतंत्र है। कोई किसी के अस्तित्व में हस्तक्षेप नहीं करता, इसलिए सब पदार्थ अपने-अपने मौलिक गुणों के कारण अपनी विशिष्टता बनाए हुए हैं।
व्यवहार-पक्ष :-मनुष्य की स्वतन्त्रता अथवा व्यक्तिगत स्वतन्त्रता का
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